अमेरिकी परिवर्तन और विश्व

डोनाल्ड ट्रम्प के अमेरिकी राष्ट्रपति बनने के बाद वहां ‘अमेरिका प्रथम’ की नीति लागू हो रही है। अमेरिका विश्व की नहीं, पहले अपनी चिंता करना चाहता है। यह परिवर्तन अरब देशों में हुए ‘अरब स्प्रिंग’ जैसा तात्कालिक रहने के आसार नहीं हैं। दो-तीन वर्षों में विश्व का भूगोल नहीं बदलेगा; परंतु अनेक देशों को राजनीतिक, सामाजिक एवं आर्थिक भूकंप के झटके लगेंगे, इतना सामर्थ्य तो इस परिवर्तन में अवश्य है।

हां, अमेरिका दो भागों में विभक्त हो गया है। राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और वंशानुसार अमेरिका आज खंड़ित हो गया है। अमेरिका के पैतालीसवें राष्ट्रपति के रूप में डोनाल्ड ट्रंप की जीत हुई है। कुछ लोग अमेरिका के इस विभाजन के लिए डोनाल्ड ट्रंप को जिम्मेदार मानते हैं। उनके चुनाव के बाद ही इंडिपेन्डेड नामक समाचार पत्र में एडम विथनाल लिखते हैं, “डोनाल्ड ट्रंप की जीत से विश्व सकते में है और इस विजय का विभिन्न राष्ट्र अपने-अपने हितों के हिसाब से अर्थ ढूंढ़ रहे हैं। 20 जनवरी 2017 को ट्रंप ने राष्ट्रपति पद की शपथ ग्रहण की उस पर एक टिप्पणी यह आई कि ट्रंप का भाषण निराशाजनक एवं अमेरिका संकट में है यह बताने वाला था। फासिस्ट भाषा में दिया गया यह भाषण था।

यह पहले समझाना आवश्यक है कि अमेरिका का यह विभाजन डोनाल्ड ट्रंप ने नहीं किया। लोकतांत्रिक तरीके से उनका चुनाव हुआ है। चुनाव के समय उन्होंने यह स्पष्ट रूप से बताया था कि वे कौन हैं और क्या करने वाले हैं। उन्होंने कहा था कि बाकी विश्व का विचार न करते हुए हमें पहले अमेरिका का विचार करना चाहिए। सर्वप्रथम अमेरिकी नौजवानों को रोजगार मिलना चाहिए। अमेरिका एशिया, मुस्लिम देशों, और मेक्सिको के लोगों को रोजगार देने के लिए नहीं है। मेक्सिको से दस लाख से आधिक प्लॅटिको और हिस्पॉनिक लोगों ने अमेरिका में घुसपैठ की है। इन सबको ट्रंप अमेरिका से बाहर करना चाहते हैं। वे सीमा पर ऊंची दीवार भी खड़ी करना चाहते हैं और उसका खर्च मेक्सिको से वसूल करना चाहते हैं। उनके कुछ अन्य विचार इस प्रकार हैं-मध्यपूर्व के मुस्लिम देशों से मुसलमान अमेरिका में आते हैं, वे हमारी सुरक्षा को खतरा पैदा करते हं।ै उनका प्रवेश ट्रंप बंद करना चाहते हैं। जापान की सुरक्षा की चिंता अमेरिका क्यों करें? जापान अपनी रक्षा स्वयं करें। चीन अमेरिका व्यापार में अमेरिका को घाटा होता है इसलिए चीन के साथ होने वाले व्यापार पर कर के आकार को घटाने की बात ट्रंप कर रहे हैं।

इस प्रकार के उनके विचार लोगों को विचित्र लगे। यह एक सिरफिरा व्यक्ति है ऐसा अपप्रचार उनके विरुद्ध किया गया। यह यदि राष्ट्रपति हो गया तो अमेरिका के साथ साथ विश्व भी संकट में पड़ जाएगा। नरेंद्र मोदी के विरुद्ध प्रचार का तो निम्नतम स्तर हमारे यहां के समाचारपत्रों में हुआ था। वैसा ही स्तर अमेरिका के समाचार पत्रों का भी था। ‘मोदी जीतते हैं तो मैं देश छोड़ दूंगा’ जैसी धमकी स्वत: को देश से बड़ा समझने वाले कुछ लोगों ने हमारे यहां दी थी। उसमें से एक दो लोग मोदी की जीत के धक्के से मर गए और कुछ लोग घर बैठ गए। ट्रंप जीत कर आए तो अमेरिका छोड़ देंगे ऐसा किसी ने कहा हो यह मेरे ध्यान में या पढ़ने में नहीं आया।

हम अमेरिका चलाते हैं, हम विश्व चलाते हैं इस मुगालते में रहने वाले लोगों को अमेरिकी मतदाताओं से अच्छा पाठ पढ़ाया गया है। ट्रंप की जीत का आघात स्वत: के अहंकार में जीने वालों को सहन नहीं हुआ। उनकी जीत के विरोध में न्यूयॉर्क एवं अन्य बड़े शहरों में प्रदर्शन हुए। यह हमारा राष्ट्रपति नहीं, हम उसको नहीं मानते इस प्रकार की घोषणाओं इन प्रदर्शनों में दी गईं। लोकतांत्रिक मूल्यों का वे अपमान कर रहे हैं, यह उन अतिबुद्धिमान लोगों की समझ में नहीं आया। अमेरिका में विभाजन हो गया है यह केवल विश्व के सामने आया। शहर एवं गांव में रहने वाले लोगों के बीच बहुत अंतर हो गया है ऐसा ध्यान में आया।

जॉन लेवीस नामक एक कांग्रेसमैन है। कांग्रेसमैन याने अमेरिका में सांसद। वे कहते हैं, “मैं डोनाल्ड ट्रंप के शपथ ग्रहण समारोह से अनुपस्थित रहा क्योंकि मैं उन्हें अमेरिका का वैधानिक राष्ट्रपति नहीं मानता।” इस पर टिप्पणी करते हुए अमेरिकी पत्रकार कहता है, “ऐसा वक्तव्य हमारे देश की दृष्टि से नुकसानदायक है और वह देश के लिए विनाशकारी है। हमें जो व्यक्ति नापसंद है वह यदि देश के उच्च पद पर पंहुचता है तो मैं उसको मान्यता नहीं देता, इस प्रकार की सोच देश को संकट में डालने वाली है। अमेरिका में शहरी एवं ग्रामीण विभाजन कैसे हुआ यह बताने वाला डेव्हिड उबेरही का एक लेख है। उसमें उन्होंने जूली गोलिस नामक युवती का किस्सा दिया है। चुनाव परिणाम के बाद वह शहर के एक कॉफी हाउस में बैठी थी। चुनाव परिणाम उसके लिए आघात पहुंचाने वाला था। “मैं आत्मपरीक्षण कर रही थी। मैं शहरवासी हूं। इसके बाहर जो लोग रहते हैं उनको समझने में मैंने क्या गलती की? यह विचार मेरे मन में था।”

अमेरिका में परंपरा से शहरी मतदाता डेमोक्ररिक पार्टी एवं ग्रामीण मतदाता रिपब्लिकन पार्टी का समर्थक रहा है। शहरी मतदाताओं ने डोनाल्ड ट्रंप को नकार दिया जबकि ग्रामीण मतदाताओं ने उन्हें स्वीकार किया। न्यूयॉर्क शहर के पूर्व महापौरों ने सिटीज फॉर एक्शन नामक ग्रुप तैयार कर विदेशों से निर्वासित लोगों के लिए आंदोलन शुरू किया। ट्रंप इन लोगों के अमेरिका में स्थलांतरित होने पर प्रतिबंध लगाना चाहते हैं। न्यूयॉर्क शहर के लोगों ने अंतरराष्ट्रीय दिवस पर एक बड़ा मोर्चा निकाला। हिलेरी क्लीटंन को निर्वासित शहरी भाग से बड़े पैमाने पर वोट मिले परंतु ग्रामीण क्षेत्र से इतने मत नहीं मिले ताकि वे जीत सके। इस प्रकार अमेरिका का शहरी एवं ग्रामीण विभाजन प्रमुखता से सामने आया। अमेरिका के राष्ट्रनिर्माताओं में थॉमस जेफरसन की गिनती होती है। उन्होंने कहा था, “अमेरिकी लोकतंत्र कृषि लोकतंत्र होगा। यूरोप में जिस तरह प्रचंड भीड़भरे शहर बन गए हैं, वे भ्रष्ट हो जाते हैं।” अमेरिका के बड़े-बड़े शहर उद्योग नगर हो गए हैं और वहां काले लोगों की झुग्गियां खड़ी हो गई हैं। अमेरिका की समृद्धि का हिस्सा उन तक नहीं पहुंचा है।

डोनाल्ड ट्रंप ने सत्ता सम्हालते ही अध्यादेश के माध्यम से मध्यपूर्व के कुछ मुस्लिम देशों के मुसलमानों पर अमेरिका प्रवेश पर बंदी लगाई। ईरान, जॉर्डन, सीरिया इ. देशों का उसमें समावेश है। इन प्रतिबंधों के लागू होने के बाद एक ईरानी वैज्ञानिक समीरा असगारी ने अपना अनुभव इस तरह बयां किया, “फ्रेंकफर्ट से बोस्टन की यात्रा पर वह निकली थी। महिलाओं के एक अस्पताल में उन्हें टीबी पर अनुसंधान करना था। उसे विमान में प्रवेश नहीं करने दिया गया। उसे बताया गया कि राष्ट्रपति के नए आदेश के बाद उसका वीजा अब वैध नहीं रहा।” इस पर उसने कहा, “ मुझे बहुत दु:ख हुआ। मुझसे भेदभाव किया गया। ईरान में अमेरिका के विषय में ऐसी समझ है कि अमेरिका स्वप्नभूमि है, मेरे कल्पना की अमेरिका यह नहीं है।” जिसके पास ग्रीन कार्ड हैं, उन पर बंधन नहीं, परंतु जिनके पास थोड़े समय का वीजा है वे सब संकट में हैं।

ट्रंप के आदेश पर अमेरिका में चर्चाओं का दौर जारी है। कुछ लोगों के अनुसार यह आदेश अमेरिकी मूल्यों के विरुद्ध है। अमेरिका में धार्मिक स्वतंत्रता है। किसी एक धर्म के लोगों को इस प्रकार लक्ष्य करना गलत है। राष्ट्रपति का यह आदेश बिना तैयारी के जारी किया गया है। शिकागो के कार्डिनल के अनुसार “यह अमेरिका के इतिहास का काला दिन है। जिन देशों में अन्याय, अत्याचार, हिंसाचार होता है या लोगों को बिना कारण तकलीफ दी जाती है, उस समय ऐसे लोग अमेरिका में आश्रय लेने हेतु आते हैं। उनको पनाह देना, यह हमारी संस्कृति है, अमेरिकी मूल्यों को छोड़ देना ठीक नहीं है। सम्पूर्ण विश्व हमारी ओर देख रहा है। इस आदेश ने हमारी जीवन पद्धति पर वार किया है। विश्व में हमारी जो धार्मिक स्वतंत्रता एवं मानव अधिकार के रक्षक की जो प्रतिमा है उसे धक्का लगा है। धामिर्र्क गुटों को लक्ष्य कर उस पर प्रतिबंध लगाना यह हमारी परंपरा नहीं है।

अमेरिका को यूरोप के झगड़े में नहीं पड़ना चाहिए, यह मत सन 1920 के आसपास अमेरिका में बहुत प्रबल था। दूसरे महायुद्ध में अमेरिका को भाग लेना पड़ा। उसके बाद अमेरिका याने मानव अधिकार, स्वतंत्रता एवं लोकतंत्र की रक्षक के रूप में जानी जाने लगी। रोनाल्ड रीगन (अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति) ने एक बार कहा था, “अमेरिका क्या है, तो मानवता का रक्षण करने वाले ऊंचे पर्वत पर का एक शहर है।” आलोचकों का मत है कि ट्रंप के सामने अमेरिका का ऐसा आदर्शवादी चित्र नहीं है। ट्रंप को उसकी परवाह भी नहीं है। उनकी आंखों के सामने सिर्फ अमेरिका है। अमेरिका प्रथम यह उनका मंत्र है।

गत कुछ वर्षों से एक वाक्य हम बार-बार सुनते आ रहे हैं कि विश्व अब एक विशाल गांव में परिवर्तित हो गया है। प्रोद्यौगिकी के विकास के कारण राज्यों की सीमाएं नक्शे पर होने के बावजूद धुंधली हो गई हैं। वैश्विक व्यापार में भी अब बहुत ज्यादा बढ़ोतरी हो गई है। जंहा सस्ता श्रम उपलब्ध वहीं कारखाने लगा रहे हैं। एशिया के देशों एवं चीन में बड़े पैमाने पर विदेशी पूंजी आती है। विश्व भले ही ग्राम हो गया हो फिर भी उसका नेतृत्व अभी अमेरिका का रहा है। ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद विश्व सम्बंधों पर उसका क्या प्रमाव होगा इसकी चर्चा प्रारंभ है। दक्षिण एशिया, चीन, यूरोप और महत्वपूर्ण इन चार भागों का विचार करते हुए इन चारों पर ही अमेरिकी नीतियों का गंभीर परिणाम होगा। एशिया का विचार करते समय ट्रंप ने रोजगार अमेरिका में लाने की प्रतिज्ञा की है। इसका अर्थ एशिया में पूंजी निवेश पर नियम कड़े किए जाएंगे एवं अमेरिका में पूंजी लगाने पर जोर दिया जाएगा। चीन से आने वाले माल पर बड़े पैमाने पर आयात शुल्क लगाया जाएगा। चीन यह सहन भी नहीं करेगा एवं इसके कारण भविष्य में चीन और अमेरिका में व्यापार के मुद्दे पर संघर्ष होता रहेगा। पहले दो महायुद्ध व्यापार के प्रमुख मुद्दे पर ही केंद्रित थे, यहां यह बात ध्यान रखने योग्य है।
आजतक अमेरिका की यूरोप में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका थी। अमेरिका उस भूमिका से बाहर आना चाहता है। इस विचार से यूरोपियन यूनियन के देश चिंतित हैं। ब्रिटेन यूरोपीय यूनियन से बाहर हो ही गया है। ट्रंप को मुक्त व्यापार की संकल्पना मान्य नहीं है। जर्मन माल पर भी बड़ा आयात शुल्क लगाने का विचार है। मेक्सिको अमेरिका का पड़ोसी देश है। इसकी सीमा पर एक बड़ी दीवार बांधने का ट्रंप का विचार है। इसका खर्च वे मक्सिको से वसूल करने वाले हैं। मेक्सिको से अमेरिका के व्यापारिक समझौतें हैं। उनसे ट्रंप बाहर निकलना चाहते हैं। यदि ऐसा हुआ तो मेक्सिको का निर्यात उद्योग संकट में पड़ जाएगा। दीवार का खर्च न देने की घोषणा मेक्सिको पहले ही कर चुका है। ऐसे में अमेरिकी बलप्रयोग की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता।

मध्यपूर्व के अनेक देशों में अमेरिकी हितसम्बंध है। मुसलमानों की प्रवेश बंदी के कारण ट्रंप ने मध्यपूर्व के देशों की नाराजी ओढ़ ली है। इसिस को नेस्तनाबूत करने का उनका संकल्प है। रूस से हाथ मिला कर के यह काम पूरा करेंगे। इजराईल एवं फिलीस्तीन के विवाद में अमेरिका नहीं पड़ेगा ऐसा ट्रंप ने निश्चित किया है। अर्थात फिलीस्तीनी लोगों को निराधार छोड़ने का विषय है। अमेरिका में कांग्रेस एवं सीनेट नामक संसद के दो सदन हैं। इन दोनों में ट्रंप की पार्टी को बहुमत है। इसका अर्थ राष्ट्रपति के रूप में ट्रंप के पास अमर्यादित सत्ता आ गई है।

स्थलांतरित लोगों पर प्रतिबंध की ट्रंप नीति का नुकसान भारतीय विद्यार्थियों को होने वाला है। अमेरिका में इस समय 165918 भारतीय विद्यार्थी हैं। ये विद्यार्थी प्रमुखत: उच्च शिक्षा हेतु वहां गए हैं। इस पर बंधन लगाने का विचार ट्रंप का है। विद्यार्थियों के लिए जो वीजा दिया जाता है। उसे (क1इ)एच वन बी कहते हैं। इस वीजा के मिलने के बाद विद्यार्थी अपना अध्ययन पूर्ण कर वहां आगे बीस वर्ष तक नौकरी कर सकता है। अच्छे विश्वविद्यालय में पढ़ाई पूर्ण करने वाले को वार्षिक नब्बे हजार डॉलर की नौकरी मिलती है। इन सब पर प्रतिबंध लग सकता है। जो विद्यार्थी कर्ज लेकर अमेरिका में पढ़ाई हेतु गए हैं, वे अब चिंता में हैं। यदि उन्हें पढ़ाई अधूरी छोड़ कर आना पड़ा तो क्या होगा? ऐसा प्रश्न उनके सामने है।

कुल मिलाकर ट्रंप की विजय से अमेरिका में विभाजन हो गया है। विश्व भी कल क्या होगा इस संभ्रम में है। 1990 में रूस के विभाजन के बाद वह विश्व राजनीति से बाहर हो गया। 1990 से 2016 तक अमेरिका का ही विश्व में बोलबाला रहा है। उसके उलटे-सीधे परिणाम अमेरिका पर हुए हैं। अमेरिका में बेरोजगारी बढ़ी, आर्थिक प्रगति की गति मंद हुई, कुछ मुट्ठीभर लोग अधिक धनवान हो गए, मध्यमवर्गीय व्यक्ति आर्थिक दृष्टि से बहुत प्रगति नहीं कर पाए। महंगाई एवं वेतन की स्पर्धा शुरू हो गई। महंगाई के मुकाबले वेतन का मूल्य नीचे जाने लगा, अमेरिकी पूंजी बाहर जाने से पूंजीपति और धनवान होने लगे परंतु अमेरिकी नौजवान बेरोजगार हो गया। 2011 में अरब देशों में वहां की राजसत्ता एवं प्रस्थापित लोगों के विरुद्ध नौजवानों ने विद्रोह किया। उसे ‘अरब स्प्रिंग’ कहते हैं। अमेरिका में भी 2016 में नई पीढ़ी ने सभी प्रस्थापितों के खिलाफ लोकतांत्रिक तरीके से विद्रोह किया है। अरब देशों का विद्रोह “चाय की प्याली में तूफान” साबित हुआ। अमेरिका का यह परिवर्तन वैसा रहने के आसार नहीं है। दो-तीन वर्षों में विश्व का भूगोल नहीं बदलेगा परंतु अनेक देशों को राजनीतिक, सामाजिक एवं आर्थिक भूकंप के झटके लगेंगे, इतना सामर्थ्य तो इस परिवर्तन में अवश्य है।

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