सिंधु तीरे सिंधु भवन

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   संसार की सबसे लंबी २९०० किलोमीटर की लंबाई वाली सिंधु नदी है, जिसकी आवाज स्वर्ग तक पहुंचती है। इतनी विशाल और उपयोगी है यह सिंधु नदी कि अपने किनारों पर ४५,००० वर्ग मील में रहने वाले मानवों एवं प्राणियों की प्यास बुझाती है एवं अन्य आवश्यकताएं पूरी करती है।

झुलसता सिंध

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कभी भारत का हिस्सा रहे पाकिस्तान में इस समय ६ प्रांत हैं। इनमें से एक सिंध प्रांत की आबादी लगभग ३ करोड़ १० लाख है। इस ३ करोड़ में सिंधी भाषा-भाषी लगभग २ करोड़ हैं, जिनमें हिंदू सिंधी लगभग ३० लाख एवं शेष सिंधी मुसलमान हैं।

सिंधी भाषा और लिपि

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 सिंधी, संस्कृत-प्राकृत की व्राचड़ अपभ्रंंश से उत्पन्न हुई, एक अभिजात एवं समृद्ध भाषा है। इसकी मूल लिपि देवनागरी है। व्राचड़ तो ८ वीं से ११ वीं शताब्दी तक सिंध प्रदेश की प्राचीन भाषा मानी गयी है। सिंधी संस्कृतनिष्ठ भाषा है। इस में ७०% से भी अधिक शब्द संस्कृत-प्राकृत के हैं।

नृत्य लालित्य

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  सिंधी लोकनृत्य भारत के अन्य नृत्यों से काफी मेल खानेवाले हैं। रामलीला, रासलीला, गरबा आदि लोकनृत्यों का उनके ऊपर बडा प्रभाव पाया जाता है। वैसे बदलते स्थानों के अनुरूप उनमें ऐसा साम्य होना सहज ही है। सिंधी लोकनृत्यों में विशेष रूप से तीन प्रकार के नृत्य हैं। वे हैं- छेज, टपरी और झुमरी।

ठाणे शहर के विकास में सिंधी समाज का योगदान

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     १  ९४७ में भारत के विभाजन के बाद सिंधी, पंजाबी, बंगाली हिंदुस्तान में आए। सिंधी समाज भी सिंध (अब पाकिस्तान में) से हिंदुस्तान में आया और अलग-अलग प्रांतों में बस गया। जो सिंधी समाज मुंबई में आया उनमें से कुछ लोग माटुंगा, मुलुंड, ठाणे और उल्हासनगर में रहने लगे।

विवेकानंद एज्युकेशन सोसायटी

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1959 का वर्ष था। मुंबई के उपनगर चेंबूर में ध्येय से प्रेरित हुए एक शिक्षणप्रेमी युवक ने विभाजन से विस्थापित हुए निर्वासितों का पुनर्वसन करने का कार्य करते समय एक ऐसी पाठशाला का सपना देखा, जो भारतीय संस्कृति को नंदनवन की तरह विकसित करेगी। जिस युवक ने यह सपना देखा…

संघर्षों का शुक्रिया!

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डॉ. इंदर भान बशीन ने असीम दुख सहे, जीवन जीने के लिए अथक संघर्ष किया है। उनमें संकट से मार्ग खोजने की साहसी वृत्ति है, साथ में ‘जीवन का अर्थ’ जानने की संशोधक वृत्ति भी। उसी जीवन प्रवास की जानकारी देनेवाला साक्षात्कार.....

सिंध के प्राचीन सूफी कवि भिटाई घोटु-शाह अब्दुल लतीफ़

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भिटाई घोटु अर्थात शाह अब्दुल लतीफ़ (1689-1752) सिंध के पहले महान सूफी कवि थे जिन्होंने सिंध के लोगों की आम भाषा में अपना कलाम लिखा। उनका कलाम सीधे-सादे देहाती लोगों को बहुत भाता था। खेतों में हल चलाते किसान, थार की गर्म रेत पर ऊंटों पर सफर करते व्यापारी, गहरे समुद्र में जाल बिछाते मछुआरे आदि सभी इस कलाम को गाते हुए आनंद मग्न हो जाते थे।

संसार के सर्वश्रेष्ठ संतों में एक पूज्य संत साधु वासवाणी

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मां के इस आज्ञावान पुत्र ने इस वचन का पूर्ण पालन किया। यह सच्चा सपूत था साधु वासवाणी। उनका जन्म 25 नवंबर 1879 ई. में सिंध प्रांत के हैदराबाद शहर में हुआ था। उनका पूरा नाम थांवरदास लीलाराम वासवाणी था।

सिंधी समाज की देवता – झूलेलाल

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झूलेलाल सिंधी समाज के धर्मसंस्थापक अर्थात इष्टदेव हैं। उनका जन्मदिवस चैत्र मास की द्वितीया को आता है। उसे सिंधी समाज ‘चेती चांद’ उत्सव के रूप में मनाता है। विश्व में सिंधी समाज जहां कहीं भी हो वहां पारम्पारिक रूप से, उल्लास के साथ यह उत्सव मनाता है। सिंधी समाज के इस इष्टदेव का इतिहास क्या है?

मेरा शहर उल्हासनगर

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असल में उल्हासनगर कोई शहर नहीं था, सेना का कल्याण कैम्प था। 1947 के दरम्यान सिंध प्रांत से आए हुए सिंधी हिंदुओं को रहने के लिए यहां जगह दी गई।

भारतीय सिंध समाज

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प्राचीन काल के भारत के प्रवेश द्वार के बारे में सोचने पर सिंध का नाम तुरंत ध्यान में आता है। सिंधु शब्द का अर्थ है सागर। उस क्षेत्र में बहती हुई इस नदी के विशाल प्रवाह को देखकर आर्यों ने इस भूमि को ‘सिंध’ नाम दिया होगा। अरबी लोग सिंध का उच्चारण ‘हिंद’ करने लगे। आज अपना देश ‘हिंद’ नाम से पहचाना जाता है।

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