असम, बंगाल में स्थानीय मुद्दे हावी

पश्चिम बंगाल एवं असम में 19 मई को नई सरकार का गठन होना है। दोनों राज्यों में शांति व विकास के साथ स्थानीय मुद्दे हावी रहे। प्रचार के लिए आए राष्ट्रीय नेताओं ने भी स्थानीय मुद्दों को ही प्राथमिकता दी। दोनों राज्यों में जिसकी भी सरकार आए, जनता उससे हर बात का हिसाब अवश्य मांगेगी।

देश के विभिन्न राज्यों में चल रहे चुनावों में पश्चिम बंगाल और असम में संपन्न हो रहे विधान सभा चुनावों का विशेष महत्व है। पश्चिम बंगाल को उत्तर पूर्व भारत के प्रवेशद्वार के रूप में जाना जाता है तो वही दूसरी ओर असम को उत्तरपूर्वीय क्षेत्र के अन्य राज्यों का प्रवेश द्वार के रूप में देखा जाता है। इस बार दोनों ही राज्यों के चुनावों में स्थानीय समस्या और मुद्दे हावी हैं। लेख लिखने तक असम में दो चरण में चुनाव संपन्न हो चुके हैं। इस बार 4 अप्रैल और 11 अप्रैल को संपन्न हुए दो चरणों के चुनावों में 82 प्रतिशत मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग कर पिछले सभी रिकार्ड तोड़ डाले। इतना भारी मतदान असम के इतिहास में पहले कभी नहीं हुआ था। एक करोड़ 92 लाख मतदाता वाले असम में इस बार युवा पीढ़ी बदलाव चाहती है साथ ही वे उम्मीदवारों को अपने क्षेत्र में काम करता हुआ देखना चाहते हैं। मतदाताओं से बात करने पर पता चला कि उम्मीदवार चुनाव जीतने के बाद मतदाताओं को भूल जाते हैं। सो इस बार मतदाताओं ने अपना मत देने का अंदाज बदल दिया है।

126 सीटों के लिए संपन्न हो रहे चुनावों में अभी तक यूपीए समर्थित तरुण गोगोई का वर्चस्व है। आल इंडिया यूनाईटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट 18 सीटों के साथ सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के रूप में है। इस बार चुनावी दंगल में भारतीय जनता पार्टी, कांग्रेस, आल इंडिया यूनाईटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट, राष्ट्रीय जनता दल, जनता दल (यू) सहित अन्य बहुत सी क्षेत्रीय स्तर की पार्टियों ने अपना भाग्य आजमाया है। चुनाव में अपनी पूरी ताकत झोंकते हुए देश के प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी, कांग्रेस के नेता राहुल गांधी सहित अन्य बहुत से नेताओं ने असम आकर और चुनावी रैलियों को संबोधित कर चुनाव का महत्व और बढ़ा दिया है।
इस बार की चुनावी रैलियों में खास बात यह देखी गई की राष्ट्रीय स्तर के नेताओं की जुबान पर भी स्थानीय मुद्दे और समस्याएं थीं। संबोधन का अधिकांश भाग स्थानीय मुद्दों पर ही आधारित था। देश के प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी हो, कांग्रेस नेता राहुल गांधी हों या कोई उम्मीदवार हो कोई भी यह दर्शाने से नहीं चूके कि वे स्थानीय समस्याओं से वाकिफ हैं। आतंकवाद और उग्रवाद से त्रस्त असम में सभी शांति ही चाहते हैं। शांतिपूर्ण राज्य, विकसित राज्य के सपने के साथ असम के मतदाताओं का निर्णय अब मतपेटियो में बंद हो चुका है। चुनाव अवधी में छिटपुट घटनाओं को छोड़ किसी अन्य प्रकार के बड़ी दुर्घटना नहीं हुई और अब 19 मई को बागडोर किसके हाथो में होगी उसका निर्णय भी हो जाएगा। उसके बाद पहले की तरह शायद जनता चुप नहीं रहेगी। इस बार सरकार से पूरा हिसाब मांगेगी। जो भी सरकार बनाए जनता के प्रति उसे जवाबदेह बनना पड़ेगा। स्थानीय मुद्दे और विकास के नारे के साथ सरकार गठन करने वाली पार्टी के नेतृत्व के लिए इस बार सरकार चलाना कठिन होगा।

उतर पूर्व भारत के मुख्य प्रवेश द्वार के रूप में पहचाने जाने वाले पश्चिम बंगाल का चुनावी माहौल अभी तीव्र गति में है। 294 सीटों के लिए हो रहे विधान सभा चुनावों के लिए 6 चरणों में चुनाव संपन्न होने हैं। पहले चरण में 84 प्रतिशत और दूसरे चरण में 79 प्रतिशत मतदाता अपना निर्णय मतपेटियों में बंद कर चुके हैं। 19 मई को ही इस राज्य का भी भविष्य निर्धारण होगा। फिलहाल तक यहां आल इंडिया तृणमूल कांग्रेस नेत्री सुश्री ममता बनर्जी राज कर रही हैं। सीपीआईएम सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के रूप में विधान सभा में है। 3.39 करोड़ पुरुष और 3.16 करोड़ महिला मतदाताओं के साथ कुल 6 करोड़ 55 लाख मतदाता रहे इस राज्य में लोकसभा चुनाव के बाद से भारतीय जनता पार्टी भी विधान सभा में अपना वर्चस्व बनाए रखने के लिए पूरी कोशिश में लगी हुई है। दार्जिलिंग के सांसद एस एस अहलुवालिया और फिल्म स्टार व सांसद बाबुल सुप्रियो चुनावी कमान सम्हाले हुए हैं। प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी स्वयं भी राज्य के विभिन्न हिस्सों में चुनावी जनसभा को संबोधित कर चुनावी माहौल को भाजपा के पक्ष में करने का प्रयास कर चुके हैं। तृणमूल कांग्रेस नेत्री सुश्री ममता बैनर्जी भी पूरे राज्य के तूफानी दौरों में व्यस्त हैं। इस बार के चुनाव में उम्मीदवार चुनावी जनसभाओं से ज्यादा मतदाताओं के घर-घर पहुंच कर रिझाने के प्रयास को प्राथमिकता दे रहे है। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी भी पूरे दमखम के साथ चुनाव मैदान में है।

अपना पूरा वर्चस्व खो चुकी माकपा द्वारा गत नगरपालिका चुनाव में पश्चिम बंगाल की अघोषित राजधानी सिलीगुड़ी में 90 प्रतिशत से ज्यादा सीटों पर जीत हासिल कर इतिहास रचने के बाद यह कहा जा सकता है उसे फिर से पुरानी पटरी पर लाने के प्रयास में अशोक भट्टाचार्य लगे हुए हैं। नक्सलवाद आंदोलन से जूझ रहे राज्य में जीत हार किसकी होगी ये तो 19 मई को ही पता चल पाएगा पर आम मतदाता शांति और विकास चाहते हैं। सभी पार्टियों ने भी विशेषत: इन्ही दो मुद्दों पर चुनाव लड़ा है। अलग राज्य गोरखालैण्ड आंदोलन अभी भी चल रहा है पर बस फर्क इतना है कि 80 के दशक में हथियार के बल पर आंदोलन चल रहा था और अब कलम के बल पर आंदोलन चल रहा है। दार्जिलिंग क्षेत्र में तीन विधान सभा क्षेत्र हैं। इस बार सिलीगुड़ी विधान सभा क्षेत्र से फुटबाल स्टार भाईचुंग भूटिया को तृणमूल कांग्रेस ने मैदान में उतारा है। सिलीगुड़ी की इस प्रतिष्ठित सीट पर माकर्सवादी कमुनिस्ट पार्टी के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार अशोक भट्टाचार्य चुनाव लड़ रहे हैं। फुटबाल के गुर को राजनीति में उतारने के प्रयास में लगे भाईचुंग इससे पहले इसी क्षेत्र से लोकसभा चुनाव में खड़े हुए थे और उनको भारतीय जनता पार्टी उम्मीदवार अहलुवालिया के हाथों हार का सामना करना पड़ा था। अंतिम चरण का चुनाव आगामी 4 मई को संपन्न होगा और 19 मई से नए नेता की ताजपोशी की तैयारियां शुरू होंगी पर इस बार यहां की भी सरकार का ताज कांटों से भरा होगा। मतदाता पाई-पाई का हिसाब सरकार रहते ही मांगेगी संभवत अगले चुनाव तक का इंतजार नहीं करेगी। कांग्रेस, बीजेपी, तृणमूल कांग्रेस सहित अन्य बहुत सी राष्ट्रीय और क्षेत्रीय पार्टियां चुनावी दंगल में हैं। जनता किसको सत्ता सौपेंगी ये तो समय ही बताएगा पर सबसे अहम् बात यह है कि अभी तक के दो चरण के चुनाव शांतिपूर्ण माहौल में हुए। किसी भी तरह की कोई घटना सामने नहीं आई है।
——

Leave a Reply