सिंधु संस्कृति का संवाहक सिंधीयत

सिंधु जन की अस्मिता सिंधीयत है। हम सिंधियों के रीति-रिवाज, सोच-विचार, व्यवहार, विचारधारा, शारीरिक मुद्रा, उठना-बैठना, रहन-सहन, खान-पान कुछ विशेष हैं, जिन्हें सिंधीयत कहा जाता है और यह अन्य समाजों से अलग है। हम सिंधी भारत और विश्व के हर कोने में फैले हुए हैं। परिश्रमी सिंधी समाज ने विस्थापित होने के उपरांत भी बिना किसी राज्य या प्रांत के हर जगह किसी न किसी रूप में अपनी पहचान कायम रखी है। आज सिंधी व्यवसायी हांगकांग या लंदन के किसी बैंक मैनेजर के पास जाता है और बैंक की सुविधाएं प्राप्त करने बाबत अपना पक्ष रखता है तो बैंक मैनेजर उससे पूछता है कि आप तो सिंधी लगते हैं। किसी भी प्रस्ताव के प्रस्तुतिकरण और उसको मनवाने का सिंधियों का अपना तरीका है।

सिंधी समाज एक व्यवसायी समाज है और परिस्थितियों के अनुसार परिवर्तनशीलता उसका एक मुख्य गुण है। सिंधी समाज जिस भी प्रांत में रहता है, उसकी स्थानीय भाषा, त्यौहार और उनके सोच-विचार को तुरंत ग्रहण कर लेता है। यह उसकी व्यवसायिक आवश्यकता है। दूसरी ओर उसका सिंधी भाषा पर विपरीत प्रभाव प़डा है। सिंधी भाषा की उपयोगिता का अवमूल्यन हो गया है। विद्यार्थी सिंधी विषय का अध्ययन नहीं कर रहे हैं, फलस्वरूप सिंधी विद्यालय बंद होते जा रहे हैं।
सिंधी समाज की अपने अनिश्चित भविष्य को लेकर चिंता बनी हुई है। शायद इसी कारण विभाजन के पश्चात वे अपनी पहचान छिपाने के प्रयास में अपने गोत्र में से ‘अनि’ हटाकर नया रूप दे रहे हैं। किंतु इस विषय में प्रसिद्ध सिंधी लेखिका प्रो. पोपटी हिरानंदानी ने अपनी पुस्तक ‘सिंधी स्केटर्ड ट्रेजर’ में यह मत व्यक्त किया है कि सिंधीजन विदेश में रहते हुए जिस तरह अपनी लाइफ स्टाइल बदल रहे हैं, उसी तरह अपने नाम भी बदल रहे हैं। उस बदलाव के बावजूद भी वे सिंधीयत का गुण कायम रखने में सक्षम रहे हैं। सिंधी दूर से ही बिल्कुल सिंधी लगता है।

भाषा, साहित्य, संस्कृति और सभ्यता एक-दूसरे से जु़डे हुए हैं। साहित्य, संस्कृति और सभ्यता का स्वरूप है और साहित्य भाषा से ही बनता है। भाषा और साहित्य, संस्कृति और सभ्यता को एक पी़ढी से दूसरी पी़ढी तक पहुंचाते हैं। विभाजन के पश्चात सिंधी जाति के लिए सभ्यता और संस्कृति को पुरानी पी़ढी से नई पी़ढी तक पहुंचाने का साधारण माध्यम किसी न किसी कारण से अवरुद्ध हो गया है। नई पी़ढी समझती है कि उनकी अपनी सिंधी संस्कृति और सभ्यता है ही नहीं। कहने का तात्पर्य यह है कि विभाजन के पश्चात सिंधी समाज हर जगह अल्पसंख्यक बन गया है और सिंधीयत में थो़डा सा स्थानीय रंग भी मिलता जा रहा है। इसे अपनी अवमानना न समझकर यह महसूस करना चाहिए कि सिंधीयत के गुणों में ब़ढोत्तरी हो रही है। वैसे भी सिंध का इतिहास बताता है कि पूर्व में सिंध पर विदेशी आक्रमण होते रहे हैं और उनका प्रभाव सिंधी सभ्यता पर प़डा है।

यहां यह भी उल्लेखनीय है कि गूगल की एक सर्वे रिपोर्ट में उपलब्ध कराए गए आक़डों के अनुसार वर्तमान में सिंधी समुदाय की संख्या यू. एस. ए. में 16 लाख, यू. के. में 9.50 लाख, ऑस्ट्रेलिया में 3.50 लाख, कनाडा में 3.30 लाख, अफ्रीका में 1.50 लाख, दुबई (यू. ए. ई.) में 2 लाख, सिंगापुर मेें 1 लाख, मस्कट में 85,000 फ्रांस में 75,000 व न्यूजीलैंड में 65,000 है। एक अन्य सर्वे रिपोर्ट में लिखा है कि यू. एस. ए. और यू. के. में तीसरी सबसे लोकप्रिय भाषा सिंधी है। उसी प्रकार स्पेन में भी दूसरे नंबर की लोकप्रिय भाषा सिंधी है न कि अंग्रेजी।

विश्व में लगभग 6000 भाषाएं हैं। उनमें लगभग 20 से 50 प्रतिशत छोटे बच्चे ये भाषाएं नहीं बोलते हैं और भाषाई विद्वानों के अनुसार कालांतर में ये भाषाएं समाप्त हो जाएंगी। विद्वानों का यह भी कथन है कि विश्व में 300 भाषाएं ऐसी हैं जिनके बोलने वाले दस लाख से अधिक हैं या जिनको सरकार का समर्थन प्राप्त है, अत: ये भाषाएं सुरक्षित हैं और खत्म नहीं होंगी। सिंधी भाषा भी उनमें से एक है क्योंकि भारत में ही सिंधी भाषियों की संख्या लगभग एक करो़ड से भी अधिक है और प़डोसी देश पाकिस्तान में भी सिंधी बोलने वाले खूब हैं। ये समस्त वास्तविक तथ्य सिंधियों के लिए गर्व की बात है, अत: सिंधी समाज का अस्तित्व एवं अस्मिता सदैव कायम रहेगी।
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