खतरनाक है शी जिनफिंग का फिर सम्राट बनना

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चीनी संविधान में हाल में हुए परिवर्तन से सत्ता का गुरूत्व केंद्र वर्तमान राष्ट्रपति शी चिनफिंग के आसपास बना रहेगा। वे अब मर्जी के मुताबिक जब तक चाहें राष्ट्रपति पद पर बने रह सकते हैं। इससे पूरी दुनिया, विशेष रूप से पड़ोसी देश काफी चिंता में पड़ गए हैं। भारत के लिए शी का आजीवन राष्ट्रपति बने रहना निश्चित तौर से सिरदर्द साबित होने वाला है।

शिंजो आबे को प्रचंड बहुमत

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जापानी प्रधान मंत्री शिंजो आबे की हाल के चुनावों में प्रचंड जीत के पीछे उनकी आर्थिक नीतियां और जापान को सशक्त सैन्य बल प्रदान करने के लिए संविधान संशोधन प्रस्तावित करना है। यह इस बात का संकेत है कि दूसरे विश्व युद्ध के बाद अब जापानी समाज बदल चुका है। आबे की सरकार अमेरिका, जापान और भारत के बीच त्रिपक्षीय सैन्य गठबंधन की इच्छा रखती है। एशिया में यह नए युग का सूत्रपात हो सकता है। जापान के प्रधान मंत्री शिंजो आबे ने २४ अक्टूबर को संपन्न संसदीय चुनावों में प्रचंड बहुमत हासिल कर सत्ता में वापसी की है। आबे की

मर्केल की मरियल जीत

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जर्मनी में लम्बे समय बाद कट्टर दक्षिणपंथी पार्टी का उभरना और एंजेला मर्केल की पार्टी का मतदान प्रतिशत घट जाना भविष्य के बदलाव की ओर इंगित कर रहे हैं। सीरियाई शरणार्थियों को अपने यहां जगह देना मर्केल को महंगा पड़ा है। इससे जर्मनी की अर्थव्यवस्था पर भी असर पड़ रहा है।   २४ सितंबर २०१७ को जर्मनी में संपन्न संसदीय चुनाव एक मोड़ लेकर आया है। मौजूदा चांसलर एंजेला मर्केल को लगातार चौथी बार जीत तो जरूर मिली है, लेकिन घुर दक्षिणपंथी पार्टी ऑल्टरनेटिव फॉर जर्मनी (एएफडी) संसद में दमदार अंदाज में पहुंची है और च

भारतीय रेल का एवरेस्ट: चिनाब पुल

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शिवालिक की पहाड़ियों के बीच चिनाब नदी पर बन रहा नया पुल ऊंचाई, डिजाइन और भारतीय इंजीनियरिंग कारीगरी का नायाब नमूना होगा, जिसकी मिसाल सदियों तक दुनिया भर में दी जाएगी। यह एफिल टॉवर और कुतुब मीनार से भी ऊंचा होगा। भारतीय रेलवे जल्द ही दुनिया में एक नया इत

व्यावहारिकता बनी विदेश नीति का मूलमंत्र

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इसमें कोई संदेह नहीं है कि नरेन्द्र मोदी ने मनमोहन सिंह सरकार के दौर की सुस्त पड़ी विदेश नीति को गतिशील बनाने का सराहनीय प्रयास किया है| लेकिन, मोदी जानते हैं कि भारत जब तक वैश्‍विक आर्थिक ताकत नहीं बनता तब तक भारतीय विदेश नीति की धाक नहीं बनेगी| समर्थ शक्तिशाली राष्ट्र बनाना हमारी पहली आवश्यकता है|

अप्रवासियों के लिए सख्त अमेरिका

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ट्रंप का चुनाव जीतना और ब्रिटेन का यूरोपीय संघ से अलग होने का निर्णय, वर्ष २०१६ की दो सब से अहम घटनाएं थीं। इन दोनों अहम घटनाओं के पीछे की कड़वी सच्चाई यह है कि अब वैश्वीकरण की नीतियों ने एशियाई, अफ्रीकी, लातिन अमेरिकी देशों की आम जनता को ही नहीं, खुद अमेर

अमेरिका से ग्लोबल वार्मिंग का खतरा बढ़ा

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ग्लोबल वार्मिंग से मौसम का बदलता मिजाज पृथ्वी पर मानव सभ्यता के लिए खतरे की घंटी है। वैज्ञानिकों में यह मान्यता मजबूत हो चुकी है कि जलवायु बदलाव व इससे जुड़े कई अन्य गंभीर संकट (जैसे जल संकट, जैव विविधता का हाल और समुद्रों का अम्लीकरण) अब धरती की जीवनदाय

अबकी बार ट्रंप सरकार

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अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दूसरे देशों के लोगों को अमेरिका में रोजगार देने का जो विरोध किया है उससे भारतीयों की नौकरियों पर कुछ असर पड़ने की आशंका है। फिर भी यह बहुत बड़ा असर नहीं होगा। जानकारों का कहना है कि सिलिकॉन वैली की इमेज इतनी अच्छी है कि भारत ज्यादा प्रभावित नहीं होगा; क्योंकि अमेरिका को भी विशेषज्ञों की जरूरत है।

‘पूरब नीति’ की कूटनीतिक सफलता

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अपने पिछले दो सालों के कार्यकाल में मोदी सरकार ने विदेश     नीति को एक नई धार दी है| पूरब हो या पश्‍चिम पूरी दुनिया की हर चीज पर भारत की नज़र है और उसका असर भी दिख रहा है| प्रधान मंत्री मोदी ने सबसे पहले नरसिंह राव सरकार की ‘पूरब की और देखो’ नीति को दोबारा जिंदा किया और उसे अमली जामा पहनाने का सफल प्रयास किया|

हिलेरी व ट्रंप में कांटे की टक्कर

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अगले नवम्बर में हो रहे अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव की ओर सारी दुनिया की नजरें लगी हुई हैं। रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप को आम नागरिक इसलिए पसंद कर रहे हैं क्योंकि वे अमेरिका को फिर से विश्व विजेता बनाने का स्वप्न दिखा रहे हैं, पर उनकी पार्टी की राय विभाजित है। दूसरी तरफ डेमोक्रेटिक पार्टी की उम्मीदवार हिलेरी क्लिंटन आम लोगों की पसंद नहीं हैं, पर अमेरिकी व्यवस्था की प्रिय हैं। फिलहाल अमेरिका का लोकतंत्र ऊहापोह कि स्थिति में है।

भारत अमेरिका रिश्तों में नया अध्याय

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ओबामा-मोदी वार्ता के बाद भारत को अमेरिका का प्रमुख रक्षा साझेदार बनाने की बात जिन शब्दों में कही गई है, उससे साफ है कि आने वाले सालों में भारत- अमेरिका के रक्षा रिश्तें न केवल सैनिक साजो-सामान हासिल करने के लिए गहरे होंगे; बल्कि रणनीतिक स्तर पर भी दोनों देश चीन विरोधी अभियान में एकसाथ होंगे।

बैंकों के ब़ड़ेे कर्जखोरों का काला चिट्ठा

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भारतीय बैंकों द्वारा वित्त वर्ष 2013 से 2015 के दौरान लाखों करो़ड़ों की भारी रकम को बट्टे खाते में ड़ाल दिया जाना बेहद शर्मनाक घटना है। जिस देश में 32 रुपये प्रति दिन की आय से गरीबी रेखा का निर्धारण किया जाता है, वहां महज दो वित्त वर्षों में एक लाख 14 हजार करो़ड़ रुपये बट्टे खाते में ड़ाल दिए गए। ...यह सब कांग्रेस के कार्यकाल की देन है, जिसे सुधारने की चुनौती मोदी सरकार के समक्ष है।

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