त्यौहारों पर आक्रमण

हर हिन्दू त्यौहार पर अंधविश्वास, प्रदूषण, आदि की आड़ लेकर आक्रमण करना एक प्रथा सी बन गई है।
हम दीपावली का उदाहरण लेते हैं। प्रथम आक्रमण शुरू होता है कि दीपावली से प्रदूषण फैलता है, ध्वनि प्रदूषण और वायु प्रदूषण।
साल में एक दिन, चार घंटे के प्रदूषण से लोग इतने परेशान हो जाते हैं कि दीपावली नहीं मनाने को कहते हैं। ये वही लोग हैें जिन्हें सुबह 5 बजे से मध्य रात्रि तक 365 दिन मस्जिदों से आने वाले आवाज से कोई तकलीफ नहीं होती।

वायु प्रदूषण भी साल में एक दिन, चार घंटे में लोगों को इतना परेशान कर देता है, जितना कि 365 दिन मिलों और वाहनों से निकलने वाला प्रदूषण नहीं करता।

पिछले कुछ वर्षों से यह भी कहा जा रहा है कि पटाखे बनाने वाली फैक्टरियों में बच्चें काम करते हैं, इसलिए पटाखे मत खरीदो। कोई पुलिस में शिकायत नहीं करता कि बच्चों से काम करवाया जा रहा है। कोई आगे आकर यह भी नहीं कहता कि इन बच्चों की जिम्मेदारी हम लेते हैं, न ही यह कोई बताता है कि इन बच्चों के हाथ से अगर यह जीवन यापन का तरीका भी छीन गया तो ये बच्चे जीवित कैसे रहेंगे।

आश्चर्य की बात है कि जो विषय चर्चा का कारण होने चाहिए उनको कभी सामने नहीं लाया जाता। यह कोई नहीं कहता है कि चीन में बने पटाखों और लाइटों का प्रयोग बंद होना चाहिए। साथ ही यह भी कोई नहीं पूछता कि दीवाली में जो लाइटें लगती हैं उनके लिए बिजली कहां से आती है। सिर्फ एक दिन के लिए बिजली का उत्पादन तो नहीं बढ़ सकता। अवश्य शहर में बिजली देने के लिए गांवों की बिजली काटी जाती होगी। अगर दीये जलाये जाते तो कम बिजली खर्च होती।

वैसे भी दीपावली में घी या सरसों के तेल से दीये जलाए जाते हैं, और इससे प्रदूषण नहीं होता, पर्यावरण शुद्ध होता है। दीपावली और होली दोनों ऋतु बदलने के पहले के त्यौहार हैं और दोनों में अग्नि का प्रमुख स्थान है। होली में होली का दहन और दीवाली मेंं दीये और पटाखों से पर्यावरण में फैले हानिकारक कीटाणु का नाश होता है।

भारतीय त्यौहार न सिर्फ धार्मिक बल्कि आर्थिक दृष्टिकोण से भी सशक्त होते हैं। जरूरत है सही तरह से समझने वालों की। और साथ ही यह भी ध्यान रखने की कि क्रिसमस और नव वर्ष में कितने पटाखे फोड़े जाते हैं और उनसे कितना प्रदूषण फैलता है।
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