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‘इसीस’ के खतरे को ऐसे रोकें

‘इसीस’ के खतरे को ऐसे रोकें

by ब्रिगेडियर (नि) हेमंत महाजन
in मार्च २०१६, सामाजिक
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वैश्विक आतंकवादी संगठन ‘इसीस’ से भारत को भी खतरा है। गुमराह युवक धार्मिक कट्टरता के चलते भ्रमजाल में फंस जाते हैं। उन्हें इससे बचाने के जिस तरह उपाय करने की जरूरत है, वैसे ही आतंकवादी घटनाओं की संभावना के बारे में गुप्तचर तंत्र को मजबूत करने की भी जरूरत है। ‘इसीस’ इंटरनेट के जरिए प्रचार पर अंकुश रखना भी आवश्यक है।

भारत के कुछ मुस्लिम युवा इसीस की ओर आकर्षित हो रहे हैं। इन युवाओं कोे आकर्षण से बचाना एक महत्वपूर्ण काम है। इसके पहले गुमराह युवकों को माओवाद, लश्कर -ए-तैयबा, हुर्रियत, सिमी, इंडियन मुजाहिदीन, तालिबान, अल-कायदा, लश्कर-ए-दावा आदि स्रंगठन और उनकी कार्यशैली एवं विचार आकर्षित करते थे। परंतु अब युवा वर्ग इसीस के पीछे दिखाई दे रहा है। यदि इसीस पर रोक लगानी है तो उसके आर्थिक तथा मानवशक्ति के स्त्रोतों को तोड़ना जरूरी है। उसके लिए इसीस द्वारा जिस प्रकार जिहादियों को निर्माण किया जा रहा है, उसके मूल में जाकर प्रहार करना होगा और इसलिए उसके काम के तरीकों को जानना होगा।

भारत के 150 से अधिक युवक इसीस के सम्पर्क में

इसीस की क्रूर हिंसा ही गुमराह युवकों को आकर्षित कर रही है। भारत के 150 से अधिक युवक इसीस के सर्म्पक में हैं। 33 भारतीय युवक इसीस के सदस्य हैं, जिन्होंने जिहाद को स्वीकार किया हुआ है। इनमें से छह युवक हिंसात्मक गतिविधियों में मारे गए। मुंबई का एक युवक वापस भी आ गया है। इसीस की ओर से लड़ने वालों में कल्याण के दो युवक, आस्टे्रलिया में रहने वाला एक कश्मीरी, कर्नाटक तथा तेलंगाना से एक-एक, ओमान तथा सिंगापुर का एक-एक भारतीय युवक सम्मिलित है। इसी बीच एक भारतीय युवती भी इसीस में काम करने के लिए तैयार हो गई थी, परंतु भारतीय सुरक्षा दल ने इसे नाकाम कर दिया। हालांकि संख्या की द़ृष्टि से यह बहुत बड़ा आंकडा न भी हो तो भी जान हथेली पर रख कर लड़ने की प्रेरणा के पीछे कौन है? इसकी गहराई से जांच होना जरूरी है। कुछ लोगों को इसीस से वापस लाने में सफलता भी प्राप्त हुई। अनेक शिया युवकों को इसीस के विरूध्द युध्द में शामिल होना था, परंतु समय रहते उसे भी रोक दिया गया। भारत सरकार की इसीस पर नजर है तथा इसमें पर्याप्त सफलता भी प्राप्त हुई।

इसीस के दांवपेंच

इसीस तीन स्तर पर कार्य करता है। शस्त्रों का घिनौना प्रयोग, प्रचार साहित्य की भरमार, और ऐसी परिस्थिति लाना कि उस देश की अर्थव्यवस्था चरमरा जाए। इंटिलिजेंस एण्ट टेरिरिज्म सेंटर नामक संस्था ने इसीस के विविध आयामों का अध्ययन कर उसके स्वरूप की भव्यता को प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। इसीस आर्थिक रूप से उससे भी अधिक सम्पन्न है। चंदा, वसूली, लूटमार और खनिज तेलों की कालाबाजारी के बल पर इसीस आर्थिक रूप से बहुत मजबूत बन गया है।

इसीस का प्रभावशाली प्रचार तंत्र

युध्द के मैदान पर विजय प्राप्त करने के साथ लोगों के दिल में स्थान बनाना भी महत्वपूर्ण है, इसी बात को ध्यान में रख कर बेहिसाब धन तथा अन्य प्रकार की प्रचार सामग्री उपयोग में लाने की उसकी नीति है। इंटरनेट व सोशल मीडिया के माध्यम से इसीस के सिद्धांत प्रचारित किए जाते हैं और राजनीतिक प्रचार किया जाता है।

लिखित तथा आनलाइन प्रचार साहित्य

उनकी ‘दाबिक’ नामक ऑनलाइन मासिक पत्रिका है, जिसे इंटरनेट पर पढ़ा जा सकता है। इसकी छपी हुई पत्रिका महंगे ग्लेजी कागज पर छपती है। इस्लामी खिलाफत स्थापित होते ही बनने वाली अमनचैन की दुनिया का सुनहरा चित्रण इसमें होता है। धार्मिंक नेताओं के भाषण तथा धर्मग्रंथों के उदाहरण भी छापे जाते हैं।

इसी प्रचार के कारण अब तक पांच हजार से अधिक युवक इसीस के आवाहन को स्वीकार कर अरब देशों की और कूच कर रहे हैं। एशिया में भारत, इंडोनेनिया, मलेशिया जैसे देशों में डिजिटल प्रचार को मिलने वाला प्रतिसाद बढ़ते ही जा रहा है। बंगलुरू, कल्याण के प्रकाश में आए प्रकरण कहीं हिमनग की चोटी की तरह तो नहीं है, यह शंका होना भी स्वाभविक है।

सुरक्षा दलों की देखरेख में संदिग्ध लोग

अभी तो एनआइए गुप्तचर तंत्र इनका विश्लेषण करने में लगा हुआ है। इन युवकों को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए इयीस ने सोशल मीडिया का बड़े स्तर पर उपयोग किया है। उसमें भी फेसबुक तथा ट्विटर का अधिक उपयोग होता है। उसके बाद यूट्यूब तथा ईमेल का नम्बर आता है। इनके द्वारा युवकों कों भड़काने वाले समाचार दिए जाते हैं। यूट्यूब पर तो बहुत अधिक भड़काने वाले वीडियो डाले जाते हैं। सायबर अपराध के क्षेत्र में भारत द्वारा उठाए गए कदमों के कारण इस पर कुछ हद तक रोक लगी हुई है। इसी के माध्यम गुप्तचर संस्थाओं ने इसीस से जुड़े 150 लोगों का भण्डाफोड़ भी किया है। ये सभी सुरक्षा दलों की देखरेख में रखे गए हैं।

डीरेडिकलायजेशन तथा सोशल आउटरिच

पिछले कुछ वर्षों से मुसलमान युवकों में पनपती धर्मांधता को ध्यान में रख कर, उससे उन्हें परावृत्त करने के प्रयास भी बड़े स्तर पर किए जा रहे हैं। इसके दो तरीके हैं- एक दण्डात्मक तथा दूसरा समाज आधारित। जेल में रह रहे युवकों का मन बदलना यह बड़ा कठिन काम है। 2 से 4 नवम्बर के बीच मुंबई पुलिस ने ऐसी कार्यशालाएं आयोजित क थीं। मुरव्यमंत्री देवेन्द्र फडनवीस ने इन कार्यशालाओं को डिरेडिकलायजेशन यह नाम देने के बजाय सोशल आउटरीच कहना अधिक उपयुक्त है, यह कह कर इन प्रयासों को अपना पूरा समर्थन भी दिया। इस पृष्ठभूमि ने मुझे इससे क्या मतलब यह कहकर अब नहीं चलेगा। प्रत्येक सावधान भारतीय को अपने बस्ती में कौनसा परिवार, कौन ऐसी गतिविधि में संलग्न है, इसकी आंख में काजल डाल कर निगरानी करनी चाहिए। एक भी भारतीय इसीस की जाल में फंसने न पाए इसकी चिंता हमें ही करनी होगी। भविष्य में यदि इसे टालना है तो अभिभावकों का बच्चों के साथ संवाद बना रहना चाहिए, जो आजकल कम होता जा रहा है।

मजदूरों पर कडी नजर रखना आवश्यक है

बडी मात्रा में ऑनलाइन होने वाला धर्मांधानुकरण तथा मध्य पूर्व देशों में मजदूरी करने के लिए गए मुसलमान तरूणों पर इसीस की नजर होने की संभावना है। विदेश मंत्रालय के अनुसार इराक में 18,000 भारतीय मजदूर हैं। इनमें से कुछ धर्मांध होकर भारत वापस आए तो देश के लिए खतरनाक हो सकते हैं। इसीस का खतरा टालने के लिए इन पर कड़ी नजर रखना जरूरी है।

आवश्यकता है अचूक गुप्त जानकारी की

देश की आंतरिक सुरक्षा की द़ृष्टि से सभी गुप्तचर संस्थाओं के साथ बैठ कर उनके द्वारा गुप्त जानकारी को एकत्रित किया जाता है। यह काम मल्टी एजेंन्सी की देखरेख में ऐसा है, जिसका नेतृत्व इन्टेलीजेन्स ब्यूरो करता है। जरूरत इस बात की है कि इन संस्थाओं द्वारा प्राप्त की गई गुप्त जानकारी पर सेना, अर्धसैनिक बल या पुलिस विभाग को तत्काल कार्यवाही की जाए जिससे चाहे, वे माओवादी हमले हो, या आतंकवादी हमले हो, उन्हें रोकने में निश्चित ही सफलता प्राप्त हो सकेगी। इसीलिए आज जरूरत है इन संस्थाओं से अचूक गुप्त जानकारी की। कई बार ‘भेड़िया आया’ जैसी सूचनाएं प्राप्त होती हैं। मजाक मे कहा जाता है कि हमारी गुप्तचर संस्थएं कहती हैं कि कभी भी कहीं भी, किसी भी समय आंतकवादी हमला हो सकता है। यह बताने के लिए गुप्तचर संस्था की आवश्यकता नहीं है। जरूरी है एज्यूक्टेड इटेलिजेंस या एक्शनेबल इंटिली की, जैसे कि किस शहर में, किस रेलवे स्टेशन पर या बस स्टाप पर कब हमला होगा, ऐसी स्पष्ट जानकारी होने पर ही हमले को रोका जा सकता है। ऐसी एक्शनेबल जानकारी हासिल करना सरल नहीं है, परन्तु उम्मीद करें कि हमारे गुप्तचर तंत्र का स्तर सुधरेगा और भविष्य में होने वाले आंतकवादी हमलों को रोकने में निश्चित ही सफलता प्राप्त होगी।

कुछ सुधार जरूरी

सरकार आंतकवादी विचारधारा के विरूध्द प्रचार कर रही है, पर यह बहुत कम है। आंतकवादी विचारधारा का प्रसार सोशल मीडिया या अन्य प्रचार माध्यमों से किया जाता है। इसीलिए ऐसे मीडिया पर नजर रख कर जहां जहां आतंकवादी विचारधारा पोषित होती हो उसे तत्काल बंद करना जरूरी है। ताजा सूचनाओं के अनुसार भारत सरकार ने सबसे अधिक मात्रा में आतंकवादी विचारधारा को पोषित करने वाले फेसबुक के ऐसे समाचारों को डिलिट कर दिया है।

इसी प्रकार सभी सोशल मीडिया पर एंसी ही नजर रखकर जहां जहां ऐसे प्रयास हो रहे हैं उन्हें तत्काल बंद कर देना चाहिए। इस प्रकार के प्रचार करने वाले व्यक्ति तथा संस्थाओं पर कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए। आतंकवादी विचारधारा को कैसे रोका जाए इसके लिए अनेक प्रकार के सुझाव प्राप्त हुए हैं। उन सुझाओं पर कार्रवाई करना ज्यादा महत्वपूर्ण है। मुंबई के कुछ युवक इसीस में शामिल होने गए थे। वे सभी उच्च शिक्षा प्राप्त, अच्छे कॉलेज के विधार्थी युवक थे। तो भी वे आंतकवाद की ओर आकर्षित हुए। इसीलिए ऐसे आंतकवाद को रोकने की जिम्मेदारी उन युवकों की तो है पर इसके अलावा उनके मां-बाप, नाते-रिशतेदार, उनके कॉलेज-स्कूल, उसी प्रकार सामाजिक संस्थाओं, मीडिया तथा आसपड़ोस के लोगों की भी है। इसे रोकने के लिए हम सभी को अपने अपने स्तर पर काम करना होगा। गुप्त सुचनाओं के लिए पूरी तरह टेक्नीकल इंटेलिजेंस के भरोसे रहकर भी नहीं चलेगा। यूरोप में लाखों सी.सी.टीवी कैमरे, सेटलाइट, सर्वे, ड्रोन का उपयोग किया जाता है। सरकार वहां के नागरिकों की प्रत्येक गतिविधि पर नजर रखती है। फिर भी उनके लिए आतंकवादी हमले की जानकारी लेना सम्भव नहीं हो सका। हमारे देश का उदाहरण ले तो बड़े मंदिरों में सीसीटीवी कैमरे लगे हैं, पर फुटेज का एनलियीस करने वाला यहां कोई नहीं है। केवल सूचनाएं इकट्ठा करना महत्वपूर्ण नही है, तो इस सूचना से या जानकारी से क्या अर्थ निकलता है यह जानना भी जरूरी है।

इसके लिए अपने देशों में भी अन्य आधुनिक देशों से तकनीकी ज्ञान आयात करना चाहिए। जैसे फेस रिकग्नीशन साफ्टवेअर, वायस रिग्नीनेशन साफ्टवेअर, सिग्नेचर रिकग्नीनेशन साफ्टवेअर जैसी तकनीक वहां विकसित है। भारत को ये सभी तकनीक यूरोपीय देश, अमेरिका इजराइल से प्राप्त कर अपने टेक्नीकल इटेलिजेंस के स्तर को सुधारना चाहिए।

ह्यूमन इंटेलिजेंस सबसे महत्त्वपूर्ण

इससे भी अधिक महत्वपूर्ण है हयूमन इंटेलिजेंसी, अर्थात खबरियों का जाल बिछाकर प्राप्त की जानकारी। आज ऐसी कोई तकनीक नहीं है जो किसी आतंकवादी के दिल में घुस कर उसके विचार को या योजना को जान सके। यदि हमें आतंकवाद को रोकना है तो इनके समूहों में गुप्तचरों को घुसाना पड़ेगा जिससे कि आतंकवादी आक्रमण को पहले ही रोका जा सके। यद्यपि यह इतना आसान भी नहीं है, इसके लिए बहुत कुशलता भी आवश्यकता है। परंतु भारतीय सेना ने इसके पहले भी इस प्रकार के कव्हेर्ट आपरेशन किए हुए हैं। आतंकवाद के विरूध्द सर्वसमावेशक व्यापक नीति की आवश्यकता 26/11 के आतंकवादी हमले के बाद महसूस की गई। अनेक योजनाएं सरकार ने बनाईं, परंतु वे सब केवल कागजों में धरी रहीं। पुलिस विभाग की सक्षता बढ़ाने के लिए समुद्री सुरक्षा, तथा गुप्तचर विभाग की पुनर्रचना, इन महत्वपूर्ण कामों की ओर ध्यान देना जरूरी है। 2008 के आतंकवादी हमले के बाद सभी सुरक्षा संस्थाओं के बीच समन्वय बनाने के लिए स्वतंत्र संरचना बनाने का निश्चय किया गया था, परंतु अब तक इसमें कोई प्रगति नहीं हुई। प्रति वर्ष बड़े शहरों का सुरक्षा ऑडिट होना चाहिए। वहां की स्थिति, महत्वपूर्ण स्थानों के बारे में दुनिया भर में घटित घटनाओं का विचार कर तदनुसार व्यवस्था में बदलाव लाना आवश्यक है।

भारत को क्या करना चाहिए

अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी संगठनों में भारतीय कभी दिखाई नहीं देते थे। इसीस के कारण अब इस तस्वीर के बदलने की संभावना दिखाई दे रही है। समाज की सभी इकाइयों को जागरूक रहने की जरूरत है। इंटरनेट पर चल रहे प्रचार पर यद्यपि रोक लगाई जा रही है, फिर भी डिजिटल प्रचार तंत्र पर इसीस का अधिकार है ही।

आतंकवादी यदि टेरिरिज्म के लिए इंटरनेट का उपयोग कर सकते हैं तो हमें भी अपनी सुरक्षा व्यवस्या को मजबूत करने के लिए इंटरनेट का उपयोग करना चाहिए। इससे आतंकवादी गतिविधियों पर रोक तो लगेगी ही तथा कांटे से काटा भी निकाला जा सकेगा। नीचे दिए गए उपायों व्दारा भी सफलता प्राप्त हो सकती है।

भारत के बाहर इंटरनेट साइट, सोशल नेटवर्ड साइट ब्लॉक कर दिए जाने चाहिए। भारत के इसीस समर्थक साइट्स, फेसबुक ट्वीटर अंकाउटधारकों को पकड़ कर कार्रवाई की जानी चाहिए। डोमेन को बंद करना चाहिए। इंटरनेट ट्रफिक की लगातार मॉनिटरिंग होनी चाहिए। इसके लिए अब बहुत से साफ्टवेअर उपलब्ध भी हैं। सायबर सेक्यूरिटी विभाग को अधिक मजबूत करना चाहिए। कम्प्यूटर विशेषज्ञों की सहायता से कौनसा ऐसा इस्तेमाल या ब्लॉग कहां से आया इसकी जानकारी निकालनी होगी।

भारतीय इंटरनेट यूजर्स को भी ऐसी किसी भी सोशल साइट्स की जानकारी प्राप्त होने पर पुलिस सायबर सेल को सूचना तत्काल देनी चाहिए। देशभर नागारिकों को पुलिस विभाग का कान व आंख बनने की जरूरत है। सब की सहायता से ही इसीस के आतंकवाद का मुकाबला किया जा सकता है।
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ब्रिगेडियर (नि) हेमंत महाजन

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