केरल लम्बे समय से मार्क्सवादी आतंकवाद की छाया में रहा है। जिस तरह रूस में स्तालिन के कार्यकाल में हत्या की राजनीति का जोर था, उसका प्रतिरूप कन्नूर में दिखा, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर इस बारे में कभी बहस नहीं सुनी गई। दिल्ली में हम असहिष्णुता पर बहस सुन चुके हैं, लेकिन पांच लम्बे, खूनी दशकों के दौरान कन्नूर में जैसी हिंसा दिखी है, उससे असहिष्णुता का असली रूप चरितार्थ हुआ। हालांकि, इस दौरान रा.स्व.संघ को ‘असहिष्णु, अल्पसंख्यक विरोधी और उग्र संस्था के तौर पर प्रचारित’ करने के भरसक प्रयास हुए। कन्नूर की इस अनकही रक्तरंजित कहानी में रा. स्व. संघ और उसके स्वयंसेवक ‘लाल आतंक’ के सबसे बड़े शिकार रहे हैं। इसी मुद्दे पर ऑर्गनाइजर के सम्पादक प्रफुल्ल केतकर ने रा.स्व.संघ के अखिल भारतीय सह प्रचार प्रमुख श्री जे़ नंदकुमार को कुछ प्रश्न भेजे। प्रस्तुत हैं साक्षात्कार के मुख्य अंश: