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हिलरी का जुझारूपन… विश्वास जगाने वाला

हिलरी का जुझारूपन… विश्वास जगाने वाला

by अमोल पेडणेकर
in दिसंबर २०१६, सामाजिक
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अमेरिकी राष्ट्रपति पद के चुनाव में हिलरी क्लिंटन भले ही हार चुकी हों; किन्तु उन्होंने जो जुझारूपन दिखाया उसकी कोई तुलना नहीं हो सकती। अमेरिका का इतिहास 524 वर्षों का है; अब तक पांच महिलाएं यह चुनाव लड़ चुकी हैं, लेकिन कोई नहीं जीतीं। लिहाजा, अमेरिकी समाज में पुरुष-वर्चस्व अब भी कायम है।

अमेरिकी राष्ट्रपति पद का चुनाव हाल ही में हो चुका है। दुनिया पर राज करने वाले ‘व्हाईट हाऊस’ के स्वर्णिम सिंहासन पर अमेरिकी जनता ने रिपब्लिकन पार्टी के प्रत्याशी डोनाल्ड ट्रम्प नामक एक विवादित व्यक्ति को आरूढ़ किया है। उम्मीदवारी के आरंभ से ही रिपब्लिकन पार्टी के भीतर और बाहर ही नहीं, दुनियाभर में आलोचनाओं को झेलने वाले ट्रम्प ने चुनाव में बाजी मार ली है। यह एक आश्चर्य ही कहा जाएगा। ट्रम्प से कड़ा मुकाबला किया डेमोक्रेटिक पार्टी की हिलरी क्लिंटन ने। ट्रम्प का जैसा विरोध हुआ, वैसा हिलरी का नहीं हुआ यह सच है, फिर भी वह पराजित हुई। वास्तव में, हिलरी के रूप में राष्ट्रपति चुनाव में कोई महिला उतरे यह भी अपने-आप में बड़ी बात है। अमेरिकी समाज एवं राष्ट्रपति चुनाव का पिछला इतिहास देखें तो यह बात स्वयं उजागर होती है। लेकिन यदि हिलरी बड़बोले ट्रम्प को चुनाव में शिकस्त दे देतीं तो पहली महिला राष्ट्रपति होतीं और एक महान, अद्वितीय, ऐतिहासिक घटना का दुनिया को दर्शन होता।

कोलम्बस ने दुनिया को अमेरिका का दर्शन कराया कोई 524 वर्ष पूर्व और इस महासत्ता ने महिलाओं को मतदान का अधिकार प्रदान किया सन 1920 में! अमेरिकी इतिहास में स्वर्णाक्षरों में लिखा गया यह क्षण 100 वर्ष पूर्ण होने की दहलीज पर ही था कि अमेरिका को एक और नया इतिहास बनाने का अवसर प्राप्त हुआ था। लेकिन विश्व को व्यक्ति-स्वतंत्रता का पाठ सिखाने वाली अमेरिका में जब-जब किसी महिला ने राष्ट्रपति बनने की कोशिश की तब-तब अमेरिकी जनता का बर्ताव विश्व के अन्य देशों की तरह ही रहा। फिलहाल दुनिया में 175 राष्ट्रपति या प्रधान मंत्री अपने-अपने देशों का नेतृत्व कर रहे हैं। उनमें महिलाओं की संख्या केवल 18 है। विशेष यह कि उन्हें सत्ता कायम रखने के लिए लगातार जूझना पड़ता है।

महिला होने के बावजूद हिलरी ने चुनाव प्रचार के दौरान प्रतिपक्षी ट्रम्प को जबरदस्त टक्कर दी, जो चमत्कृत कर देने वाला है। राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ने वाली हिलरी कोई पहली अमेरिकी महिला नहीं है। अमेरिका के पांच शतकों के इतिहास में अब तक पांच महिला उम्मीदवारों ने व्हाईट हाऊस एवं दुनिया की एकमात्र महासत्ता के सिंहासन पर बैठने के सपने देखे हैं। हिलरी ऐसी छठी महिला हैं। ये सभी अपने सपने पूरी नहीं कर पाईं, परंतु अमेरिका के राजनीतिक इतिहास और स्त्री-मुक्ति के संघर्ष में उनका योगदान अतुल्य है।

अमेरिका का राष्ट्रपति पद पुरुषों का एकाधिकार है, वहाँ स्त्रियों का क्या काम? पुरुष-वर्चस्व की इस धारणा को पहला धक्का दिया विक्टोरिया वुडहल नामक बगावती महिला ने। वे अपने द्वारा ही स्थापित ‘ईक्वल राइट्स पार्टी’ की ओर से 1872 में राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ीं। उसके करीब 68 वर्ष बाद 1940 में ग्रेसी एलन चुनाव मैदान में उतरीं। उनकी पार्टी का नाम था ‘सरप्राइज पार्टी’। उनकी पार्टी के नाम की तरह ही उनकी उम्मीदवारी भी चकित करने वाली थी। क्योंकि, ग्रेसी इस चुनाव के प्रति गंभीर नहीं थीं, वह तो केवल स्टंटबाजी करना चाहती थीं। यह रहस्य बाद में खुल गया कि रेडियो पर अपने ‘शो’ की चर्चा चलाने के लिए उसने यह सारा स्वांग रचा था। बाद में 1972 में डेमोक्रेटिक पाटीं की शिरेल शिशॉय ने भी प्रयास किया। महिलाओं को समान हक और आर्थिक न्याय की माँग को लेकर वे अमेरिकी राष्ट्रपति पद की स्पर्धा में उतरीं। लेकिन उन्हें महज 152 वोट ही मिले। शिरेल का सपना जिस वर्ष टूटा उसी वर्ष और एक महिला ने राष्ट्रपति चुनाव की जद्दोजहद में अपने को झोंक दिया था। लिंडा जेनेस उसका नाम है। अमेरिका में रिपब्लिकन एवं डेमोक्रेट ये दो पार्टियाँ भले ही दिखाई दें, परंतु अन्य छोटी-छोटी पार्टियां भी अस्तित्व में हैं। इसलिए लिंडा की उपस्थिति को किसी ने विशेष महत्व नहीं दिया। एक छोटी पार्टी- सोशलिस्ट वर्कर्स पार्टी की ओर से लिंडा स्त्री-मुक्ति के समर्थन और वियतनाम युद्ध के विरोध में मैदान में उतरीं, परंतु हार गईं।

राजनीति पुरुषों का क्षेत्र होने की धारणा को धक्का देने वाली एक और महिला थीं जील स्टेन। पर्यावरण, स्वास्थ्य के क्षेत्र में कार्यरत इस महिला ने 2012 में ग्रीन पार्टी की ओर से बराक ओबामा के विरुद्ध चुनाव लड़ा। छठी हैं हिलरी क्लिंटन। हिलरी और ट्रम्प को प्राप्त मतों की तुलना करें तो ‘जेंडर गैप’ 25% है। अर्थात, हिलरी को मतदान करने वाली महिलाओं एवं ट्रम्प को मतदान करने वाले पुरुषों में 25% का अंतर है। ‘जेंडर गैप’ का अर्थ है विजयी और पराजित उम्मीदवारों का समर्थन करने वाले पुरुषों एवं महिलाओं में अंतर का प्रतिशत।

इन छहों महिलाओं में से पहली उम्मीदवार विक्टोरिया लुडहल का जीने का संघर्ष, पारिवारिक जीवन, राजनीति में नाम कमाने की आकांक्षा का विवरण विलक्षण है। अपराधी पृष्ठभूमि वाले पिता, अधूरी शिक्षा, पंद्रहवें वर्ष में विवाह, शराबी पति से जन्मे मनोरुग्ण बच्चे जैसे शारीरिक व मानसिक कष्ट उसे सहने पड़े, लेकिन वह टूटी नहीं; मजबूती से बनी रहीं। शेयर के कारोबार के जरिए उसने अपनी माली हालत की ओर ध्यान दिया। जीने की इस जद्दोजहद के दौरान भी उसकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा भी प्रबल रही। महिलाओं को समान अधिकार दिलाने का उसका संघर्ष चलता रहा। उसने बीमारी की हालत में भी चुनाव लड़ा। विक्टोरिया को तत्कालीन एक मंत्री का लफड़ा अखबारों में छपवाने के आरोप में जेल में ठूंस दिया गया। वह अपने लिए तक अपना वोट नहीं दे सकीं; क्योंकि तब महिलाओं को मतदान का अधिकार ही नहीं था। इस चुनाव के 50 वर्ष बाद महिलाओं को मतदान का अधिकार प्राप्त हुआ। आज अमेरिकी महिलाएं उत्स्फूर्त रूप से चुनाव में भाग ले रही हैं, राष्ट्रपति पद पाने के सपने देख रही हैं; लेकिन विक्टोरिया वुडहल ने 136 वर्ष पूर्व जो साहस किया था, यह नहीं भूलना चाहिए।

अमेरिकी नागरिकों का अमेरिका पर प्रचंड प्रेम है। उनकी राय है कि अमेरिका दुनिया में अन्य राष्ट्रों की अपेक्षा अलग किस्म की महाशक्ति है। अमेरिकी तौरतरीके वाकई अलग हैं। विश्व में अन्य कोई भी देश उसकी बराबरी नहीं कर सकता। महिला स्वतंत्रता, उनके अधिकारों, उनके प्रति बर्तावों के बारे अमेरिका पूरी दुनिया को सीख देती रहती है; लेकिन जब-जब कोई महिला राष्ट्रपति बनने की कोशिश करती है तब-तब अमेरिका का बर्ताव विपरीत ही होता है। अमेरिका में सरकार का प्रतिनिधित्व करने वाली महिलाओं की संख्या का विचार करें तो इस महासत्ता का स्थान विश्व में 97वां है। 19 प्रतिशत सरकारी पदों पर ही महिलाएं अब तक पहुंच सकी हैं। आश्चर्य की बात यह कि अमेरिका ने राष्ट्रपति बनने का आज तक किसी महिला को अवसर नहीं दिया है। विशेष यह कि पुरुषों का चयन करते समय पुरुषों के सुप्त गुणों को प्राथमिकता दी जाती है। इसके विपरीत महिलाओं को ठोस योगदान दिखाने का आग्रह किया जाता है। फिर भी, हिलरी क्लिंटन इस स्पर्धा में उतरीं। अंत तक कड़ी टक्कर दी। यह जुझारूपन भविष्य में व्हाईट हाऊस के सिंहासन तक महिलाओं के पहुंचने का मार्ग अवश्य प्रशस्त करेगा, इसमें संदेह नहीं है।
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अमोल पेडणेकर

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