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हंसी को हंसी में मत टालिए

हंसी को हंसी में मत टालिए

by pallavi anwekar
in मार्च २०२१, संपादकीय
1

घर से मस्जिद है बहुत दूर चलो यूं कर लें

किसी रोते हुए बच्चे को हंसाया जाए

क्या खूब लिखा है निदा फाजली ने इस शायरी में। वैसे बच्चों को हंसाना कोई बड़ी बात नहीं है। बच्चों का मन इतना साफ होता है कि वे पिछली सारी बातों को भूलकर तुरंत मुस्कुराने लगते हैं। मुश्किल तो बड़ों को हंसाना होता है क्योंकि बड़ों का मन बच्चों की तरह निर्मल नहीं होता। उनमें कई गिले शिकवे होते हैं। पूर्वाग्रहों ने मन में इतनी कड़वाहट घोल रखी होती है कि लाख चाहें पर उससे निजात पाना मुश्किल हो जाता है। कुछ अप्रिय घटनाओं का साया इतना गहरा होता है कि वह प्रसन्नता से भरी अनेक घटनाओं की रोशनी को लील जाता है। आखिर इतना तनाव लेकर जीने वाले हंसे तो हंसे कैसे?

सच कहें तो हंसना एक इतनी सामान्य और सहज क्रिया है, जिसके लिए कोई प्रयत्न नहीं करने पड़ते, परंतु आजकल यही सबसे दुर्लभ चीज बनती जा रही है। गली से, नुक्कड से गुजरने वाले किसी परिचित व्यक्ति का दूसरी मंजिल पर खड़ा आदमी अगर सहज मुस्कुराकर और हाथ हिलाकर अभिवादन कर दे तो तथाकथित सभ्य समाज में इसे असभ्यता माना जाता है। तुरंत घर के बाकी लोग टोक देते हैं कि क्या किसी को भी देखकर हाथ हिला देते हो, कुछ तो खयाल किया करो….! ये खयाल करना वास्तव में इतना बढ़ गया है कि जीवन से सहजता समाप्त होती जा रही है, और चुंकि सहजता समाप्त हो रही है, अत: स्वाभाविक, स्वस्थ हंसी-मुस्कान भी कम हो रही है। घर-परिवार में सदस्य कम हो रहे हैं तो उनके साथ की हंसी-ठिठोली भी कम हो रही है। केवल भाई-बहन ही नहीं देवर-भाभी, जीजा-साली-सहज जैसे रिश्ते तो खास हंसी मजाक के लिए ही होते थे परंतु अब इन लोगों का एक साथ आना-मिलना ही बहुत मुश्किल से हो पाता है तो पारिवारिक हंसी ठिठोली का माहौल भी नहीं बन पाता। दोस्त यारों की महफिल भी बमुश्किल ही जम पाती है इसलिए आजकल हंसना-हंसाना भी प्रोफेशनल हो गया है।

बड़ेे-बड़ेे लाफ्टर क्लब खोले गए हैं, बगीचे में लाफ्टर ग्रुप बनाए जाते हैं, जिनके सदस्य एक साथ जानबूझकर हंसने की कोशिश करते हैं। हंसने और हंसाने वालों की कोशिशें कितनी कामयाब होती हैं ये तो वे ही जानें, पर देखने वालों के मन में यह प्रश्न अवश्य उठता है कि क्या इस तरह जानबूझकर भी हंसा जा सकता है? वास्तव में जानबूझकर हंसना एक क्रिया हो सकती है, परंतु वह न तो हंसने वाले के मन में प्रसन्न भाव उत्पन्न करती है और न ही उसे देखने वाले के।

कोरोना और लॉकडाउन ने लोगों को सोशल मीडिया की ऐसी लत लगा दी है कि अब सहज हंसी के लिए भी लोग स्टैंडअप कॉमेडी, लाफ्टर शो इत्यादि पर निर्भर हो रहे हैं। हालांकि इनमें से अधिकतर कार्यक्रमों का दर्जा इतना गिरा हुआ होता है कि यह तय करना मुश्किल हो जाता है कि हम चुटकुले या हंसी-मजाक के किस्से सुन रहे हैं या गालियों की बौछार। अपने ही देवी-देवताओं का अपमान सुनकर हंसी आना तो दूर खून ही खौलने लगता है। हास्य-मनोरंजन की फिल्में या धारावाहिकों का भी हाल कुछ इसी तरह है। एक तो बनते ही गिनती के हैं और उसमें भी ‘डबल मीनिंग’ संवादों की भरमार होती है। इन्हें न तो बच्चों के साथ बैठकर देखा जा सकता है, न ही बडों के साथ बैठकर। परिणामस्वरूप मनोरंजन और हंसी के ये साधन भी इंसान को उसी एकाकीपन की ओर धकेल रहे हैं, जिससे बचने के लिए लोग इन साधनों की ओर आकर्षित हुए थे।

तो अब हंसने के लिए करें तो करें क्या? किसी अस्पताल के बाहर एक पंक्ति लिखी थी कि ‘दिल खोला होता दिलदार से, तो ना खोलना पडता औजार से।’ मतलब यह कि सबसे पहले तो अपने मन की बातें किसी से कहने की आदत डालें चाहें वह कोई भी हो। माता-पिता, भाई-बहन, पती-पत्नी, दोस्त या और कोई। मन का बोझ कम होगा तो तनाव कम होगा और तनाव कम होगा तो प्रसन्नता को अपने आप जगह मिल जाएगी। दूसरों को हंसाने या प्रसन्न रखने के लिए पहले आवश्यक है अपने मन को प्रसन्न रखना। जो आपके अंदर होगा वही आप दूसरों को दे सकेंगे। अपने मन को प्रसन्न रखने का दूसरा सबसे अच्छा उपाय है अपनी रुचियों का जतन करना और उनके लिए समय निकालना। अपने मन को अच्छे लगने वाले कार्य करते रहने से मन निरंतर ही प्रसन्न रहता है और जब व्यक्ति स्वयं प्रसन्न रहता है तो उसके आस-पास का वातावरण भी अपने आप प्रसन्न हो जाता है।

ईश्वर ने केवल मनुष्य को हंसने का वरदान, तनाव का श्राप और इन दोनों में समतोल साधने का तरीका प्रदान किया है। सम्पूर्ण जीव सृष्टि में केवल मानव ही यह कर सकता है। अत: हंसने के लिए किसी बहाने को ढूंढने की बजाय खुद ही हंसने का बहाना बन जाइए। हो सकता है आपकी प्रसन्नता को देखकर लोग भी प्रसन्न हो जाएं और यदि यह सोच रहे हैं कि इसकी शुरुआत कब से करें तो होली का त्यौहार आ ही रहा है। इस बार रंगों की जगह अपनी मस्ती से लोगों को रंगिए, पानी की जगह अपनी मुस्कान की फुहारें उडाइए, ठंडाई में कुछ अपनेपन की मिलावट कीजिए। खूब हंसिए-हंसाइए-खिलखिलाइए। हंसी को हंसी में मत टालिए।

 

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समय रहते चेत गया हमारा देश

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Comments 1

  1. Dr K N Pandey says:
    4 years ago

    हर्षोल्लास के साथ होली पर्व को मनाने के लिए महत्वपूर्ण सुझाओं के साथ बेहद उमदा लेख। बधाई

    Reply

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