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अगस्ता वेस्टलैंड से उठती दुर्गंध

अगस्ता वेस्टलैंड से उठती दुर्गंध

by डॉ. कुलदीप चन्द अग्निहोत्री
in जून २०१६, सामाजिक
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अगस्ता वेस्टलैण्ड हेलिकॉप्टर रिश्वत कांड में इटली के न्यायालय ने अनेक नामों की चर्चा की है। उनमें प्रमुख नाम सोनिया गांधी और उनके राजनैतिक सलाहकार अहमद पटेल का है। इटली के अखबारों में इन दोनों के चित्र प्रकाशित हो रहे हैं। यह भी आरोप लगा है कि भारतीय पत्रकारों को अपने पक्ष में करने के लिए भी कम्पनी ने 45 करोड़ की रिश्वत की व्यवस्था की।

अगस्ता वेस्टलैंड का मामला एक बार फिर सुर्खियों में आ गया है। भारत सरकार ने 2010 में इटली की एक कम्पनी अगस्ता वेस्टलैंड से 12 हेलिकॉप्टर ख़रीदने का अनुबंध किया। हेलिकॉप्टरों की वायु सेना को ज़रूरत थी। ये हेलिकॉप्टर अति विशिष्ट व्यक्तियों के लिए चाहिए थे; ताकि अति ख़तरनाक स्थान पर भी उन्हें सुरक्षित ले जाया जा सके। किस प्रकार के हेलिकॉप्टर चाहिए, इस पर ज्यादा ध्यान देने की बजाए, किस से ख़रीदने चाहिए इस पर निर्णय लेने वाली कमेटी ने ज्यादा ध्यान दिया। उस समय वायु सेना प्रमुख एस पी त्यागी थे। जब एक बार यह निर्णय हो जाए कि माल क़िससे ख़रीदना है, फिर माल की स्पेसिफिकेशन बदलते भला कितनी देर लगती है? फ़ैसला हो गया था कि हेलिकॉप्टर अगस्ता वेस्टलैंड का ही ख़रीदा जाएगा। बस फिर क्या था। उसी के हेलिकॉप्टर को ध्यान में रख कर सरकारी फ़ाइलों में तस्वीरें बनने लगीं। बाक़ी सारे प्रतिद्वंद्वी देखते-देखते मुकाबले से बाहर हो गए। यानि एक कम्पनी को लाभ देने के लिए ही खास तरी़के से फाइलें तैयार की गईं। इस सौदे को अंतिम रूप देने वालों में वैसे तो अनेक बाबू लोग थे ही लेकिन कहा जाता है कि तीन बाबू एम के नारायण , बी वी वांचू और शशिकांत शर्मा उनमें से प्रमुख थे। क्या इसे संयोग ही कहा जाए कि रिटायर होने के बाद इनमें से दो को राज्यपाल और और तीसरे को भारत का लेखा महानियंत्रक नियुक्त कर दिया गया। उन दिनों वायु सेना प्रमुख त्यागी के दूर-नज़दीक़ के रिश्तेदारों की भी बिज़नेस में अचानक रुचि बढ़ने लगी। ऐसे मामलों में दलालों की फौज इधर-उधर सूंघने लगती है। ऐसे ही दलालों ने त्यागी के दूर-नज़दीक़ के रिश्तेदारों से रिश्तेदारियां बनानी शुरू कर दीं। लेकिन बड़े व्यवसायों में ऐसी रिश्तेदारियां लक्ष्मी जी की हाज़िरी में ही बनती है।

दरअसल भारतीय मीडिया में यह केस 12 फरवरी 2013 से चर्चित होने लगा था जब इटली पुलिस ने अगस्ता वेस्टलैंड की मूल कम्पनी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी को रिश्वत देने के मामले में गिरफ्तार कर लिया। आरोप था कि भारत से हेलिकॉप्टर ख़रीदने का आदेश प्राप्त करने के लिए कम्पनी ने रिश्वत दी है। अब भारत सरकार और उसका नियंत्रण करने वाली सोनिया कांग्रेस सचमुच दुविधा में फंस गई। यदि इटली की कम्पनी के अधिकारियों को रिश्वत देने के मामले में कहीं सज़ा हो गई तो फिर सारा भेद खुल जाएगा और जिन्होंने इस कम्पनी से भारत में रिश्वत ली है उनका पर्दा भी खुल जाएगा। आने वाले इस तूफान को रोकने की रणनीति बनाई गई। उसके तहत ही इटली में कम्पनी के मुख्य अधिकारी की गिरफ्तारी के कुछ दिन बाद ही उस समय के रक्षा मंत्री ने भी इस पूरे मामले की जांच के आदेश दे दिए। कोई शक न रहे इसलिए जांच का काम भी सी बी आई के हवाले कर दिया गया। सी बी आई ने अनेक व्यक्तियों के ख़िलाफ एफ आई आर दर्ज कर ली जिसमें पूर्व वायु सेना प्रमुख त्यागी के साथ-साथ उनके तीनों भाइयों का नाम भी था। त्यागी पर आरोप है कि अगस्ता की लक्ष्मी दलालों के माध्यम से त्यागियों के घरों में भी निवास करने लगी। त्यागी चाहे वायु सेना प्रमुख थे, लेकिन यह लक्ष्मी पूजा अकेले करने की उनकी भी हिम्मत नहीं थी। कहा जाने लगा कि इटली की कम्पनी के हक में इस तख्तापलट में सरकार चला रहे उन लोगों का हाथ हो सकता है, जिनके निर्देश पर सरकार चलती है। अगस्ता वेस्टलैंड ने हिन्दुस्तान में कुछ लोगों को अपना माल खरीदने के लिए रिश्वत दी है, इसकी चर्चा इतालवी अख़बारों में भी होने लगी।

बचाव की इसी रणनीति के तहत भारत सरकार ने अगस्ता के साथ अपना 3600 करोड़ का यह कान्टे्र्क्ट जनवरी 2014 को रद्द कर दिया; क्योंकि अब तक सब जगह यह चर्चा होने लगी थी कि कम्पनी ने यह कांन्टे्र्क्ट प्राप्त करने के लिए भारतीय राजनेताओं और बाबुओं को 360 करोड़ रूपए की रिश्वत दी है।

बचाव की इसी रणनीति के तहत सोनिया कांग्रेस ने 27 फरवरी 2013 को इस रिश्वत कांड की जांच के लिए संयुक्त संसदीय समिति के गठन की योजना राज्यसभा में रखी। अधिकांश विरोध पक्ष यह कहते हुए सदन से बाहर हो गया कि योजना जांच के लिए नहीं बल्कि जांच को दबाने के लिए गठित की जा रही है। उनका कहना था कि जिस तरह का यह रिश्वत घोटाला है उसमें संसदीय समिति कुछ नहीं कर सकती। क्योंकि इस अन्तरराष्ट्रीय रिश्वत मामले की जांच की तह तक पहुंचने के हथियार संसदीय समिति के पास नहीं हो सकते।

सरकार ने रिश्वत लेने वालों को बचाने के लिए एक और गहरी रणनीति बनाई। उस समय के रक्षा मंत्री ने 25 मार्च 2013 में सिंह गर्जना की कि इटली की कम्पनी ने कुछ लोगों को रिश्वत दी है। हम उसकी तह तक पहुंचेंगे। लगा कि सरकार ईमानदार है। लेकिन सरकार की रणनीति दूसरी थी। यदि किसी प्रकार से अगस्ता वेस्टलैंड को दिया गया सारा पैसा किसी तरीके से वापस वसूल लिया जाए तो कम से कम देश के लोगों को यह तो कहा ही जा सकता है कि हमने सारा पैसा वसूल लिया है। देश को कोई नुकसान नहीं हुआ। इसलिए केस रफादफा। इतने रिश्वत घोटाले देखने का आदी यह देश कम से कम सरकार की पीठ ठोकेगा कि सरकार ने पैसा वापस वसूल लिया। इस हेतु भारत सरकार ने कम्पनी द्वारा भारत और इटली के बैंकों में जमा करवाई गई बैंक गारंटियों को कैश करवा कर कम्पनी को दी गई सारी राशि वापस प्राप्त कर ली। सरकार ने इसे अपनी विजय घोषित कर जश्न मना लिया। लेकिन सरकार जांच के मामले में कितनी गंभीर है, यह उसी समय पता चल गया जब सी बी आई ने एम के नारायणा और बी वी वांचू से पूछताछ करनी चही तो ए के एंटनी के ही दूसरे साथी कपिल सिब्बल दीवार बन कर खड़े हो गए। राज्यपाल से पूछताछ! यह तो अपने-आप में ही गुनाह है। इससे सारी भारतीय व्यवस्था नष्ट हो जाएगी। ध्यान रहे हेलिकॉप्टर खरीद मामले में इटली की कम्पनी के पक्ष में निर्णय लेने वालों में से ये दोनों सज्जन प्रमुख थे। तभी यह चर्चा चलने लगी थी कि कहीं इन्हें जांच से बचाने के लिए ही तो राज्यपाल नहीं बनाया गया था?

सोनिया कांग्रेस के खेमे में तब खुशी की लहर दौड़ गई जब इटली की निचली अदालत ने अक्टूबर 2014 में इतालवी कम्पनी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी को दोषमुक्त करार दिया। अदालत ने पूर्व वायु सेना प्रमुख त्यागी को भी दोषमुक्त करार दिया। भारत में जिन्होंने इस इतालवी कम्पनी से करोड़ों की रिश्वत खाई थी, वे भी प्रसन्न हो गए। मामला रफादफा हो गया है। भारत सरकार ने अपनी चतुराई से अगस्ता वैस्टलैंड को दिया गया सारा पैसा वसूल लिया और इतालवी कोर्ट में यह भी सिद्ध नहीं हुआ कि कम्पनी ने कोई रिश्वत दी है। दलालों के घरों में घी के दिए जले। सोनिया कांग्रेस भी खुश हुई। आखिर इटली ने ही लाज ढंक दी। जहां तक भारतीय अदालत में चलने वाले केस का सवाल था, एक तो उसकी गति कछुए की और दूसरे जब इटली की अदालत रिश्वत देने के सबूत नहीं जुटा सकी तो रिश्वत लेने वालों तक भला कोई कैसे पहुंच पाएगा?

लेकिन सोनिया कांग्रेस की यह खुशी बहुत ज्यादा देर तक नहीं टिक पाई। एक साल के भीतर ही 8 अप्रैल 2016 को इटली में मिलान की बड़ी अदालत ने छोटी अदालत के फैसले को उलट दिया। अदालत ने अपने 225 पृष्ठ के फैसले में लिखा कि रिश्वत दी गई और इसके लिए कम्पनी के मुख्य अधिकारी ओरसी को चार साल की कैद की सजा भी सुना दी। न्यायालय ने कहा कि कम्पनी ने भारत के राजनेताओं, नौकरशाहों और वायु सेना के अधिकारियों को तीन सौ लाख यूरो की रिश्वत दी। प्रश्न है कि यह रिश्वत किसको दी गई? इटली के न्यायालय ने दलालों से मिले प्रमाणों के आधार पर अनेक नामों की चर्चा की है। उसमें प्रमुख नाम सोनिया गांधी और उनके राजनैतिक सलाहकार अहमद पटेल का नाम उभर कर आया है। इटली के अख़बारों में इन दोनों के चित्र प्रकाशित हो रहे हैं। यह भी आरोप लगा है कि भारतीय पत्रकारों को अपने पक्ष में करने के लिए भी कम्पनी ने 45 करोड़ की रिश्वत की व्यवस्था की।

यह सारा किस्सा इटली में छपने के बाद सोनिया कांग्रेस की हालत खराब हो गई लगती है। इसलिए जब भी कोई सोनिया गांधी का नाम इस रिश्वत घोटाले में लेता है तो उसके इर्दगिर्द के कांग्रेसी उछलते हैं। सोनिया गांधी स्वयं भी लगभग धमकियों की भाषा पर उतर आई हैं। उनका कहना है कि वह किसी से नहीं डरतीं। इसके बाद उन्होंने भावनात्मक रुख भी अपना लिया है। उनका कहना है कि उनकी मौत के बाद उनकी राख भारत में ही उनके परिजनों के साथ मिलेगी। उन्होंने यह भी कहा है कि इटली में उनकी 93 साल की मां रहती हैं जिन पर उनको गर्व है। लेकिन सोनिया गांधी अच्छी तरह जानती हैं कि जिन बातों का वह जिक्र कर रही हैं वे किसी भी न्यायालय के विचाराधीन नहीं हैं। न इटली में और न ही भारत में। न्यायालय में जो मामला विचाराधीन है वह यह है कि 360 करोड़ कि रिश्वत भारत में किस किस के खाते में आई। इसमें वे कुछ सहायता करें या कुछ रोशनी डालें तो इस देश के लोग सचमुच उनके शुक्रगुज़ार होंगे। बाक़ी कानून तो अपना काम करेगा ही।
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डॉ. कुलदीप चन्द अग्निहोत्री

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