भारत-चीन सम्बंधों की तनातनी
चीन के साथ हमारे सम्बंध तनातनी के दौर में हैं। 1962 की सीख को ध्यान में रखते हुए अपनी सैन्य तैयारियों में न कोई कमी आनी चाहिए, न चर्चा का रास्ता बंद होना चाहिए। इतना अवश्य ध्यान में रहे कि चीन कभी भी धोखेबाजी कर सकता है।
चीन के साथ हमारे सम्बंध तनातनी के दौर में हैं। 1962 की सीख को ध्यान में रखते हुए अपनी सैन्य तैयारियों में न कोई कमी आनी चाहिए, न चर्चा का रास्ता बंद होना चाहिए। इतना अवश्य ध्यान में रहे कि चीन कभी भी धोखेबाजी कर सकता है।
स्वामी विवेकानंद कहते हैं ‘इंडिया इज द यूनियन ऑफ दोस हार्ट्स व्हिच बीट् टुगेदर’ अर्थात ‘भारत में ऐसे ह्रदय एकत्रित आए हैं जिनकी धड़कनों से एक ही आध्यात्मिक सुर उत्पन्न होता है।’ यह विवेकानंद प्रणित भारत की व्याख्या प्रादेशिक अथवा भौगोलिक राष्ट्र की कल्पना को न मानने वाली है। स्वामी जी को ऐसी कोरी कल्पना मान्य नहीं थी कि इस देश में जिसका जन्म हुआ, यहां जो बचपन से बड़ा हुआ वही राष्ट्रीय है।
भारतीय जनता पार्टी को संसदीय चुनाव में अत्यधिक सुयश प्राप्त हुआ| मोदी जी सर्वसम्मति से प्रधान मंत्री बने| मोदी जी को जिनसे प्रेरणा मिली उनको याद करना सहज था| इसमें कोई आश्चर्य नहीं| उन्हें प्रधान मंत्री बने ढाई साल हुए| इस दौरान मोदी सरकार को विदेश-नीति में जो सफलता मिली, उसका मूल्यांकन करना जरूरी है| देखें कि विगत पच्चीस सालों में अंतरराष्ट्रीय राजनीति में कई बदलाव आए|
त्रिपुरा में पिछले सात दशकों में जातीयता एवं बगावत के घटनाक्रम का बारीकी से अध्ययन करना हो तो अटल बिहारी वाजपेयी के ये शब्द बहुत माकूल हैं, कहानी तो शुरू सब को करनी आती है, खत्म कैसे करेंगे, किसी को नहीं आता।
धन का निस्पृह प्रयोग, वचन का पालन, दूरगामी विचार के साथ उक्ति व कृति, न्याय तथा मानवता की पूजा, इन सब पहलुओ के समेकित प्रयोग से सार्वजनिक जीवन का आध्यात्मिकरण साकार होता है। गोपाल कृष्ण गोखले का भी यही आग्रह था। इस वर्ष उनका जन्मशती वर्ष है, जबकि बाबासाहब का 125वां जयंती वर्ष। दोनों महापुरुषों का अभिवादन!