हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
चाबहार समझौता विश्व शांति का भी मार्ग

चाबहार समझौता विश्व शांति का भी मार्ग

by डॉ. दत्तात्रय शेकटकर
in जुलाई-२०१६, सामाजिक
0

ईरान के चाबहार बंदरगाह के भारत द्वारा विकास के समझौते से इतिहास में एक नया अध्याय लिखा गया है। चीन द्वारा पाकिस्तान में विकसित किए जा रहे ग्वादर बंदरगाह की यह काट तो है ही, लेकिन इससे भारत के व्यापार में आने वाली समुद्री परिवहन दिक्कतें भी दूर होगी। चाबहार के विकास के साथ भारत, पाकिस्तान को टाल कर, सीधे भूमध्य सागर के देशों तक पहुंच सकेगा और इससे मध्यपूर्व व यूरोप के देशों में उसका दबदबा बढ़ जाएगा।

अंतरराष्ट्रीय सम्बंध तथा युद्ध शास्त्र का एक अत्यंत महत्वपूर्ण तथा अविवादित सिद्धांत है कि “किसी प्रदेश, राज्य, या राष्ट्र की भौगोलिक स्थिति उसके महत्व को बढ़ाती है या कम करती है।” ईरान तथा अफगानिस्तान की भौगोलिक स्थिति के महत्व को बहुत कम राष्ट्रों ने समझा है। ईरान मध्य पूर्व एशिया का एकमात्र ऐसा राष्ट्र है जिसकी सीमा दो समुद्रों से लगी हुई है। ईरान के दक्षिण पूर्व में अरब सागर है। अरब सागर हिंद महासागर से मिलता है। ईरान की भौगोलिक स्थिति के कारण इराक, कुवैत, कतर, यू.ए.ई. आदि राष्ट्रों के आयात-निर्यात, समुद्री परिवहन पर ईरान का नियंत्रण होता है। सामरिक रूप से अरब महासागर में ईरान की महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है। ऐतिहासिक रूप से भी देखा जाए तो सिंकदर से लेकर सभी आक्रमणकारी ईरान के मार्ग से ही आए और वापस भी गए। ईरान पश्चिम व पश्चिमोत्तर क्षेत्र ‘कास्पियन समुद्र’से जुड़ा है। कास्पियन समुद्री मार्ग से यूरोप, पूर्व यूरोप, रूस तथा मध्य एशिया के तुर्कमेनिस्तान, कजाकिस्तान तथा उजबेकिस्तान तक पहुंचा जा सकता है। व्यापार की दृष्टि से यह अत्यंत महत्वपूर्ण क्षेत्र है। ईरान, इराक, सीरिया के मार्ग से भूमध्य समुद्र के जरिए यूनान, इटली व यूरोप तक व्यापार के मार्ग खुल सकते हैं। पाकिस्तान को टाल कर ईरान के समुद्री किनारे तथा भूभाग से अफगानिस्तान तक व्यापारिक मार्ग खुल सकते हैं। दुर्भाग्यपूर्ण वास्तविकता यह है कि ईरान के भौगोलिक महत्व को विश्व में बहुत कम शक्तियों ने समझा है। अमेरिका ने भी ईरान के भौगोलिक महत्व की अनदेखी करके सामरिक नीति बनाई, रणनीति बनाई और इसी कारण 2001 से 2016 तक अमेरिका को अफगानिस्तान तथा ईराक में पराजित होना पड़ा। ईरान के महत्व को न समझने के कारण ही सीरिया, इराक व तुर्की में इसिस नामक आंतकवादी संगठन का जन्म हुआ व प्रभाव फैला। पूरे विश्व को विशेषत: अमेरिका तथा पाश्चात्य देशों को यह स्पष्ट रूप से समझ लेना चाहिए कि इसिस, अल-कायदा, तालिबान आदि आतंकवादी संगठनों का नाश ईरान, ईराक, सीरिया के संयुक्त प्रयास, रणनीति, कूटनीति से ही संभ्भव है। इन तीनों राष्ट्रों को आतंकवाद विरुद्ध युद्ध में एकसाथ कार्य करने के अलावा कोई और मार्ग नहीं है।

पिछले कुछ सप्ताह पूर्व भारत के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने ईरान की यात्रा की व एक नवीन सुनियोजित, सक्षम, समृद्ध तथा शांतिपूर्व भविष्य की आधारशिला रखी। भारत-ईरान के व्यापारिक सम्बंधों में एक नया युग शुरू होगा। कई समझौते किए गए हैं जिनमें ईरान के चाबहार समुद्री बंदरगाह का विकास तथा चाबहार से अफगानिस्तान, कस्पियन समुद्र तक भूमार्ग, रेल मार्ग, व्यापार मार्ग आदि प्रमुख हैं। यदि इन समझौतों को जल्दी कार्यरूप में लाया गया तथा निर्माण कार्य जल्दी पूर्ण किए गए तो आने वाले दस वर्षों मे ईरान, अफगानिस्तान तथा मध्य एशिया के देशों की आर्थिक प्रगति होगी यह निश्चित है। भारत इस क्षेत्र में बंदरगाह का विकास करने के लिए 3,400 करोड़ रुपये तथा चाबहार मुक्त व्यापार क्षेत्र के विस्तार के लिए एक लाख करोड़ रुपये का निवेश करेगा। भारत ने 218 किलोमीटर मार्ग का निर्माण पूरा कर लिया है। इसके अलावा ईरान के साथ-साथ अफगानिस्तान में भी लगभग 2,200 कि.मी.के मार्ग बनाए जाएंगे जिनसे अफगानिस्तान के सभी बड़े शहरों से यातायात हो सकेगा। ये मार्ग रिंग रोड जैसे ही होंगे। 500 कि.मी. रेल्वेलाइन का भी निर्माण किया जाएगा।

चाबहार का पूर्व नाम था“चार बहार”। पर्शियन साम्राज्य के समय से यह एक महत्वपूर्ण बंदरगाह था। चाबहार बंदरगाह से केवल 72 कि.मी. दूर समुद्री किनारे पर बलुचिस्तान प्रांत में (जो वर्तमान में पाकिस्तान के आधीन है) ‘ग्वादर’ नामक बंदरगाह है। 1871 में अंग्रजों ने नक्शे पर विभाजन करके ‘चाबहार’ ईरान में दिखाया तथा ग्वादर बलुचिस्तान में। चाबहार पहले बलुचिस्तान का ही हिस्सा था। करीब 200 वर्षों के अतंराल के बाद पुन: ग्वादर, जो बलुचिस्तान का बंदरगाह है तथा चाबहार, जो ईरान का बंदरगाह है, चर्चा का विषय बन गए हैं।

1947 के विभाजन के बाद पाकिस्तान ने जबरदस्ती बलुचिस्तान (जो एक स्वतंत्र राष्ट्र था) को पाकिस्तान में शामिल कर लिया। यही कारण है कि आज भी बलुचिस्तान के लोग पाकिस्तान से अलग होने की मांग कर रहे हैं और संधर्ष भी कर रहे हैं। पाकिस्तानी सेना तथा शासन की मिलीभगत से चीन ने ग्वादर बंदरगाह के क्षेत्र में 46 मिलियन डॉलर के निवेश की योजना बनाई है। यह क्षेत्र पाकिस्तान ने चीन को एक लम्बे समय के लिए लीज पर दिया है। बलुचिस्तान में इसका विरोध हो रहा है। बलुचिस्तान के लोग यह नहीं चाहते कि चीन का प्रभाव व अप्रत्यक्ष प्रभुत्व बलुचिस्तान में बढ़े। ग्वादर बंदरगाह का इस्तेमाल चीन व्यापार के लिए करेगा यह बताया जा रहा है। ग्वादर से पाकिस्तान के मार्ग से पश्चिम चीन तक व्यापार मार्ग बनाया जा रहा है। आने वाले समय में ग्वादर से, जल मार्ग, रेल मार्ग बनेंगे। पाइप लाइन बिछाई जाएगी। इसका प्रभाव पाक अधिकृत कश्मीर पर भी पड़ेगा।

भारत के अनेक प्रयासों के बावजूद भी पाकिस्तान ने भारत- पाकिस्तान-अफगानिस्तान के मार्ग से मध्य एशिया तक व्यवसाय मार्ग खोलने नहीं दिया। पेट्रोलियम लाइन का कार्य भी चालू नहीं हो सका। इसीलिए भारत ने ईरान के भूभाग के माध्यम से नए व्यापार व्यवसाय मार्ग की पहल की है। इसका सबसे ज्यादा फायदा ईरान तथा अफगानिस्तान को होगा। समुद्री मार्ग से भारतीय व्यापार गोेवा, मुंबई, कांडला आदि बंदरगाहों से चाबहार तक जाएगा। उसके पश्चात जल तथा रेल मार्ग से ईरान, अफगानिस्तान, इराक, मध्य एशिया, रूस तथा यूरोप तक जा सकेगा। 21वीं सदी में विश्व की आर्थिक तथा सुरक्षा व्यवस्था उद्योग तथा व्यवसाय पर ही निर्भर होगी।

यदि भारत, ईरान, अफगानिस्तान, मध्य एशिया तक व्यावसायिक, आर्थिक, औद्योगिक आदान-प्रदान, सहयोग बढ़ा तो इसका फायदा अमेरिका तथा अन्य पाश्चात्य देश भी उठा सकेंगे। अनेक वर्षों तक ईरान पर आर्थिक प्रतिबंध, व्यापारिक प्रतिबंध लगाने के कारण ईरान की आर्थिक, व्यावसायिक, औद्योगिक तथा सामाजिक परिस्थिति पर विपरीत परिणाम हुए हैं। अभी कुछ समय पूर्व ही ये प्रतिबंध हटाए गए हैं। ईरान के अलावा पाश्चात्य देशों का भी व्यावसायिक नुकसान हुआ है। कठिन समय में भारत-ईरान सम्बंध अच्छे रहे हैं। भारत में अनेक ईरानी विद्यार्थी उच्च शिक्षण प्राप्त करते हैं। भारत में शिया समुदाय एक बड़ी तथा सकारात्मक भूमिका अदा कर रहा है। ईरान तथा इराक भी शिया बाहुल्य राष्ट्र हैं। सामाजिक, शैक्षणिक, धार्मिक तथा व्यावसायिक क्षेत्र में भी काफी मौके मिलेंगे। भारत में विशेषत: महाराष्ट्र, गुजरात प्रांतों में ईरानी कैफे, ईरानी बेकरी बहुत प्रचलित हैं।

ईरान के पूर्वी भाग तथा अफगानिस्तान के पश्चिमी भाग में, जो ईरान से लगा हुआ है, एक ही समुदाय के लोग रहते हैं। भाषा, रहन-सहन, रीति-रिवाज, पारिवारिक सम्बंधों के कारण एक स्वस्थ वातावरण बनाया जा सकता है। पूर्वी ईरान का जो भाग पाकिस्तान के बलुचिस्तान प्रांत से लगा है, इस क्षेत्र में बलुच समुदाय का प्रभाव है। दोनों भागों में अच्छे सम्बंध बन सकते हैं। इसी प्रकार ईरान का पूर्वी भाग, जो अफगानिस्तान से लगा है, इस क्षेत्र में पख्तुन समुदाय का बाहुल्य है। अंतरराष्ट्रीय सम्बंधों में सामुदायिक एकता, धर्म, रीतिरिवाज, सामाजिक एकता का बहुत महत्व होता है। भारतीय शिया समाज, पाकिस्तान तथा ईरान का शिया समाज एकत्रित रूप से एक नए आर्थिक, औद्योगिक, व्यावसायिक, शांत एवं प्रगतिशील भविष्य का निर्माण कर सकते हैं।

अफगानिस्तान, ईराक, सीरिया में फैले हुए आतंकवाद के खिलाफ युद्ध में ईरान का एक बहुत महत्वपूर्ण योगदान हो सकता था। परंतु 2009 में अफगानिस्तान पर किए गए आक्रमण के बाद तथा 2003 में ईराक पर किए गए आक्रमण के बाद अमेरिका ने तथा पाश्चात्य जगत ने ईरान को अपना प्रतिद्वंदी शत्रु मान लिया। अमेरिका के राष्ट्रपति ने तो ‘उळी ेष र्ठींळश्र” के नाम पर एक नए ध्रुवीकरण की शुरूआत कर दी। अफगानिस्तान में यदि आतंकवादियों के विरुद्ध युद्ध में पाकिस्तान के साथ-साथ अमेरिका ईरान की सहायता लेता तो परिणाम अत्यंत सकारात्मक होते। आतंकवादी युद्ध में तालिबान तथा अलकायदा के खिलाफ अमेरिका ने जिस पाकिस्तानी शासन, पाकिस्तानी सेना, आय.एस.आय पर विश्वास किया, उसी पाकिस्तान ने अमेरिका की पीठ में छुरा घोंपा। पाकिस्तान में तथा पाकिस्तान समर्पित तत्व अफगानिस्तान के हित सम्बंधों पर लगातार आतंकवादी हमले करते रहते हैं। 2003 में अमेरिका के ईराक के हमले के पहले, अमेरिका के जानेमाने तथा भारत एवं दक्षिण एशिया के विशेषज्ञ स्टीफन कोहेन ने कुछ वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों तथा भारत में कार्यरत एवं सक्रिय कूटनीतिज्ञों से चर्चा की। उनके ही निमंत्रण पर मैं उन लोगों से मिला था। उस समय मैंने स्पष्ट रूप से कहा था कि, ‘पाकिस्तान पर ज्यादा विश्वास करना घातक होगा। पाकिस्तान के साथ-साथ अमेरिका को अफगानिस्तान तथा इराक में सफलता प्राप्त करने के लिए ईरान से मदद लेनी चाहिए।’ मेरी बात की, मेरे सुझाव की अनदेखी की गई और इस गलती की कीमत अमेरिका को चुकानी पड़ी और भविष्य में भारी कीमत चुकानी पड़ेगी। ईरान का युवा वर्ग, शासकीय वर्ग, सेना, अमेरिका से घृणा करता है। अमेरिका की भारी गलती तथा मगरूरी के कारण ईरान की तीन युवा पीढ़ियां तबाह हो गई हैं। क्या ये युवा अमेरिका को सम्मानित दृष्टि से देखेंगे? अमेरिका यदि चाहे तो ईरान तथा अफगानिस्तान में भारत के लिए जो सम्मान है, भारत के प्रति जो विश्वास है, आस्था है, उसका भारत की मदद से उपयोग करके अमेरिका- ईरान सम्बंधों मे एक नया अध्याय शुरू कर सकता है। अमेरिका यह कार्य भारत की पीठ पर सवार होकर नहीं, परंतु भारत, ईरान, अफगानिस्तान के साथ-साथ चल कर ईमानदारी से कार्य करके, ईरान तथा अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण तथा प्रगति एवं उन्नति में सहभागी, सहयोगी हो सकता है। भारत-ईरान मैत्री का भविष्य उज्ज्वल है। अफगानिस्तान के युवा वर्ग को भी भारतीय योगदान का फायदा उठाना चाहिए। इसके अलावा कोई दूसरा मार्ग नहीं है।

भारतीय राजनीतिज्ञों, कूटनीतिज्ञों, सुरक्षा विशेषज्ञों को एक बात अच्छी तरह समझना चाहिए कि-

“जिस्म की बात नहीं है उनके दिल तक जाना है,
लम्बी दूरी तय करने में वक्त तो लगता है।”

डॉ. दत्तात्रय शेकटकर

Next Post
भारत अमेरिका रिश्तों में नया अध्याय

भारत अमेरिका रिश्तों में नया अध्याय

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

0