हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
बैंकों के ब़ड़ेे कर्जखोरों का काला चिट्ठा

बैंकों के ब़ड़ेे कर्जखोरों का काला चिट्ठा

by सरोज त्रिपाठी
in अप्रैल -२०१६, सामाजिक
0

भारतीय बैंकों द्वारा वित्त वर्ष 2013 से 2015 के दौरान लाखों करो़ड़ों की भारी रकम को बट्टे खाते में ड़ाल दिया जाना बेहद शर्मनाक घटना है। जिस देश में 32 रुपये प्रति दिन की आय से गरीबी रेखा का निर्धारण किया जाता है, वहां महज दो वित्त वर्षों में एक लाख 14 हजार करो़ड़ रुपये बट्टे खाते में ड़ाल दिए गए। …यह सब कांग्रेस के कार्यकाल की देन है, जिसे सुधारने की चुनौती मोदी सरकार के समक्ष है।

भारत के वित्त मंत्री अरुण जेटली ने दो टूक शब्दों में बैंकों के ब़ड़े कर्जदारों को चेतावनी देते हुए कहा है कि बैंकों के किसी भी कर्ज बकाएदार को बख्शा नहीं जायेगा तथा कोई भी कर्ज माफ भी नहीं किया जाएगा। देश के लिए अत्यंत दुर्भाग्य की बात है कि सार्वजनिक क्षेत्र के अधिकांश बैंक गहरे आर्थिक संकट में फंस गए हैं। दरअसल यह संकट तो लंबे समय से चला आ रहा था, लेकिन रिजर्व बैंक के वर्तमान गवर्नर रघुराम राजन की क़ड़ाई से हाल ही में उजागर हो सका है। सन 2012 में बैंकों का 15,551 करो़ड़ रुपये का कर्ज ठूब गया था। सन 2015 में यह राशि 52,542 करो़ड़ रुपये हो गई। इस तरह तीन साल में डूबे कर्ज की राशि में तीन गुना से ज्यादा बढोत्तरी हो गई।

भारतीय बैंकों द्वारा वित्त वर्ष 2013 से 2015 के दौरान लाखों करो़ड़ों की भारी रकम को बट्टे खाते में ड़ाल दिया जाना बेहद शर्मनाक घटना है। जिस देश में 32 रुपये प्रति दिन की आय से गरीबी रेखा का निर्धारण किया जाता है, वहां महज दो वित्त वर्षों में एक लाख 14 हजार करो़ड़ रुपये बट्टे खाते में ड़ाल दिए गए। यह अर्थव्यवस्था की राष्ट्रीय क्षति तो है ही, इसमें बैंकों की निष्पक्ष कार्यप्रणाली पर भी सवालिया निशान लग गया है। यह पूरी कार्यप्रणाली कुछ यूं कार्य करती रही है। पहले चरण में देश के भ्रष्ट व्यवसायी भारी पैसा खर्च कर तथा हर तरह का राजनीतिक जो़ड़तो़ड़ कर अपने आदमी को बैंक का व्यवस्थापक, अध्यक्ष या कार्यकारी बनवा देते हैं। इसके बाद बैंक का यह उच्च अधिकारी अपने हिंतैषियों के लिए ऋण स्वीकृत करता था। ऐसे ऋण को व्यवसायी वापस करना जरूरी नहीं समझते हैं। बैंक के व्यवस्थापक इस वापस न किए गए ऋण को ‘ठीक समय आने पर ’ बैड़ लोन्स की उपाधि से अलंकृत कर ‘बट्टे बाते’ (एनपीए) में ड़ाल देते थे। इसका दुषपणिाम यह होता था कि भारत सरकार को बैंकों की हानि की भरपाई के लिए और अधिक राशि निवेशित करनी प़ड़ती थी। यह प्रक्रिया वर्षों से चलती आ रही है। इस पूरी प्रक्रिया के प्रति बैंकों के नियामकों रिजर्व बैंक और देश की कांग्रेसी सरकारों ने आंखें मूंदे रखी। बैंक के यूनियनों ने बैंक से ऋण लेकर उसे वापस न करने वाली दोषी कंपनियों और व्यक्तियों की सूची भी जारी की। केवल एकाध अखबारों में यह खबर भी छपी। घोटाले का यह चक्र चलता रहा। इसके परिणामस्वरूप बैंकों की अपने अनुमानित घाटों की पूर्ति के लिए धन जुटाने की क्षमता को घटती गई। बैंकों की अपने घाटों की पूर्ति के लिए धन जुटाने की क्षमता को आवृत्ति अनुपात व्यवस्था कहा जाता है। इस व्यवस्था से बैंक के अपने भावी घाटों की पूर्ति करने की क्षमता का पता चलता है।

रिजर्व बैंक ने 2010 में निर्देश दिया था कि आवृत्ति अनुपात व्यवस्था इस प्रकार की होनी चाहिए कि ऋण की वापसी न होने पर 70 प्रतिशत ऋण का भुगतान इसमें से किया जा सके। मार्च 2011 से मार्च 2015 के दौान 20 सार्वजनिक बैंकों के लिए यह अनुमान 72 प्रतिशत से घटकर मात्र 57 प्रतिशत रह गया है। 2010 में बैंकों ने यह तर्क दिया था कि इस व्यवस्था को बहुत अधिक रखने की जरूरत नहीं है, क्योंकि उस समय गैरनिष्पादित संपत्तियों या अनर्जक संपत्तियों (एनपीए) की मात्रा बहुत अधिक नहीं थी। लेकिन आज अनर्जक परिसंपत्तियां बहुत अधिक हो गई हैं।

जाहिर है, एनपीए के बढ़ने से सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक एक ब़ड़े संकट में प़ड़ गए हैं। यह सब बेईमान कंपनियों (प्रमोटर्स) और व्यवस्थापकों के कारण हुआ है। परिस्थिति की गंभीरता का अंदाजा दिसम्बर 2015 को समाप्त हुए तिमाही में बैंको के लाभ -हानि के आंक़ड़ों से लगाया जा सकता है। इस तिमाही में एनपीए के लिए सार्वजनिक बैंकों ने 43,717 करो़ड़ रुपये का प्रावधान किया है। यह आक़ड़ा पिछले साल की इसी अवधि की तुलना में लगभग दो गुना है। 25 में से 11 बैंकों ने इस तिमाही में घाटा दिखाया है और बैंकों के लाभ में भारी कमी आई है। यह कमी 59 से 93 प्रतिशत तक है। अगर इसकी तुलना पिछले बर्ष के इसी दौर से की जाए को बैंक ऑफ ब़ड़ौदा, आईड़ीबीआई, इंड़ियन ओवरसीज बैंक, बैंक ऑफ इंड़िया, और युको बैंक की हानियां 1400 से लेकर 3350 करो़ड़ रुपये तक है। कनारा बैंक और युनियन बैंक का लाभ 74 से 96 प्रतिशत तक घट गया है। पिछले वर्ष की तुलना में स्टेट बैंक का मुनाफा भी 62 प्रतिशत गिर गया है। दूसरी तरफ इसी अवधि में देश के निजी बैंकों ने कुल मिलाकर 11,101 करो़ड़ रुपये का लाभ कमाया है।

रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन ने बैंकों को अपनी सभी अनर्जक परिसंपत्तियां (एनपीए) को सार्वजनिक करने के लिए मजबूर किया। इसी में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का कच्चा चिट्ठा सामने आ पाया है। यदि रघुराम राजन क़ड़ाई न दिखाते तो इस बात की काफी संभावना थी कि हमेशा की तरह सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक इधर उधर कर सब कुछ छिपा जाते। रघुराम राजन ने घोषणा की है कि अगर हमें गहरी चीरफा़ड़ या शल्यक्रिया करनी है तो सर्वप्रथम यह स्वीकार करना होगा कि बैंकों के सक्षम एनपीए की गंभीर अवस्था है।

इस बीच 16 फरवरी 2016 को सुप्रीम कोर्ट ने भी डूबे कर्ज में बढोत्तरी पर गंभीर चिंता जताई। सुप्रीम कोर्ट ने रिजर्व बैंक से उन लोगों को सूची मांगी है, जिन्होंने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों से 500 करो़ड़ रुपये या इससे अधिक का कर्ज ले रखा है। सुप्रीम कोर्ट ने बैंकों को क़ड़ी फटकार लगाते हुए पूछा कि उचित दिशानिर्देशों का पालन किए बिना इतनी ब़ड़ी राशि ऋण के तौर पर कैसे दे दी गई। भारत के प्रधान न्यायाधीश टी. एस इरकुर की अध्यक्षता में गठित खंड़पीठ ने रिजर्व बैंक से उन कंपनियों की भी सूची मांगी है, जिनके ऋण विभिन्न योजनाओं के तहत पुनर्रचित (रीस्ट्रक्चर) किए गए हैं। यह सूचित किए जाने पर भी नियम के मुताबिक ऋण चुकता न करने वाले उद्योगपतियों और कंपनियों की सूची सार्वजनिक नहीं की जा सकती, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह सूची एक सीलबंद लिफाफे में कोर्ट को सौंपी जाए। सुप्रीम कोर्ट यह जानना चाता है कि सार्वजनिक क्षेत्र मे बैंक और वित्तीय संस्थान किस तरह बिना उचित दिशानिर्देशों के ब़ड़े पैमाने पर ऋण दे रहे हैैं। सर्वोच्च न्यायालय यह भी जानना चाहता है कि ऋण वसूली के लिए पर्याप्त इंतजाम किए गए या नहीं। सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2005 में एक गैर सकारी संगड़न ‘सेंटर फॉर पब्लिक इंस्टेट लिटिगेशन’ द्वारा दायर की गई एक जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए उपयुक्त निर्देश दिए हैं।
यह बात स्मरणीय है कि जब पूर्व प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी ने बैंकों या राष्ट्रीयकरण किया था, तब उस फैसले के पक्ष में तर्क दिया गया था कि बैंक देश के ब़ड़े औद्योगिक घरानों के औजार बने हुए हैं। आज फिर से बैंक उसी हालत में पहुंच गए हैं। दिन प्रति दिन बैंकों पर निजी घरानों का प्रभाव बढ़ता जा रहा है। निजी निवेशकों की निवेश सीमा 49 प्रतिशत तक पहुंच चुकी है। स्टेक होल्ड़िंग कंपनियां अब निर्णय लेने की नीति में वोटिंग का अधिकार भी मांग रही हैं। कॉर्पोरेट सेक्टर ने बैंकों को अपनी कठपुतली बना रखा है। ब़ड़ी-ब़ड़ी कंपनियां बैंकों में मनमाने फैसले करवाती हैं। प्राय: बैंक यह भी नहीं देखते कि कंपनी में कर्ज लौटाने की क्षमता है भी या नहीं। यह एक अजीबोगरीब विड़ंबना है कि तमाम बैंक किसान, मजदूर या अल्प गरीब वर्ग को ऋण देते समय क़ड़ी शर्त लगाते हैं और वसूली में क़ड़ाई बरतते हैं, लेकिन जिन ब़ड़ी कंपनियों पर अरबों रुपये बकाया है उनसे नरमी बरतते हैं। शायद ही कभी सुना गया कि ऋण की राशि जमा करने में विफल रहे किसी ब़ड़े उद्योगपति की संपत्ति की नीलामी हो रही है। ज्यादा से ज्यादा कंपनी को दिवालिया घोषित कर ‘बैड़ लोन’ की श्रेणी प्रदान कर दी जाती है। पिछले शीतकालीन सत्र के दौरान संसद में ‘दिवालीयापन कानून’ पारित करवाया गया था। इसके अलावा कोई ड़ोस कदम नहीं उड़ाए गए। वित्त मंत्री अरूण जेटली ने अपने पिछले साल के बजट भाषण में 66 नए कर्ज वसूली पंचाट गड़ित किए जाने की घोषणा भी की थी। उम्मीद की जानी चाहिए कि यह घोषणा मुस्तैदी से क्रियान्वित भी की जाएगी।

संसदीय सार्वजनिक लेखा समिति के आंकड़ों के मुताबिक भारतीय बैंकों के 66 लाख करो़ड़ का एनपीए केवल ब़ड़े कॉर्पोरेट घरानों के यहां बकाया है। एक और आंकठे के मुताबिक कुछ ‘बैड़ लोन’ का लगभग 55 प्रतिशत हिस्सा कॉर्पोरेट घरानों के नाम है। इन घरानों के प्रति सरकारी नीतियां हमेशा से उदार ही हैं। यही वजह है कि इन्हें अंधाधुंध ऋण मिलता रहा है। चौंकाने वाला तथ्य तो यह है कि बैंकों द्वारा दिए गए कुछ कर्ज का दो-तिहाई ऐसी 1200 कंपनियों को दिया गया है जिनका बाजार पूंजीकरण कर्ज की राशि से आधा या उससे भी कम है।

वित्त मंत्री अरुण जेटली ने अपने इस साल के बजट भाषण में इन बैंकों के वित्त पोषण के लिए 25 हजार करो़ड़ रुपये के प्रावधान की घोषणा की है। मार्च 2019 को समाप्त होने वाले चार वित्त वर्षों के लिए इंद्रधनुष्य कार्यक्रम के तहत सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के वित्त पोषण के लिए 70 हजार करो़ड़ रुपये आबंटित किए गए हैं। गौरतलब है कि इन बैंकों के वित्त पोषण का पैसा आम जनता से वसूले गए कर से जुटाया जाता है। यानी यह पैसा बैंकों की लेखा पुस्तिका की सुधार के लिए लगाया जाएगा, ताकि इनके पास इतना पैसा आ जाए कि वे फिर से ऋण दे सके।

केंद्र सरकार के लिए यह परीक्षा की घ़ड़ी है। देखना है कि वह उद्योगपतियों, बैंक अधिकारीयों और राजनेताओं के गड़जो़ड़ का भंड़ाफो़ड़ करती है या पूर्व की कांग्रेस सरकारों के नक्शे कदम पूर्व मसले पर लीपापोती करती है। यह सब एनपीए कांग्रेस पार्टी के शासनकाल की देन है। मोदी सरकार से उम्मीद की जाती है कि वह कांग्रेस के समय की इन सब धोखाधा़िड़यों को सामने लाएगी और उनमें शामिल लोगों को जेल भेजेगी तथा बैंकों का पैसा वापस निकलवाएगी।

सरोज त्रिपाठी

Next Post
रोजगार के लिए जरूरी है मैन्यूफैक्चरिंग फले फूले

रोजगार के लिए जरूरी है मैन्यूफैक्चरिंग फले फूले

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

0