डेंटल लैब की स्थापना

पूर्वांचल में दंत सेवा के लिए डेंटल लेबोरेटरी की स्थापना का चौदह वर्ष का यह प्रवास बहुत रोमांचक है। एक छोटा सेवा पौधा लगा था, जो अब वृक्ष बनता जा रहा है।

पूर्वांचल में २०१३ में स्थायी रूप से दांतों के अस्पताल की स्थापना की गई। अब कोक्राझार जिले में गोसाई ग्राम और मणिपुर के इम्फाल में दोनों ही स्थानों पर दंत विशेषज्ञ नियमित रूप से अपनी सेवाएं दे रहे थे। अतएव इन दोनों स्थानों पर डेंटल लेबोरेटरी स्थापित किए जाने की आवश्यकता महसूस होने लगी। जिससे वहां दंतपंक्तियां तथा कैपब्रिज बनाने काम हो सके। डेंटल लेब के लिए तकनीकी लोगों की आवश्यकता होती है।

उसी समय एक दुखद घटना हुई। वर्ष २०१३ अक्टूबर में चेन्नई की जिन मायाताई जोशी के सौजन्य से गोसाई ग्राम (असम) में दंत चिकित्सालय की स्थापना हुई थी दुर्भाग्य से २०१४ में रक्त केंसर के कारण उनका अचानक निधन हो गया। एक हंसता-खेलता, सुदर्शन व्यक्तित्व अनंत में विलीन हो गया। सब के लिए यह एक बड़ा आघात था। उनके निधन के बाद उनके पति अशोकजी जोशी ने स्व.मायाताई की याद में डेंटल लेब की स्थापना के लिए दान स्वरुप राशि भेंट की।

अब लेब चलाने के लिए टेकनीशियन की आवश्यकता थी। इसके लिए असम और मणिपुर के तीन विद्यार्थियों को अहमदाबाद में लेब टेकनीशियन के प्रशिक्षण के लिए बुलाया गया। यह प्रशिक्षण चार महीने का था। पूर्वांचल के इन लोगों के खून में ही कला समाहित है। असम से आए एक लड़के ने व मणिपुर से आई दो लड़कियों ने देखते देखते र्ऋीश्रश्र ऊशर्पींीीश, झरीींळरश्र ऊशर्पींीीश, उीेुप रपव इीळवसश आदि कलाएं सीख लीं। इसमें खास बात यह थी कि इन लोगों को प्रशिक्षण देने वाले श्री मनीष पटेल ने प्रशिक्षण का तो कोई शुल्क लिया ही नहीं, बल्कि इम्फाल में लेब की स्थापना के लिए दान राशि भी दी। सभी प्रकार की तैयारी अहमदाबाद में कर, सभी सामान भेजने की व्यवस्था की। स्वयम् अपने हाथों चेयर, टेबल, यूनिट आदि की असेम्बलिंग की। किसी भी हालत मेें लेब प्रारम्भ करनी ही थी। यद्यपि मुझे लेब के सेटिंग का कोई अनुभव नहीं था। मैंने शून्य से निर्माण करने की मन की तैयारी कर ली थी। अतएव लेब के लिए आवश्यक फर्नेश, लेथमशीन, हायब्रेटर, सैंडब्लास्टर, कास्टींग मशीन आदि आवश्यक चीजों की जानकारी प्राप्त कर ली। विक्रेता से भी अनेक जानकारियां प्राप्त हुई। समय समय पर लेब में जाकर स्वयम् आक्सीजन पाइप, गैस पाइप को हाथ में लेकर फ्लेम की जानकारी प्राप्त की व कास्टिंग की भी जानकारी ली। संक्षेप में कहें तो सभी आवश्यक चीजों को खरीद कर, उसकी यथायोग्य पैकिंग कर पार्सल भेजने तक की सारी प्रक्रिया का और उस समय घटित सभी घटनाओं को मैंने एन्जाय किया।

वहां पहुंचने के पहले गोसाई ग्राम और इम्फाल के लेब में कहां वर्किंग टेबल लगाना, इलेक्ट्रिक के वहां कितने प्वाइंट देना आदि की जानकारी वहां पहले ही भेजी जा चुकी थी, ताकि पहुंचने पर सारी मशीने शीघ्रताशीघ्र लगाई जा सके।

पहले से निश्चित कार्यक्रम के अनुसार मैं पहले गोसाई ग्राम पहुंचा। लेब के लिए निश्चित स्थान के सामने पंडाल आदि लगाकर कार्यकर्ताओं ने उद्घाटन की तैयारी भी कर रखी थी। यह देखकर मेरा मन प्रसन्न हो गया। अभी हम यह विचार कर ही रहे थे कि कौन सी मशीन कहां लगाई जाए, उसी समय पता चला कि ‘किसी के दबाव’ मे आकर इस परिसर का मालिक लेब लगाने का विरोध कर रहा है। यह बात हमारी पूरी होने आई योजना पर तुषारापात थी।अब क्या करें! स्थानीय लोगों को उद्घाटन के लिए आमंत्रित भी कर चुके थे। पूरा उत्साह ठंडा पड गया।

अंततः हमने सेवा भारती के कार्यालय परिसर में ही लेब लगाने का निश्चय किया। ऐसा लगता है कि भगवान भी पूरी परीक्षा लेने पर तुल गया थां। फिर से हमें सारा सामान यहां से वहां लेकर जाना था। ठीक उसी समय मूसलाधार वर्षा हुई। यद्यपि काम की गति में कोई अवरोध न आने देते हुए कार्यकर्ताओं ने अतिशीघ्र नए परिसर में सारा सामान लगा दिया। दिनभर लगकर मशीनों को लगाया तथा अंततः लेब सेट कर दी।

लेब के उद्घाटन के लिए इस बार स्व.मायाताई की सुपुत्री प्रतिमा जोशी, पुणे से आई हुई थी। भारत माता वंदन के साथ राष्ट्रभक्ति के गीत गाकर उद्घाटन समारोह सम्पन्न हो गया। स्व.मायाताई के छायाचित्र पर पुष्पहार डालते हुए प्रतिमा जोशी का हृदय भर आया। उपस्थित सभी लोग भी मायाताई से जुड़ी यादों के साथ भावविव्हल हो गए।

 इम्फाल डेंटल लेब

गोसाई ग्राम के लेब का काम पूरा हुआ नहीं कि इम्फाल के लेब की चिंता शुरू हो गई। इम्फाल में सेवाभारती का डेंटल क्लिनिक जिस सज्जन के यहां स्थापित है उन्ही सज्जन ने अपने ही घर के तलघर में लेब के लिए भी स्थान प्रदान किया। इतना ही नहीं तो इस काम में पूरी रुचि लेते हुए अपनी दुकान के कर्मचारियों को भी मशीन जोड़ने के काम में लगाकर पूरा सहयोग दिया। लेब सेट होने के बाद भारत माता के चित्र को फूलों की माला पहना कर तथा पेढ़े बांट कर उद्घाटन समारोह सम्पन्न किया।

सचमुच लेथ के लिए स्थान उपलब्ध करा देने वाले शर्माजी व दान राशि प्रदत्त करने वाले मनीष पटेल साधुवाद के पात्र हैं। समाज के ऐसे निस्वार्थी लोगों के कारण ही सेवा प्रकल्प चल पाते हैं, इन्हें जितना धन्यवाद दे उतना कम है। हृदय से एक आवाज निकलती है कि, अस्पताल के लिए, तथा लेब के लिए दानराशि देने वाले तथा इस कार्य में प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से सहयोग करने वाले सभी बंधुओं को ईश्वर भरपूर सफलता प्रदान करें।

सन २००० से दंत चिकित्सा शिविर के आयोजन से लेकर अस्पताल व लेब की स्थापना तक का यह १४ वर्ष का सफर एक खूबसूरत मुकाम पर आ गया है। इस दौर में अनुभूत खट्टीमिठी यादें, और सम्पर्क में आए नाना प्रकार के मनुष्यों को याद करते हुए, हृदय को असीम संतुष्टि प्राप्त होती है। विश्वास है – पूर्वांचल का आंचल सफलता से चमक उठेगा। ज्ञानेश्वर महाराज के शब्दों को थोड़ा बदल कर मैं कहूंगा-

इवले से रोप पूर्वांचलाच्या दारी।

तया चा वेलू गेला गगनावरी ॥

(भावार्थ- एक छोटा सा पौधा पूर्वांचल में रोपा और उसकी बेल अब आकाश को छूने लगी है।)

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