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भारत के संस्कृत संपन्न गांव

भारत के संस्कृत संपन्न गांव

by सपना मांगलिक
in ग्रामोदय दीपावली विशेषांक २०१६, सामाजिक
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“देश में ऐसे गांव हैं जहां बच्चे, बूढ़े, युवा और महिलाएं- सभी बहुत ही सहज रूप से संस्कृत में बात करते हैं। ग्राम के मुस्लिम परिवारों में भी संस्कृत उतनी ही सहजता से बोली जाती है जितनी हिन्दू घरों में। यहां तक कि क्रिकेट खेलते हुए और आपस में झगड़ते हुए भी बच्चे संस्कृत में ही बात करते हैं।”

संस्कृत भारत की वैदिक भाषा है। यह वही भाषा है जिससे संसार की समस्त भाषाओं का जन्म हुआ है। संक्षेप में संस्कृत दुनिया की समस्त भाषाओं की जननी है, मगर जैसा कि आधुनिक समाज का रिवाज है कि बच्चे जिन मां-बाप की गोद में खेलते और उनके संरक्षण में जीने की कला सीखते हैं बड़े होकर उन्हीं मां- बाप को धक्का देकर घर से बाहर निकाल देते हैं और फिर उन बेसहारा मां-बाप को आश्रय देते हैं, वृद्धाश्रम और तमाम तरह के एन जी ओ। ठीक ऐसा ही हमारी संस्कृत भाषा के साथ हो रहा है।

वर्तमान विश्व की सब से अत्याधुनिक अंतरिक्ष शोध संस्था ‘नासा’ ने भी माना है कि संस्कृत एक दैवीय एवं खगोलीय भाषा है। चौंकाने बाली बात यह है कि भारत, जहां की यह मूल भाषा है, को अक्सर भारत के ही स्कूलों में पढ़ाने पर विवाद हो जाता है, भारत के शिक्षा संस्थान और अभिभावक संस्कृत की जगह जर्मन भाषा पढ़ाए जाने को तरजीह दे रहे हैं। लेकिन उसी जर्मनी में हमारी इस वैदिक भाषा संस्कृत पर शोध हो रहे हैं। वहां के विश्वविद्यालयों में संस्कृत भी पढ़ाई जा रही है। इतना ही नहीं, जर्मनी की शोधकर्ता डॉ. एनेटी सच्मीडेसेन को संस्कृत में शोध के लिए भारत के नागरिक सम्मान पद्मश्री से सम्मानित भी किया गया है। ताज्जुब है कि इतने पर भी भारत के लोग संस्कृत जैसी वैज्ञानिक भाषा को छोड़ अंग्रेजी भाषा और अन्य भाषाओं के मोह में बंधे हुए हैं, जो कि हर दृष्टि से हानिकारक है।

जर्मन शोधकर्ता डॉ. एनेटी अपनी शोध के लिए इन दिनों भारत में रहती ह््ैं। उनके पति कोलकाता में जर्मन वाणिज्य दूतावास के काउंसल जनरल हैं। उन्होंने पुरस्कार प्राप्त करने के पश्चात कहा कि वह इस पुरस्कार से खुद को गौरवान्वित महसूस कर रही हैं। दुनिया की पहली पुस्तक की भाषा होने के कारण संस्कृत भाषा को विश्व की प्रथम भाषा मानने में कहीं कोई संशय की गुंजाइश नहीं हैं। इसके सुस्पष्ट व्याकरण और वर्णमाला की वैज्ञानिकता के कारण सर्वश्रेष्ठता भी स्वयं सिध्द है।

हमारे शहरों और महानगरों से अलग देश में आज भी कुछ ऐसे गांव हैं जो इस प्राचीन भाषा की धरोहर को सहेजने और प्रचारित करने में जुटे हुए हैं। इन गांवों में न केवल लोगों की आपसी बोलचाल की भाषा संस्कृत बन चुकी है, अपितु इन गांवों में दैनिक जीवन का सम्पूर्ण वार्तालाप सिर्फ संस्कृत में ही किया जा रहा है। ऐसे ग्रामों में सबसे महत्वपूर्ण नाम है कर्नाटक के मुत्तुर व होसहल्ली और मध्य प्रदेश के झिरी गांव का, जहां सही अर्थों में संस्कृत जन-जन की भाषा बन चुकी है। इन ग्रामों में लगभग 95 प्रतिशत लोग संस्कृत में ही वार्तालाप करते हैं। मुतरु, होसहल्ली व झिरी के अलावा मध्य प्रदेश के मोहद और बधुवार तथा राजस्थान के गनोडा भी ऐसे ग्राम हैं जहां दैनिक जीवन का अधिकांश वार्तालाप संस्कृत में ही किया जाता है। सिर्फ एक दूसरे का हालचाल जानने के लिए ही नहीं बल्कि खेतों में हल चलाने, दूरभाष पर बात करने, दुकान से सामान खरीदने और यहां तक कि नाई की दुकान पर बाल कटवाते समय भी संस्कृत में ही वार्तालाप देखने को मिलता है। लोगों के घरों में रसोईघर में रखे मसालों व अन्य सामान के डिब्बों पर नाम संस्कृत में ही लिखे मिलते हैं। इन ग्रामों में अब यह कोई नहीं पूछता कि संस्कृत सीखने से उन्हें क्या फायदा होगा? इससे नौकरी मिलेगी या नहीं? संस्कृत अपनी भाषा है और इसे हमें सीखना है, बस यही भाव लोगों के मन में है।

कर्नाटक का मुत्तुरु ग्राम

मुत्तुरु ग्राम कर्नाटक के शिमोगा शहर से लगभग 10 किमी दूर है। तुंग नदी के किनारे बसे इस ग्राम में संस्कृत प्राचीन काल से ही बोली जाती है। लेकिन आधुनिक समय की आवश्यकताओं के अनुरूप इसे संवारा है संस्कृत भारती ने। लगभग 2000 की जनसंख्या और 250 परिवारों वाले इस ग्राम में प्रवेश करते ही सबसे पहला सवाल जो आपसे पूछा जाएगा वह होगा- भवत: नाम किम्? अर्थात आपका नाम क्या है? काफी वा चायं किम् इच्छति भवान्? (काफी या चाय, क्या पीने की इच्छा है?)।

यहां बच्चे, बूढ़े, युवा और महिलाएं- सभी बहुत ही सहज रूप से संस्कृत में बात करते है। ग्राम के मुस्लिम परिवारों में भी संस्कृत उतनी ही सहजता से बोली जाती है जितनी हिन्दू घरों में। मुस्लिम बालक कहीं भी संस्कृत में श्लोक गुनगुनाते मिल जाएंगे। यहां तक कि क्रिकेट खेलते हुए और आपस में झगड़ते हुए भी बच्चे संस्कृत में ही बात करते हैं। ग्राम के सभी घरों की दीवारों पर लिखे हुए बोध वाक्य संस्कृत में ही हैं।

इस गांव में बच्चों की प्रारंभिक शिक्षा संस्कृत में होती है। बच्चों को छोटे-छोटे गीत संस्कृत में सिखाये जाते हैं। बात सिर्फ छोटे बच्चों की ही नहीं है, गांव के उच्च शिक्षा प्राप्त युवक प्रदेश के बड़े शिक्षा संस्थानों व विश्वविद्यालयों में संस्कृत पढ़ा रहे हैं और कुछ साफ्टवेयर इंजीनियर के रूप में बड़ी कंपनियों में काम कर रहे हैं।

इस गांव की मूल भाषा तो संकेथी है, मगर वहां का बच्चा – बच्चा संस्कृत में बात करता है। संस्कृत प्राचीन काल से ही यहां बोली जाती है, हालांकि बाद में यहां के लोग भी कन्नड़ भाषा बोलने लगे थे, लेकिन 33 साल पहले पेजावर मठ के स्वामी ने इसे संस्कृत भाषी गांव बनाने का आह्वान किया। जिसके बाद गांव के लोग संस्कृत में ही वार्तालाप करने लगे।

1981-82 तक इस गांव में राज्य की कन्नड़ भाषा ही बोली जाती थी। कई लोग तमिल भी बोलते थे, क्योंकि पड़ोसी तमिलनाडु राज्य से बहुत सारे मज़दूर करीब 100 साल पहले यहां काम के सिलसिले में आकर बस गए थे। मत्तूरु गांव में 500 से ज्यादा परिवार रहते हैं, जिनकी संख्या तकरीबन 3500 के आसपास है। इस गांव के लोगों का संस्कृत के प्रति झुकाव दरअसल अपनी जड़ों की ओर लौटने जैसा एक आंदोलन था, जो संस्कृत को ब्राह्मणों की भाषा कहे जाने के खिलाफ शुरू हुआ था। इसके बाद पेजावर मठ के स्वामी ने इसे संस्कृत भाषी गांव बनाने का आह्वान किया। सभी गांववासियों ने 10 दिनों तक रोज़ दो घंटे अभ्यास किया, जिससे पूरा गांव संस्कृत में बातचीत करने लगा। इस गांव के निवासी वैदिक लाइफस्टाइल को जीते हैं, साथ ही संस्कृत ग्रंथों का पाठ करते हैं और इसी भाषा में बात करते हैं।

राजस्थान के बांसवाड़ा जिले का गनोड़ा ग्राम

गनोड़ा गांव की भाषा यूं तो बागदी है, मगर पूरा गांव अब संस्कृत में ही बोलना और लिखना पसंद करता है। श्री कन्हैयालाल यादव इस गांव के वह प्रथम व्यक्ति हैं जिन्होंने इस भाषा को सीखने में रूचि दिखाई। गनोड़ा में अनुसूचित जनजाति के लोग निवास करते हैं मगर जिस प्रकार ये लोग संस्कृत में धाराप्रवाह बोलते हुए कुशल उच्चारण के साथ आपसे कुशलक्षेम पूछते हैं, आप इस गांव को पूर्णतया साक्षर और कुलीन लोगों का गांव समझ सकते हैं। यहां के अनपढ़ और कम पढ़े-लिखे लोगों ने सिद्ध कर दिया है कि संस्कृत मात्र पंडितों की भाषा नहीं है, बल्कि यह तो लोगों के ह्रदय में बसी हुई है और हमारी गौरवशाली संस्कृति की प्रतीक है।

मध्य प्रदेश के राजगढ़ जिले का झिराी ग्राम

झिरी गांव मध्य प्रदेश का वो दिव्य गांव है जहां किसान भी अपने बैलों को हानते हुए संस्कृत में ही आदेश देता है और मजे की बात यह है कि उसके यह बैल भी, उसके आदेश का पालन भी करते हैं।

इस झिरी ग्राम में कुल 141 परिवारों में 976 लोग रहते हैं। संस्कृत भारती की ओर से इस ग्राम के लोगों को संस्कृत सिखाने की शुरूआत सन् 2002 में विमला नामक एक युवती ने की। एक ही साल में इस युवती ने ग्रामवासियों में संस्कृत के प्रति इतनी रुचि बढ़ाई कि पूरे गांव ने संस्कृत को ही बोलचाल की भाषा बना लिया। आज विमला पूरे गांव की बेटी हैं। झिरी की इस सफलता से आसपास के अन्य ग्रामों जैसे मूंडला व सूसाहेडीह के लोग भी संस्कृत सीखने झिरी आने लगे हैं।

मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले का मोहद ग्राम

मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले के मोहद ग्राम की आबादी लगभग 3500 है। यहां भी एक हजार से अधिक लोग संस्कृत में वार्तालाप करते हैं। इस ग्राम में संस्कृत भारती के कई शिविर आयोजित हो चुके हैं। यहां की महिलाएं और बेटियां भी बड़े ही जोशखरोश के साथ संस्कृत का प्रचार अपनी हमउम्र सखियों के साथ आसपास के घर और गांव में करती आपको सहज ही दिख जाएंगी।

उत्तर प्रदेश के बागपत जिले का बावली ग्राम

संस्कृत भारती का अनुभव है कि संस्कृत सीखने के लिए व्यक्ति का पढ़ा-लिखा होना आवश्यक नहीं है। हां, व्यक्ति यदि थोड़ा बहुत पढ़ा-लिखा हो तो उसे सिखाने में आसानी होती है। लेकिन बिल्कुल अनपढ़ व्यक्ति भी संस्कृत सीख सकता है। ऐसे हजारों लोग हैं जिन्हें पहले बिल्कुल भी अक्षर ज्ञान नहीं था लेकिन अब वे संस्कृत की अच्छी समझ रखते हैं। अब तो ऐसे लोग अन्य लोगों को भी संस्कृत सिखा-पढ़ा रहे हैं। ऐसा ही एक उदाहरण पिछले दिनों उत्तर प्रदेश के बागपत जिले के बावली ग्राम में देखने को मिला। यहां के 50 वर्षीय जयप्रकाश कभी स्कूल नहीं गए, लेकिन संस्कृत भारती के संभाषण वर्गों से संस्कृत सीख कर वे न केवल अब फर्राटेदार संस्कृत बोलते हैं बल्कि अपने ग्राम के 25 से अधिक युवकों व प्रौढ़ों को संस्कृत सिखा रहे हैं। जयप्रकाश बताते हैं कि उन्होंने संस्कृत भारती द्वारा दिल्ली, हरिद्वार, मेरठ और बड़ौत में आयोजित केवल चार शिविरों से संस्कृत का इतना ज्ञान अर्जित कर लिया है कि वे आज दूसरों को संस्कृत सिखा रहे हैं। यह सही है कि वे संस्कृत सही प्रकार से लिख नहीं पाते लेकिन बोलने में वे पूरी तरह निपुण हैं। इसी कारण वे आज ग्राम के सभी निर्णयों में सम्मिलित रहते हैं। संस्कृत बोलने के कारण उनका सम्मान बढ़ा है।

संक्षेप में, भले ही भारत में संस्कृत का महत्व नहीं समझा जाता, लेकिन न्यूजीलैंड के एक स्कूल में दुनिया की इस महान भाषा को सम्मान मिल रहा है। न्यूजीलैंड के इस स्कूल में बच्चों को अंग्रेजी सिखाने के लिए संस्कृत पढ़ाई जा रही है। फिकिनो नामक इस स्कूल का दावा है कि संस्कृत से बच्चों में सीखने की झमता काफी बढ़ जाती है। न्यूजीलैंड के शहर आकलैंड के माउंट इडेन इलाके में स्थित इस स्कूल में लड़के और लड़कियां दोनों को शिक्षा दी जाती है। 16 साल तक की उम्र तक यहां बच्चों को शिक्षा दी जाती है। इस स्कूल का दावा है कि इसकी पढ़ाई मानव मूल्यों, मानवता और आदर्शों पर आधारित है। अमेरिका के हिंदू नेता राजन जेड ने पाठ्यक्रम में संस्कृत को शामिल करने पर फिकिनो की तारीफ की है।

अगर यही पहल भारत में भी की जाती और यहां भी संस्कृत विश्वविद्यालयों और शोध संस्थानों का निर्माण कराया जाता तो यकीनन आज भारत का वह विश्वविद्यालय दुनिया के सर्वश्रेष्ठ विद्यालयों में से एक होता। ग्राम विकास के कार्य में संलग्न श्री अण्णा हजारे, श्री नानाजी देशमुख, श्री सुरेन्द्र सिंह चौहान इत्यादि समाजसेवियों का भी यह अनुभव है कि गांव के विकास का आधार वातावरण, नैतिकता एवं सुसंस्कार ही हो सकता है। इन आधारभूत बातों को ग्रामीणों के बीच स्थापित करने का माध्यम संस्कृत भाषा को बनाना एक लाभकारी प्रयोग रहा है। संस्कृत संस्कार देने वाली भाषा है। अत: उसके नित्य उच्चारण से व्यक्ति के जीवन जीने की शैली अधिक भारतीय हो जाती है, उच्च आदर्शों के निकट पहुंचने में सहायक बनती जाती है।
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सपना मांगलिक

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