हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
सिंधी समाज के राजनैतिक अधिकार

सिंधी समाज के राजनैतिक अधिकार

by अजित मनियाल
in अगस्त-२०१४, सामाजिक
0

विभाजन के बाद सिंधियों ने भारत माता की गोद में शरण ली। यह गोद तो सदा से हमारी थी, मगर अपने वतन सिंध से बिछ़डने का दुख हमें बेघर होने की अनुभूति देता था। जिसे हम अपनी कहते थे, वह खोने से हमारा राजनैतिक आधार हिल गया। गोपाल कृष्ण गोखले ने कहा है कि राजनैतिक आधार खो जाने से सब कुछ खो जाता है। हमारा कोई राजनैतिक आधार नहीं था। हमने आर्थिक मोर्चे पर सफलता हासिल की लेकिन उससे हमारे राजनीतिक जीवन की क्षतिपूर्ति नहीं हो पाई। राजसत्ता का लाभ हमें भी मिल सके इसलिए कुछ सिंधी बंधु अवसर की बांट जोह रहे थे। हाल ही में अखिल भारत सिंधी बोली एवं साहित्य सभा ने संसद की छह सीटें सिंधियों के लिए रखने का सुझाव दिया और विधि मंडल में जनसंख्या के आधार पर प्रतिनिधित्व की भी बात कही।

इसके बाद पूर्वांचल राज्यों की तरह जहां 1,50,000 का साधारण चुनाव क्षेत्र होता है, उसी प्रकार 60,000 सिंधी मतदाताओं के क्षेत्र में एक सीट आरक्षित किए जाने का प्रस्ताव ‘वर्ल्ड सिंधी कांफ्रेंस’ के कुंदनदास तोतलदास ने रखा था। उच्च पदों पर सिंधी समुदाय के लोगों को नियुक्त किया जाए और कच्छ अथवा अन्य परिसर में सिंधी समाज के लिए गृहभूमि बनाई जाए, ऐसी मांग भी कांफ्रेंस ने की थी।
आनंद हिंगोरानी ने विभिन्न शहरों की यात्रा की और सिंधी समाज की बैठकें लेकर तत्कालीन प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिंह राव से सिंधी समाज के प्रतिनिधि के रूप में चर्चा करने का विचार सामने लाया। उन्होंने नरसिंह राव को बहुत से खत लिखे लेकिन कोई उत्तर नहीं आया। बाद में हिंगोरानी के नेतृत्व में सिंधी प्रतिनिधि मंडल के साथ नरसिंह राव की मुलाकात तय की गई मगर अंतिम क्षणों में उसे भी रद्द कर दिया गया। हिंगोरानी ने स्पष्ट किया था कि सिंधी कांग्रेस कार्यकर्ताओं को सत्ता में भागीदारी मिले इसलिए वे प्रयासरत हैं।

रोचीराम थवानी नामक नागपुर के कांग्रेस कार्यकर्ता ने 2 अक्टूबर 1989 को सिंधियों की राजनीतिक मांगों को लेकर राजघाट पर आमरण अनशन पर बैठने की घोषणा की थी। पांच सिंधी संगठनों ने थवानी को समर्थन दिया और उनके अध्यक्षों की एक समन्वय समिति बनाई गई। उनमें वर्ल्ड सिंधी कांग्रेस के कुंदनदास, इंटरनेशनल सिंधी पंचायतस् फेडरेशन के नरी गुरसहानी, अखिल भारत बोली एवं साहित्य सभा के किरत बबानी, प्रियदर्शिनी अकादमी के नानिक रुपानी, और फे्रंडस् ऑफ इंटरनेशनल सिंधीज के नेरसिंग गोलानी आदि शामिल थे। मगर आनंद हिंगोरानी और सन्मुख इसरानी जैसे कुछ पुराने सिंधी कार्यकर्ताओं ने इस अनशन से दूर रहने का फैसला किया।

इस अनशन के पूर्व नागपुर से केंद्र में मंत्री बनी श्रीमती सरोज खापर्डे ने रोचीराम और अन्य लोगों की प्रधानमंत्री के साथ शीघ्रता से मुलाकात तय की। प्रधानमंत्री ने आश्वासन दिया कि चुनाव होने के बाद सिंधी समाज की राजनैतिक मांगों पर सहानुभूतिपूर्वक अवश्य विचार किया जाएगा। इस खोखले आश्वासन पर रोचीराम ने अनशन करने का विचार त्याग दिया। इस मुलाकात के द्वारा एक ही लक्ष्य साधा गया और वह था ऊपर दिए आश्वासन के आधार पर सिंधी कांग्रेस कार्यकर्ताओं को कांग्रेस प्रत्याशियों के लिए वोट बटोरने में आसानी हो गई। आचार्य भगवानदास द्वारा आयोजित 2 और 3 नवम्बर की सिंधी कांफ्रेंस (जो हो नहीं पाई) भी इसी दिशा में एक पहल थी जिसमें प्रधानमंत्री का भाषण होने वाला था। सिंधी समाज को दिए आश्वासन का क्या हुआ, यह प्रधानमंत्री से किसी ने भी नहीं पूछा। इस बारे में महात्मा गांधी के यह शब्द याद आते हैं कि, ‘डूबती हुई बैंक का पोस्ट डेटेड चेक’।

समय-समय पर यह सिंधी संगठन भारतीय सिंधु सभा को उनकी सभा का निमंत्रण देते रहे। बीएसएस के प्रतिनिधियों ने कुछ चर्चाओं में भाग लिया और इस मामले में राजनीति से ऊपर उठकर कोई निर्णयात्मक भूमिका लेने का आग्रह किया लेकिन इसका कोई लाभ नहीं हो पाया।

पुणे में हुई दो दिवसीय (31 दिसंबर 1988 और 1 जनवरी 1989) कांफ्रेंस में भारतीय सिंधु सभा ने इस मामले पर वापस गौर किया। इसके परिणामस्वरूप स्थानीय समाज के साथ सिंधी समुदाय शांति और सद्भावना के साथ रह रहा है। आर्थिक दृष्टि से उनकी प्रगति हो रही है और उनके स्कूल, कॉलेज, अस्पताल तथा अन्य संस्थाएं उनके लिए समाज में सद्भावना का निर्माण कर रही हैं। सिंधी राष्ट्रनिष्ठ नागरिक हैं। नागा और मिजो के जैसे आरक्षित चुनाव क्षेत्र, दलितों की तरह विशेष सुविधा अथवा एंग्लो-इंडियन की तरह नामांकन जैसी चीजों की मांग करना सिंधी समाज के लिए उपयुक्त नहीं है। ऐसी मांग करने से समाज में उथल-पुथल होने के ही असार हैं।

राजनैतिक अधिकार पाना आवश्यक है, लेकिन उसके लिए मांगें उठाना या आंदोलन करना उचित नहीं होगा। इन मांगों को लेकर हमारा कोई विरोध नहीं है, लेकिन हम इसका समर्थन भी नहीं करते हैं। सिंधियों के लिए राष्ट्रीय राजनीतिक धारा में शामिल हो जाना यही अधिक सकारात्मक भूमिका हो सकती है। वे अपनी समाज सेवा और गुणवत्ता के आधार पर विभिन्न राजनीतिक दलों में अच्छा स्थान पा सकते हैं।

हम सिंधी हैं इसलिए हमें कोई नियुक्ति, कोई सम्मान दिया जाए यह बात कहना ठीक नहीं होगा। अगर हम उसे प्राप्त करने की पात्रता रखते हैं तो हमें वह अवश्य मिलेगा। हम अल्पसंख्यक हैं इसलिए हमारा कोई अवमूल्यन न करें। राजनीति तो महत्वपूर्ण है ही, मगर नागरी और सैनिक सेवाओं को भी अनदेखा नहीं किया जाना चाहिए। उद्योग-व्यवसाय में पैसा कमाने वाले बहुत सिंधी हैं, लेकिन आईएएस, आईपीएस, आईएफएस में तथा रक्षा सेवा में जाने वाले बहुत कम हैं। यह स्थिति संतोषजनक नहीं है। नागरी सेवा को भी बहुत महत्व है। हमें अपने संसाधन, हमारे नैतिक मूल्यों को और धन को समाज सेवा में लगाना होगा। गरीब और दलित लोगों की मदद करनी होगी। यही सबसे ब़डी सेवा सिद्ध होगी।
————————

अजित मनियाल

Next Post
झमटमल वाधवाणी

झमटमल वाधवाणी

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

- Select Visibility -

    No Result
    View All Result
    • परिचय
    • संपादकीय
    • पूर्वांक
    • ग्रंथ
    • पुस्तक
    • संघ
    • देश-विदेश
    • पर्यावरण
    • संपर्क
    • पंजीकरण

    © 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

    0