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हेडली के जवाब से तो विरोधियों की आंखें खुलें

हेडली के जवाब से तो विरोधियों की आंखें खुलें

by राजेश प्रभू सालगावकर
in मार्च २०१६, सामाजिक
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गुजरात के निवृत्त पुलिस उपमहानिरीक्षक डी.जी. बंजारा को लश्कर-ए-तैयबा तथा अन्य पाकिस्तानी आतंकवादी संगठनों के विरुध्द कठोर कार्रवाई किए जाने के कारण कांग्रेस तथा वामपंथियों ने बलि चढ़ा दिया। तत्कालीन केन्द्र सरकार ने उनको जेल में डाल दिया। मुंबई की लश्कर-ए- तैयबा की आत्मघाती दस्ते की सदस्य इशरत जहां तथा उसके तीन आतंकवादी साथियों को गुजरात में आतंकवादी हमले के लिए जाते समय बंजारा की टीम ने रोकने का प्रयत्न किया। उनकी योजना को असफलत करते समय हुई मुठभेड़ में उनको मार गिराया। अभी हेडली डेविड की मुंबई के न्यायालय के सामने गवाही चल रही है, उस समय उसने बयान दिया कि इशरत तैयबा की आतंकवादी थी। उसके बाद फिर बंजारा प्रकाश में आए। बंजारा का कहना है कि अब हेडली के बयान के बाद तो इशरत का पक्ष लेकर मुझ पर आरोप करने वालों की आंखें खुल जानी चाहिए। इस संदर्भ में राजेश प्रभु सालगावकार के साथ हुई श्री बंजारा की बातचीत के महत्वपूर्ण अंश-

हेडली ने अपने बयान में इशरत के विषय में जो कहा, उस पर आपकी क्या प्रतिक्रिया है?

गुजरात पुलिस ने हमेशा ही देशहित की रक्षा की है। हमने कई आतंकवादियों को पकड़ा है। कुछ को पकड़ते समय या उनके अभियान को रोकते समय हुई मुठभेड़ की कार्रवाई कानून के अनुसार ही है। उसके लिए हम पर हुई कार्रवाई बदले की भावना से की गई तथा वह गंदी राजनीति का एक भाग है। केवल किसी राजनीतिक विरोधी को नीचा दिखाने के लिए मेरे जैसे अनेक ईमानदार अधिकारियों पर तत्कालीन केन्द्र सरकार ने उस समय कार्रवाई की।

इशरत के अलावा भी गुजरात में हुई मुठभेडों पर आरोप लगाए गए हैं, इस पर आपका क्या कहना है?

इस देश में राजनीतिक कारणोें से कुछ लोग राष्ट्रविरोधी आतंकवादियों का पक्ष लेने को तैयार हो जाते हैं, यह देखकर बहुत बुरा लगता है। 1989 से यह देश आतंकवाद का दंश झेल रहा है। थोड़े बहुत नहीं तो पूरे चार लाख कश्मीरी पंडितों को स्वयं के इलाके से निर्वासित होना पड़ा। अनेक लोग मारे गए। नागरिकों की जान, सम्पत्ति तथा स्वतंत्रता की रक्षा करना यह प्रत्येक सरकार की वैधानिक जिम्मेदारी है। कश्मीरी पंडितों के संदर्भ में तो ये तीनों ही अधिकार समाप्त हो गए। फिर भी तत्कालीन सरकार कुछ नहीं कर पाई। तत्कालीन सरकार आतंकवादियों को केवल पुचकारती रही। उससे देश में गलत संदेश गया, वहीं से आतंकवाद का यह भस्मासुर खड़ा हुआ। बाद में अनेक सामान्य नागरिकों को इसकी बलि बनना पड़ा। गोधरा कांड के बाद गुजरात के वातावरण को बिगाड़ने का प्रयत्न चालू हुआ। अक्षरधाम पर आक्रमण, बस-रेल्वे में श्रृंखला बम विस्फोट, ऐसी अनेक घटनाएं हुईं। गुजरात यह सीमा पर बसा राज्य होने के कारण यहां की स्थितियां अधिक नाजुक थीं। यदि हमने समय पर कार्रवाई न की होती तो गुजरात शीघ्र ही दूसरा कश्मीर बन जाता। हमारे द्वारा (गुजरात पुलिस) की गई प्रत्येक कार्रवाई कानून के अनुसार ही थी तथा जन सामान्य की सुरक्षा के लिए की गई थी। कहीं भी आतंकवादी हमला होता है तो दो प्रकार के लोग ही मारे जाते हैं। रास्ते पर चलने वाला सामान्य नागरिक या पुलिस या सैनिक। देश में घटित किसी भी आतंकवादी हमले में यही दिखाई देता है। मुंबई में 26/11 के आतंकवादी हमले में 166 से ज्यादा निर्दोष नागरिक तथा 26 पुलिसकर्मी मारे गए। उसके पहले भी इस प्रकार के आतंकवादी हमले हुए हैं। उग्र आतंकवाद इस शब्द का प्रयोग कर हम वास्तव में घटनाओं तथा परिस्थिति की गंभीरता को हल्का कर रहे हैं। यह तो हमारे पड़ोसी देश द्वारा थोपा गया एक युध्द ही है। उसे युध्द मान कर ही लड़ना चाहिए। कुछ बातों को राजनीति को परे रख कर देखने की आदत सभी को सीखनी चाहिए।

हेडली के गवाही की क्या खासियत है?

हेडली ने कुछ भी नया नहीं कहा है। ये सारी बातें गुप्तचर विभाग तथा पुलिस विभाग को पहले से ही ज्ञात हैं। हेडली के द्वारा खुले न्यायालय में की गई स्वीकृती का कानूनी दृष्टि से बड़ा महत्व तो है ही। न्यायालय में दी गई स्वीकृती की साक्ष्य को सभी कानूनी बातों के लिए अधिकृत तथा स्वीकार्य माना जाता है। भारतीय गुप्तचर संस्थाओं तथा पुलिस के पास जो जानकारी आतंकवादियों तथा पाकिस्तान के संदर्भ में है, उसको अब कानूनी आधार प्राप्त हो गया है।

इस सारे प्रकरण में गुजरात पुलिस की अब क्या सोच है? आप पर आरोप लगाने वालों के विषय में आप क्या सोचते हैं?
इशरत जैसे लोगों के पक्ष में भी देश के कुछ लोग खड़े रहते हैं, यह देखकर बहुत दुख होता है। आतंकवाद के विरोध में पोटा जैसा कड़ा कानून चाहिए। अमेरिका में 9/11 के हमले के बाद उन्होंने होमलैण्ड सेक्युरिटी नाम का एक नया कानून बनाया। उस समय बुश की रिपब्लिकन पार्टी की सरकार थी। उसके बाद ओबामा की डेमोक्रेटिक पार्टी की सरकार पूरे 11 वर्ष से लगातार सत्ता में है। परन्तु उन्होंने इस कानून को केवल इसीलिए निरस्त नहीं कर दिया कि इस कानून को उनके विरोधी दल की सरकार ने बनाया था। हमारे देश में एन.डी.ए. सरकार के जाते ही बनी कांग्रेस की यूपीए सरकार ने सत्ता में आते ही पहला काम किया कि पोटा नामक आतंकवाद विरोधी कानून को रद्द कर दिया। इस प्रकार की गंदी राजनीति को अब रोकना पड़ेगा। ऐसे किसी कड़े कानून के अभाव में भारत एक आसान टारगेट बन गया है। अमेरिका के कानून की तरह देश के विरोधियों पर कार्रवाई करने वाले अधिकारियों/कर्मचारियों को कानूनी सुरक्षा मिलनी चाहिए। अपने देश में ऐसी व्यवस्था नहीं होने के कारण कुछ राजनीतिज्ञ आतंकवादियों के पक्ष में खुलकर सामने आते हैं और आतंकवादी विरोधी कार्रवाई करने वालों को सीखचों के पीछे खड़ा कर दिया जाता है। फिर भी मेरा भारतीय न्याय तंत्र पर तथा संविधान पर विश्वास है, मुझे निश्चित ही न्याय मिलेगा, इसका पूरा विश्वास है।
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राजेश प्रभू सालगावकर

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