वेंडी ने रामायण को विकृत किया

‘द हिंदुज: ऐन आल्टरनेटिव हिस्ट्री’ नामक पुस्तक में अंग्रेज लेखिका वेंडी डोनिगर ने नौ क्रमांक का एक पूरा अध्याय महान महाकाव्य रामायण को समर्पित किया है। इस अध्याय का शीर्षक है, ’थेाशप रपव जसीशीीशी ळप ठरारूरपर: 400 इउए ीें 200 उए’ अर्थात रामायण में महिलाएं और राक्षसियां : ईसवी सन पूर्व 400 से ईसवी सन 200।

इस अध्याय में राक्षसियों के बारे में बहुत कम बातें पढ़ने को मिलती हैं। सीता के बारे में जरूर विस्तार से लिखा गया है। जो महाकाव्य सदियोें से हिंदुओं के लिए पूज्य माना जाता रहा है वह वेंडी के लिए कोई खास महत्व नहीं रखता। इस महान महाकाव्य में वे कामुकता और पशुवत मनोविकारों की मूल प्रवृत्ति की तलाश करती हैं। रामायण के चरित्रों का उनका कथित विश्लेषण पूरी तरह झूठे तथा तोड़मरोड़कर प्राप्त किए गए निष्कर्षों से पूर्ण है। इसके जरिए उन्होंने रामायण के नायक राम और उनकी पत्नी सीता के चरित्र को कलुषित करने का प्रयास किया है। हिंदू राम को भगवान विष्णु का अवतार मानकर पूजते हैं। वे राम को मर्यादा पुरुषोत्तम मानते हैं। पर वेंडी राम को चरित्रहीन पात्र, संशयी पति के रूप में चित्रित करती हैं। चूंकि वेंडी ने अपनी पुस्तक में रामायण के उद्धरण दिए हैं अत: इस लेखक ने भी वाल्मीकि रामायण के मूल पाठ का संदर्भ लिया है। रामायण के दो संस्करण-तिलक की टिप्पणी के साथ 1930 में प्रकाशित ‘रामायण की तिलक टीका मूल पाठ’(ढळश्ररज्ञ ढळज्ञर ींशुीं ेष ठरारूरपर) अर्थात संक्षेप में टीटीआर तथा 1965 में और उसके बाद ओरिएंटल इंस्टिट्यूट, बडौदा द्वारा प्रकाशित रामायण का आलोचनात्मक संस्करण उपलब्ध हैं। आलोचनात्मक संस्करण का अपना महत्व है, जबकि पारंपरिक तिलक टीका मूल पाठ सदियों से प्रचलित है। वेंडी ने आलोचनात्मक संस्करण पर आधारित उद्धरण दिए हैं। इस लेखक ने आलाचोनात्मक संस्करण और रामायण के तिलक टीका मूल पाठ का संदर्भ दिया है।

बौद्ध और मूलपाठों से साहित्यिक चोरी?

बौद्ध और जैन मूल पाठों में राम की कथा हिंदू परंपरा से कुछ भिन्नता के साथ वर्णित है। इनका जिक्र वेंडी ने अपनी पुस्तक में पृष्ठ 223 पर किया है। वेंडी लिखती हैं कि रामायण के लेखक ने अन्य मूल पाठों से कहानियों की साहित्यिक चोरी की। वेंडी वैदिक और वैदिक गुणोत्तर साहित्य के गहराई से अध्ययन के लिए जानी जाती हैं। वे यह बात कैसे भूल जाती हैं कि राम के वंशज इक्ष्वाकु का जिक्र ऋग्वेद के मूल पाठ 10.60.4 में आता है। अयोध्या का वर्णन अथर्ववेद में मिलता है। भगवान बुद्ध ने दो बार अयोध्या की यात्रा की थी। उस समय अयोध्या एक धार्मिक केंद्र था। भगवान बुद्ध ने वहां धर्मोपदेश भी दिया था। रामायण की कथा से जुड़े होने के कारण ही अयोध्या एक पवित्र शहर था। बौद्ध और जैन मूल पाठों में अयोध्या का जिक्र अयोज्या तथा साकेत के नाम से किया गया है। यह सही है कि बुद्ध युग के बाद रामायण की कथा को औपचारिक पाठ का स्वरूप दिया गया, लेकिन पूरी रामकथा बुद्ध से काफी पहले से ही अस्तित्व में थी। ऋग्वेद की जन श्रुतियों में श्याम वर्ण के नायक के रूप में राम का जिक्र मिलता है। इस तरह हिंदुओें द्वारा बौद्ध और जैन कथाओं की साहित्यिक चोरी का प्रश्न ही नहीं उठता।

लंका में सीता की बंदी: वर्षों या महीनों के लिए

वेंडी ने पृष्ठ 220-21 पर रामायण की कथा का संक्षेप में वर्णन किया है। यहां उन्होंने एक भारी भूल की है। पृष्ठ 221 पर वे लिखती हैं कि रावण ने सीता को चुरा लिया और उन्हें कई वर्षों तक लंका द्वीप पर बंदी रखा। यही बात वे पृष्ठ 224 और 232 पर भी कहती हैं। रामायण की कथा से परिचित लोग अच्छी तरह जानते हैं कि सीता कुछ महीनों तक ही लंका में बंदी थीं। अपनी पुस्तक मे वेंडी ने कहीं भी यह बताने का कष्ट नहीं किया है कि उन्होंने कुछ महीनों की अवधि बढ़ाकर कुछ वर्ष क्यों कर दी? वेंडी जैसी विदुषी से इस तरह की भूल अक्षम्य है।

इसी परिच्छेद में वेंडी लिखती हैं कि राम ने सीता को अग्नि परीक्षा के लिए मजबूर किया (पृष्ठ 221)। यह बयान सचाई से कोसों दूर है। रामायण के मुताबिक राम सीता से कहते हैं कि उन्होंने सीता को मुक्त कराने और रावण वध की अपनी जिम्मेदारी पूरी कर दी है और सीता अब अपनी इच्छघनुसार कहीं भी जाने के लिए स्वतंत्र है। सीता ने स्वयं अग्नि परीक्षा का वरण किया। वेंडी ने पूरे प्रकरण का जिक्र इस तरह किया है मानो राम सीता के चरित्र पर संदेह कर रहे थे। इसी तरह तथ्यों को तोड़ मरोड़कर पूरे अध्याय में वेंडी द्वारा वर्णन प्रस्तुत किया गया है।

कैकेई का ब्लैकमेल

वेंडी लिखती हैं कि दशरथ की सबसे छोटी रानी कैकेई अपने पुत्र भरत की राजगद्दी और राम के वनवास के लिए दशरथ को मजबूर करने के इरादे से ‘सेक्युअल ब्लैकमेल’ करती हैं (पृष्ठ 223) वास्तविकता तो यह है कि राजा दशरथ द्वारा वह उसे पहले दिए गए वरदानों का इस्तेमाल करती है।

सीता का धरती में समा जाना

अपने सतीत्व को दूसरी बार साबित करती हुई सीता खुद को धरती मां को समर्पित कर देती हैं। इस संदर्भ में यह तथ्य भी ज्ञातव्य है कि सीता का जन्म धरती से ही हुआ था। हिंदुओं के विश्वास के मुताबिक सीता का अंतिम निवास स्थान स्वर्ग है क्योंकि वे लक्ष्मी की अवतार थीं। किसी भी हिंदू ने कभी भी यह बात नहीं सोची होगी कि सीता अनंत काल तक धरती के भीतर ही रही होंगी। यदि किसी हिंदू से इस बारे में प्रश्न भी किया जाए तो उसका जवाब होगा कि धरती मां के गर्भ से सीता लक्ष्मी के रूप में स्वर्ग चली गई होंगी। वेंडी के मुताबिक सीता के धरती में समा जाने के वर्षों बाद राम अपनी मृत्यु के पश्वात स्वर्ग चले जाते हैं (पृष्ठ 230)। यहां भी वेंडी कथा को विकृत करती हैं और हिंदुओं की भावनाओं के प्रति अपनी असंवेदनशीलता का परिचय देती हैं। रामायण के मूल पाठ के मुताबिक अयोध्या के कई नागरिकों के साथ राम ने जल समाधि ले ली थी। उनकी मृत्यु नहीं हुई थी बल्कि लक्ष्मी के साथ वे विष्णु लोक चले गए। वे अपने विष्णु रूप में लौट गए। वेंडी के मुताबिक सीता अनंतकाल तक राम से अलग रहती हैं (पृष्ठ 231)। एक औसत हिंदू वेंडी के इस निष्कर्ष को उपहासास्पद मानेगा। वेंडी ने एक अत्यंत हास्यास्पद बात कही हैं। उन्होंने बंदी सीता को रावण की राक्षसियों से यह कहते हुए उद्धृत किया है कि एक मर्त्य महिला एक राक्षस की पत्नी नहीं हो सकती (5.22.3, 5.23.3)। (इस टिप्पणी को अंतर्जातीय विवाह के विरुद्ध चेतावनी के रूप में भी पढ़ा जा सकता है (पृष्ठ 231) जबकि रामायण के मूल पाठ में ही अंतर्जातीय विवाह प्रचलित होने के कई उदाहरण मिल जाते हैं।

विकृत बयान

दीनानाथ बत्रा जैसे लोगों ने वेंडी के बयानों से आहत महसूस किया। ऐसे लोगों ने आरोप लगाया कि ऐसा लगता है वेंडी सचमुच सेक्स की भूखी हैं और उन्हें रामायण मूल पाठ में हर जगह प्रलोभन और सेक्स दिखाई पड़ता है। वेंडी अत्यंत घृणित बयान देती हैं कि अहिल्या एक पौराणिक परपुरुषगामिनी महिला है, जिसकी कथा रामायण में एक नहीं दो बार कही गई है (पृष्ठ 232)। जिस किसी ने भी यह कथा पढ़ी है उन्हें मालूम है कि इंद्र ने अंधेरी रात में जब अहिल्या के पति गौतम ऋषि प्रात: नित्यकर्म करने बाहर गए थे, उसके साथ छल से संभोग किया था। इंद्र ने अहिल्या के पति गौतम का रूप धारण कर संभोग किया था। अहिल्या की कथा कई पुराणों में आती है, पर कहीं भी उसका वर्णन परपुरुषगामिनी के रूप में नहीं हुआ है। राम ने अहिल्या का उद्धार किया था और उसकी गणना प्रात: स्मरणीय पांच स्त्रियों में की जाती है। इसी तरह वेंडी ने सीता के बारे में राम के संदेह का वर्णन रामायण के मूल पाठ से बिल्कुल परे हट कर किया है। वेंडी के मुताबिक जब जुड़वां भाई लव और कुश राम के दरबार में रामायण का गायन कर रहे थे, ‘राम ने उन्हें स्पष्ट तौर पर सीता के पुत्रों के रूप में न कि अनिवार्यत: खुद के पुत्रों के रूप में पहचाना (पृष्ठ 227)। कोई भी हिंदू जो कि राम को आदर्श पुरुष के तौर पर मानता है वेंडी के इस बयान से आहत महसूस करेगा। राम ने कभी भी सीता के चरित्र पर संदेह किया ही नहीं। अग्नि परीक्षा के बाद उन्होंने सीता को स्वीकार किया था। अश्वमेध यज्ञ के दौरान वाल्मीकि ऋषि तथा लव-कुश की उपस्थिति में सीता जब दरबार में लाई जाती हैं, राम वाल्मीकि से क्षमा मांगते हैं और इस बात की पुष्टि करते हैं कि दोनों भाई उनके पुत्र हैं (टीटीआर 7.97-3-5)। सीता को वनवास भेजते समय राम को पता था कि सीता गर्भवती हैं। सीता के गर्भावस्था के दौरान राम उनकी इच्छा के बारे में पूछते हैं और सीता स्पष्ट रूप से कहती हैं कि वे वापस वन में जाकर ऋषि मुनियों के साथ रहने का सुख उठाना चाहती हैं। (टीटीआर 7.42.31-32)।

वेंडी का प्रतिशाली विश्लेषण

सीता के बारे में वेंडी ने एक और बड़ी भूल की है। उनके मुताबिक रामायण की हर अच्छी महिला के भीतर व्यभिचारी तथा कामलोलुप राक्षसी छिपी होती है। राम का दु:खस्वप्न था कि सीता भी एक ऐसी ही महिला साबित होंगी। वेंडी लिखती हैं कि एक तरफ सीता स्त्री के सतीत्व की सार संग्रह हैं और दूसरी तरफ वे शूर्पणखा की तरह एक कामुक महिला हैं। इसी कारण रावण ने सीता की कामना की तथा उनका सफलतापूर्वक अपहरण भी कर सका (पृष्ठ 233)। एक महान विद्वान ने कितनी उच्च कोटि (!) का विश्लेषण किया है? सीता के अपहरण के सिलसिले में वेंडी ने दो नई स्थापनाएं पेश की हैं- (क) सीता स्वेच्छा से रावण के साथ गईं। (ख) वे सीता और शूर्पणखा के बीच सादृश्य दिखाती हैं। वे लिखती हैं कि शूर्पणखा ने राम के बिस्तर में सीता के बदले खुद को रखने का प्रयास किया। उसके इस प्रयास को राम और लक्ष्मण ने व्यर्थ कर दिया। वेंडी के मुताबिक इससे शूर्पणखा और सीता के बीच गहरी समरूपता जाहिर होती है तथा इससे रामायण के मूल पाठ में सीता की कामुकता के प्रति संदिग्धता भी प्रकट होती है (पृष्ठ 233)। सीता के शूर्पणखा स्तर पर तथा राम के बिस्तर को चर्चा में लाकर वेंडी अपनी सुविधानुसार यह तथ्य भूल जाती हैं कि राम और सीता दोनों वनवास के दौरान ब्रह्मचर्य का पालन कर रहे थे। सीता की पूर्ण सहमति से दोनों लगभग 14 वर्षों की अवधि तक ब्रह्मचारी रहे। वेंडी जैसी छोटी सोच रखने वालों के लिए हिंदुओं के इन ऊंचे आदर्शों को समझ पाना संभव ही नहीं है।

राम के चरित्र पर लांछन

इस अध्याय को लिखते समय वेंडी का पूरा प्रयास राम के चरित्र को बुरा बताने का रहा है, जबकि राम का चरित्र हिंदुओं के लिए सदियों से अच्छाई का पुंज रहा है। राम के चरित्र को कलुषित बताने के प्रयास में वेंडी ने गलत उद्धरण दिए हैं तथा मूल पाठ की गलत व्याख्या भी की है। वे लिखती हैं, ‘एक अन्य अवसर पर राम कहते हैं कि वे खुशी से सीता को भरत को दे देंगे (2.16.33)’ यह विशुद्ध मिथ्यापवाद है और मूल छंद को तोड़ना-मरोड़ना है। मूल छंद कैकेई से राम के निवेदन के परिप्रेक्ष्य में हैं। राम कैकेई से कहते हैं कि उन्हें बीच में दशरथ को लाने की जरूरत ही नहीं थी। वे (कैकेई) सीधे राम से कह सकती थीं कि वे (राम) भरत के पक्ष में गद्दी छोड़ दें और राम खुशी-खुशी ऐसा करते। केवल गद्दी ही नहीं वे भरत के लिए सीता, जीवन और धन का भी परित्याग कर देते (2.16.33)। उसी सर्ग में राम आगे कहते हैं कि यदि महान सम्राट मेरे पिता कहते तो आपकी (कैकेई की) खुशी के लिए भी मैं अपने पिता द्वारा आपको (कैकेई को) दिए गए वचनों का पालन करूंगा। यह वेंडी की दिमागी विकृति है कि वे हिंदुओं के आदर्श पुरुष राम के बारे में ऐसी बेतुकी बातें लिखती हैं। राम तो बेझिझक भरत के पक्ष में गद्दी छोड़ने के लिए राजी हो जाते हैं और वेंडी हैं कि उनकी खिल्ली उड़ाने से नहीं चूकती। जब राम सीता से मिलते हैं और सीता को इस बात के लिए राजी करने का प्रयास करते हैं कि वे राम के साथ वन न जाएं, वे (राम) स्पष्ट शद्बों में कहते हैं कि सीता को धार्मिक़ व्रतों को निभाने और उपवास में अपना समय व्यतीत करना होगा (टीआरआर 2.26.29) तथा भरत और शत्रुघ्न की देखभाल खुद के पुत्रों के रूप में करनी होगी क्योंकि वे (भरत और शत्रुघ्न) उन्हें (राम को) अपने जीवन से भी ज्यादा प्यारे हैं (टीटीआर 2.26.33)। वेंडी सीता को भरत के बिस्तर पर देखना चाहती हैं? वेंडी की सोच अत्यंत विकृत है। वे यह भी लिखती हैं कि राम को इस बात का भय था कि लक्ष्मण सीता के साथ सो सकते हैं। एक अन्य स्थान पर वेंडी सीता का चित्रण व्यभिचारिणी के सदृश्य करती हैं। वे लिखती हैं कि सीता चाहत और क्रोध दोनों से रावण को प्रेरित करती हैं। यह कोरी बकवास है और सीता के चरित्र को कलुषित करने के लिए जानबूझकर की गई कोशिश है। लक्ष्मण द्वारा नाक, कान, काट लिए जाने के बाद शूर्पणखा रावण के पास जाती है और उसे सीता का अपहरण करने के लिए उकसाती है। सीता ने नहीं बल्कि शूर्पणखा ने रावण को चाहत और गुस्से से प्रेरित किया था।

वेंडी की संस्कृत भाषा की समझ

वेंडी सरल संस्कृत मूल पाठ को भी पढ़ने में असमर्थ हैं। वे लिखती हैं, ‘राम के वन गमन के पांच वर्षों बाद अचानक आधी रात को दशरथ कौशल्या को जगाते हैं और अपने हाथों हुई श्रवणकुमार की हत्या की घटना के बारे में बताते हैं (पृष्ठ 240)। यह बात वेंडी की घोर अज्ञानता की सूचक है। रामायण की कथा से परिचित सभी लोगों को यह बात मालूम है कि राम को वन मेें छोड़ने के बाद सारथी सुमेत के अयोध्या लौटने के दिन ही दशरथ की मृत्यु हो गई थी। यह घटना राम के अयोध्या छा़ेडने के पांचवें दिन की है जबकि दशरथ श्रवणकुमार की घटना स्मरण करते हैं। वे स्पष्ट शब्दों में कहते हैं कि अभी राम को वन गए पांच ही दिन बीते हैं और ऐसा प्रतीत होता है कि पांच साल बीत गए। रामायण के मूल पाठ के मुताबिक राम वन गमन के बाद दशरथ पांच वर्षों तक जीवित ही नहीं रहे। इससे वेंडी की संस्कृत भाषा की समझ के निम्न स्तर का पता चलता है। ऐसे में उन्हें रामायण पर कलम चलाने वाली एक विश्वसनीय लेखिका कैसे माना जा सकता है।

दंडात्मक कार्रवाई

स्वाभाविक है कि दीनानाथ बत्रा (इंडियन एक्सप्रेस 13 फरवरी 2014) या बलवीर पुंज (इंडियन एक्सप्रेस 21 फरवरी 2014) जैसे लोगों ने वेंडी के इस तरह के दुर्भावनापूर्ण लेखन से आहत महसूस किया। मैंने भी आहत महसूस किया। अब मैं वेंडी को उनकी विद्वता के लिए श्रद्धा की दृष्टि से नहीं देखता। हम हिंदुओं का पुस्तक के प्रकाशक से यह मांग करना न्यायोचित है कि वे इस पुस्तक को वापस ले लें। इस तरह की पुस्तक प्रकाशित करने के लिए प्रकाशक पेंगुइन को दुनियाभर में माफीनामा प्रकाशित करना चाहिए। अंतत: पेंगुइन ने थोड़ी सदाशयता दिखाई है और कहा है कि भारत के बहुसंख्यक लोग वेंडी द्वारा उनकी पुस्तक ‘द हिंदुज : ऐन आल्टरनेटिव हिस्ट्री’ में प्रकट किए गए विचारों से सहमत नहीं हैं।

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