समाज के लिए एक सुहानी वास्तविकता – हिंदू अध्यात्मिक एवम् सेवा प्रदर्शनी

* इस दुनिया में प्रत्येक व्यक्ति कम से कम एक रात निर्भय हो कर सो सके।
* प्रत्येक व्यक्ति को कम से कम एक दिन भर पेट भोजन मिले।
* कम से कम एक दिन ऐसा हो जब कोई भी हिंसा का शिकार हो कर अस्पताल में भर्ती न हो।
* कम से कम एक दिन सब लोग निष्काम सेव कर के गरीबों व जरूरतमंदों की सहायता करें।

ऐसे कई संदेश मैं पढ़ रही थी हिंदू आध्यात्मिक एवं सेवा प्रदर्शनी में। 12 से 14 फरवरी तक मुंबई के उपनगर गोरेगांव के बांगुरनगर में इस प्रदर्शनी का आयोजन किया गया था। इस प्रदर्शनी में सैकड़ों आध्यात्मिक संस्थाएं शामिल हुई थीं। श्री श्री रविशंकर, माता अमृतानंदमयी, नरेंद्र महाराज, संत निरंकारी संप्रदाय, स्वामी समर्थ केंद्र, नारायण संप्रदाय इत्यादि सभी का नाम आंखों के सामने आते ही विचारों की सुई सत्संग, भगवान, हिंदू धर्म इन विषयों पर अटकती है। मगर इस प्रदर्शनी में आध्यात्मिक संस्थाओं द्वारा किया जाने वाला सामाजिक काम, सेवा कार्य देख कर मैं तो दंग ही रह गई। आम हिंदू होने के नाते हमारे दिल में यह बात गहराई तक समा गई है कि आध्यात्मिक संस्था मतलब भगवान, भगवान के नाम पर दान और चढ़ावा, यात्रा आदि। मगर इस प्रदर्शनी ने मानो मेरी आंखें खोल दीं। सेवा के नाम पर अपना उल्ल्ाू सीधा करने वाली न जाने कितनी धार्मिक संस्थाएं हम देखते हैं। उनके काम करने का तरीका भले ही अलग-अलग हो परंतु उद्देश्य एक ही होता है; सेवा के बदले गरीब एवं दुर्बल लोगों का धर्मांतरण करना। सीधा धर्मांतरण न भी हो तो सेवा करवाने वाले अपने धर्म से हट जाएं। इस माहौल में हमेशा एक आवाज आती है कि अन्य धार्मिक संस्थाएं काम तो करती हैं, अपनी धार्मिक संस्थाएं क्या काम करती हैं? दुर्भाग्य से लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहे जाने वाले प्रसार माध्यम भी यही बताने में लगे हैं कि हमारी धार्मिक संस्थाएं गरीबों व श्रद्धालुओं से पैसे बटोरती हैं। हिंदू अध्यात्म एवं सेवा प्रदर्शनी में हिंदू धार्मिक संस्थाओं के सामाजिक कार्यों की जानकारी अगर नहीं मिलती तो शायद मैं भी इसी सोच को सच मानती रहती।

प्रदर्शनी के एक सुंदर प्रवेशद्वार को पार करते ही महिलाओं ने स्वागत किया। कुछ युवकों ने जानकारी दी कि यहां आते ही आपके मोबाइल पर निशुल्क वायफाय सुविधा प्राप्त होगी। इसके लिए आपको व्हेअरेज माय पंडित डॉट कॉम से जुड़ना होगा। पुराण पोथी में या कभी पूजापाठ करते हुए, तपयाग यज्ञ का विवरण पढ़ा था। उस वक्त जो मंगलमय वातावरण होता होगा वैसा ही वातावरण चारों ओर था। हजारों लोग इस आध्यात्मिक एवं सेवा प्रदर्शनी को देखने, समझने आए थे। उन लोगों की भी व्यवस्था इस प्रदर्शनी में की गई थी। वैद्यकीय सेवा से लेकर कम कीमत पर भोजन तथा नाश्ता मिलने की व्यवस्था भी थी। प्रदर्शनी में सैकड़ों स्टॉलों पर प्रतिनिधि प्रसन्नता से अपनी अपनी स्वयंसेवी संस्था का परिचय देने हेतु तत्पर थे। यहां पर हर एक स्टॉल अपनी पहचान बनाने हेतु अपने ही रंग में रंगा हुआ था। हर स्टॉल ने अपने-अपने विचार और कार्य के मुताबिक स्टॉल को सजाया हुआ था। बाद में पता चला कि अच्छी सजावट और जानकारी देने वाले स्टॉल के लिए भी यहां प्रतियोगिता रखी गई थी। उस प्रतियोगिता में सभी स्टॉल शामिल थे। हार जीत तो बाद की बात थी मगर इस बहाने इस प्रदर्शनी में शामिल हुए सभी स्टॉल धारकों ने अपने विचार, ध्येय और कार्य को काफी कल्पकता से संजोया था। अपने विचार और कृति को समाज के सामने किस तरह से सकारात्मक रूप में पेश करना चाहिए इसका एक अनूठा प्रदर्शन हर एक स्टॉल ने यहां पर किया था। दो दिन में सभी स्टॉल को पूरी तरह से जानना नामुमकिन था, मगर इसमें भी हर संस्था ने अच्छा प्रयास किया था। जानकारी देने हेतु पोस्टर, पॅम्पलेट, सीडी, अपने काम के प्रतीकात्मक प्रदर्शन लगाए हुए थे। ये प्रदर्शन सिर्फ किसी संस्था के निजी कामों का ब्योरा नहीं था बल्कि दिल को छू लेने वाला एक अजब अहसास था। प्रदर्शनी में आध्यात्मिक संस्थाओं ने हिस्सा लिया था ही, इन सभी संस्थाओं के आध्यात्मिक सेवाभाव को समाज जानता है। मगर इस प्रदर्शनी में इन आध्यात्मिक संस्थाओं द्वारा चलाए जाने वाले सामाजिक और राष्ट्रीय सेवा कार्यों की जानकारी मिली। इस प्रर्दशनी में जाने के बाद मेरा और मेरे जैसे हजारों लोगों का इन आध्यात्मिक संस्थाओं के प्रति नजरिया बदल गया।

हिंदू आध्यात्मिक एवं सेवा प्रदर्शनी के कार्यवाह विवेक भागवत से प्रदर्शनी के बारे में बातचीत करने पर उन्होंने जानकारी दी कि यह सेवा प्रदर्शनी सिर्फ प्रदर्शनी ही नहीं थी, वरन वन्य जीव संरक्षण, पर्यावरण संवर्धन, जीव सृष्टि संरक्षण, महिला सम्मान, राष्ट्रीयता का बीजारोपण, पारिवारिक और मानवी मूल्य इन सूत्रों पर आधारित कई मनोरंजनात्मक कार्यक्रम भी आयोजित किए गए थे। कार्यक्रम के उद्घाटन समारोह में रा. स्व.संघ के सहकार्यवाह मा.कृष्णगोपाल जी, स्वामी विद्यानंद सरस्वती वेरुमल, पू.स्वामी भक्तिप्रिय, स्वामी नारायण मंदिर, पू.विनम्रसागर जी महाराज जैनमुनि, पू. भन्ते राहुलबोध जी बौद्धमुनि, मा.ले.जन.श्री गुरुजीत सिंह ढिल्लो दिल्ली, मा.श्री गुरुमूर्तिजी, प्रसिद्ध अर्थशास्त्री आदि उपस्थित थे। इन अतिथियों के नाम की सूची देखकर ही समझ में आता है, कि ये सभी महानुभाव समाज के विभिन्न प्रतिष्ठित अंगों के प्रतिनिधि हैं, और समाज का दायित्व इन्होने भलीभांति निभाया है। हिंदू, बौद्ध, सिख, जैन इनके प्रतिनिधि साथ ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रतिनिधि, और अर्थतज्ञ भी सम्मिलित थे। विशेष अतिथि के रूप में प्रसिद्ध अभिनेत्री जूही चावला, प्रसिद्ध गायक पद्यभूषण उदित नारायण, प्रसिद्ध अभिनेता सचिन खेडेकर इत्यादि भी उपस्थित थे।

उद्घाटन के बाद विविध मनोरंजनात्मक कार्यक्रम हुए जैसे 50 वारकरियों द्वारा दिंडी कार्यक्रम, 6 संकल्पना नृत्याविष्कार, मा. गुरुमूर्ति द्वारा संकल्पनात्मक प्रास्ताविक, विविध संप्रदायों के प्रमुखों द्वारा आशीर्वचन, मा.कृष्णगोपाल द्वारा प्रबोधन गुरूवंदना और कन्या वंदना का अद्भुत संकल्प कार्यक्रम यहां पर हुआ। इसमें 1200 विद्यार्थी और 200 शिक्षक सहभागी थे। इसमें वेदपठन की पवित्र ध्वनि में 600 कन्याओं का पूजन 600 बालकों ने किया। आज के दौर में महिला सम्मान, बालिका सुरक्षा एक सामाजिक प्रश्न है। इस कन्या वंदना ने कुछ न कहते हुए भी 600 बालकों के मन में यह बीज निर्मिति की कि बालिका, कन्या पूजनीय है। उनका सम्मान करना चाहिए। इसी कार्यक्रम में 5 महान कन्याओं और गुरूजनों के जीवन पर वृत्तचित्र और वृत्तचित्र का संदेश लिए गीत गायन कार्यक्रम हुआ। इस पूरे कार्यक्रम में निर्देशक पद्मश्री डॉ. मधुर भांडारकर भी उपस्थित थे। इस कार्यक्रम में वात्सल्य ग्राम की साध्वी सुहृदयाजी ने प्रबोधन किया। महिला संमेलन में हिंदू कुटुंब की अवधारणा विषय पर अजित महापात्रा जी (अ.भा.सह सेवा प्रमुख रा.स्व.संघ) ने मार्गदर्शन किया। उसके पश्चात भारत की लोकधारा कार्यक्रम के अंतर्गत महाविद्यालयीन विद्यार्थियों ने भारत के विविध प्रांतों के नृत्य प्रस्तुत किए। बच्चों के लिए वेशभूषा स्पर्धा का भी आयोजन किया था। वेशभूषा में शामिल बच्चे इतने प्यारे थे कि सभी 200 बच्चों को पारितोषिक दिया गया। इस वेशभूषा स्पर्धा में15 मुस्लिम बच्चे भी थे, जिन्होंने रामायण महाभारत पर आधारित वेशभूषा अपनाई थी।

विवेक जी कहते हैं, इस कार्यक्रम के हेतु 180 संस्थाओं से सम्पर्क किया गया था, जिनमेंस े 104 संस्थाएं सहभागी हुईं। उनमें भी वर्गिकरण है। इसमें धार्मिक/ आध्यात्मिक काम करने वाली 33 संस्थाएं, सामाजिक काम करने वाली 64 संस्थाएं, शैक्षणिक काम करने वाली 03 संस्थाएं, आरोग्य पर काम करने वाली 01 संस्था, गोशाला के लिए काम करने वाली 03 संस्थाएं थीं। इस कार्यक्रम के लिए 125 कार्यकर्ता लगातार एक साल से काम कर रहे थे। ‘हिंदू आध्यात्मिक एवं सेवा प्रदर्शनी’ के मुख्य मार्गदर्शक सुरेश भगेरिया, अध्यक्ष डॉ. अलका मांडके और इस प्रदर्शनी के संस्थापक गुरूमूर्ति ने इस प्रदर्शनी के सफलता में अहम् भूमिका निभाई।

मानसोपचार विशेषज्ञ डॉ. हरीश शेट्टी ने ‘पालकों का दायित्व’ विषय पर मार्गदर्शन किया। इस कार्यक्रम में नागरिकों के स्वास्थ्य के लिए योग का भी कार्यक्रम था। जिसमें 400 लोगों ने हिस्सा लिया। अर्थात सभी कार्यक्रमों की संकल्पना हिंदू धर्म की मूल धारा की नींव पर ही आधारित थी। यह प्रदर्शनी मूल रूप से समाज के लिए काम करने वाली संस्थाओं और उसके लिए कॉर्पोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी के तहत आर्थिक मदद करने वाली कम्पनियों के मेलमिलाप का एक प्रयास था। कम्पनियों को सच्ची समाजसेवा करने वाली संस्थाओं का पता चले, और संस्थाओं को आर्थिक मदद करने वाली कम्पनियों का पता चले इस हेतु स्टॉल धारकों के लिए एक मार्गदर्शनात्मक कार्यक्रम भी हुआ। समारोह की समापन के समय अभिनेता सुरेश ओबेरॉय, तथा प्रसिद्ध लेखक मिहिर भुता ने मार्गदर्शन किया। रा.स्व.संघ के अखिल भारतीय सेवा प्रमुख गुणवंतसिंह कोठारी ने कार्यक्रम का समापन किया। उनका मार्गदर्शन सभी के लिए विचार करने योग्य था। था। उन्होंने इस प्रदर्शनी की सराहना की।

सेवा से आध्यात्मिकता की ओर ले जाने वाली इस हिंदू अध्यात्मिक सेवा प्रदर्शनी में दो दिन अनेक कार्यक्रमों का आयोजन किया गया था। वन और वन्य जीव संरक्षण, पर्यावरण संवर्धन, जीव सृष्टि संरक्षण, महिला सम्मान, राष्ट्रीयता का बीजारोपण, पारिवारिक और मानवी मूल्य इन सूत्रों पर कार्य करने वाली संस्थाओं ने कार्य का परिचय इस प्रर्दशनी में दिया।

प्रदर्शनी समाप्त हो गई मगर उसका हेतु समाप्त नहीं हुआ। आज चारों ओर से इस प्रदर्शनी को लेकर संस्थाएं काफी उत्साहित हैं। बहुत सी संस्थाएं सामाजिक काम करना चाहती हैं, मगर उन्हें दिशा नहीं मिलती। इस प्रदर्शनी में बहुत सारी संस्थाएं सहभागी हुई थीं। इन संस्थाओं को आपस में मेलजोल बढ़ाने का यह एक मौका था। अपने जैसा ही काम करने वाली दूसरी भी संस्था है। और दूसरी संस्थाएं कैसे काम करती है, यह जानने का प्रयास संस्थाओं ने इस प्रदर्शनी में किया। बहुत सारे व्यक्ति समाज में हैं, जो दिल से और पूरी ताकत से वैयक्तिक स्वरूप से समाजकार्य करते हैं एसे समाजसेवक व्यक्तियों के लिए भी यह प्रदर्शनी एक उपलब्धि है। क्योंकि उन्हें उनके समाजकार्य में सहकार्य करने वाली संस्थाओं का पता चला। आध्यात्मिकता से सेवा की ओर और सेवा से आध्यात्मिकता की ओर जुड़ने की हिंदू आध्यात्मिक एवम् सेवा प्रदर्शनी समाज के लिए एक सुहानी वास्तविकता है।

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