नरेंद्र मोदी की विदेश नीति

भारतीय जनता पार्टी को संसदीय चुनाव में अत्यधिक सुयश प्राप्त हुआ| मोदी जी सर्वसम्मति से प्रधान मंत्री बने| मोदी जी को जिनसे प्रेरणा मिली उनको याद करना सहज था| इसमें कोई आश्‍चर्य नहीं| उन्हें प्रधान मंत्री बने ढाई साल हुए| इस दौरान मोदी सरकार को विदेश-नीति में जो सफलता मिली, उसका मूल्यांकन करना जरूरी है| देखें कि विगत पच्चीस सालों में अंतरराष्ट्रीय राजनीति में कई बदलाव आए| इन सारे बदलावों की ओर मोदी जी ने कैसे देखा? नरेंद्र मोदी जी की कौन-कौनसी विशेषताएं विदेश-नीति में हैं? इस लेख में इस सब का विवेचन करना मेरा लक्ष्य है|

विगत पच्चीस सालों की अंतरराष्ट्रीय नीति में बदलाव

१)सोवियत संघ की समाप्ति २) इस्लामिक स्टेट और चीन द्वारा अमेरिका को दी गई चुनौती ३) भारत का बढ़ता वर्चस्व या प्रभाव| इसके अलावा कुछ परिवर्तन और भी आए हैं, वे हैं -यूरो-अटलांटिक क्षेत्र के बजाय इंडो-पैसिफिक क्षेत्र को प्राप्त हुआ महत्व ५) वृहत्तर दक्षिण एशिया प्रदेश को मिली प्रतिष्ठा ६) हर देश में व्यक्त (छरींर्ळींळीा) और अफ्रीका खंड का विकास|

अंतरराष्ट्रीय राजनीति में मोदी सरकार की भूमिका

श्री नरेंद्र मोदी जी ने देश की बागड़ोर संभाली, उसके पहले यानी अक्टूबर २०१३ में उन्होंने चेन्नई में ननी पालखीवाला स्मृति व्याख्यान में हमारी सरकार बनने पर हमारी विदेश नीति कैसी होगी, इसका उत्तर दिया था- ‘‘भावनाशील होने के बजाय व्यावहारिकता, एक से ज्यादा- बहुतों के साथ संबंधित होना तथा भारत को प्रतिष्ठा दिलाने का हमारा प्रयास रहेगा|’’ चेन्नई के व्याख्यान में उन्होंने इस तरह प्रारंभ किया था| इस लेख में हम नरेंद्र मोदी जी की विदेश-नीति, उनके कामकाज की विशेषताओं की ओर दृटिक्षेप करेंगे| उसके बाद भारत में अलग-अलग भूप्रदेशों से कैसे व्यवहार किए यह संक्षेप में प्रस्तुत करेंगे|

विदेश नीति में प्रकट मोदीजी की कार्यशैली

इस कार्यशक्ति का महत्वपूर्ण पहलू है ‘उत्साहपूर्ण सफर’| ढाई साल में मोदी जी ने लगभग सारे खंडों के देशों का सफर किया| ६१ से ज्यादा परिषदों में गए| सारे स्थलों पर भाषण देकर, बातचीत के माध्यम से लोगों को प्रसन्नता दिलाई| पूरी दुनिया देखती रही| सन २०१४ में मोदी जी प्रधान मंत्री बने| इसके पहले भारत के किसी प्रधान मंत्री ने ऐसा उत्साह, जोश नहीं दिखाया था| निम्नलिखित सारणी से पता चलेगा कि नरेंद्र मोदी जी के अलावा कौन कौनसे प्रदेशों में भारतीय प्रधान मंत्री पहुंचे थे|

क्र देश कितने साल गुजर जाने के पश्‍चात भारतीय
प्रधान मंत्री पहुंचे थे
१) फिजी ३३ साल
२) श्रीलंका ३० साल
३) ऑस्ट्रेलिया ३० साल
४) कनाडा ४२ साल
५) नेपाल १७ साल
६) सेशेल्स ३४ साल
७) संयुक्त अरब अमीरात ३४ साल
८) आयरलैण्ड ५९ साल
९) सिलीकॉन वैली ३० साल

ऑस्ट्रेलिया में १५-२० परिषदें हुईं| नरेंद्र मोदी इस परिषद में गए तब पहली बार इस परिषद में भारत का प्रतिनिधित्व हुआ है यह बात दुनिया को पता चली| मोदी जी बड़ा व्यावहारिक दृष्टिकोण रखते हैं| इस कारण उनके भाषण में, बातचीत में ढहळीव ुेीश्रवळीा, पेप-रश्रळपसशाशपीं जैसे शब्दों से भावनिकता प्रकट नहीं होती| कहीं भी जाए तो भी ‘भारत का लाभ’ उनके भाषण का, बातचीत का एकमात्र विषय होता है| वे ऑस्ट्रेलिया गए, वहां उन्होंने कीमती ूयूरेनियम की मांग की| ‘‘भारत ने कभी किसी को धमकी नहीं दी, किसी को दुश्मन नहीं समझा, इसलिए भारत को यूरेनियम मिलना ही चाहिए’’ ऐसा कहा| दक्षिण अफ्रीका की सरकार से ‘अण्वास्त्र देने वालों के गुटों में भारत को भी शामिल करें’ जैसा प्रस्ताव रखा| इस प्रस्ताव को मान्यता देने वाले अफ्रीकी शासकों को धन्यवाद दिया| अमेरिका में भाषण देते समय उन्होंने अमेरिका को विश्‍वास दिलाया कि अब तक भारत अमेरिका से मित्रता करने में संदेहजनक या अस्पष्ट भूमिका लेता था, इसके आगे भारत स्पष्ट भूमिका रखेगा जैसा आश्‍वासन बराक ओबामा को दिया| मोदी जी की नेपाल के प्रति भारत की विदेश नीति, खामी झटक कर प्रखर आत्मविश्‍वास बढ़ाने वाली है| नए विचार आकर्षक शब्दों में जनता के सामने रखना, नरेंद्र मोदी की इस बात से विश्‍व प्रभावित हुआ है| उदाहरणार्थ-दक्षिण एशिया के राष्ट्र पांच -टी रूप में पहचाने जाते हैं| ५-टी यानी ढरश्रशपीं, ींशलहपेश्रेसू, ींीरवळींळेप, ींीरवश और ढर्रीीळीा| भारतीय नागरिक ऊशोलीरलू, ऊशोसीरहिू, ऊशारपव इन ३-ऊ से विख्यात हैं| क्या यह कहना मार्मिक नहीं है? हमारा जनतंत्र, जनसंख्या और व्यापार (ारीज्ञशीं) दुनिया को आकर्षित करते हैं यह सत्य है| नेपाल के सफर में आज दुनिया में ‘युद्ध या बुद्ध?’ जैसे प्रश्‍न का विकल्प है| यह अभिप्राय देते समय नरेंद्र मोदी जी ने जापान के सामने ‘विस्तारवाद चाहिए कि विकासवाद’ जैसा प्रश्‍न उपस्थित किया| बांग्लादेश में भाषण करते समय मोदी जी ने रविन्द्रनाथ ठाकुर की काव्यपंक्तियां गाईं| मॉरिशस में भी स्थानीय भाषा का उपयोग व्याख्यान में किया तो सारा जनसमुदाय चकित रह गया और आनंदित भी| हमारी विदेश मंत्री सुषमा स्वराज भी अफ्रीकी शिखर परिषद में उपस्थित थीं| इसमें अफ्रीका खंड के कुल ५४ प्रतिनिधि उपस्थित थे|

जो भारतीय नागरिक विदेशों में बसते हैं, उन्होंने संबंधित देश की विकास प्रक्रिया में महत्वपूर्ण योगदान दिया है| मोदी जी ने इस बात का ध्यान रख कर उन देशों में जाकर, उन लोगों को संबोधित किया| अमेरिका के मेडिसन स्न्वेअर और लंदन के वेम्बले स्टिेडयम में, वहां के भारतीय नागरिकों की भारी सभा में मोदी जी ने प्रभावी भाषण किए, नए कीर्तिमान स्थापित किए|
पश्‍चिमी यूरोप के फ्रांस और जर्मनी जैसे देश बीते ढाई साल में भारत के नजदीक आए हैं| ‘‘भारत नागरी उपयोग के लिए अण्वस्त्रनिर्मिति करने वाला देश है’’ इन शब्दों में फ्रांस ने भारत की प्रशंसा की है| इस संदर्भ में भारत को आधार देने वाले जापान, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया इ. राष्ट्रों ने सहयोग दिया है| लड़ाकू विमान, पनडुब्बी आदि युद्ध सामग्री भारत को देने हेतु फ्रांस तैयार है| फ्रांस और जर्मनी अटलांटिक समुद्र के उस पार रहने वाले अमेरिका के साथ उसकी हां में हां मिलाने के लिए तैयार नहीं हैं, बल्कि भारत के साथ मित्रता बढ़ाने के लिए उत्सुक हैं| यानी इंडो पैसिफिक क्षेत्र और इस क्षेत्र में प्रभावी बना भारत पेरिस और बर्लिन इन राजधानियों के शहरों की पसंद है| मोदी जी ने इस कारण फ्रांस और जर्मनी के साथ खास संबंध रखने में यश प्राप्त किया है|

अमेरिका के साथ तो मोदी जी ने विशेष संबंध स्थापित किए हैं| एक समय ऐसा था जब नरेद्र भाई को वीजा देना अमेरिका को नामंजूर था| वही मोदी जी आज अमेरिका की पहली पसंद है| अण्वस्त्र -पूर्ति करने वाले देशों के समूह में भारत को स्थान मिले यह अमेरिकी सरकार की इच्छा है| मोदी जी ने सिलीकॉन वैली में कदम रखा, वहां के पूंजीवादी लोगों के साथ सुखद संबंध प्रस्थापित किए| इस साल जून में मोदी जी ने अमेरिकी सांसद में जो प्रभावी भाषण दिया, उसने पुराने रिकार्ड तोड़ दिए| ‘‘हम दोनों लोकतंत्रवादी हैं, शांति प्रेमी हैं, मार्टिन लूथर किंग और महात्मा गांधी जी के अनुयायी हैं, इसलिए हमें आपस में दोस्ती बढ़ाना चाहिए|’’ उनके भाषण का यही उदेश्य था| मोदी जी ने अमेरिका के पूंजीवादियों और शासकों से भरपूर सहायता का आश्‍वासन लिया है| बहुंत लंबे काल से हम सुरक्षा सामग्री के लिए, हवाई जहाजों के लिए रूस पर निर्भर रहते थे| मोदी जी ने यूरो- अमेरिकी लोगों से उपरोक्त सामग्री प्राप्त करने पर जोर दिया है| इंडो- ैपैसिफिक क्षेत्र में भारत और अमेरिका मिल कर चीन को अघोषित चुनौती देने के लिए तैयार हैं|

भारत का स्वातंत्र्योत्तर काल का विश्‍वसनीय मित्र है रूस| रूस से मित्रता कायम करने में मोदी शासन सफल हुआ है| हाल ही में ‘कुडनकुलम’ की परमाणु भट्टी शुरू हुई| भारत -रूस की दोस्ती सच्ची साबित हुई| सीरिया की समस्या पर, इस्लामी आतंकवाद की समस्या पर भारत और रूस में मित्रता है|

इन ढाई सालों में भारत ने ऑस्ट्रेलिया, जापान से लेकर इंग्लैड अमेरिका तक मित्रता के संबंध बनाए रखने में यश प्राप्त किया है| अनेक देशों के साथ (ीींीरींशसळल रिीींपशीीहळि) यानी सामरिक सहभाग शुरू किया है| चीन- भारत तनाव की पृष्ठभूमि पर भारत ने मानो अपने आसपास सुरक्षा कवच खड़ा किया है|

खेदपूर्वक कहना पड़ता है कि चीन से कैसे संबंध रखे जाए| यह समस्या अत्यंत उग्र बन गई है| चीन पाकिस्तान के साथ मिल कर भारत को हर तरफ से जकड़ने की कोशिश कर रहा है| इन कारणों से पाकिस्तान बेहद खुश हैं| कश्मीर पर पाकिस्तान का कब्जा है और वह इलाका मानो पाकिस्तान ने उपहार स्वरुप चीन को दे दिया है| चीन ने इसी पाक के कबजे वाले कश्मीर से जो रास्ता बनाया है उसकी शुरुआत चीन में, तो उसका आखिरी छोर पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह पर है| इस रास्ते के कारण चीन के लिए अरेबियन समुद्र में प्रवेश करना आसान हो गया है| भारत की सीमा से सट कर म्यांमार (पहले का ब्रह्मदेश) देश है| इस देश के ‘भ्याडकव्यू’ बंदरगाह तक चीन ने महामार्ग बनाया है| यानी भारत के बंगाल की खाड़ी में चीन प्रवेश कर सकता है| यानी चीन ने हिमालय की घाटी से आक्रमण कर भारत के भूप्रदेश पर कब्जा जमाया है| अब अरबी सागर व बंगाल की खाड़ी से हिंद महासागर तक घुसखोरी करने के लिए तैयारी चीन ने कर ली है| दूसरी बात यह है कि ेपश लशश्रीं ेपश ीेरव यह शीर्षक देकर महामार्ग का विश्‍वव्यायी व्यूहजाल बनाने की चीन की कोशिश है| जमीन से, सागर से अफ्रीका तक और यूरेशिया से अटलांटिक व भूमध्य सागर तक बिना किसी रुकावट के संचार करने की चीन की महत्वाकांक्षा है| ‘साऊथ चायना समुद्र’ उसी प्रकार ‘ईस्ट चायना सी’ इन सागरों पर चीन अपना मालिकाना हक समझता है| तात्पर्य चीन से कैसे संबंध रखे? यह भारत की समस्या है|

हाल ही में परमाणु आपूर्ति करने वाले देशों के गुट में प्रवेश मिले इस इच्छा से भारत ने कोशिश की| अमेरिका ने भारत को प्रवेश मिले इसलिए भारत का समर्थन किया, कोरिया की राजधानी सेऊल में इस गुट की बैठक में चीन ने भारत का विरोध किया| परिणाम स्वरूप भारत के मनोरथ व्यर्थ साबित हुए|

चीन की अर्थव्यवस्था, चीन का सैनिकी सामर्थ्य, चीन ने दुनिया भर में जमाया अपना वर्चस्व इन चुनौतियों का सामना कैसे करें? यह भारत की समस्या है| ऐसी हालत में चीन के साथ लड़ाई अथवा चीन की दादागीरी के सामने हार मानना जैसे विकल्प हैं| नरेंद्र मोदी जी ने तीसरा विकल्प चुना है, ऐसा लगता है| हम जल्दबाजी में मैदान में उतरने से पहले चीन के साथ ‘प्रतियोगी सहकारिता नीति’ व्यवहार में लाए यह विकल्प चुना है| यानी ’जपश इशश्रीं जपश ठेरव’ इस चीनी उपक्रम में सहभाग लेना इठखउड, डउज जैसे संगठनों में हम चीन के साथ बराबरी से शामिल थे| चीन से हमारे व्यापारिक संबंध हैं, पर अमेरिका ने हिंद महासागर में पैसिफिक सागर में स्थिरता रहे, समुद्री गुंडागर्दी पर रोक लगे इसलिए कुछ कोशिश की, तो चीन को कैसा लगेगा? इसकी परवाह न करते हुए हम उपक्रम में शामिल थे| ‘साऊथ चायना समुद्र’ उसी प्रकार ‘ईस्ट चायना सी’ इन जलाशयों से वियतनाम, फिलीपीन्स, जापान वगैरह देशों का जहाजी बेड़ा आसानी से आ जा सके, हम यह भूमिका रखते हैं| परमाणु की पूर्ति करने वाले देशों के गुट में हमें प्रवेश मिले यह जिद चीन को मान्य नहीं, फिर भी हम उसका आग्रह रखते हैं| सेऊल की बैठक में चीन ने नकार पर हमें नाराज किया| भविष्य में विएन्ना में होने वाली संगठन की बैठक में हम नए सिरे से कोशिश करने वाले हैं ही| यह हमारा भाग्य है कि परमाणु की आपूर्ति करने वाले देशों के संगठन में चीन के अलावा हमें दूसरे देशों का समर्थन प्राप्त है| विद्युत निर्मिति तथा दूसरी नागरी उपयोगिताओं के लिए हमें परमाणु ऊर्जा को जरूरत है| जब तक हम इन गुटों से बाहर हैं, तब तक हर समय हमें इनके ‘हां’ की प्रतीक्षा रहेगी, उन पर निर्भर रहना पडेगा, पर इस गुट में प्रवेश मिला तो निर्णय प्रक्रिया में सहभाग लेना पड़ेगा| बाद में प्रदूषण रहित विद्युत निर्मिति कर सकेंगे| इस प्रकार चीन को किनारे कर देंगे तो आज से ज्यादा प्रभावी प्रतिष्ठा प्राप्त होगी| चीन का कोई भी पड़ोसी राष्ट्र चीन से खुश नहीं| चीन को रोका जाए, इस पर अमेरिका जैसे कई देश भारत के साथ खड़े हैं| विश्‍वभर में हम अपने मित्र बनाए, चीन से बिना डरे अरब सागर, हिंदी महासागर और बंगाल की खाड़ी पर तथा अपने नजदीकी जलाशयों पर हम वर्चस्व जमाए रखे यह अपनी व्यूहरचना है| अफ्रीका खंड पर चीन ने अपनी धाक जमाई है, पर हमने भी यहां पर हमारा प्रभाव दिखाने की शुरूआत की है| दिल्ली में हुई अफ्रीका शिखर परिषद को अपूर्व सफलता मिली| भारत के कितने ही आलां अफसरों ने (राष्ट्रपति, उपराषट्रपति और प्रधान मंत्री) अफ्रीकी देशों का सफर सफलतापूर्वक किया| साउथ अफ्रीका ने भी भारत को समर्थन देकर परमाणु आपूर्ति करने वाले देशों की सदस्यता भारत को मिले ऐसी कोशिश की है|

इसमें कोई संदेह नहीं कि नरेंद्र मोदी जी ने विदेश नीति के क्षेत्र में नण् कीर्तिमान स्थापित किए हैं|

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