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पूर्वोत्तर में समाज-परिवर्तन

पूर्वोत्तर में समाज-परिवर्तन

by सुरेंद्र तालखेडकर
in नवम्बर २०१५, सामाजिक
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संघ का कार्य १९४८ में शुरू हुआ। सेवा के माध्यम से समाज तक पहुंचा जा सकता है। इस विचार से शिक्षा, स्वास्थ, सरकार, स्वावलंबन, सामाजिक समरसता इन पांच तथ्यों को केंद्र में रख कर सेवा भारती ने पूर्वोत्तर में कार्य प्रांरभ किया।

भारत के पूर्वी भाग को पूर्वोत्तर कहा जाता है। इसमें मेघालय, अरूणाचल प्रदेश, मिजोरम, त्रिपुरा, नगालैंड एक सिरे से पतले भूभाग से भारत के साथ जुडा है। यह प्रदेश प्राकृतिक संसाधनों से संपन्न है। बडी मात्रा में खनिज पदार्थ, जंगल, संपत्ति  जैसे यूरेनियम, कोयला, तेल, सिमेंट के लिए जरूरी पत्थर, चूना पाया जाता है। उसी प्रकार बांस, भवन निर्माण के लिए जरूरी लकड़ी और उनके दुर्लभ वनौषधियों से भी युक्त है। यह प्रदेश विपुल प्राकृतिक संपदा और पांच अंतरराष्ट्रीय सीमाओं से सटा हुआ है। १) बांगलादेश २) चीन ३) भूटान ४) नेपाल ५) म्यांमार आदि वे देश हैं। सामरिक दृष्टि से भी यह क्षेत्र महत्वपूर्ण है। स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व भी यहां पर विदेशी, अलगाववादी शक्तियां कार्यरत थीं। इन दिनों भी वह कार्यरत हैं। इस क्षेत्र को हमेशा बैचैन रखना, यहां पर किसी भी प्रकार की गतिविधि ना हो, इसके लिए वह शक्ति योजनाबद्ध  तरीके से देश को उद्विग्न करने की कोशिश करती है। उदाहरणार्थ अलग-अलग जातियों में उग्रवादी संगठन बनाना, उन्हें दूसरी जाति से लड़वाना, विविध प्रकार से सेवा करने के झूठे नाम पर समाज को भारत की संस्कृति से तोड़ना, समाजकार्य करने का स्वांग रचना, आपस में संघर्ष करवाना इनके लिए बायें हाथ का खेल है। फिर सहायता के लिए जाना और धर्मांतर करवाना। इस प्रकार का काम विगत कई सालों से ईसार्ई मिशनरी कर रहे हैं।

इन सारी गतिविधियों को देखकर स्वयंसेवकों ने इसे रोकने की व्यवस्था करने हेतु छोटे-छोटे सेवाकार्य करने की योजना बनाई। १९९५ में सेवा-भारती के कार्य का प्रारंभ हुआ। संघ का कार्य १९४८ में शुरू हुआ। सेवा के माध्यम से समाज तक पहुंचा जा सकता है। इस विचार से शिक्षा, स्वास्थ, सरकार, स्वावलंबन, सामाजिक समरसता इन पांच तथ्यों को केंद्र में रख कर सेवा भारती ने पूर्वोत्तर में कार्य प्रांरभ किया। विविध जनजातियां जो अराष्ट्रीय गतिविधियों से प्रभावित थीं, ऐसे क्षेत्रों के लडके – लडकियों को देश के विभिन्न स्थानों पर शिक्षा के लिए भेजा गया। इस योजना के तहत १० राज्यों में ३००० छात्र पड़ रहे हैं। इसी से उनके परिवार में और गांव में संपर्क हुआ। शिक्षा प्राप्त छात्र आज संघकार्य का आधार है। नगालैंड, मेघालय, असम, आदि राज्यों ने अनुभव किया है। कुछ क्षेत्रों में एकत्म विद्यालय के माध्यम से कई जगहों पर परिवर्तन हो रहा है। जैसे बाहर के छात्रावास में छात्र शिक्षा के लिए रहने लगे वैसे छात्रावास इस क्षेत्र में भी शुरू किए गए। इन छात्रावास में अनेक छात्र आज शिक्षा ले रहे हैं।

‘स्वास्थ‘ इस विषय को केंद्र में रखकर समाज में जाना, छोटी-छोटी स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कर समाज मे भ्रान्त धारणा, राष्ट्रविरोधी गतिविधियां फैलाना जैसे हथियारों का इस्तेमाल ईसाई मिशनरीयों ने किया। इसकी ओर ध्यान देने पर सोचा गया कि इसे कैसे परास्त करें? इसके लिए स्वास्थ-रक्षक योजना का आरंभ किया गया। इस योजना में हर एक गांव से एक-दो युवतियों को प्रशिक्षित किया जाता है। इस प्रशिक्षण में स्वास्थ्य संबधी जानकारी, स्वस्थ गांव, स्वाभिमानी राष्ट्रीय स्त्रोतों से कैसे जोड़ा जा सकता है, युवकों के सामने इसका सोच -विचार किया जाता है। आश्चर्य की बात तो यह है कि जहां पर संघ के नाम का भी पता नहीं ऐसे प्रशिक्षण प्राप्त युवकों ने संघ का काम शुरू किया। अनेक स्वयंसेवक तैयार हुए। अनेक गांवों में स्वास्थ्य रक्षक गांव का नेतृत्व कर रहा है। कुछ  स्थलों पर उग्रवादी प्रभाव कम हुआ है। विगत १४ सालों में सात हजार स्वास्थ्य रक्षकों का प्रशिक्षण हुआ है, ३००० लोग थोड़े – बहुत सक्रिय है। ‘स्वास्थ्य मित्र योजना‘ के साथ-साथ ‘योग‘ के माध्यम से लोगों तक पहुंचा जा सकता है। यह बात समझ में आने पर अलग – अलग जगहों पर योग – प्रशिक्षण वर्ग शुरू किए हैं। इससे समाज के अनेक लोगों से संपर्क हुआ। निवासी वर्ग से सर्टिफिकेट कोर्स और डिप्लोमा सर्टिफिकेट की परीक्षा पास करने पर कुछ लोगों को सरकारी नौकरी भी मिली। आज १५० केंद्र चल रहे हैं। ८ से १० पूर्णकालीन कार्यकर्ता काम कर रहे हैं। इसके साथ- साथ निसर्गोपचार के प्रशिक्षण और प्रत्यक्ष उपचार करना शूरू किया गया। इससे अनेक लोगों को फायदा हुआ। न्यूरोथेरपी जो डॉ लाजपतराय मेहरा जी  की विकसित की हुई हैं, पर जिस में किसी भी दवा की आवश्यकता नहीं पड़ती, केवल शरीर के विशिष्ट बिंदु पर दबाव  देकर ठीक किया जाता है ऐसा केंद्र भर शुरू किया गया। प्रान्त में ऐसे दस केन्द्र चल रहे हैं। अचरज की बात है कि इस केंद्र पर ऐसे रोगी देखने को मिलते हैं, जिनके रोग से डॉक्टर हैरान हुए थे, पर यहां आकर रोगी स्वस्थ हुए।

पिछले दस सालों से अनोखा प्रयोग शुरू किया है, वह है धन्वंतरि सेवा – यात्रा। इस में देशभर से विविध प्रांतों के चिकित्सक, और चिकित्सा पढ़ने वाले छात्र आते हैं। उन्हें पूर्वोत्तर के अलग -अलग वनवासी गांवों में चिकित्सा से संबंधित शिविर में भेजा जाता है। पांच दिन चिकित्सा शिविर पूरा करके चिकित्सक गुवाहाटी आते हैं। हर साल शिविर समाप्ति का कार्यक्रम गुवाहाटी में होता है। इस कार्यक्रम में गुवाहाटी के सम्माननीय डॉक्टर्स उपस्थित रहते हैं। इससे दृगोचर होता है। कि राष्ट्रीय एकात्मता के भाव में वृद्धि हो रही है। असम में कोकराझार जिले में हुए  संघर्ष में अपनी सेवा प्रदान करने हेतु गुजरात, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, बिहार, आदि राज्यों में से १५ डॉक्टरों ने दो महीने अपनी सेवाएं प्रदान कीं। इस धन्वतंति सेवा यात्रा में आजतक देशभर से ७०० डॉक्टरों ने मिलकर ५५० शिविरों का दस वर्षों में आयोजन किया है। इसके साथ -साथ सालभर नियमित नि:शुल्क शिबिर का आयोजन किया जाता है। इसका परिणाम सबके लिए फायदेमंद होता हैं।

समाज को स्वावलंबी बनाना चाहिए। समाज स्वाभीमानी, शक्तिशाली हो सकता है, इसे समझकर सिलाई, हस्तकला, गौ – आधारित कृषि, पंचगव्य – निर्मिति इत्यादी का प्रशिक्षण देना शुरू किया है। आजतक ५००० महिलाओं को प्रशिक्षित किया गया है। आज कुछ महिलाएं अपना खुद  का उद्योग संभाल रही हैं। सैंकडों गांवों में जैविक प्रशिक्षण दिया गया है। अनेक किसानों ने रासायनिक खाद इस्तेमाल करना छोड दिया है। पंचगव्य निर्मिति प्रशिक्षण से आज ४० से ५० व्यक्ति पंचगव्य औषधि निर्मिति कर रहे हैं। समूचे पूर्वोत्तर में बॉस विपुल मात्रा में पाया जाता है। इसका उपयोग फर्नीचर बनाने के लिए होता हैं। इसलिए बांस फर्नीचर निर्मिति केंद्र शुरू किया गया है। ४० -५० व्यक्ति यह रोजगार संभालते है। कम्प्यूटर – शिक्षा को जरूरत ध्यान में रखकर युवाओं को दस सालों से ६जगहों पर कम्प्यूटर सेंटर चलाए जाते हैं। आजतक १०,००० विद्यार्थियों ने इसका लाभ उठाया है। अनेक लोगों को स्वयं रोजगार, नौकरी प्राप्त हुई है। सेवा भारती के माध्यम से १५०० महिलाओं को रोजगार मिला है। कई जगहों पर भजनी मंडल, संस्कार केंद्र भी चलाए जाते हैं। ऐसे विविध सेवा -कार्यों से १० हजार गांवों तक संपर्क हो चुका है।

आज १२५ पूर्णकालीन कार्यकर्ता लगातार श्रम में जुटे हैं। समाज पर जब – जब प्राकृतिक आपदा आती है तब तब सेवा भारती के कार्यकर्ता तत्परता से समाज की मदद के लिए आगे आते हैं। यह बात समाज अच्छी तरह से जानता है। आज पूर्वोत्तर में सेवा भारती से ९ मातृसंस्था ( कल्याण आश्रम, विहिप, भारत -विकास परिषद, राष्ट्रसेविका समिति, विद्या भारती, आरोग्य भारती आदि) सेवा का परचम लहराकर, हाथ में हाथ डालकर काम कर रही हैं। इसके अच्छे परिणाम भी देखने का मिल रहे  हैं। इन सारी संस्थाओं के माध्यम से १५०० से १७०० गांवों तक राष्ट्रीय विचार यज्ञ चल रहा है। एक जेष्ठ कार्यकर्ता पहले कहता था कि ुश रीश षळसहींळपस श्रेेीळपस लरींींश्रश पर आज जिस गति से काम बढ़ रहा है, समाज में अनुकूलता का निर्माण हो रहा है, तब वही ज्येष्ठ कार्यकर्ता कहते हैं

सुरेंद्र तालखेडकर

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