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हिंदुस्तान ने सब को गणित सिखाया

हिंदुस्तान ने सब को गणित सिखाया

by मल्हार कृष्ण गोखले
in दिसंबर -२०१४, सामाजिक
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गणित शास्त्र पश्चिम से नहीं आया। यह हिंदुस्तान की देन है। हिंदुओं से अरबों ने और उनसे यूनानियों ने गणित सीखा। यह बात अविवादित है। इसी ज्ञात-अज्ञात कड़ी के अंग हैं श्रीनिवास रामानुजम, जिनके जन्म दिवस 22 दिसंबर को ‘राष्ट्रीय गणित दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। इस दिन पर केवल रामानुजन् इस व्यक्ति का नहीं, बल्कि पूरी गणितीय परंपरा का स्मरण जगाना आवश्यक है।

सन 2012 से 22 दिसंबर को ‘राष्ट्रीय गणित दिवस’ घोषित किया गया है। आधुनिक कालखंड के भारत के महान गणितज्ञ विद्वान श्रीनिवास रामानुजन् अय्यंगार का जन्म 22 दिसंबर 1887 को हुआ था। उनका गौरव तथा संस्मरण करने हेतु यह दिन निश्चित किया गया है। इस विषय में कुछ विशेष जानकारी प्रस्तुत है।

गणित यह विषय शास्त्र अथवा विज्ञान है। अपने यहां एक ऐसी मानसिकता प्रचलित है कि, कोई भी शास्त्र और विज्ञान की बात आई, तो वह सारी संकल्पनाएं पश्चिम में ही जन्मीं और वहीं विकसित हुईं यह मान लिया जाता है।

गणित के बारे में भी प्राय: लोग यहीं मानते हैं। दूसरी एक बात है कि सामान्यत: लोगों में गणित विषय के प्रति अरुचि पायी जाती है। इस का कारण लगता है कि हमारे सारे लोकप्रिय साहित्यकारों ने अपने साहित्य में गणित विषय की खूब निंदा की है।

खैर। हमारे लोग मानते हैं कि, गणित विषय का विकास पश्चिम के इंग्लैंड, अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी आदि विकसित देशों में हुआ होगा। पश्चिम की सारी सभ्यता और विज्ञान प्राचीन रोमन और ग्रीक सभ्यता पर आधारित है। कालानुक्रम से ग्रीक संस्कृति का क्रमांक प्रथम है। प्राचीन ग्रीक विद्वानों के जो ग्रंथ उपलब्ध हैं, उसमें वे लिखते हैं कि, उन्हें गणितशास्त्र का ज्ञान अरबों से प्राप्त हुआ। प्राचीन अरब विद्वान अपने ग्रंथों में लिखते हैं कि, हमें यह ज्ञान हिंदुओं से प्राप्त हुआ। यानी घूम फिरकर बात आखिर हिंदुस्थान तक ही पहुंचती है।
आज विश्व के अधिकांश विद्वान इस बात को स्वीकार करते हैं कि विश्व का सब से प्राचीन ग्रंथ ‘ऋग्वेद’ है। अब हिंदू परंपरा मानती है कि महर्षि व्यास ने ऋग्वेद संहिता के चार भाग बताकर उन्हें ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद तथा अथर्ववेद नाम दिए। महर्षि व्यास महाभारत कालखंड में हुए, जो आज से 5000 वर्ष पूर्व हुआ था।

यजुर्वेद की निम्न ऋचा ऐसी है जिसमें गणितीय अंकों का स्पष्ट उल्लेख है।

सविता प्रथमेऽहन्नग्निर्द्वितीये वायुस्तृतीयऽ आदित्यश्चुर्थे
चंद्रमा: पञ्चमऽ ऋतु: षष्ठे मरुत: सप्तमे बृहस्पतिरष्टमे
मित्रो नवमे वरुणो दशमे इन्द्र एकादशे विश्वेदेवा द्वादशे॥
(यजुर्वेद 39-6)

हिंदू परंपरा में प्राचीनता की दृष्टि से वेदों के कालखंड के बाद उपनिषदों का कालखंड माना जाता है। छांदोग्य उपनिषद का निम्नलिखित श्लोक आज भी अतिप्रसिद्ध है तथा प्राय: हर भजन-प्रार्थना में गाया जाता है।

ॐ पूर्णमद: पूर्णमिदं पूणात् पूर्ण मुदच्यते।
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते॥

अर्थात्- यह भी पूर्ण है। वह भी पूर्ण है। पूर्ण से पूर्ण की उत्पत्ति होती है, तथा पूर्ण से पूर्ण निकाला गया तब पूर्ण ही बाकी रहता है। पश्चिमी विद्वान तथा पश्चिमी विद्या से भ्रांत धारणा लिये रहे हमारे यहां के विद्वान तुरंत अपनी नाक मरोड़ कर कहते है, आ गया तुम्हारा धर्म और अध्यात्म।

पर उन्हें पता नहीं है कि हिंदुओं का धर्म और अध्यात्म पूरी तरह विज्ञान पर ही आधारित है। इसलिए तो उसे धर्मशास्त्र और अध्यात्मशास्त्र कहा गया है। उपरोल्लेखित श्लोक एक अत्यंत महत्वपूर्ण गणितीय सूत्र या आधुनिक भाषा में गणितीय फार्म्यूला है। कई महत्वपूर्ण गणितीय संकल्पनाएं इस श्लोक में पेश की गई हैं; वे प्राचीन तो क्या, बल्कि आधुनिक गणितशास्त्र की भी आधारभूत संकल्पनाएं हैं।
वेदकाल, उपनिषदकाल या रामायण और महाभारत काल में भारत में कौन गणितज्ञ विद्वान थे, इसके बारे में विशेष उल्लेख प्राप्त नहीं है। मूलत:, अमुक व्यक्ति गणित का ज्ञाता है, अमुक व्यक्ति भौतिकशास्त्र का ज्ञाता, अमुक व्यक्ति शरीरशास्त्र का ज्ञाता, यह जो ‘स्पेशलायजेशन’ की संकल्पना आज प्रचलित है, वह पूरी तरह पश्चिमी है। प्राचीन भारत में एक विद्वान अनेक शास्त्रों का ज्ञाता होता था। उदा. आर्य चाणक्य तक्षशीला विद्यापीठ में आचार्य थे और वह धनुर्वेद, आयुर्वेद, रत्नपरीक्षा, ज्योतिष, राज्यशास्त्र, कृषिविद्या आदि असंख्य शास्त्रों और विद्याओं के ज्ञाता थे।

खैर। पश्चिमी संकल्पनानुसार, भारत में जिनका उल्लेख गणितशास्त्र के ज्ञाता इन शब्दों मे किया जा सकता है, वह पहले व्यक्ति हैं आर्यभट्ट। इनका कालखंड है सन 476। इनका ‘आर्यभटीय’ या ‘आर्यसिद्धान्त’ यह ग्रंथ भारत में आज उपलब्ध सब से प्राचीन पौरुष ग्रंथ माना जाता है। इनके बाद ब्रह्मगुप्त हुए। इनका कालखंड है सन 598। इनके ग्रंथ का नाम है ‘ब्रह्मस्फुटसिद्धान्त’।

इनके बाद क्रम आता है भास्कराचार्य का। वह सन 629 में हुए। उन के ‘महाभास्करीय’, ‘लघुभास्करीय’ तथा ‘आर्यभटीय भाष्य’ ऐसे तीन ग्रंथ उपलब्ध हैं। इनके बाद क्रम है दूसरे आर्यभट्ट का। वह ईसा की 9 वीं सदी में हुए। उनके ग्रंथ का नाम है ‘महासिद्धान्त’। ईसा 1114 में दूसरे भास्कराचार्य हुए। जिनकी 900 वीं जन्मशति इस वर्ष (2014) अपने देश में कई गणितप्रेमी लोग मना रहे हैं। इनके कईं ग्रंथ हैं, जिनमें ‘सिद्धान्तशिरोमणि’ सब से महत्वपूर्ण है। लीलावती यह इसी सिद्धान्तशिरोमणि ग्रंथ का एक चौथाई हिस्सा है। लीलावती पिछली आठ सदियां अपने देश में इतना लोकप्रिय ग्रंथ रह चुका है कि, अंग्रेजी शिक्षा पद्धति लागू होने के पूर्व देश भर में वही गणित के पाठ्य पुस्तक के रूप में प्रचलित था। सन 1587 में अकबर के दरबार के विद्वान अबुल फज़्ल ने लीलावती का फार्सी में भाषांतर किया था।
भारत की इस प्राचीन गणित परंपरा की आधुनिक कड़ी भी श्रीनिवास रामानुजन् अय्यंगार। इनका जन्म 22 दिसंबर 1887 में तत्कालिन मद्रास इला़के के तंजावरम् ज़िले के एरोड नामक गांव में हुआ। गरीबी से झगड़ते उन्होंने जैसे तैसे शिक्षा प्राप्त की और 1912 में वह मद्रास पोर्ट ट्रस्ट में क्लर्क की नौकरी करने लगे।

गणित विषय में उन की असामान्य बुद्धि जानकर कई मित्रों ने उन्हें प्रोत्साहित किया। उन्होंने केंब्रिज विश्वविद्यालय के महान गणितज्ञ सर ग्रॉडफ्रे हेरॉल्ड हार्डी से पत्राचार किया। उससे प्रभावित प्रो. हार्डी ने सन 1914 में उन्हें इंग्लैंड बुलाकर केंब्रिज के ट्रिनिटी कॉलेज में प्रवेश दिलवाया।

परंतु रामानुजन् अल्पायुषी रहे। 1920 में उनका देहान्त हुआ। पर अपने अल्प जीवन में उन्होंने गणित के क्षेत्र में जो भारी भरकम काम किया वह ‘कलेक्टेड पेपर्स ऑफ श्रीनिवास रामानुजन्’ तथा ‘नोटबुक्स ऑफ श्रीनिवास रामानुजन् (2 खंड)’ में ग्रंथित किया गया है।
श्रीनिवास रामानुजन् अय्यंगार का जन्मदिवस 22 दिसंबर है। इस लिए सन 2012 से भारत सरकार ने 22 दिसंबर को ‘राष्ट्रीय गणित दिवस’ घोषित किया है। कहना गौरतलब है कि, इस दिन पर केवल रामानुजन् इस व्यक्ति का नहीं, बल्कि पूरी गणितीय परंपरा का स्मरण जगाना आवश्यक है।
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मल्हार कृष्ण गोखले

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