बुनने लगे उत्तर प्रदेश चुनाव के तानेबाने

उत्तर प्रदेश में अगले वर्ष होने वाले विधान सभा चुनावों के लिए राजनीतिक दलों ने अपनी-अपनी सात बिछानी शुरू कर दी है। केंद्रीय मंत्रिमंडल के विस्तार में इसके संकेत मिलते हैं, जबकि कांग्रेस ने शीला दीक्षित को कमान सौंप दी है।

अगले वर्ष उत्तर प्रदेश में होने वाले विधान सभा चुनावों को लेकर सभी राजनैतिक दलों ने अपनी चुनावी बिसात बिछाना प्रारंभ कर दिया है। इस चुनाव में केन्द्र में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी लोकसभा चुनाव 2014 में मिली अप्रत्याशित सफलता को दुहराना चाहती है। यही वजह है कि हाल ही में केन्द्र में हुए दूसरे मंत्रिमंडल विस्तार में पार्टी ने उत्तर प्रदेश के चुनाव को दृष्टिगत रखते हुए कार्य किया है। भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने उत्तर प्रदेश के प्रभारी ओम प्रकाश माथुर को संगठन मजबूत कर हर हाल में सरकार बनाने के अपने इरादे से अवगत करा दिया है। भारतीय जनता पार्टी अपने वरिष्ठ नेता राजनाथ सिंह, कल्याण सिंह, उमा भारती, योगी आदित्यनाथ और महेश शर्मा जैसे नेताओं के साथ ही उत्तर प्रदेश में काफी कम समय में अपनी लोकप्रियता स्थापित करने वाली पूर्व मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी को भी मतदाताओं को आकर्षित करने की जिम्मेदारी सौंपने का मन बना लिया है। कांग्रेस ने भी इसी रणनीति के जवाब में फिल्म अभिनेता राज बब्बर को प्रदेश की कमान सौंपी है और दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को सामने रखकर चुनाव लडऩे का मन बना लिया है।

उत्तर प्रदेश को लेकर जहां सभी राजनैतिक दल अपनी तैयारी में जुटे हैं ऐसे में केन्द्र में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी कहां पीछे रहने वाली है। केन्द्र में हुए मंत्रिमंडल विस्तार में इस बात के स्पष्ट संकेत मिलने लगे हैं। मंत्रिमंडल विस्तार में उत्तर प्रदेश और पंजाब चुनाव को ध्यान में रखकर राणनीति तैयार की गई है जहां दलित समाज को साधने के लिए रामदास आठवले को अपने मंत्रिमंडल में स्थान दिया है वहीं लम्बे समय से अपनी उपेक्षा से नाराज चल रहे आदिवासी नेता फग्गन सिंह कुलस्ते को स्थान देकर देशभर के आदिवासी वर्ग के मतदाताओं को साधने का प्रयास किया है। लम्बे समय से यह कयास लगाये जा रहे थे कि प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी अपने मंत्रिमंडल के वरिष्ठ सहयोगी जो 75 वर्ष की उम्र पार कर गए हैं ऐसे कलराज मिश्र और नजमा हेपतुल्ला की मंत्रिमंडल से विदाई कर सकते हैं लेकिन ऐसा हुआ नहीं। कलराज मिश्र उत्तर प्रदेश के दमदार नेताओं में शामिल हैं। ऐसा माना जाता है कि श्री मिश्र की ब्राह्मण समाज में गहरी पकड़ है और यही वजह है कि पार्टी अभी किसी भी प्रकार का प्रयोग उत्तर प्रदेश में नहीं कर सकेगी।

अभी तक केन्द्र में मानव संसाधन विकास विभाग का दायित्व संभाल रही स्मृति ईरानी को कपड़ा मंत्री बनाए जाने पर एक तरफ जहां राजनैतिक विश्लेषक श्रीमती ईरानी का डिमोशन मान रहे हैं, लेकिन कुछ लोगों का मानना है कि पार्टी ने स्मृति ईरानी की प्रतिभाओं और लोकप्रियता का उपयोग उत्तर प्रदेश में करने के लिए यह कदम उठाया है। 2014 के लोकसभा चुनाव में स्मृति ईरानी ने बेहतर प्रदर्शन करते हुए कांग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी के लिए मुसीबत खड़ी कर दी थी। इस मंत्रिमंडल विस्तार में उत्तर प्रदेश के अपना दल पार्टी की नेता अनुप्रिया पटेल को भी शामिल कर उत्तर प्रदेश में जातीय समीकरण बनाने का प्रयास किया है।

उत्तर प्रदेश की अहमियत कांग्रेस के लिए सबसे ज्यादा है, क्योंकि वहां कांग्रेस ऐसे दुर्दिनों का शिकार बन चुकी है कि वह सत्ता का स्वाद चखने की कल्पना भी नहीं कर सकती। समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टीं और भारतीय जनता पार्टी के बाद कांग्रेस वहां चौथे नम्बर पर बनी हुई है। राहुल गांधी अगर कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष बन जाते हैं तो उनके ही हाथों में प्रदेश में कांग्रेस के चुनाव अभियान की बागडोर होगी, लेकिन उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर शायद यह नहीं जानते कि कांग्रेस के चुनाव अभियान की बागडोर राहुल गांधी के हाथों में सौंपने से पार्टी का विधान सभा चुनावों में कोई सम्मानजनक वजूद बन पाने के कोई आसार हैं इसीलिए हकीकत को ध्यान में रखते हुए ही उन्होंने उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनावों में राहुल गांधी की बहन प्रियंका गांधी वाड्रा को चुनावी चेहरा बनाने का सुझाव दिया है। प्रशांत किशोर चाहते हैं कि श्रीमती प्रियंका गांधी वाड्रा राज्य में पार्टी के चुनाव प्रचार में सक्रिय भागीदारी करें। गौरतलब है कि प्रियंका गांधी वाड्रा ने राजनीति में अपनी दिलचस्पी को अभी तक केवल रायबरेली और अमेठी लोकसभा क्षेत्रों तक ही सीमित रखा है जो क्रमश: श्रीमती सोनिया गांधी और राहुल गांधी के चुनाव क्षेत्र हैं। अपनी मां और भाई के चुनाव क्षेत्रों में सक्रिय प्रचार कर प्रियंका गांधी वाड्रा ने उनकी शानदार जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। कांग्रेस के अन्दर हमेशा से ही यह मांग उठती रही है कि प्रियंका गांधी वाड्रा को रायबरेली और अमेठी के बाहर भी निकलना चाहिए और केवल उत्तर प्रदेश ही नहीं बल्कि प्रदेश के बाहर भी पार्टी का चेहरा बनना चाहिए। पार्टी के अन्दर ऐसा मानने वालों की कमी नहीं है कि देश की राजनीति पार्टी के खोए हुए सम्मान को वापस लाने की क्षमता केवली श्रीमती प्रियंका गांधी वाड्रा के पास ही मौजूद है। इसमें दो राय नहीं हो सकती कि देशवासी श्रीमती प्रियंका गांधी वाड्रा में उनकी दादी और पूर्व प्रधान मंत्री स्व. श्रीमती इंदिरा गांधी की छवि देखते हैं। वे मृदुभाषी हैं और चेहरे पर सहज मुस्कान के साथ जब वे मतदाताओं से मुखातिब होती हैं तो उन पर अपनी एक अलग छाप छोड़ने में सफल भी होती हैं। इसलिए प्रशांत किशोर की राय के समर्थकों की संख्या पार्टी के बाहर बहुत अधिक है।

ऐसा बताया जाता है कि प्रियंका गांधी ने अब स्वयं भी सक्रिय राजनीति में उतरने का मन बना लिया है और उसकी शुरुआत वे उत्तर प्रदेश से करेंगी। उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनावों में वे कांग्रेस के प्रचार अभियान की बागडोर तो शायद पूरी तरह से न थामे परन्तु अपने भाई राहुल गांधी की चुनाव रैलियों को जरूर संबोधित कर सकती हैं। अगर प्रियंका गांधी वाड्रा राहुल के साथ प्रचार अभियान में सक्रिय भागीदारी करने के लिए तैयार हो जाती हैं तो कांग्रेस का चुनावी चेहरा वही मानी जाएंगी और निश्चित रूप से उनके आकर्षक वक्तव्य एवं संवाद अदायगी क्षमता का लाभ कांग्रेस को मिलेगा। गौरतलब है कि विगत दिनों भी वह रायबरेली के प्रवास पर गई थीं।

अब सवाल यह उठता है कि क्या प्रियंका गांधी वाड्रा के सक्रिय राजनीति में उतरने से कांग्रेस में राहुल गांधी के वर्चस्व पर तो कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। यह मान लेना अभी जल्दबाजी होगा क्योंकि अभी तक प्रियंका गांधी वाड्रा ने कांग्रेस से अपने जुड़ाव को केवल अपनी मां और भाई के चुनाव क्षेत्रों तक ही सीमित रखा है। वे अगर सक्रिय राजनीति में उतरने के लिए तैयार भी होती हैं तो वे राहुल के हाथ मजबूत करने के इरादे से ऐसा करने के लिए तैयार होंगी। वे यह कभी नहीं चाहेगी कि उनके सक्रिय राजनीति में जुड़ाव से उनके भाई के राजनीतिक भविष्य पर कोई प्रश्नचिह्न लगे।

प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने मंत्रिमंडल का दूसरी बार विस्तार किया है। उन्होंने अपनी सरकार में 19 नए चेहरे शामिल किए हैं तो पांच मंत्रियों को सरकार से बाहर का रास्ता दिखा दिया है। प्रधान मंत्री मोदी ने 26 मई 2014 को जब पहली बार अपना मंत्रिमंडल गठित किया था तब उसमें 45 मंत्री थे और अब मोदी मंत्रिमंडल के कुल सदस्यों की संख्या 78 है जो अधिकतम मानी जा सकती है। 19 नए चेहरे शामिल हो जाने से मंत्रिमंडल के और विस्तार की भविष्य में कोई संभावना नहीं है। प्रधान मंत्री को अगर और नए चेहरे शामिल करने की आवश्यकता महसूस हुई तो उन्हें फिर कुछ मंत्रियों की छुट्टी करना पड़ेगी। प्रधान मंत्री ने मंत्रिमंडल विस्तार में इस बात का पूरा ध्यान रखा है कि उनका पुनर्गठित मंत्रिमंडल 2019 में होने वाले लोकसभा चुनावों में सरकार की ऐसी छवि जनता के सामने पेश करने में सक्षम हो जिससे कि चुनावों में जनता का दुबारा भरोसा अर्जित किया जा सके।
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