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एक बारिश ऐसी भी

एक बारिश ऐसी भी

by संगीता जोशी
in जुलाई-२०१६, सामाजिक
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कोई ऐसा व्यक्ति होगा जिसे बारिश अच्छी नहीं लगती? शायर लोग तो बारिश को अपने मन में, अपने शब्दों में बचा कर रख सकते हैं; बार-बार उसका अनुभव करना चाहते हैं। कोई अगर वह पुराना मौसम ला सकता है, तो बदले में शायर कुछ भी कीमत देने को तैयार रहता है। पेश है उर्दू शायरों के बारिश पर कुछ चुनिंदे कलाम-

क्या हम आजकल सुबह-सुबह खुश नहीं होते, जब हम अखबार में पढ़ते हैं कि इस बरस अच्छी बारिश होगी? बल्कि हरेक जगह एक सौ दो प्रतिशत होगी!! जिस मौसम के बारे में सिर्फ खबर पढ़ कर हमें तसल्ली होती है, वह मौसम जब सच में आकर हमें भिगोएगा तब होने वाली खुशी का हम अंदाजा ही नहीं कर सकते, न लफ्जों में बयां कर सकते हैं। कोई ऐसा व्यक्ति होगा जिसे बारिश अच्छी नहीं लगती? शायर लोग तो बारिश को अपने मन में, अपने शब्दों में बचा कर रख सकते हैं; बार-बार उसका अनुभव करना चाहते हैं। कोई अगर वह पुराना मौसम ला सकता है, तो बदले में शायर कुछ भी कीमत देने को तैयार रहता है। सुदर्शन फाकिर लिखते हैं-

ये दौलत भी ले लो, ये शोहरत भी ले लो
भले छीन लो मुझसे मेरी जवानी
मगर मुझको लौटा दो बचपन का सावन
वो कागज की कश्ती वो बारिश का पानी…

बशीर बद्र साहब को भी किसी पुरानी बारिश याद आती है; और उन्हें लगता है कि-

हल्की हल्की बारिशें होती रहें
हम भी फूलों की तरह भीगा करें…

फूलों की वह लचकती डाली, जिसका जिक्र इन दो पंक्तियों में है, लगता है जैसे हम नज़र के सामने देख रहे हैं! पानी से भीगे हुए वे फूलों के चेहरे! उन चेहरों से टपकती बूंदें! वाह क्या नज़ारा है! लेकिन दूसरी तरफ-

बारिश हुई तो फूलों के तन चाक हो गए
मौसम के हाथ भीग के सफ्फाक हो गए…
(परवीन शाकिर)

यहां तेज बारिश की बात हो रही है, जिससे फूल कट गए, बदन चाक हो गए हैं। मौसम के हाथ जब गीले हो जाते हैं तो वह कठोर या कातिल बन जाता है। ‘गीले हाथ’ शब्दों का इशारा घूस लेने की तरफ हो सकता है। घूस लेकर (सुपारी लेकर) आदमी बहुत निर्दयता से बुरे काम कर जाता है। किसी की जमीन के कागजात में हेराफेरी करना इ.। ऐसा करने में किसी मासूम व्यक्ति का जीवन वह उजाड़ रहा है, यह भी आदमी सोचता नहीं।

उर्दू शायरी में बारिश की मौजूदगी कुछ फीसदी दिखती तो है, लेकिन वह अलग अलग तरह की होती है।

पेड़ों की तरह हुस्न की बारिश में नहा लूं
बादल की तरह घिर आओ तुम भी किसी दिन…
(अमजद इस्लाम ‘अमजद’)

घिर के आनेवाले बादल पानी भरे होते हैं। शायर चाहता है कि उसकी प्रेमिका का दिल उसी तरह प्यारभरा हो; मीलनोत्सुक हो। तब शायर ‘हुस्न की बारिश’ में नहाना चाहता है। पेड़ जैसे बारिश में पूरे-पूरे भीगते हैं वैसे ही।
शायर असरार अन्सारी की प्रेमिका भी शायद मीलनोत्सुक थी। मौसम सख्त होने पर भी उसने अपना वादा नहीं तोड़ा।

हवाएं तेज थीं बारिश भी थी तूफाँ भी था
तेरा ऐसे में भी वादा निभाना याद आता है…
(असरार अन्सारी)
अगले शेर में किस तरह की बारिश है? देखिए-
तुम सामने बैठे हो तो है कैफ की बारिश
वो दिन भी थे जब आग बरसती थी घटा…
(राणा अकबराबादी)

…अब तुम सामने बैठी हो तो लगता है किसी बेहोशी लाने वाली द्रव की (शराब की) बारिश हो रही है। मैं अपने होश खो बैठा हूं। लेकिन वो भी एक बारिश का मौसम होता है कि तुम सामने नहीं होती! तब लगता है कि बादलों से पानी नहीं, मानो शोले बरस रहे हो!

सच तो यह है कि हमें मौसम वैसा ही लगता है जैसी अपने मन की स्थिति हो, मूड हो।
बादल बारिश तो लाते हैं लेकिन खुद बादलों को पता नहीं होता कि वे पानी बरसते या आग! उन्हें यह भी खबर नहीं होती कि उनके बरसने से मनुष्य का फायदा हो रहा है या नुकसान!

हर पत्ती बोझिल हो के गिरी सब शाखें झुककर टूट गईं
उस बारिश से ही फसल उजडी जिस बारिश से तैयार हुई…
(महशर बदायूनी)

शेर के पहले मिस्रे से ही मालूम होता है कि उस वक्त जो बारिश आई वो बहुत जालिम थी। मुसलसल तेज धाराएं झेल कर पेड़ों के पत्ते भारी हो गए और पीले होने से पहले ही गिर गए। शाखाएं बारिश के आगे विनम्र हो गईं और टूट भी गईं। फसल का तो बुरा हाल था। खेत तहस-नहस हो गए। आगे शायर जो कहता है उस आधे मिस्रे ने शेर को बहुत अर्थपूर्ण बना दिया है। शायर ने कहा है कि, पहले जो अच्छी, संतुलित, पर्याप्त बारिश से खेत में भरपूर धान पैदा हुआ था; तो दूसरी ओर, जोर की बारिश ने वही धान कुचल डाला।

इस ‘धान’ का मतलब कुछ और भी हो सकता है। कभी हम खबर पढ़ते हैं, अपनी ही बेटी का मां-बाप ने निर्दयता से खून कर दिया। जिसको पालपोसकर खुद संभालकर बड़ा किया उसी बेटी को नष्ट कर देना, बारिश द्वारा धान उजाड़ने जैसा ही है।
कहीं बारिश तबाही लेकर आती है तो कहीं नाराज रह कर आंखें दिखाती है। तब भी तबाही तो आनी ही है।

बादल को क्या खबर कि बारिश की चाह में
कितने बुलंद-ओ-बाला शजर खाक हो गए…
(परवीन शाकिर)

शायरा परवीन कहतीं हैं, बारिश का इन्तजार करते-करते बड़े-बड़े पेड़ भी सूख गए, गर्मी के कारण जल गए। खाक हो गए। बादलों को पता भी नहीं होता, कि वे नहीं आए तो क्या हश्र हो सकता है। इन्सान जिंदगी में अनुकूल परिस्थिति की, तकदीर की मेहरबानी की राह देखता है; मगर वह न मिलने से उसकी तमन्नाएं इन पेड़ों की तरह खाक हो जाती हैं।

वरना अबतलक यूं था ख्वाहिशों की बारिश में
या तो टूटकर रोया था या गजलसराई की….
(अहमद फराज)

शायर कहता है, जैसे बारिश का पानी जमा हो जाता है, वैसे ही मन में सैंकड़ों ख्वहिशें इकट्ठा हो जाती हैं; मानो ख्वाहिशों की बारिश हुई हो। यह साफ है कि बहुत सी ख्वाहिशें अधूरी ही रह जाती हैं। तब मैं या तो जी भर के रो लेता हूं; और अगर ऐसा नहीं हुआ तो गज़ल गा लेता हूं, लिखता हूं।

शायर इब्ने-इन्शां एक अलग ही बारिश के बारे में कह रहा है-
दो अश्क जाने किसलिए पलकों पर आकर टिक गए
अल्ताफ की बारिश तेरी इकराम का दरिया तेरा….
(इब्ने-इन्शा)

वह ईश्वर को सम्बोधित करते हुए कहता है, तू हमेशा हम पर (मानव जाति पर) पवित्र एवं अच्छी बातों की बारिश करता है। हमें आपकी कृपा का पुरस्कार देकर हमारी प्रतिष्ठा बढ़ाता है। इसलिए मेरी पलकों पर ये आंसू आए हैं! (ये कृतज्ञता के आंसू हैं।)

जाने तब क्यों सूरज की ख्वाहिश करते हैं लोग
जब बारिश में सब दीवारें गिरने लगती हैं…
(सलीम कौसर)

गर्मी के मौसम के बाद बारिश का मौसम आता है। गर्मी के कारण लोग परेशान हो जाते हैं; बारिश की राह देखते हैं। जब बारिश का मौसम आता है तो पहले-पहले तो अच्छा लगता है। लेकिन जब बेइन्तहा बारिश आ जाती है, दीवारें गिरती हैं, लोगों का जीवन अस्तव्यस्त हो जाता है, दिनोंदिन सूरज का दर्शन नहीं होता तब लोग उसकी तमन्ना करते हैं। शायर कहना चाहता है कि जो जिस वक्त नहीं मिलता उसी चीज की चाह लोग करते हैं। जब वह चीज आसानी से उपलब्ध रहती है तब उसकी उतनी अहमियत नहीं लगती।

गम की बारिश ने भी तेरे नक्श को धोया नहीं
तूने मुझको खो दिया, मैंने तुझे खोया नहीं…
(मुनीर नियाजी)

शेर से लगता है कि प्रेमिका ने शायर को छोड़ा है, न कि शायर ने। शायर महबूबा से कहता है, हम अब साथ नहीं; चलो ठीक है। तुझ से बिछुड़ने पर मैंने सिर्फ गम नहीं, गम की बारिश (बहुत सारे गम) झेली है। फिर भी मेरे दिल पर तेरे प्यार के जो नक्श है, ये जो चिह्न हैं, वे नहीं धुल गए। लेकिन तुमने तो मुझे (अपनी मर्जी से) खोया है, जो मैं नहीं कर सका।
आखिर में जो दो शेर आ रहे हैं, वे जीवन का फल्सफा बता रहे हैं, जिससे वे शेर ऊंचाई पर पहुंच गए हैं।

सब्रो-सुकूं दो दरिया है, भरते भरते भरते हैं
तस्कीन दिल की बारिश है, होते होते होती है…
(सागर निजामी)

धीरज, सहनशीलता (सब्र) और मन की स्थिरता (सुकूं) ये दो नदियां हैं। उन में यकायक बाढ़ नहीं आती है। धीरे-धीरे वे भरतीं हैं। नदियां भरने के लिए बारिश तो जरूरी है। यह बारिश है दिल की शांति की (तस्कीन) बारिश। याने कि संतोष की बारिश। मन अगर हर परिस्थिति में संतुष्ट रहे, आनंद की, संतुष्टि की हल्की-हल्की बारिश होती रहे तो शांति का दरिया धीरे-धीरे भर जाएगा। इसमें कोई संदेह नहीं।

अब गिरे संग कि शीशों की हो बारिश ‘फाकिर’
अब कफन ओढ़ लिया है अब कोई अफसोस नहीं…
(सुदर्शन फाकिर)

जब कोई ‘उस दुनिया’ में चला जाता है, तो फिक्र की बात ही नहीं रहती। तब कोई उस पर पत्थर की बारिश करे या कांच के टुकड़ों की बौछार हो, उसे कोई फर्क नहीं पडता। एक बार कफन ओढ़ लिया (किसी ने अपने ऊपर बिछा दिया) तो बाद में यह दुनिया तो अपने लिए जैसे ‘डूब गई’! किसी भी बात पर अफसोस नहीं! जीवन-मृत्यु में फासला है कितना? सिर्फ एक सांस का! एक कफन का!
———

हिंदी विवेक-षेी र्गीश्रू 2016 —–

संगीता जोशी

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