२०२२ तक किसानों की आय दुगुनी

२०२२ तक किसानों की आय दो गुना करने के लिए उत्पादन के बजाय खपत पर ध्यान देना होगा| इसके लिए ढांचागत सुधारों और देश-विदेश में आक्रामक विपणन पर ध्यान देने की जरूरत है| कृषि को भारतीय अर्थव्यवस्था का मजबूत आधार बनाने के लिए आवश्यक है कि आयात को कम किया जाए तथा निर्यात बढाया जाए|

इसे संभव बनाने के लिए, उत्पादन के बजाय खपत पर ध्यान दिया जाना चाहिए| भारत भर में ‘२०२२ तक किसानों की आय को दुगुना करने’ की खूब चर्चा हो रही है| हमारे प्रधानमंत्री नीतिगत स्तर पर काफी उद्देश्यपूर्ण चर्चा करवाने में सफल रहे हैं| कुछ लोग इसे लेकर साशंक हैं| लेकिन हमें आशा है और खूब आत्मविश्‍वास है कि २०२२ तक किसानों की आमदनी को दुगुना करने का लक्ष्य प्राप्त करने योग्य है|

 अर्थव्यवस्था में कृषि का महत्व

यह विशालतम प्रायवेट सेक्टर है और बहुसंख्य भारतियों के लिए आजीविका का मुख्य स्रोत है| संपूर्ण जीडीपी में इसका योगदान इसकी अगली और पिछली श्रृंखलाओं के कारण उसकी वास्तविक हिस्सेदारी (१७.४५% वि.व. २०१६) से भी अधिक होता है|

सेवा और औद्योगिक क्षेत्र आर्थिक वृद्धि के इंजन हैं, लेकिन इन इंजनों को बल देने वाला ईंधन कृषि से ही आता है| इसीलिए जब कृषि को छींक भी आती है तो सारी अर्थव्यवस्था को सर्दी लग जाती है|

 जनसंख्या की अप-वृद्धि का युग

बहुत ही कम लोग इस तथ्य से परिचित हैं कि जनसंख्या पहले ही अपने शिखर को पार कर चुकी है| निम्न तालिका आंकड़ों के सहारे इस तथ्य को स्थापित करती है कि पिछले ६ दशकों में जहां जनसंख्या करीब ३००% से बढ़ी है, वहीं अगले दशक में यह वृद्धि १/१० और उससे भी कम हो जाएगी|

 विश्‍व की जनसंख्या (मिलियन)

विवरण १९५० २०१३ २०५०(अपे.) २१०० (अपे.)

 जनसंख्या   २५१९   ७१६२   ९५५०   १०८५३

 वृद्धि    –  २८५%  ३३%   ११%

 भारत की जनसंख्या (मिलियन)

विवरण १९५० २०१३ २०५०(अपे.) २१०० (अपे.)

 जनसंख्या   ३७६   १२५२   १६२०   १५४७

 वृद्धि    –  ३३३%  २९%   -४.५%

स्रोत : यूएन पॉपुलेशन डाटा

भारत के कृषि उत्पादन ने शीर्ष जनसंख्या के युग के दौरान की जनसंख्या वृद्धि को पीछे छोड़ दिया है| जनसंख्या १००% से बढ़ी है जब कि कृषि उत्पादन में १३६८%, १४ गुना से अधिक की वृद्धि हुई है| भारत की खाद्य सुरक्षा को बिलकुल खतरा नहीं है; क्योंकि हम जनसंख्या से ऊपर जाकर अन्न उत्पादन को बरकरार रखने की तकनीक पर पहले ही प्रभुत्व हासिल कर चुके हैं|

 आहारगत तरीके में बदलाव

शहरीकरण, बढ़ती आय, बेहतर रहन-सहन, और वैश्‍वीकरण इ. परिवार की खानपान की आदतों को काफी प्रभावित करते हैं| खरीदने की बढ़ती शक्ति ने दुग्ध उत्पादों, सब्जियों, फलों, अंडों, मछली और मांस की खपत को तेज कर दिया है जब कि प्रमुख अनाजों में कमी आई है| भारत का आहार अब दूध और सब्जी वाला अधिक हो चुका है और यह ऐसे ही रहेगा| यह दुनिया में सबसे अनोखा है|

 कृषि अर्थव्यवस्था:

कृषि बाजार अपने आप में चढ़ाव-उतार से भरा होता है| आपूर्ति में थोड़ी सी कमी भी कीमतों को काफी बढ़ा देती है और थोड़ी सी अधिकता भी कीमतों में भारी कमी ला देती है| इसके विपरीत खाद्य का उपभोग काफी हद तक कीमतों के प्रति उदासीन होता है| अल्प अवधि में कम कीमतों के कारण खपत में बढ़ोत्तरी नहीं होती और कीमतों के बढ़ने के कारण खपत में कमी नहीं होती| हाल का उदाहरण: अरहर दाल २०१६ की तुलना में अभी ५०% सस्ती है, पर क्या हमारी खपत दुगनी हुई है?

 विपुलता की समस्या:

कृषि में, बढ़ते प्रतिफलों के नियम की तुलना में घटते प्रतिफलों का नियम अधिक काम करता है| उत्पादन ने प्रमुख खाद्यान्नों और सब्जियों की खपत को पीछे छोड चुका है| रेकॉर्ड उत्पादन, घटा हुआ निर्यात और विपुल मात्रा में आयातित विकल्पों के कारण ऊंचा भंडारण हुआ है जिसके चलते कई कृषि वस्तुओं में किसानों के लिए अलाभकारी कीमतें मिली हैं| खपत में बढोतरी नहीं होने के कारण किसान जितना अधिक पैदा करते हैं उतना ही कम कमाते हैं|

इस तरह से कृषि कर्ज को माफ करना और एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) बढ़ाने से लंबी अवधि के लिए समाधान नहीं मिलेगा| ‘विपुलता की समस्या’ का समाधान है ‘सशक्त खपत और मांग’ निर्मित करना| व्यापार से खपत होती है, खपत से अर्थव्यवस्था बढ़ती है- जिसमें कृषि अर्थव्यवस्था शामिल है और इसीलिए ध्यान (उत्पादन से हटाकर) व्यापार पर केंद्रित किया जाना चाहिए|

भारत को कृषि वृद्धि को गति देने के लिए समान राह अपनानी चाहिए| कृषि को ‘निर्यात केंद्रित क्षेत्र’ के रूप में मान्यता दी जानी चाहिए| हमारे दूतावास निश्‍चित वार्षिक निर्यात के लक्ष्यों के साथ ‘कृषि व्यापार के राजदूत’ होने चाहिए|

 भारत का कृषि व्यापार:

भारत कृषि उत्पादन में दुनिया में दूसरे क्रमांक पर है जब कि दुनिया के कृषि संबंधी निर्यात में यह आठवें क्रमांक पर है| पिछले ३ वर्षों में, निर्यातों में गिरावट देखी जा रही है जब कि आयात में बढ़ने का रुझान है| कृषि व्यापार का सरप्लस २०१४ से २०१६ में ६३% कम हुआ है| विशिष्ट जिन्सों का व्यापार घाटा घटना निर्यातों और आयातों में संतुलन के लिए समय की मांग है जिसके लिए सटीक नियोजन करने और संवाद करने की जरूरत होती है|

ब्रांडिंग और पोजिशनिंग:

अन्य देश बड़ी ही आक्रामकता से अपने कृषि निर्यातों को बढ़ावा देते हैं| हमें दुनिया भर में अपने उत्पादों के लिए समुचित बाजार प्रदान करने के लिए अपने प्रयासों को गति देने की जरूरत है|

 कृषि: पूर्वानुमान और चेतावनी

कृषि बाजार परिवर्तनशील है| इसमें पूर्वानुमान करना जरूरी होता है क्योंकि रूझान पर निगरानी नियमित पूर्वानुमान के चलते कृषि उत्पादन की योजना बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है| यूएसए और कनाडा कृषि संबंधी पूर्वानुमानों को जारी करके अपने किसानों की सहायता करते हैं| इस तरह की भविष्यवाणी/चेतावनी भारत में होती ही नहीं| इसमें बदलाव आना चाहिए, ताकि किसान पूरी जानकारी के साथ फैसले कर सकें|

 हाल के उदाहरण

 यूएसए

वित्त वर्ष २०१७ में, चीन को होने वाला निर्यात २२.३ बिलियन डॉलर तक होने का अनुमान है, जो २०१६ से ३ बिलियन अधिक है| कनाडा और मेक्सिको को होने वाला निर्यात भी बढ़ने का अनुमान है| कुल मिलाकर, यू.एस. कृषि निर्यात वित्त वर्ष २०१७ में १३६ बिलियन डॉलर रहने का अनुमान है|

अनुमान है कि भारत दुनिया की सबसे तेजी से विकास करने वाली अर्थव्यवस्था है| अगले दशक में धीमी जनसंख्या वृद्धि, ऊंची आय, साथ ही शहरीकरण, अधिक विविधतापूर्ण आहारों के लिए मांग को सशक्त कर रही हैं, जिसमें अधिक पलों, सब्जियों, खाद्य तेलों, दालों और पशु उत्पादों का समावेश है|

 कनाडा

सोयाबीन २०१७ में निर्यात रेकॉर्ड ४.४ मिलियन टन तक पहुंचा है| सूखी मटर की कीमतों के घटने की अपेक्षा है| मटर के निर्यात में तेज गिरावट होने की अपेक्षा है|

अन्न की कीमतें: विश्‍व बनाम भारत

भारतीय खाद्यान्नों की कीमतें दुनिया भर में प्रतिस्पर्धा के लिए सक्षम हैं| यह तुलनात्मक लाभ दुनिया भर में बाजार में प्रभुत्व का संकेत देता है लेकिन सच्चाई कुछ अलग ही है| भारतीय खाद्यान्नों के लिए वैश्‍विक पहुंच को बढ़ाने के लिए आक्रामक प्रयास किए जाने की जरूरत है|

 लक्ष्य

२०२२ तक कृषि से किसानों की आय को दुगुना करने की दृष्टि से भारत का ध्यान निम्नलिखित तीन बातों पर होना चाहिए-

१. अपने कृषि उत्पादन को खपत केंद्रित करना|

 २. भारत में और बाहर विपणन पर ध्यान केंद्रित करना|

 ३. जरूरत: ढांचागत सुविधाओं में विशाल निवेश करना|

खपत पर ध्यान दिया जाना चाहिए|

 

 

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