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रक्षा निर्णयों में अब तेजी और पारदर्शिताः मनोहर पर्रिकर

रक्षा निर्णयों में अब तेजी और पारदर्शिताः मनोहर पर्रिकर

by रविंद्र दानी
in फरवरी-२०१५, साक्षात्कार
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गोवा जैसे छोटे से राज्य के मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर को जब देश का रक्षा मंत्री बनाया गया तो कई लोगों को आश्चर्य हुआ। पर्रिकर उच्च शिक्षित हैं, सक्षम हैं, अनुभवी हैं, और सब से बड़ी बात यह कि पारदर्शी निर्णय करने वाले सच्चे नेता हैं। ऐसा प्रशासक की रक्षा मंत्रालय में आवश्यकता थी। प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी ने उनकी इस गुणवत्ता के कारण ही उन्हें दिल्ली बुला लिया।
पेश है ‘हिंदी विवेक’ के प्रतिनिधि से हुई विशेष बातचीत के कुछ महत्वपूर्ण अंश-

देश के सुरक्षा दल में जनरल के. सुंदरजी का उल्लेख ‘अ थिंकिंग जनरल’ के रूप में किया जाता है। जनरल सुंदरजी ने स्वर्ण मंदिर के ऑपरेशन ब्लू स्टार में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी निभाई थी। क्या आप भी देश के पहले ‘अ थिंकिंग मिनिस्टर’ होंगे?

(मुस्कुराते हुए) प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी जी ने उन पर जो विश्वास व्यक्त किया है उसे वे सार्थक करने की भरसक कोशिश करेंगे। इस बारे में उन्हें दृढ़ विश्वास है।

रक्षा मंत्रालय के निर्णयों में गतिहीनता कहां तक दूर हुई?

देश की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए आवश्यक निर्णय किए जा रहे हैं। उनमें पारदर्शिता के साथ-साथ गति लाने का भी प्रयास जारी है।
पिछले कुछ वर्षों में देश को सुरक्षा की दृष्टि से तैयार करने के हमारे प्रयास सफल नहीं हुए। उनमें कुछ कमियां रह गईं थीं। कुछ निर्णय तुरंत नहीं लिए गए, कुछ को भविष्य के लिए छोड़ दिया गया तो कुछ को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। इसमें केवल सैनिकी उपकरणों या शस्त्र खरीदने का ही मुद्दा नहीं है, वरन कई अन्य छोटे-छोटे निर्णय भी हैं। इन निर्णयों में अब अब तेजी, पारदर्शिता और गति लाने का कार्य भी किया जा रहा है।

देश की सुरक्षा के बारे में किस तरह की चुनौतियां हैं?

मैं दृढ़ विश्वास के साथ कहता हूं कि देश की सीमा हमारे सैनिकों के हाथों में सुरक्षित है। देश की सुरक्षा के समक्ष चुनौतियां दो तरह की हैं। एक आंतरिक और दूसरी सीमा पार से आनेवाली बाह्य। ये दोनों चुनौतियां अलग-अलग हैं; परंतु उनमें परस्पर संबंध होता है। आंतरिक खतरे लगातार उत्पन्न रहते हैं, बाह्य खतरे लगातार दिखते तो रहते हैं परंतु वे आसानी से एक मर्यादा से आगे नहीं जाते। यह खतरा एक ‘अनस्टेबल इक्विलिब्रम’ जैसा होता है। हमें ‘रेड कॉरिडोर’ की समस्या का सामना करना पड़ रहा है; जिसके धागे सीमा पार से जुड़े हैं। यही स्थिति कश्मीर के संबंध में भी है। मुझे लगता है कि इस समस्या से निपटने के लिए आंतरिक खतरों से त्वरित निपटना आवश्यक है।

अधिक खतरा किससे है- पाकिस्तान से या चीन से?

भले ही देखने में उत्तर सीमा अधिक असुरक्षित लगती हो परंतु पूर्व-पश्चिम सीमा पर अर्थात कश्मीर सीमा पर असुरक्षा अधिक रहनेवाली है। इसका कारण यह है कि हमारा पड़ोसी देश हमेशा से ही अस्वस्थ मानसिकता में रहता है। पेशावर में जो भी कुछ हुआ उसके लिए कुछ लोगों ने भारत की ओर उंगली उठाई है। अपनी आंतरिक स्थिति से जनता का ध्यान हटाने के लिए शायद ऐसा किया जा रहा है।
भौगोलिक परिस्थिति का विचार करते समय चीन की सीमा अधिक चुनौतीभरी लगती है। यहां की स्थिति दुर्गम है। लद्दाख से म्यांमार की स्थिति कठिन है। भौगोलिक स्थिति के कारण सेना को रसद पहुंचाना कठिन हो जाता है। दूसरी ओर चीन को पठार मिला है। अत: उसे वहां सुविधाएं उपलब्ध कराना आसान है।

क्या भारत के विरोध में चीन और पाकिस्तान के एकजुट होने की संभावना है?

यह सच है कि चीन और पाकिस्तान दोनों को एक दूसरे की आवश्यकता है। चीन को पेट्रोलियम पदार्थों का आयात करने के लिए दूर का रास्ता अपनाना पड़ता है। कार-निकोबार, मलाका होते हुए उसे अपनी पेट्रोलियम आवश्यकता को पूर्ण करना पड़ता है। उसकी वैकल्पिक व्यवस्था के रूप में पाकिस्तान की मदद हो सकती है।

चीन से संबंधित सीमा समस्या को सुलझाने के लिए किए जानेवाले प्रयत्नों को गति देते ही कुछ ही वर्षों में इस भाग की सुरक्षा में भी सुधार हो सकता है, स्थिरता आ सकती।

क्या भारत को रूस और अमेरिका की मदद मिल सकती है?

रूस और अमेरिका दोनों से ही हमारे संबंध अच्छे हैं। इन दोनों ही देशों से खासकर अमेरिका से हमें अच्छा सहयोग मिल रहा है।
————

रविंद्र दानी

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