पुनरुत्थान की यशोगाथा

३१ अगस्त २०११ का दिन जनता सहकारी बैंक के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में लिखा जाएगा| १४ वर्षों के अविरत संघर्ष के बाद ३१ मार्च २०११ को समाप्त वित्त वर्ष में संचित हानि रु. १२५ करोड़ समाप्त होकर बैंक ने लाभ प्राप्त किया एवं लाभांश घोषित किया| संचालक मंडल के अध्यक्ष के रूप में कार्यरत श्री अरविंद केशव खलदकर ने श्री विजय भावे, श्री सदानंद जोशी, श्री सदानंद भागवत, एवं श्री जयंत काकतकर आदि के सहयोग से यह उपलब्धि प्राप्त की|

किसी  भी संस्था के निर्माण के पीछे कोई ना

कोई  कारण, उद्देश्य अवश्य होता है| कोई भी संस्था इसकी अपवाद नहीं है| १८ अक्टूबर १९४९ को रजिस्टर्ड हुए ‘जनता सहकारी बैंक’ की स्थापना के पीछे भी ऐसा ही उद्देश्य था| १५ अगस्त १९४७ को भारत के स्वतंत्र होने के बाद ३० जनवरी १९४८ को महात्मा गांधी की हत्या हुई| रा. स्व.संघ पर हत्या का झूठा आरोप लगा कर उसे प्रतिबंधित कर दिया गया एवं पूरे देश में उसके हजारों स्वयंसेवकों को जेल में डाल दिया गया| उनके परिवारों पर बड़ी विपदा आ गई| प्रतिबंध हटने के बाद जब वे जेल से मुक्त हुए तो जो नौकरी में थे उनकी नौकरी जा चुकी थी, जो अपना स्वयं का व्यवसाय करते थे वह बंद हो चुका था| ऐसे हजारों नौजवान परेशान थे कि अब क्या किया जाए? संवेदनशीलता का संस्कार पाए कार्यकर्ताओं के मन में बैचैनी थी| कुछ ना कुछ करना चाहिए, ऐसी इच्छा प्रत्येक के मन में थी| देश भक्त व समाजसेवा की तीव्र इच्छा रखने वाले एवं कार्य के लिए स्वार्थ त्याग करने वाले कर्तव्यनिष्ठ बेकार युवकों को कुछ ना कुछ आर्थिक मदद की जाए जिससे वे अपना एवं अपने परिवार का पेट  भर सके, इस दिशा में विचार प्रारंभ हुआ|

उसी समय श्री दत्तोपंत जमदग्नि पुणे आए थे| इससे पूर्व वे नंदुरबार में संघ के प्रचारक थे| नए होने के कारण उनका अधिक परिचय नहीं था; परंतु फिर भी सहकारी बैंक की स्थापना की जाए ऐसा उनका विचार था| उस समय के वहां के संघ प्रचारक श्री मोरोपंत पिंगले जी ने उनके इस विचार का समर्थन किया| किसी अर्बन को-आपरेटिव बैंक की स्थापना कर व्यवसाय करने योग्य तरुणों को छोटे-छोटे व्यवसाय प्रारंभ करने हेतु लघु स्तर के कर्ज दिए जाने का विचार प्रारंभ हुआ|

कहते हैं ना कि यदि कोई अच्छा काम करने की तीव्र इच्छा हो तो नियति भी उसके लिए अनुकूल परिस्थिति निर्माण करती है| सांगली के वकील श्री माधवराव गोडबोले को अर्बन को-आपरेटिव बैंक की स्थापना का अनुभव था| उन्होंने सन १९३१ में सांगली में मात्र रु.१०००/- की पूंजी एवं मुहुर्त में प्राप्त रु.२००/- की जमापूंजी के साथ बैंक प्रारंभ किया था| पुणे में जब श्री जमदग्निजी एवं उनके अन्य मित्र सहकारी बैंक स्थापना के बारे में विचार कर रहे थे तब उन्हें दैवी सहायता के समान श्री माधवराव गोडबोले का मार्गदर्शन प्राप्त हुआ| उन्होंने बैंक स्थापना के विषय में सारी कार्यविधि समझाई एवं प्रमोटर्स इ. के नाम निश्‍चित होने पर बैंक प्रारंभ करने हेतु सरकार से अनुमति हेतु आवेदन किया गया| ‘पुणे में इतने अधिक को-आपरेटिव बैंक होते हुए यह नया बैंक क्यों?’ इस आशय का प्रश्‍न डिप्टी रजिस्ट्रार द्वारा पूछने पर प्रमोटर्स ने अत्यंत संयमित एवं उचित उत्तर दिया| ‘सुशिक्षित परंतु बेकार मध्यमवर्गीय युवकों- लोगों की छोटे-छोटे कर्जों के माध्यम से मदद कर उन्हें अपने पांव पर खड़ा करना’ ऐसा प्रमोटर्स द्वारा कहे जाने पर पूछा गया कि क्या वर्तमान सहकारी बैंकों का कामकाज ठीक नहीं है? क्या उनसे यह अपेक्षा पूरी नहीं की जा सकती? इसका भी प्रमोटर्स ने विस्तार से उत्तर दिया| उन्होंने कहा कि अन्य बैंकों में ऋण के लिए जब तक किसी से सिफारिश न कराई जाए, गारंटी वगैरह न दी जाए तब तक ऋण नहीं मिलता| सुशिक्षित, ध्येयवादी और सच्ची समाज सेवा का व्रत लिए हुए इन लोगों के लिए यह संभव नहीं है| हमारा उद्देश्य है कि ‘प्रत्येक कर्ज लेने वाले की संपूर्ण जानकारी इकट्ठा कर वह कितना विश्‍वास करने योग्य है, क्या उद्योगधंधा करना चाहता है, उसके संबध में उसे क्या ज्ञान है, इसको निश्‍चित कर लेने पर यदि वह जमानत देने में असमर्थ है तो उसे उसकी व्यक्तिगत जमानत पर अल्पवधि ऋण देकर वह किस प्रकार कार्य करता है इसकी निगरानी कर उसे आगे और कर्ज देना, इस मार्ग से हम पुणे की जनता की समस्या का अल्पांश में ही क्यों न हो समाधान करने में सक्षम हो सकते हैं| पुणे में जो बैंक हैं वे बड़े कर्ज देते हैं परंतु सामान्य लोगों को रु.५००/- से रु.३०००/- तक कर्ज देने वाला बैंक नहीं है| यह बात शायद रजिस्ट्रर ऑफिस को जंच गई एवं उन्होंने रु. ३०००/- से अधिक कर्ज न देने की शर्त पर बैंक खोलने की अनुमति दे दी| एक दिसम्बर १९४९ से बैंक के प्रत्यक्ष कामकाज की शुरुआत हुई| जनता बैंक ने प्रारंभ से ही तय किया कि व्यापारिक बैंकों की कार्यपद्धति के अनुसार जमा -कर्ज का काम तो होगा ही परंतु चेक वसूली से लेकर हुंडी-बिल्टी खरीदने का काम भी बैंक करेगा| जनता बैंक सहकारी बैंक होते हुए भी व्यापारिक बैंक की कार्यपद्धति के अनुसार चलाया जाएगा| इस नीति का प्रत्यक्ष प्रमाण प्रथम वर्ष की रिपोर्ट ही है|

पहले ३०-३५ वर्षों की रिपोर्ट्स देखें तो ऐसा पता चलता है कि उस काल में बैंक व्यवस्थापन कर्ज वसूली के विषय में बहुत जागरुक था| दिया गया कर्ज डूबना नहीं चाहिए वरना उसकी वसूली किस प्रकार हो इसकी ओर व्यवस्थापन विशेष ध्यान देता था| परंतु सन १९८५ -८६ से इसमें ढिलाई आने लगी| ८५-८६ से ९५-९६ तक कर्ज वितरण में बहुत वृद्धि हुई परंतु वसूली न होने के कारण डूबत कर्ज कुल कर्ज का १७% के आसपास हो गया| अयोग्य कर्ज देना एवं वसूली में ढिलाई डूबत कर्ज के कारण हो सकते हैं| इसके कारण अनेक सहकारी बैंकों की दिक्कतों का सामना करना पड़ा| दुर्भाग्य से यह अभी भी जारी है|

परंतु जनता बैंक में गलत कर्ज देने का प्रकार अलग था| जनवरी ९३ में बैंक में आए एक कार्यकारी संचालक गुजरात के एक छोटे बैंक से आए थे| उन्होंने हुंडा-बिल्टी के विरुद्ध कर्ज देने का काम बड़ी तादाद में किया| इसमें आवश्यक सावधानी नहीं बरती गई| कोई भी आए, किसी भी बैंक पर हुंडी बिल्टी दे, रकम उठाए एवं चले जाए| ऐसा प्रकार आरंभ हुआ| कुछ फर्जी लेटर ऑफ के्रडिट भी जारी किए गए| १९८७-८८ से डुबत कर्ज पर प्रावधान (Provision) भी बढ़ाने पड़े| सन ८७-८८ में जो प्रावधान ३३ लाख रु था वह ९७-९८ में बढ़ कर ८१.५१ करोड़ रु. हो गया| इस कारण पहली बार सन १९९८ की बैलेंस शीट में प्रथम बार ७६ करोड़ का नुकसान दिखाना पड़ा| १९९७ के जनवरी माह में ही रिजर्व बैंक ने इस परिस्थिति की ओर बैंक का ध्यान आकर्षित किया था एवं अपनी नाराजगी प्रकट की थी| परंतु नवम्बर १९९६ में ही बैंक के नए संचालक मंडल ने कार्यभार संभाला था एवं कार्याध्यक्ष एक सेवानिवृत्त बैंकर थे यह ध्यान में रख कर रिजर्व बैंक ने बैंक को स्थिति सुधारने का और समय देने का निश्‍चय किया| परंतु नए कार्याध्यक्ष एक वर्ष के भीतर ही खराब स्वास्थ्य के कारण नौकरी छोड़ कर चले गए| बाद में स्टेट बैंक के एक सेवानिवृत्त उप महाव्यवस्थापक की नियुक्ति की गई| डूबत खातों में वसूली एवं उनकी पुनर्रचना के कारण अगले तीन वर्षों में संचित हानि रु.४२ करोड़ तक लाने में प्रबंधक को सफलता मिली परंतु पुनर्रचित खाते भी पुन: डूबत श्रेणी में जाने के कारण २००२-०३ में संचित हानि १२५ करोड़ रु. तक पहुंच गई| डूबत खातों का जो प्रतिशत सन २००१ में २८% तक आ गया था २००४ में पुन: ४९% हो गया| स्टेट बैंक से आए उप महाव्यवस्थापक उम्र के कारण २००२ में निवृत्त हुए तो उनके स्थान पर मुख्य कार्यकारी अधिकारी के रूप में प्रायवेट सेक्टर के वाणिज्यिक बैंक के एवं मध्यवयीन अधिकारी की नियुक्ति की गई| परंतु उनका व्यवहार ग्राहकों, कर्मचारियों तथा संचालक मंडल किसी के प्रति भी अच्छा नहीं था| उन्होंने तो संचालक मंडल में भी फूट डालने की कोशिश की| इसके कारण उन्हें जनवरी २००५ में कार्यमुक्त कर संचालक मंडल में से एक संचालक श्री विजय भावे को मुख्य कार्यकारी अधिकारी नियुक्त किया गया|

इसके परिणामस्वरूप जनवरी से मार्च २००५ के बीच कुल ९४ करोड़ रु. की वसूली हुई| इसमें नगद वसूली ६० करोड़ थी एवं बाकी ३४ करोड़ रु. की वसूली से कुछ अनुत्पादित खाते उत्पादक खातों में तब्दील हो गए| वसूली का यही प्रमाण अगले तीन वर्ष भी चालू रहा और क्रमशः ८४, ५६ एवं ६६ करोड़ की वसूली होकर अनुत्पादित खातों की संख्या में लक्षणीय कमी हुई|

३१ अगस्त २०११ का दिन जनता सहकारी बैंक के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में लिखा जाएगा| १४ वर्षों के अविरत संघर्ष के बाद ३१ मार्च २०११ को समाप्त वित्त वर्ष में संचित हानि रु. १२५ करोड़ समाप्त होकर बैंक ने लाभ प्राप्त किया एवं लाभांश घोषित किया| दिसंबर २००१ से जनता सहकारी बैंक के संचालक मंडल के अध्यक्ष के रूप में कार्यरत श्री अरविंद केशव खलदकर ने बैंक के कार्याध्यक्ष का कार्य उस समय ग्रहण किया था जब बैंक की स्थिति अनुत्पादित कर्जों के कारण खराब थी| आयकर विभाग से निवृत्त श्री खलदकर को बैंक के विषय एवं बैंकिग के संबध में विशेष ज्ञान नहीं था| फिर भी उन्होंने संचालक मंडल को साथ लेकर बैंक को अनुत्पादित कर्जों से एवं घाटे से उबारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई| इस कार्य में उनका साथ श्री विजय भावे, श्री सदानंद जोशी, श्री सदानंद भागवत, एवं श्री जयंत काकतकर ने दिया|

संचालक मंडल, सेवक, खातेदार एवं भागधारक (shareholder) इन सभी की तीव्र इच्छा थी कि बैंक संकटमुक्त हो| कोई इच्छा यदि तीव्र हो तो उसे पूर्ण करने में नियति भी अनुकूल परिस्थिति का निर्माण करती है, ऐसा कहा जाता है|when you want something , all the universe conspires in helping you to achieve it ऐसा पाउलो कोएलो (paulo coelho) नाम के प्रसिद्ध ब्राजीलियन उपन्यासकार ने अपने प्रसिद्ध उपन्यास “The Alchemist” में लिखा है| इसी आशय की बात प्रसिद्ध अमेरिकन कवि एवं चिंतक राल्फ वाल्डो इमर्सन (Ralph waldo Emerson) ने भी कही है| उसने कहा है, ”Once you make a decision, the Universe conspires to make it happen.”ऐसी बातों को दैवी हस्तक्षेप भी कहते हैं|

संचित हानि समाप्त होकर लाभ में आने के बाद बैंक का यह संघर्ष लिखित रूप में सभी के सामने आए, ऐसा अनेकों का आग्रह था| यूनाईटेड वेस्टर्न बैंक पश्‍चिम महाराष्ट्र की देश भर में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने वाला प्राइवेट क्षेत्र की व्यापारिक बैंक था| सन.२००६ में उसका विलयकरण आई.डी.बी.आई. बैंक में हुआ| उसकी कारण मीमांसा करते हुए एक पुस्तक में लिखा गया कि युनाइटेड वेस्टर्न बैंक की स्थिति के लिए संघ परिवार का नियंत्रण कारणीभूत था| जनता सहकारी बैंक भी संघ परिवार का ही बैंक है, यह सर्वविदित है| यदि युनाइटेड वेस्टर्न बैंक का अस्त संघ परिवार के नियंत्रण के कारण हुआ तो वैसा ही हश्र जनता सहकारी बैंक का भी होना चाहिए था, परंतु वैसा नहीं हुआ| संघ परिवार पर अकारण लांछन लगाने वालों को उत्तर देने के लिए भी जनता सहकारी बैंक की संघर्ष गाथा लिखने का एक कारण है|

१८ अक्टूबर २०१४ को जनता सहकारी बैंक की ऐतिहारसिक यशोगाथा के रूप में श्री अरविंद खलदकर द्वारा लिखित मराठी पुस्तक ‘नवल वर्तले’ का पहला संस्करण प्रकाशित किया गया|

जनता सहकारी बैंक के खराब कालखंड के समय सरकारी क्षेत्र की इंडियन बैंक भी उसी राह पर थी| परंतु उसे सरकार द्वारा ४५६५ करोड़ की पूंजी दी गई| इंडियन बैंक को १९९४ तक Operating Profitहोता रहा परंतु ९५-९६ से ९८-९९ तक Operating Lossभी हुआ| मार्च २००० सें उसे पुनः Operating Profitहोना शुरू हुआ| इसके विपरीत इतने संकटों के बावजूद जनता बैंक को कभी Operating Lossनहीं हुआ| जो Operating Lossहुआ वह अनुत्पादित कर्जों के लिए किए गए प्रावधानों के कारण हुआ|

वर्तमान में जनता सहकारी बैंक (अब मल्टी स्टेट शेड्यूल्ड बैंक) संचालक मंडल (२०१२-२०१७) के अध्यक्ष श्री अरविंद केशव खलदकर,  संचालक श्री विजय पुरूषोत्तम भावे एवं प्रभारी मुख्य कार्यकारी अधिकारी श्री वसंत शांताराम कुलकर्णी के मार्गदर्शन में सफलतापूर्वक कार्य कर रहा है|

 

 

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