आज का संघर्ष नए रूप में हमारे सामने हैं। आतंकवाद असुर जैसा रूप धारण कर मासूम लोगों की जान ले रहा है। भूमंडलीकरण के बाद हमारे समाज को लुभाने मायावी रूप धारण कर कई चीजे हमारे सामने आ रही हैं। क्या हम इन नए आक्रमणों पर विजय प्राप्त कर सकतें हैं ? विजयादशमी के पर्व पर इस दिशा में हमे सोचना होगा।
विजयादशमी विजय का पर्व है। दैत्य पर देवता की विजय, दुराचार पर सदाचार की विजय, दुष्कर्मों पर सत्कर्मों की विजय, असत्य पर सत्य की विजय, तमो गुण पर सत्वगुण की विजय, बहिर्मुखता पर अंतर्मुखता की विजय, भोग पर योग की विजय, अन्याय पर न्याय की विजय, जीवत्व पर शिवत्व की विजय, मर्यादाहीनता पर मर्यादा की विजय जैसे विजयों का संदेश देने का यह पर्व है। समूचे विश्व के वैज्ञानिक जिस बात की खोज नहीं कर सके उस बात की खोज भारतीय संस्कृति ने, संतों ने की है। वह है मनुष्य के मन की शक्ति की खोज। मन की शक्ति अपार है। आण्विक शक्ति से भी ज्यादा। मन की इस शक्ति के जागरण के लिए हमारी जीवनपद्धति में सहज रूप से त्योेेेहार, उत्सवों के द्वारा योजना बनायी गयी है। भारतीय जीवनपद्धति की और एक विशेषता है। व्यक्ति को समष्टी, सृष्टी और परमेष्टी से जोडने का संस्कार इस जीवनपद्धति का एक महत्त्वपूर्ण अंग है। हमारे जीवन में विजयादशमी जैसे त्योेेेहार व्यक्ति का समाज के साथ, व्यक्ति का सृष्टी के साथ नाता जोडने का काम करते हैं।
विजयादशमी शौर्य तथा वीरता का उत्सव है। हमारी संस्कृति शौर्य की उपासक है। हमारे देवता आशिर्वचन की मुद्रा के साथ साथ दूसरे हाथों में दुष्टों के निर्दलन के लिए शस्त्र भी धारण करते हैं। मां जगदंबा की तलवार, योगेश्वर श्रीकृष्ण का सुदर्शन, भगवान शंकर का त्रिशूल, हनुमान की गदा यह सारे अस्त्र दुष्टों का निर्दलन करने हेतु उठाए गए हैं। विजया दशमी का पर्व इन शस्त्रों के पूजन का पर्व है। समय आने पर सत्य, सदाचार की रक्षा करने हेतु इन शस्त्रों को उठाने का निश्चय करने का यह पर्व है। समय के साथ शस्त्र बदलेंगे लेकिन उन्हें मानवता के कल्याण के लिए, असुरवृत्ति को दंडित करने के लिए हाथ में लेने का निश्चय तो वही है। इस निश्चय का पर्व है विजया दशमी।
हमारा देश कृषि प्रधान देश है। जब वर्षा ऋतु में अच्छी वर्षा होती है, फसल अच्छी आती है और किसान अनाजरूपी सोना घर लाता है तब उल्हास, आनंद और प्रसन्नता के क्षणों में भगवान की कृपा मान कर विजयादशमी का पर्व मनाता है। सुवर्ण के रूप में शमी वृक्ष के पत्तों को सभी को बांटा जाता है। खेती के काम पूरे होने पर शस्त्र ले कर रणयात्रा करने का समय ही विजयादशमी का समय होता था। हल बाजू रख कर हाथ में शस्त्र लेकर रण यात्रा शुरू करने का पर्व ही विजयादशमी होता था।
महिषासुर जैसे असुर जब मत्त हो कर अन्याय करने लगे तब शक्ति के रूप में माता ने उसके साथ नौ दिन, नौ रात युद्ध किया और महिषासुर का वध किया। अन्याय पर न्याय का विजय का आनंद मनाने का पर्व विजयादशमी है। कालीमाता, महिषासुरमर्दिनी, रेणुका माता जैसी देवियां शक्ति का रूप हैं। हमारी संस्कृति में महिला को शक्ति का रूप माना गया है। इतना महान विचार हमें अपने जीवन में सहज व्यवहार में लाना चाहिए। शक्तिरूपी महिलाओं का अपमान करनेवाले राक्षस की हमारी भूमिका नहीं होनी चाहिए इसका खयाल सभी को करना होगा।
इसी विजया दशमी के दिन मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम ने रावण पर विजय प्राप्त की थी। पांडवों ने अज्ञातवास को समाप्त कर इसी दिन शमीवृक्ष से अपने शस्त्र उठा कर महाभारत का युद्ध लडा था। यह सभी घटनाएं हम पर अंतिमतः सत्य, मर्यादा, सदाचरण के विजयी होने का संस्कार करती है। रामलीला, रावणदहन जैसेे कार्यक्रमों से दुराचारी का अंतिमतः पराजय होने का सूत्र समाज के सामने रखा जाता है।
विजयादशमी के दिन शमी वृक्ष के पत्तों को सुवर्ण कहा जाता है। सीमोल्लंघन के बाद शमी वृक्ष के पत्ते बांटे जाते हैं और जिससे हम मिलते हैं उन्हे ये पत्ते दे कर प्यार से गले मिलते हैं। समाज के सभी जन अच्छा वेश परिधान कर एकत्रित हो कर सीमोल्लंघन करते हैं। व्यक्ति, समाज और सृष्टी के बीच नाता दृढ करनेवाला यह उत्सव है।
सीमोल्लंघन
विजयादशमी को सीमोल्लंघन का एक महत्त्व है। इसी दिन राजा, महाराजा अपने राज्य की सीमा लांघ कर युद्ध करने निकलते थे। सीमोल्लंघन का अर्थ अपनी मर्यादा तोडना नहीं है। अपने व्यक्तित्त्व को सीमित न रखते हुए क्षमताओं का असीम विकास करने का नाम है सीमोल्लंघन। क्या हम विजयादशमी के पर्व पर अपनी क्षमता का विकास करने का संकल्प कर सकते हैं ? इस जमाने में कम्यूटर, किताबें, ज्ञान, सूचना यही नए शस्त्र हैं। क्या हम विजयादशमी के पर्व परइन नए शस्त्रों की पूजा करेंगे? इन नये शस्त्रों में हम पारंगत होने का संकल्प करेंगे? क्या हम हमारे समाज को संगठित कर विजयी सीमोल्लंघन करने निकलेंगे? आज विजयादशमी का पर्व मनाते समय इन सवालों के जबाब मायने रखते हैं।
आज का संघर्ष नए रूप में हमारे सामने हैं। आतंकवाद असुर जैसा रूप धारण कर मासूम लोगों की जान ले रहा है। भूमंडलीकरण के बाद हमारे समाज को लुभाने हेतु कई चीजें मायावी रूप धारण कर हमारे सामने आ रही हैं। क्या हम इन नए आक्रमणों पर विजय प्राप्त कर सकतें हैं? विजयादशमी के पर्व पर इस दिशा में हमें सोचना होगा। विश्व में अब जीवनरचना के जो मार्ग चुने गए थे वे पराजित, ध्वस्त हैं। साम्यवाद टूट चुका है। पूंजीवाद अंतिम सुख नहीं दे सकता। इसका एहसास विश्व को हो चुका है। जीवन को खडा करने हेतु विश्व को वैचारिक मार्गदर्शन की जरूरत है। ऐसे समय में बंधुता के आधार पर एक चिरविजयी विचार देने की क्षमता केवल भारतीय जीवनदर्शन में है। विश्व की मानवता को पावन करने की क्षमता रखने वाले भारतीय जीवन का दर्शन हम विश्व को दे सकते हैं। यही आनेवाले समय की चुनौती है। यही विजयादशमी का संदेश है। विचारों का सीमोल्लंघन कर यह सुवर्ण हम विश्व को देंगे यही संकल्प है।