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 भारतीय ग्रामराज्य  में  महिला

 भारतीय ग्रामराज्य में महिला

by संगीता धारूरकर
in ग्रामोदय दीपावली विशेषांक २०१६, सामाजिक
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ग्राम स्तर पर सरपंच के नाते शुरूआत कर महिलाओं को अपना दायरा बढ़ाना होगा| अपने विकास के प्रति सतर्क रहना होगा| यह साबित करना होगा कि महिलाएं भी वे सब काम कर सकती हैं, जिनके बारे में माना जाता है कि सिर्ङ्ग पुरूष कर सकते हैं|

भा रत में स्थानीय स्वराज्य संस्थाओं में महिलाओं के लिए   आरक्षण दिया गया है| इस में खुला वर्ग से ले कर अनुसूचित जातियों तथा जनजातियों की महिलाओं को स्थानीय स्वराज्य संस्था में कार्य करने का अवसर मिला है| महिला सशक्तिकरण के मद्देनजर इस राजनीतिक प्रावधान का कितना असर हमारे समाज जीवन पर पड़ा है यह मूल्यांकन का एक महत्त्वपूर्ण बिंदु हो सकता है|

महिलाओं को आरक्षण मिलने के कारण कई जगह नई महिलाएं राजनीति में प्रवेश कर स्थापित हुई हैं| थोड़ा सा अवसर, जरा सी शाबासी मिलने के पश्‍चात महिलाओं ने कई जगह हौसले से काम किया है| कदम-कदम पर संघर्ष के बावजूद वे हारी नहीं| कुछ कर गुजरने की धुन लिए मंजिल की ओर बढ़ती रही हैं| कई दिक्कतें हैं, कई जगह महिलाओं के प्रति दृष्टिकोण दूषित है, अधिकांश मामलों में महिलाओं को पद पर बिठा कर उनके पति ही निर्णय लेने में, कार्य करने में अग्रसर दिखते हैं|

मैं एक बार पत्रकार के रूप में महाराष्ट्र के विकसित शहर अहमदनगर के नजदीक खारे-कर्जुने नामक गांव में गई थी| मैंने वहां पूछा कि, ‘गांव में सरपंच कौन हैं?’

      जवाब मिला,‘हमारे गांव में सरपंच ही नहीं हैं|’

      मैं तो अचरज में पड़ गई| इसका कारण पूछने पर बताया गया कि, ‘सरपंच का पद महिलाओं के लिए आरक्षित है|’

      ङ्गिर मैंने पूछा, ‘क्या एक भी महिला पंचायत में चुन कर नहीं आई है?’

      उन्हौने बताया कि, ‘हां, दो महिलाएं ग्राम पंचायत में चुन कर आई हैं|’

      ङ्गिर मैंने बड़ी उत्सुकता के साथ पूछा, ‘ङ्गिर उनमें से कोई सरपंच क्यों नहीं बनीं?’

इस सवाल का जो जबाब मैंने सुना मैं तो भौंचक रह गई| उन्होंने बताया कि, ‘बाई लोगों को क्या समझता है मैडम, इसलिए हमने दोनों को भी सरपंच के चुनाव में नामांकन-पत्र ही भरने नहीं दिया|’

      ‘ङ्गिर ग्रामपंचायत का कामकाज कैसे चलता है?’

      मेरे इस सवाल पर जबाब मिला, ‘उपसरपंच को सरपंच का चार्ज है, और  वह काम देखता है|’

महिला आरक्षण को कैसे बखूबी टाला जा सकता है यह उदाहरण बड़ा खेदजनक था| ऐेसे दृष्टिकोण के कारण इतने प्रावधान होने के बावजूद महिलाओं को अपेक्षित स्थान राजनीति में नही मिल पाया है|

पिछले महीने औरंगाबाद के सारे समाचार-पत्रों में एक छायाचित्र छपा था जिसे देख कर मेरा माथा शर्म से झुक गया, आंखों में गुस्सा आया| चित्र औरंगाबाद जैसे शहर के महानगरपालिका का था| महानगरपालिका के आयुक्त बकोरिया ने महिला नगर सेविका के पतियों को महानगरपालिका के दप्तर में आने से मना करने का निर्णय किया| उसके पश्‍चात महिला नगर सेविकाएं इकट्ठा आयुक्त के सामने गुहार लगाने पहुंची कि, ‘उनके पतियों को महानगरपालिका के दफ्तर में प्रवेश करने हेतु आयुक्त अनुमति दें|’ यह कैसी मांग है? अगर पति के हस्तक्षेप के अलावा नगर सेविकाओं को काम करना नामुमकिन लगता है तो महिला आरक्षण क्या मायने रखता है?

औरंगाबाद की कन्नड तहसील मेें एक छोटासा गांव है बहिरगांव| महाराष्ट्र शासन की ओर से चलाए गए गाडगे बाबा स्वच्छता अभियान में राज्य में इस गांव को दो बार पहला पुरस्कार मिला है| इस गांव को पुरस्कार मिलने की खबर आते ही औरंगाबाद के पत्रकार इस गांव का ङ्गीचर बनाने वहां पहुंचे| सरपंच से मिले| ग्रामस्वच्छता, ग्रुप ङ्गार्मिंग जैसे कई काम इस गांव में बड़े सराहनीय हुए थे| सारे समाचार-पत्रों में इसकी सराहना करने वाले न्यूज ङ्गीचर छायाचित्रों के साथ प्रकाशित हुए| तथाकथित सरपंच एक कार्यकर्ता को लेकर समाचार-पत्र के दफ्तर पहुंचे| समाचार प्रकाशित करने पर धन्यवाद किया| बाद में उन्होंने जो कहा वह सुन कर संपादक अचरज में पड़ गए| माथे पर हाथ रख कर बैठने की नौबत आई| तथाकथित सरपंच ने संपादक से कहा कि, ‘साहब, आपने समाचार तो बहुत अच्छा प्रकाशित किया, लेकिन एक गलती हुई है| बहिरगांव का सरपंच मैं नहीं हूं मेरी पत्नी सरपंच है| उसकी ओर से कामकाज तो मैं देखता हूं लेकिन मेरी पत्नी का नाम आपको बताना मैं भूल ही गया| आपने तो समाचार-पत्र मे मेरा ही जिक्र सरपंच के नाते किया और मेरी ही सराहना की|’

इसके विपरीत कुछ अच्छे अनुभव भी कम नहीं है| महाराष्ट्र के महिला आयोग की अध्यक्ष विजया रहाटकर एक उदाहरण है| विजयाताई औरंगाबाद महानगर पालिका में पहली बार महिलाओं के लिए आरक्षित ज्योति नगर प्रभाग से चुनी गई| इस अवसर का उन्होंने इतना अच्छा लाभ उठाया कि अगली बार यह प्रभाग सर्वसाधारण होने पर भी वह पुनः यहां से विजयी हुईं| भारतीय जनता पार्टी ने महापौर का पद सर्वसाधारण होने पर भी कार्य एवं अनुभव के आधार पर विजयाताई को सौंपा| महापौर के नाते उन्होंने कई अच्छे काम किए| महिला महापौर की राष्ट्रीय परिषद का आयोजन किया| महानगर के विकास में अहम निर्णय लिए| इस कार्य के परिणामस्वरूप महापौर का कार्यकाल पूरा होने के पश्‍चात उन्हें भाजपा महिला मोर्चा का राष्ट्रीय महासचिव और बाद में राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद सौंपा गया| महिला आरक्षण से राजनीतिक जीवन को वॉर्ड से शुरूआत कर विजयाताई का विजयपथ राष्ट्रीय अध्यक्ष तक जा पहुंचा| महिलाओं के राजनीतिक विकास का एक आदर्श उन्होने स्थापित किया है|

राजस्थान से शोभागपुरा ग्राम पंचायत की सरपंच कविता जोशी का महिला सशक्तिकरण पर किए गए नवाचार की सङ्गल कहानी टीवी प्रसारण में आने से विश्‍व को ज्ञात हुई| इंजीनियरिंग पढ़ने वाली कविता गर्भवती होने के बावजूद चुनाव लड़ी और जीत कर सरपंच बनीं| इंजीनियर कविता आज शोभागपुरा ग्राम पंचायत की सरपंच हैं| वह मां भी हैं, बहू भी, बेटी-बहन और पत्नी भी| सभी भूमिकाओं के बखूबी निर्वहन के बीच पंचायत क्षेत्र में विकास का जज्बा भी दिखा रही हैं|

हिंदुस्थान में महिलाओं के विकास के लिए आदशों की कुछ कमी नहीं है| शिवाजी को विकसित करने वाली जीजामाता, राजनीति को समाज में आस्था जगाने हेतु आदर्श कार्य करने वाली अहिल्यादेवी होलकर, प्रधान मंत्री के नाते विश्‍व में हिंदुस्थान की शान बढ़ाने वाली इंदिरा गांधी, राष्ट्रपति के पद पर काम करने वाली प्रतिभा पाटील जैसे कई उदाहरण हैं| ग्राम स्तर पर सरपंच के नाते शुरूआत कर महिलाओं को अपना दायरा बढ़ाना होगा| अपने विकास के प्रति सचेत रहना होगा| महिलाओें के प्रति समाज अपनी सोच बदले| महिलाएं भी वे सब काम कर सकती हैं, जिनके बारे में माना जाता है कि सिर्ङ्ग पुरूष कर सकते हैं|

 

संगीता धारूरकर

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