महिलाएं राजनीति को भी अपना क्षेत्र मानेंः सुमित्रा महाजन

महाराष्ट्र के चिपलूण शहर से अपनी जीवन यात्रा प्रारंभ करके इंदौर होते हुए दिल्ली तक पहुंचने वाली सभी की आत्मीय ‘ताई’ अर्थात सुमित्रा महाजन। राजनीति की कोई पारिवारिक पृष्ठभूमि न होते हुए भी सुमित्रा महाजन आज देश के सर्वोच्च पदों में से एक लोकसभा के अध्यक्ष पद पर आसीन हैं। वे एक सशक्त महिला रूप में जानी जाती हैं। प्रस्तुत है उनकी अब तक की जीवन यात्रा के कुछ पड़ाव और महिलाओं से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण प्रश्नों पर उनकी राय।

सुमित्रा महाजन अपने पिता श्री पुरुषोत्तम (उर्फ अप्पा) साठे से प्राप्त संस्कारों को अपने अंदर गहराई से संजोए हुए हैं। ये संस्कार ही उनके व्यक्तित्व विकास की नींव हैं। सुमित्रा जी ने चिपलूण के यूनाइटेड इंग्लिश हाईस्कूल से शिक्षा प्राप्त की। उनके सभी शिक्षक उनके पिता से परिचित थे। अत: सुमित्रा जी की शिक्षा पारिवारिक वातावरण में हुई। घर पर पिता का अनुशासन, समाज के विभिन्न स्तर के लोगों के साथ उनके सम्बंध, उनके व्यवहार से प्रकट होने वाली देशभक्ति, सर्वसामान्य लोगों के प्रति निःस्वार्थ प्रेम, संघ की प्रार्थना के ‘त्वदीयाय कार्याय बद्धा कटीयम्’ का श्रद्धापूर्वक पालन करने की इच्छा आदि सभी को किशोरावस्था में ही सुमित्रा जी ने आत्मसात किया। अपने पिता के साथ बड़े-बड़े लोगों के भाषण सुनने जाना सुमित्रा जी को पसंद था। यहीं से उनकी वक्तृत्व कला का भी विकास हुआ। विद्यालयीन/महाविद्यालयीन कई भाषण प्रतियोगिताओं में उन्होंने प्रथम पुरस्कार प्राप्त किए। सुमित्रा जी की माता का अल्पायु में ही देहांत हो गया था तथा पिता के भी अचानक निधन से सुमित्रा जी की शिक्षा तथा लालन-पालन का प्रश्न सामने आ गया। चूंकि सुमित्रा जी के शिक्षक श्री मधु बरवे उनके पिता के अच्छे मित्र भी थे, अत: सुमित्रा जी ने उन्हीं के यहां रह कर दसवीं तक की शिक्षा ग्रहण की। इसके बाद उच्च शिक्षा के लिए वे मुंबई आईं। मुंबई में पढ़ाई के दौरान ही उनका विवाह इंदौर के वकील जयंत महाजन से हुआ और चिपलूण की कन्या बहू बन कर इंदौर आ गई।

इंदौर से लोकसभा

मायके में पिता के माध्यम से सुमित्रा जी पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्कार हुए और ससुराल में सासू मां के माध्यम से राष्ट्र सेविका समिति के। सुमित्रा जी अपनी सास के साथ समिति की शाखाओं और कार्यक्रमों में जाने लगीं। वे रामायण तथा महाभारत पर प्रवचन देती थीं। वकृत्व कला में तो वे पहले से ही निपुण थीं। अब मराठी के साथ-साथ हिंदी पर भी उनकी अच्छी पकड़ हो गई। इसका सुपरिणाम उनकी राजनीतिक यात्रा पर हुआ।

सुमित्रा महाजन कहती हैं कि समाजसेवा के संस्कार तो उन्हें बचपन से ही मिले थे, परंतु वे राजनीति में कदम रखेंगी यह उन्होंने नहीं सोचा था। उन्होंने सर्वप्रथम पार्षद का चुनाव जीता। फिर वे इंदौर की उपमहापौर रहीं। इंदौर की जनता ने उन्हें बहुत सम्मान और प्रेम दिया। सर्वप्रथम उन्होंने मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और देश के तत्कालीन गृह मंत्री प्रकाशचंद्र सेठी के विरुद्ध चुनाव लड़ा था। चुनावी रैली में जब वे दोनों आमने-सामने आए तो उम्र और तजुर्बे में बड़े होने के कारण सुमित्रा जी ने उनके पांव छूकर आशीर्वाद मांगा और वे विजयी हुईं भी। इसके बाद उन्होंने इंदौर से लगातार आठ बार लोकसभा का चुनाव लड़ा और वे हर बार विजयी रहीं। उन्हें अटल बिहारी वाजपेयी तथा लालकृष्ण आडवानी जैसी ज्येष्ठ हस्तियों का सान्निध्य प्राप्त हुआ। राजनीति में निरंतर आगे बढ़ते हुए वे आज लोकसभा की अध्यक्ष बन गईं हैं।

कार्यक्षेत्र और महिलाएं

राजनीति में महिलाओं की स्थिति के बारे में वे कहती हैं कि मैं उससे संतुष्ट नहीं हूं। राजनीति में महिलाओं की सहभागिता बढ़ रही है, मगर जिस तरीके से बढ़नी चाहिए थी, वैसी नहीं बढ़ी है। राजनीति मेरा भी क्षेत्र हो सकता है, यह मानने में अभी भी महिलाएं पीछे रह जाती हैं।

घर तथा कार्यक्षेत्र के बीच तालमेल बिठाने के संदर्भ में वे अपना उदाहरण देते हुए कहती हैं कि एक बार सुषमा जी का दौरा था। मुझे कहा गया था कि आप उनके साथ दौरे पर रहेंगी। मध्यप्रदेश का 4-5 दिन का दौरा था। मुझे उनके साथ रहना था। मेरा बेटा उस समय 7-8 साल का था। उसने एक दिन पहले बोला था कि मां जाते समय लड्डू बनाकर जाना। मैंने हां कहा था, परंतु बनाना रह गया था। उसने फिर पूछा, तो मैंने कहा कि दादी बना देंगी। वह बोला कि नहीं, मुझे तो तुम्हारे ही हाथ के खाने हैं। फिर मुझे कहना पड़ा कि सुषमा जी 15 मिनट देर से निकलेंगे। मगर मैं लड्डू बनाकर निकली। हर महिला यह प्रयास करती है कि घर का काम भी संभालना है और कार्यक्षेत्र भी। उसके लिए मेहनत तो ज्यादा करनी ही पड़ती है।

इसमें दो बातें हैं। महिलाओं को चुनौती का सामना करना पड़ता है और महिलाएं खुद भी नहीं छोड़ पाती हैं। यह हम लोगों का स्वभाव है। हम स्वयं यह सोचते हैं कि सबको संतुष्ट रखें। इसलिए स्वयं को सिद्ध भी करती रहती हैं।

महिलाओं की आंतरिक शक्ति और ऊर्जा के बारे में वे कहती हैं कि वास्तव में महिलाओं में सहनशक्ति अत्यधिक होती है, साथ ही उनमें एड़जस्टमैंट की भावना भी होती है; क्योंकि उनको शुरू से बताया जाता है कि अगर अपने घर जाओगी तो तुम्हें सबको खुश रखना पड़ेगा। 20-22 साल तक आप एक परिवार में रहने के बाद, अलग संस्कार, एक प्रकार के अलग व्यवहार में पहुंचती हैं, एकदम से- जैसे एक पेड़ को उखाड़ कर दूसरी जगह लगाया जाता है, फिर उसमें उसको पनपना है, यह बहुत कठिन काम है। लेकिन महिला वह करती है; क्योंकि उसमें आंतरिक शक्ति होती है। उसके पास सारे गुण हैं। वह जब समाज में काम करने के लिए निकलती है तो इसका फायदा उसको मिलता है। एक घर को सब प्रकार से मैनेज करना और घर का बजट बनाने से लेकर उस बजट के अंदर घर को चलाना और सबको खुश रखना इत्यादि सभी का मैनेजमेंट वह करती है तो उसका फायदा उसे बाहर काम करने में मिलता है। राजनीति में तो आपको ये सब बहुत जरूरी होता है।

महिलाओं के लक्ष्य और उनके स्वप्नों के बारे में वे कहती हैं कि जो भी सपने देखना है, वह यथार्थ से जुड़े होने चाहिए। अपनी क्षमता, अपने आसपास का वातावरण, माहौल भी निर्णायक होते हैं सपने पूरे करने में। सपने तो कोई भी देख सकता है कि में यह बनूं। सपने देखें भी तो उसकी पूर्ति के लिए हमें ही प्रयत्न करना है, कोई दूसरा आकर आपके सपने पूरा नहीं करेगा। मैं यह नहीं कहूंगी कि सपने मर्यादा में ही देखो। लेकिन अगर सपना हम देखते हैं तो उसकी पूर्ति भी हमें ही करनी है। उसको साकार करने के लिए हमें ही मेहनत करनी है। यह समझ कर हमें मेहनत करनी पड़ेगी, काम करना पड़ेगा। जैसे मैं बताऊं कि जब पहली बार सांसद बनी या मैंने जब राजनीति में शुरूआत की, तो कहीं न कहीं मैं अन्याय के खिलाफ लड़ने के लिए राजनीति में आई। उस समय इमरजेंसी के बाद मैंने राजनीति शुरू की, बल्कि एक प्रकार से इमरजेंसी के दौरान ही मैंने राजनीति शुरू की। अन्याय नहीं होना चाहिए, मैं लडूंगी, मैं यह काम करके दिखाऊंगी और यह करते समय मुझे कुछ नहीं चाहिए। राजनीति अगर खराब हो गई है तो इस राजनीति को ठीक करने के लिए मैं केवल किनारे पर बैठ कर यह नहीं कह सकती हूं कि राजनीति खराब हो गई है। प्रवाह में उतर कर जितना बने उतना इसे साफ करने के लिए प्रयास करूं। यह मेरा सपना था, कि मैं साबित करूं कि राजनीति में ईमानदार भी हो सकते हैं। राजनीतिज्ञ मेहनत भी करते हैं और जितना बने उतना काम तो करते ही हैं। आज मैं यह कह सकती हूं कि जितना मैंने सोचा था, एक सपना देखा कहीं न कहीं कुछ अंशों में वह पूरा हो गया है। आज 25 साल राजनीति करने के बाद, अनेक पदों पर रहने के बाद एक ईमानदार की छवि तो पाई हूं। यह भी छवि बना पाई कि हां, राजनीतिज्ञ ईमानदार होते हैं और मेहनत भी करते हैं, कुछ करके दिखाते हैं। छवि में यह थोड़ा सा परिवर्तन आया है, ऐसा लगता है।

लोकसभा में ‘ताई’

हम अगर लोकसभा का कोई सत्र देखें तो वह किसी ऐसी कक्षा की तरह प्रतीत होता है जहां विद्यार्थी लगातार शोर मचाते रहते हैं और उस कक्षा की अध्यापिका कभी शांति से, कभी डांट कर तो कभी दंडात्मक कार्रवाई करके उन्हें नियंत्रित करने का प्रयास करती हैं। कक्षा की अध्यापिका अर्थात लोकसभा की अध्यक्ष के बारे में सुमित्रा महाजन कहती हैं कि यह कोई एकाध क्लास संभालने वाली बात नहीं है। लोक सभा में विभिन्न प्रदेशों से लोग आते हैं, विभिन्न प्रदेशों में भी भिन्न-भिन्न भाषाओं के लोग हैं। पहले जब सदन चलता था तो जो सांसद बोलते थे, उनमें बहुत अच्छे-अच्छे और बड़े-बड़े लोग रहे हैं। उनकी आपस में जो चर्चाएं होती थीं, वे बड़ी ही रोचक होती थीं। अब उसमें बदलाव आता जा रहा है।

मराठी में ‘ताई’ का अर्थ होता है बड़ी बहन। सुमित्रा जी से जब पूछा गया कि वे संसद के सदन में ‘ताई’ होने का कर्तव्य कैसे निभाती हैं तो उन्होंने मुस्कुराते हुए जवाब दिया कि ‘ताई’ का काम होता है, प्रेम से समझाना और समय आया तो डांटना भी। मगर डांटना भी प्रेम से हो और सही बात के लिए हो तो मुझे लगता है कि उसे इसी रूप में लोग भी समझेंगे। मैं पूरी कोशिश करती हूं कि सबको बोलने का मौका मिले।

अध्यक्ष बनने के बाद आए अनुभवों के बारे में पूछे जाने पर वे कहती हैं कि अध्यक्ष बनकर तो अच्छा लग रहा है; क्योंकि वास्तव में कभी-कभी ऐसा लगता है कि यह काम मेेरे स्वभाव के अनुसार है। 1989 से लेकर आज तक जिस तरीके से लोकसभा में मैंने काम किया है, कई चीजें देखी हैं और ऐसा लगता है कि उस अनुभव का कहीं न कहीं फायदा तो मिलेगा और सदन अच्छे तरीके से चल सकेगा।

लोकसभा में भाजपा को पूर्ण बहुमत मिलने के संदर्भ में सुमित्रा ताई कहती हैं कि पूर्ण बहुमत भी एक प्रकार का चैलेंज है। जैसे लोगों ने इस सरकार को कह दिया है कि लो, अब कर के दिखाओ, हमें सुशासन चाहिए, हमें इन सब बातों से मुक्ति चाहिए, हमें एक अच्छा हिन्दुस्तान चाहिए। यह एक चैलेंज है इस सरकार के सामने और सरकार को यह पूर्ण करना हैै।

आपने 1982 से 2016 के कालखंड में महिलाओं के विकास संवर्धन हेतु कौन से कार्य किए हैं?

समय के साथ-साथ जिम्मेदारियों और कार्यों का स्वरूप बदलता रहा, लेकिन इन सबके बीच एक ही भाव था महिलाओं में स्वाभिमान भरना, स्वावलम्बन की प्रेरणा देना, सामाजिक कार्यों में महिलाओं की सहभागिता बढ़ाना, शिक्षा, संस्कार और स्वरोजगार से वे देश को सशक्त करें यही मेरा प्रयास रहा है।

पार्षद के रूप में- सन 1983-84 में महिलाओं के लिए टायलेट का प्रस्ताव
विधायक प्रत्याशी के रूप में- कम पैसे में, मेहनत करके, सादगी से अच्छा चुनाव लड़ने का उदाहरण प्रस्तुत किया।
पार्टी कार्यकर्ता के रूप में- संगठन में महिलाओं को उचित स्थान मिलने के लिए प्रयास, चुनाव समिति में योग्य महिलाओं को टिकट मिले इस हेतु प्रयास।

सामाजिक क्षेत्र में- महिला संगठनों, संस्थाओं में प्रवचनों, व्याख्यानों, विभिन्न क्षेत्रों में प्रतियोगिताओं, संस्कार शिविरों का आयोजित करना। कला, भजन, नाटकों के मंचन, लेखन आदि क्षेत्र में महिलाओं को आगे लाना।

सांसद के रूप में- क्षेत्र के विषयों के साथ-साथ संसद में महिलाओं की समस्याओं को प्रश्नों के माध्यम से ध्यानाकर्षण, विशेष चर्चा के माध्यम से सतत लोकसभा में उठाना।

केन्द्रीय महिला एवं बाल विकास राज्य मंत्री के नाते- देश और समाज में महिलाओं के योगदान को प्रोत्साहित एवं सम्मानित करने के लिए पांच स्त्री शक्ति पुरस्कारों की स्थापना की। जेन्डर बजटिंग का प्रयास किया। आंगनवाडी कार्यकताओं की समस्याओं का निदान किया। उनका मानदेय 25 साल में पहली बार दुगुना किया। राष्ट्रीय महिला कोष का कोरपस फंड 100 करोड़ रूपये किया। महिला सशक्तिकरण वर्ष घोषित करके अनेक कार्यक्रम घोषित किए।

आए दिन देश में महिलाओं के साथ अत्याचार की खबरें आती हैं। तब एक प्रभावशाली महिला के नाते आपके मन में क्या विचार आते हैं?

महिलाओं के सम्बंध में अत्याचार निवारणार्थ कानून का सही उपयोग होना अत्यावश्यक है। समाज प्रबोधन, स्त्री व्यक्तित्व विकास का द़ृष्टिकोण देना जरूरी है। अच्छे विचारों का आदान-प्रदान, समाज में जागरण और जागरूकता के उपाय करना अनिवार्य है। महिलाओं में निर्भीकता, स्वावलंबन, शिक्षा और संस्कार के साथ नेतृत्व क्षमताओं का संवर्धन करना।

स्त्री स्वतंत्रता के साथ स्त्री पुरूष सम्बंधों की परिभाषा बदल रही है। ‘लिव इन रिलेशनशिप’ को महिलाएं भी स्वीकार रही हैं। इस बारे में आपके विचार स्पष्ट कीजिए?

स्वतंत्रता का मतलब स्वच्छंद आचारण नहीं होता, मर्यादाएं स्त्री पुरूष दोनों के लिए होती हैं। महिला और पुरुष में समानता का यह मतलब नहीं कि महिलाएं पुरूषों जैसा आचारण व्यवहार करने लगे। स्त्री के पास एक स्त्री के रूप में ही अपार बल है, असीम शक्ति है। सहयोग, सहजीवन, सहविचार हमारे सामाजिक व्यवस्था की शक्ति है। हमारा विवाह संस्कार बहुत अच्छी परम्परा है।

संसदीय बजट में महिलाओं के सामाजिक, आर्थिक स्तर को उठाने एवं जेंडर भेदभाव खत्म करने वाले कौन से प्रावधान हो रहे हैं?

आगामी मार्च माह में नई दिल्ली में मैंने लोकसभा एवं राज्यसभा की सभी महिला सांसदों, राज्यों के विधान सभाओं की महिला विधायकों, सभी महिला मुख्यमंत्रियों, पूर्व में इन पदों पर आसीन रहीं महिलाओं को एक बृहद आयोजन में आमंत्रित किया है। इसकी थीम है “कैसे महिलाएं राष्ट्र के सशक्तिकरण में अपना योगदान दे सकती हैं”। महिलाओं के लिए प्राथमिकता राष्ट्र का सशक्तिकरण है।

सरकारों द्वारा आर्थिक योजनाओं में महिलाओं की सहभागिता बढ़े इस हेतु प्रयास हो रहे हैं। स्किल डेवलपमेंट, जनधन योजना, मुद्रा योजना आदि के माध्यम से महिलाओं एवं उनके स्वसहायता समूहों को प्रशिक्षण, व्यवसाय हेतु आर्थिक सहायता प्रदान की जा रही है। संसद एवं विधान सभाओं में इन विषयों पर चर्चाएं होती हैं। इनमें गुणात्मक और संख्यात्मक बढ़ोतरी हो, इस हेतु निरंतर प्रयास किए जा रहे हैं। संवैधानिक पदों पर जैसे पंचायतों में आरक्षण भी महिलाओं को दिया जा रहा है।

आप लोकसभा अध्यक्ष के रूप में एक उच्च पद पर आसीन हैं। सामान्य भारतीय महिला की स्थिति के बारे में आप क्या सोचती हैं?

मैं सामान्य पृृष्ठभ्ाूमि से आई हूं। समाज में कार्य करके अनुशासित रह कर मेहनत से अच्छा करने का प्रयास किया है। देवी अहिल्याबाई के आदर्शों को सामने रखते हुए उनका सतत पालन करती हूं। छोटे से छोटा कार्य भी पूरी तत्परता के साथ अपने पूरे सामर्थ्य से करने का प्रयास करती हूं।

सामान्य स्त्री में भी उसकी अपनी शक्ति है, गुण हैं, केवल उन्हें मार्गदर्शन, प्रोत्साहन एवं प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है। हर क्षेत्र में जैसे सामाजिक कार्य, जन प्रतिनिधित्व, सेना, विज्ञान और प्रौद्योगिकी, उद्योग, कला, प्रशासन, पुलिस, खेल, सेवा, चिकित्सा, राजनीति इत्यादि सभी क्षेत्रों में महिलाएं अपना योगदान दे रही हैं।

आपके कार्यकाल में नया संसद भवन बनाने का विचार किया गया है, इसकी आवश्यकता तथा संकल्पना के बारे में बताएं।
इस संदर्भ में मैंने एक पत्र शहरी विकास और संसदीय कार्य मंत्री श्री वेंकय्या नायडू जी को लिखा है। इसमें मैंने वर्तमान संसद भवन की स्थिति और भविष्य की आवश्यकताओं के बारे में जानकारी दी है।

आप आठ बार इंदौर से लोकसभा के लिए निर्वाचित हुई हैं और हर बार एक नया रिकार्ड आपके नाम से जुड़ा है। क्या कभी दिल में यह भावना आई कि मुझे मध्यप्रदेश का मुख्य मंत्री बनना है?

मैंने कभी भी मुख्यमंत्री बनना नहीं सोचा। जो भी दायित्व या जिम्मेदारी मुझे दी गई है उसका सही ढंग से निवर्हन कर सकूं, यही मेरा प्रयास रहा है। एक सांसद के रूप में, एक मंत्री के रूप में और अब लोकसभा अध्यक्ष के रूप में मेरा हमेशा यही प्रयास रहा है कि समाज सशक्त बने, राष्ट्र मजबूत हो और सर्वे भवन्तु सुखिन: की भावना के साथ कार्य किया।

क्या आप जानते हैं?

संसदीय शालीनता और शिष्टाचार
लोकसभा अध्यक्ष किसी भी ऐसे सदस्य को तुरंत सदन से बाहर चले जाने का आदेश दे सकते हैं, जिसका आचरण, उनके विचार में अत्यधिक अव्यवस्था फैलाने वाला है और जिस सदस्य को सदन से बाहर जाने का आदेश दिया जाए उसे उसी समय सदन से बाहर चले जाना चाहिए और उस दिन की शेष बैठक से अनुपस्थित रहना चाहिए। जब कोई सदस्य किसी दूसरे सदस्य अथवा मंत्री की आलोचना करें,तो वह सदस्य अथवा मंत्री (जिसकी आलोचना की गई हो) इस बात की अपेक्षा कर सकता है कि उक्त आलोचना करने वाला सदस्य अपनी आलोचना का उत्तर सुनने के लिए सदन में उपस्थित रहे।
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