सन्त श्रोमणी सत्गुरु स्वामी टेउनराम महाराज

भारत भूमि आध्यात्मिक भूमि है। यह अवतारी पुरुषों एवं ब्रह्मग्यानी संतों की कर्म भूमि है। यहां हर प्रान्त तो क्या हर गाव संतों के जन्म से पवित्र हुआ है। वैदिक जन्म स्थली, प्राचीनता मोहन जो दड़ो संस्कृति की दात्री सिंध भूमि में भी एक से बढ़कर एक महात्मा एक संत उत्पन हुए जिन्हों ने स्वयं तो मोक्ष प्राप्त किया साथ ही समाज को भी मुक्ति मार्ग पर अग्रसर किया। ऐसी महान परम्परा में सन्त सदगुरु स्वामी टेउनराम व्यक्ति अग्रणी हैं।

स्वामीजी का जन्म सिन्ध प्रान्त के हैदराबाद जिले के खण्डू गांव में भगत चेलाराम फुलवगी के घर में हुआ। घर में पहिले से ही अति पवित्र, प्रेम मय आध्यात्मक वातावरण था। संतो का आना जाना एवं भजन कीर्तन निरन्तर होता रहता था। बालवा टेउन के माता पिता भी लगातार घर में भजन कीर्तन करते थे। इन सारी बातों का बालक टेउन के निर्मल मन पर सात्विक प्रभाव होता गया। के प्रभू रंग में रंगते गये। कभी कभी पिता भी अनुपस्थिती में वे भजन कीर्तन करते थे एवं स्वयं कई भजनों की रचना करते थे एवं उन्ही को सुर लय ताल देकर इक तारा बजाकर जाते थे। उन का मन पढ़ाई में नहीं लगता था, वहां भी वे भजन लिखते एवं गाते थे। उनके बड़े भाई एवं पिताजी उन को दुकान पर भेजते थे तो वहां भी वे गरीबों और जरुरत मन्दो को मदद करने और शीघ्र वापस आ जातो। खेतों में जाते तो वे किसी झाड़ के नीचे बैठकर ध्यान मडन हो जाते अर्थात सांसारिक बातों में उन का मन नही लगता था। लेकिन परमात्मा से एक रूप हो जाते थे।

उनके भजन कीर्तन का प्रभाव एवं प्रवचनों की कीर्ती इतनी बढ गयी कि अब सैकड़ो लोग उनके प्रवचनों में आने लगे। उन्हों ने प्रभू नाम प्रचार के लिये ‘प्रेम प्रकाश मण्डल’ की स्थापना की। जिस का ध्येय था जीवन से अज्ञान को दूर कर लोगों को सत्कर्मों में लगाकर प्रभू मार्ग में प्रेरित करना। उन्होंने ‘प्रेम प्रकाश’ ग्रंथ लिखा जो भाकित मार्ग का अति श्रेष्ठ ग्रंथ माना जाता है। उस में उनके सैकड़ों अजब है। उन्हें संगीत के राग रागणियों का भी गहरा अध्ययन था, अत: यह ग्रंथ आध्यात्मक संसार का खजाना है। 30 वर्ष की छोटी आयू में ही अपने शिष्यों को लेकर अपने गांव को छोड़कर सब को प्रभू मार्गं पर चलाने के लिये निकल पड़े। सिन्ध में टण्डे आदम गाव में झगल के बीच रेती के टीलों पर अपना आश्रम बनाया जो अमरापुर आश्रम के नाम से प्रसिद्ध हुआ। यहां से भक्ति एवं आध्यात्मकता की नाभ से प्रसिद्ध हुआ। यहां से भक्ति एवं आध्यात्मकता की एसी गंगा बही जिस ने सारे सिन्ध प्रान्त को आत्मिक आनन्द में भाव विभोर कर दिया। स्वामी टेउनराम यहा से सिन्ध के हर गांव में जाते एवं सेवा, सादगी, परोपकार, श्रेष्ठ एवं पवित्र जीवन बिताने के साथ भक्ति एवं प्रभू भजन सिखाते थे। उन का दृढ मत था कि अपने धर्म पर पक्का टिके रहने से ही मोक्ष की प्राप्ती होती है, प्रभू मिलता है।

उनके सनातन जीवन की श्रेष्ठताओं में कहीं कहीं स्वभाविक चमत्कारों का भी दर्शन होता है। शुरु के दिनों में एक बार एक बडी विधवा के दरवाजे के आगे एक कुतिया मर गयी बदबू होने लगी। सफाई वाली बाई भी हटाने के लिये बहुत अधिक पैसे मांगने लगी जो बुढ़िया के पास नहीं थे। स्वामी जी के वहां से गुज़रने पर बुढ़िया ने स्वामीजी से कहा। स्वामीजी कुतिया को रस्सी बांध कर घसीटकर झंगल में छोड़ आये। कुछ लोगों ने इस बात की पंचायत में शिकायत कर दी और पंचायत वालों ने टेउनराम पर दण्ड लगा दिया। अब चार पांच घण्टे भी नहीं बीते होंगे कि सिन्धू नदी का पानी उछलता हुआ उस खण्डू गांव में घुसने लगा। डर के मारे कुछ समझदार लोगों ने पंचायत वालों से कहा यह सन्त के अपमान का परिणाम है। पंचायत दौड़कर गयी और माफी मांगी। सन्त ने नम्रता से कहा ऐसा कुछ नहीं चलो मिल कर वरुण देव की प्रार्थना करते हैं। स्वामी ने सिन्धू का पानी छू कर बिनती की और कुछ ही समय में नदी शांत हो गयी।

एक बार एक प्रेमी भगत ने स्वामी टेउनराम को प्रवचन के लिये बुलाया था और भजन मण्डली एवं आश्रम के लोग करीब सौ होंगे ऐसा मान कर उन्होंने करीब डेढ सौ लोगों का भोजन बनवाया। प्रवचन होने के बाद स्वामी जि ने सभी श्रद्धालुओं से कहा सभी भोजन रुपी प्रसाद लेकर जाये। भोजन प्रारम्भ हो गया तब वह भगत घबराया हुआ आया, स्वामी के पांव पकड़ कहा कि मैने तो सिर्फ 150 के योग्य भोजन बनवाया है। यहां तो हजार से भी अधिक भोजन करता है कैसे पूरा होगा। इतना जल्दी तो मैं बनवा भी नहीं सकता। संत ने प्रेम से उसके सिर पर हाथ रखकर कहा तूने मेरी मण्डली को भोजन करवाने का ज्योता दिया है तू वह बिना बाकी को मैने निमन्त्रण दिया है मैं देखूंगा। ऐसा कहकर उन्होंने पानी से भरा एक लोटा उनको दिया और कहा यह पानी सारे भोजन पर छिटक दे और यह चदर भोजन पर डाल दे और भोजन चालू रख। ऐसा चमत्कार हुआ कि सभी लोगों ने मोजन किया फिर भी भोजन बाकी था। ऐसे अनेक चमत्कार उनके सन्त जीवन में स्वाभाविक ढंग से हुए जिस का कभी दिखावा उन्होंने नहीं किया कभी श्रेय नहीं लिया।

सदगुरु स्वामी टेउनराम महायोगी पुरुष थे। संतों के सर्व गुण उन में भरे हुए थे। वे केवल सन्त नहीं थे। सन्त परम्परा को बनाये रखने का श्रेय भी उनको जाता है। सिन्द प्रान्त मे तो अनेक आश्रम एव मन्दिर बनवाये थे लेकिन भारत वर्ष में भी प्रेम प्रकाश मण्डल के ढसो अति श्रेष्ठ आध्यात्मकता से लेकर सारे सेवा कार्य करते हुए आश्रम एवं मन्दिर है जहां सन्त परम्परा चलाते हुए सन्त प्रमुख हैं। प्रेम प्रकाश मण्डल का प्रमुख आस्थान जयपुर में हैं जहां इस समय स्वामी भगत प्रकाश महाराज प्रमुख स्थान पर हैं। अन्य स्थान हैं हरिद्वार, आगरा, अजमेर, कोटा, रंगस्थल, अहमदाबाद, इन्दोर, बडोदा, पूना, मुंबई एवं सिन्धुनगर हांग कांग और भारत में और भी अनेक जगहों पवित्र आश्रम हैं। इस परम्परा में सब से पहले दूसरे महान सन्त हुए वे थे स्वामी सर्वानन्द जी महाराज एवं सद्गुरु स्वामी शांती प्रकाश जी। स्वामी शांती प्रकाश जी ने सिन्धू नगर अर्थात उल्हासनगर मे अतिश्रेष्ठ समाज की सर्वांगीण उन्नती करने वाला आश्रम बनवाया जिसे स्वामी शांती प्रकाश आश्रम के नाम से जाना जाता है। इस आश्रम को सन्त है सद्गुरु श्री देव प्रकाश जी। इस आश्रम में अति विशाल अन्य मन्दिर एवं सत्संग सभाग्रह हैं। जहां दैनदिन भक्ति से लेकर वेदान्त पर प्रवचन होते हैं। अति भव्य, विशाल और स्वच्छ गौ शाला है जहां 1600 तक स्वस्थ गायें है और कुछ बीमार। शानदार कृष्ण मन्दिर है जिस में मुरली की धुन एवं कृष्ण भक्ति गीत वृन्दावन जैसा वातावरण पैदा करते हैं। हजारों भक्त गौशाल में गौ सेवा करते हैं। शुद्ध घी दूध बेचा जाता है। सैकड़ो सेवा के अन्य कार्य किये जाते है। स्कूल, धर्मशालाए वृद्धाश्रम जैसे कार्य बहुत बड़े स्तर पर होने हैं। यही सब सभी आश्रमोें में सभी संत कर रहे हैं। यही सन्त परम्परा को चलाने का महान पुण्य जाता है स्वामी सद्गुरु सन्त टेउनराम जी को। उन्होंने वे वर्ष 1942 को संसार की यात्रा पूरी कर मोक्ष को प्राप्त हुए साथ ही हमेशा चलने वाली सन्त परम्परा दे गये। ऐसे ब्रह्मज्ञानी, महान संत को कोटि कोटि प्रणाम।

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