‘पहलवान पैठणी’ का तो कोई सानी नहीं

पैठणी अर्थात साड़ियों की महारानी और महाराष्ट्र के नासिक जिले का येवला शहर उत्तम और बेहतरीन पैठणी मिलने वाला शहर। येवला महाराष्ट्र के चार जिलों नासिक, औरंगाबाद, धुलिया तथा अहमदनगर से जुड़ा हुआ है। येवला शहर में पिछले 200 सालों से पहलवान परिवार पैठणी साड़ी का व्यवसाय कर रहा है। उनके इस पारम्परिक व्यवसाय के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए हमारे प्रतिनिधि प्रशांत मानकुमरे ने रमाकांत विट्ठल पहलवान तथा उनके सुपुत्र मनीष रमाकांत पहलवान से विशेष बातचीत की। प्रस्तुत हैं उसके कुछ प्रमुख अंश।

कृपया अपने व्यवसाय के बारे में जानकारी प्रदान करें।

हमारा यह व्यवसाय हमारे परदादा ने शुरू किया था। वे स्वयं अपने हाथों से पैठणी साड़ी बुनते थे। बाद में उन्होंने थोक व्यापारी के रूप में इस व्यवसाय में कदम रखा। येवला के संस्थापक रघुदीव बाबा शिंदे ने पैठण से पैठणी बुनने वाले कुछ कारीगरों को येवला बुलाया था। बुनकर समाज के साथ ही क्षत्रिय, कोली आदि समाज के लोग भी येवला में बस गए। पैठणी बुनने की कला येवला ने आत्मसात कर ली। पहले दो-तीन सौ लोग ही पैठणी बुना करते थे। परंतु धीरे-धीरे पैठणी की मांग बढ़ने लगी और वह राजवस्त्र के रूप में प्रसिद्ध हो गई। भारत के हर राज्य की एक खासियत होती है। उसी से उस शहर और राज्य की पहचान होती है। पैठणी ने भी येवला को एक पहचान दिला दी।

आपका व्यवसाय ‘पहलवान पैठणी’ के रूप में किस तरह प्रसिद्ध हुआ?

वैसे तो कुश्ती लड़ने वाले को पहलवान कहा जाता है। हमारे दादा, परदादा कुश्ती लड़ने के साथ ही पैठणी भी बेचते थे। वे दूर-दूर के शहरों में भी कुश्ती लड़ने जाते थे। अत: भाऊ पहलवान नाम प्रसिद्ध हो गया। साथ ही भाऊ पहलवान पैठणी भी प्रसिद्ध हो गई। कुछ साल के अंतराल के बाद केवल ‘पहलवान पैठणी’ नाम से ही हमारा व्यवसाय प्रसिद्ध होता चला गया। यहां तक कि हमारा उपनाम भी पहलवान ही हो गया। पहले कुश्ती को राजाश्रय प्राप्त था। भाऊ पहलवान को उस समय विंचुरकर सरकार की ओर से ईनाम के रूप में अखाड़ा मिला था। आज भी वहां गांव के बच्चे कुश्ती की तालिम लेते हैं।

अपने उद्योग को बढ़ाने हेतु आपने क्या प्रयास किए?

सन 1950 से 1975 के बीच हमने नौ गज की पैठणी के डिजाइन में कुछ परिवर्तन किए। इसलिए येवला में आने वाले लोगों में पहलवान पैठणी की मांग बढ़ गई।

येवला में पैठणी विक्रेताओं की भरमार है। आपकी पैठणी की विशेषता क्या है?

हमारे यहां कमीशन के आधार पर काम नहीं होता। येवला में दलाल, रिक्शावाले ग्राहक लेकर आते हैं और व्यापारियों से कमीशन लूटते हैं। फिर व्यापारी इन पैसों को ग्राहकों से पैठणी के दाम में बढ़ेतरी करके वसूल करते हैं। हम होलसेल और रीटेल में एक ही भाव पार साड़ियां बेचते हैं। हमारे यहां 5 हजार से लेकर दस लाख रुपये तक की पैठणी साड़ियां हैं। हमारे यहां पैठणी खरीदने आया ग्राहक खरीदारी के बाद संतुष्ट होकर ही जाता है और वापस जरूर आता है। इसका एक ताजा उदाहरण कुछ महीने पूर्व का ही है। एक 80-85 वर्ष की महिला ने युवावस्था में हमारे यहां से अपनी शादी के लिए पैठणी खरीदी थी। उसके बाद अपने बेटे की शादी में भी हमारे यहां से ही पैठणी खरीदी थी। वे दोनों साड़ियां उन्होंने हमें दिखाईं। न तो वह कहीं से फटी थीं और न उसकी जरी काली पड़ी थी। उस महिला ने कहा- मेरे पोते का विवाह है और मुझे ऐसी ही पैठणी चाहिए। उस महिला के एक वाक्य ने हमें संज्ञान दिलाया कि इतने वर्षों में हमने क्या कमाया है। हम हमेशा ग्राहकों से आग्रह करते हैं कि आप सेमी पैठणी मत खरीदिए। हम भी सरकार की सेमी पैठणी नहीं रखते। सरकार की ओर से रिसर्च करने के बाद ग्राहकों को रेशम की पहचान करने के लिए एक सिल्क मार्क दिया गया है। उस सिल्क मार्क को देख कर ही पैठणी साड़ी खरीदनी चाहिए।

आपके यहां पैठणी के कितने प्रकार हैं? पैठणी के अलावा आप और कौन सी साड़ियां रखते हैं?

हमारे यहां लगभग 40 से 45 प्रकार की अलग-अलग डिजाइन की पैठणी साड़ियां हैं। पैठणी के अलावा रेशमी पीतांबर, पगड़ी, साफे आदि भी उपलब्ध हैं। पंढरपुर के विट्ठल-रुक्मिणी मंदिर में भी हमारे यहां की पैठणी नियमित रूप से जाती है। कोल्हापुर की महालक्ष्मी देवी को भी हमारे यहां की पैठणी पहनाई जाती है।

विवाह, दीवाली या अन्य उत्सवों पर क्या आप कुछ विशेष छूट या ऑफर देते हैं?

नहीं। हम इस प्रकार का कोई ऑफर नहीं देते। हम पैठणी बनाते हैं और उसे थोक तथा फुटकर व्यापारियों को बेचते हैं। बाजार में भले ही ग्राहक कम हों परंतु हमारे यहां प्रोडक्शन चलता रहता है। बाजार में जब रीटेल ग्राहक बढ़ते हैं तो थोक व्यापार कम होता है। अभी हमारे यहां आने वाली दीवाली का काम मार्च महीने से ही शुरू हो गया है। मांग के अनुसार भी पैठणी तैयार की जाती है। अत: ग्राहक को किसी प्रकार का लालच देकर काम करने की आवश्यकता नहीं पड़ती। हमें हमारी गुणवत्ता तथा कारीगरों पर पूर्ण विश्वास है।

समय के साथ फैशन में बदलाव होता रहता है। आप उसके लिए क्या उपाय करते हैं?

विशेष बात यह है कि पैठणी एक पारंपरिक साड़ी है। अत: उसमें कुछ खास परिवर्तन नहीं होता। हालांकि नई पीढ़ी में नई डिजाइन की मांग होती है। हम वे डिजाइन भी तैयार करते हैं। पैठणी के पल्लू, बॉर्डर और बूटियों में परिवर्तन होता रहता है। रंगों के कुछ नए शेड्स तैयार किए जाते हैं। मांग के अनुसार भी पैठणी तैयार की जाती है, परंतु उसके लिए कम से कम 4 महीने का समय आवश्यक होता है।

सरकार की ओर से वस्त्रोद्योग की ओर कितना ध्यान दिया जाता है?

सरकार की ओर से वस्त्रोद्योग के लिए स्कीम निकलती रहती है। उन्हें यंत्र खरीदने के लिए अनुदान भी मिलता है, परंतु वह हम तक अर्थात कारीगरों तक नहीं पहुंचता। हमें योजनाएं पता नहीं चलतीं। सरकार को इस संदर्भ में समाचार पत्रों, टीवी आदि पर विज्ञापन देने चाहिए। व्यापारियों का सम्मेलन आयोजित कर सूचनाएं देनी चाहिए।

आप अपने उद्योग का भविष्य किस रूप में देखते हैं?

हमारा यह व्यवसाय पीढ़ियों से चला आ रहा है। हम इसे येवला में रहकर ही बढ़ाना चाहते हैं। ग्राहकों को विविध रंगों तथा डिजाइन में पैठणी उपलब्ध कराना चाहते हैं। ग्राहकों का हम पर जो विश्वास है हम उसे कम नहीं होने देंगे। येवला चार जिलों से लगा हुआ है। अत: चारों दिशाओं से ग्राहक हम तक पहुंच रहे हैं। धुलिया, औरंगाबाद, नासिक, अहमदनगर तथा मनमाड़ रेल्वे जंकशन होने के कारण बनारस जैसे शहरों तक भी हम आसानी से पहुंच सकते हैं।

नई पीढ़ी को आप क्या संदेश देना चाहेंगे?

हम यही कहना चाहेंगे कि वे भी हमारे खानदानी व्यवसाय को इसी तरह आगे बढ़ाते रहें। और इतना आगे बढाएं कि केवल शहर या राज्य में ही नहीं वरन सम्पूर्ण देश और दुनिया में इसका नाम हो।
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