युवाओं की नजर में मोदी सरकार

भारतीय युवाओं की सबसे बड़ी आवश्यकता अच्छी शिक्षा और रोजगार तो है ही, किंतु अपनी पहचान बनाने की चाह भी उसे है। इसके लिए पिछले चार साल में मोदी सरकार ने कई कदम उठाए हैं, जिसके परिणाम आनेवाले वर्षों में दिखाई देंगे।

मई में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार को चार साल पूरे हुए। 2014 में प्रचंड बहुमत से चुनकर आई भाजपा की सरकार (जिसे अच्छी या बुरी दोनों परिस्थियों में मोदी सरकार के नाम से ही जाना जाता है और इस बात का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी भलीभांति संज्ञान है) ने देश के इतिहास में पहली बार एकसाथ इतने लम्बे समय तक गैरकांग्रेसी सम्पूर्ण बहुमत और स्थिरतावाली सरकार देने का काम किया है। इसके मायने भी काफी महत्वपूर्ण हैं। पिछले सत्तर सालों में भारत की राजनीति बीच के थोड़े बहुत कालखंड को छोड़ दें तो कांग्रेस की अर्थनीति, विदेश नीति और राजनीति पर चलती आई है। और इस पार्श्वभूमि में मोदी सरकार के चार सालों के कामों का विश्लेषण करना और भी महत्वपूर्ण हो जाता है। मुझे इस बात का पूरा भरोसा है की मोदी सरकार भी इन चार सालों का इस समय सिंहावलोकन कर रही होगी। क्योंकि गैर कांग्रेसी राजनीति का यह ऐसा महत्वपूर्ण आयाम है जो भारत को भविष्य में एक संपूर्णतः नई दिशा में ले जाने का माद्दा रखता है। और, इस नई नीति का आधारस्तंभ भारत का आज का युवा है।

ऐसी बात नहीं है भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को इस बात की खबर नहीं है या नहीं थी। 2014 के चुनाव में मोदीजी के प्रमुख चुनावी मुद्दों में से एक महत्वपूर्ण मुद्दा, भारत का युवा वर्ग और उस युवा वर्ग का भविष्य था। मोदीजी अपने भाषणों में अक्सर भारत के युवाओं के बारे में न सिर्फ बात करते थे बल्कि भारत की जनसंख्या का 65% वर्ग जो 35 साल से नीचे है उसे भारत की सबसे बड़ी शक्ति के रूप में प्रस्तुत करते थे। भारत के युवाओं को भी इस आश्वासक चित्र से बहुत आशाएं थीं जो वोट के रूप में भाजपा के पाले में जमा हुईं। इस ज्ञान से कांग्रेस अछूता है ऐसा भी नहीं है, भले ही उनकी नींद थोड़ी देर से क्यों न खुली हो। 2014 के बाद जिस तरह श्री राहुल गांधी अपनी युवा छवि को भुनाने की कोशिश कर रहे हैं, तथा उनके युवा संवाद में जिस तरीके से वृद्धि हुई है, उससे यह स्पष्ट है कि कांग्रेस आलाकमान भी भारत की युवा शक्ति के महत्व को धीरे-धीरे पहचानने लगी है।

इस सबके मद्देनजर सबसे महत्वपूर्ण सवाल जो उठता है वह यह है कि भारत का युवा वर्ग आज के राजनीतिज्ञों से और सरकार से क्या चाहता है, तथा उन्हें किन पैमानों पर आंकता है।

जब हम युवाओं के बारे में होनेवाले विश्लेषण को सामान्यतः पढ़ते हैं तो हमारे सामने आनेवाले अधिकांश विश्लेषणों में सबसे ऊपरी बिंदु होता है रोजगार और शिक्षा। आज का भारतीय युवा क्या चाहता है? इस प्रश्न का सबसे सामान्य उत्तर होता है अच्छी शिक्षा और रोजगार। मैं इस बात से सच कहूं तो सहमत नहीं हूं। हां, यह हो सकता है कि आज के भारतीय युवा की सबसे बड़ी आवश्यकता अच्छी शिक्षा और रोजगार हो। और यह हो सकता है नहीं; बल्कि है ही। पर वह उसकी चाह नहीं हैं। मेरी नज़रों में आज के भारतीय युवा की सबसे बड़ी चाह अपनी पहचान खोजना है, अपने लिए एक आइडेंटिटी ढूंढना है। अगर ऐसा न होता तो पिछले तीन सालों में भारत के विविध राज्यों जैसे गुजरात, महाराष्ट्र, और हरियाणा में युवाओं का सैलाब इस तरह से उमड़कर सडकों पर नहीं आता। इसमें गौर करने वाली बात यह भी है कि यह युवा उन राज्यों के किसी वंचित समूह से न होकर व्यापक रूप से बहुसांख्यिक और कृषक व्यवस्था के बलशाली घटक समूह से आता है। अगर ये सिर्फ रोजगार का प्रश्न होता तो वे केवल एक समूह विशेष को न सताता। हर राज्य में यह इसी तरह होना यह भी कोई संयोग नहीं है, वरन एक बड़ी समस्या का आगाज है जो आनेवाले समय में और भी गंभीर हो सकती है। यह वैश्वीकरण के उन विपरीत परिणामों में से एक है जिसका विचार आजतक सरकार या समाजशास्त्रियों ने गंभीरता से नहीं किया है।

इसके उपाय के लिए मोदी सरकार को और सिर्फ मोदी सरकार ही नहीं तो आनेवाली हर सरकार को अंत्योदय की ओर बढ़ना होगा। ऐसा अंत्योदय जिसमे विकास का पैमाना सिर्फ एकऊर्ध्वाधर (Vertical) अर्थात सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) जैसे क्षेत्रों में रोजगार निर्माण करना न होकर, क्षैतिज अर्थात Horizontal क्षेत्रों में रोजगार निर्मिती होना चाहिए। सरकार की मेक इन इंडिया जैसी नीति इस दिशा में एक अत्यंत सही समय पर आया हुआ सही कदम है जिसके परिणाम हमें आनेवाले कुछ वर्षों में देखने को मिलेंगे। पर इसी के साथ हमें इस बात का भी ख्याल रखना होगा कि इन नीतियों का कार्यान्वयन भी उसी तेजी और दक्षता से होना चाहिए।

युवाओं में बड़े पैमाने पर देखे जानेवाले आयडेंटिटी क्रायसिस का एक कारण भारत की औसत आयु का युवा होना भी है। सन 2030 तक भारत की औसत आयु 29 वर्ष होगी, जो चीन (औसत आयु 37 वर्ष) और जापान (औसत आयु 48 वर्ष) से कई मात्रा में कम होगी। यह जहां एक ओर हमारे लिए एक स्वर्णिम अवसर हो सकता है वहीं दूसरी ओर हमारे देश के युवाओं को अपनी अलग पहचान बनाने में इस वजह से और कठिनाई का सामना भी करना पड सकता है। सरकार को इस मोर्चे पर पक्की नीतियों के साथ लड़ना होगा। यही वजह है कि आज भारत का युवा वर्ग बड़ी मात्रा में अपनी कर्मभूमि ढूंढने के लिए अपनी जन्मभूमि से दूर जा रहा है। फिर चाहे वह गांव से जिले की ओर और जिला छोड़कर महानगरों की ओर आना हो, या महानगरों से विदेशों की ओर जाना हो। इसके मूल में सिर्फ रोजगार का संकट नहीं तो पहचान का संकट भी है।

इसे दूर करने का एक बड़ा उपाय युवाओं की उद्यमशीलता को बढ़ावा  देना है। इसके लिए सिर्फ युवाओं का उत्साह बढ़ाना, या उन्हें आर्थिक मदद उपलब्ध कराना काफी नहीं है, बल्कि एक ऐसी व्यवस्था, एक ऐसी इको सिस्टम खड़ी करना आवश्यक है, जो उन्हें सर्वांगीण रूप से एक उद्यमी बनने में मदद करें। आज दुर्भाग्य की बात यह है कि भारत में कोई युवा, व्यवस्था की मदद से सफल उद्यमी नहीं बनता बल्कि व्यवस्था के होने के बावजूद सफल उद्यमी बनता है। इसे बदलना होगा। इसका भीषण स्वरूप हम जैसे जैसे नगरों, कस्बों, बस्तियों की ओर बढ़ते हैं वैसे वैसे हमें देखने को मिलता है। इसको बदलने के लिए आधारभूत सुविधाओं और संरचनाओं की आवश्यकता होगी। शिक्षा में मूलभूत बदलाव लाना होगा। यह सब एक दिन में होना संभव नहीं है। यह एक दिन में हो ऐसी अपेक्षा भी नहीं है। अपेक्षा है इस ओर बढ़ने की अवधारणा की। आज युवाओं के परिप्रेक्ष्य में सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती है इस अवधारणा को व्यवस्था में जल्द से जल्द क्रियान्वित करने की।

आज भारत से एक बड़ा युवा वर्ग विदेशों की ओर जा रहा है, वहां अपने पैर जमाकर भारत की एक नई पहचान बनकर सामने आ रहा है। सन 2000 के बाद सूचना प्रौद्योगिकी की क्रांति के बाद यह चित्र और बड़ी संख्या में बदला है। पहले जहां भारतीय युवा इंग्लैंड, अमेरिका, और ज्यादा से ज्यादा ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों की ओर अपना रुख करता था, वही युवा आज जर्मनी, फ़्रांस, स्पेन, जापान, सिंगापुर, चीन जैसे देशों में अपनी पैठ बना रहा है।

मेरा पिछले 5 सालों से जर्मनी में निवास है। पिछले तीन सालों में जर्मनी में आई भारतीय विद्यार्थियों की संख्या में दुगनी वृद्धि हुई है। इसकी वजह से विदेशों में भारत की एक नई छवि बनती नजर आती है। पहले जहां भारत सिर्फ बॉलीवुड और योग के नाम से जाना जाता था, वह आज अपने आईटी, तकनीकी ज्ञान, और राजनीति के लिए भी जाना जाने लगा है। प्रधानमंत्री मोदीजी के मैडिसन स्क्वेयर ग्राउंड पर दिए भाषण की पूरे विश्व की मीडिया द्वारा लिया गया संज्ञान हो, या हर बड़े व्यापार मेले में दिखने वाला मेक इन इंडिया का शेर हो, भारतीय युवा को अपने देश के बारे में गौरवान्वित महसूस होने का कारण प्रदान करता है। इसमें इस सरकार की विदेश नीति का भी खासा योगदान रहा है। इस युवा वर्ग को भारत से जोड़कर रखना और उसे अपने देश के लिए अपनी क्षमतानुसार योगदान देने हेतु प्रोत्साहित करना, सरकार के लिए आनेवाले समय में महत्वपूर्ण लक्ष्य हो यही एक युवा होने के नाते मेरी सरकार से अपेक्षा रहेगी।

मोदी सरकार के लिए आनेवाले समय में ‘युवाओं के लिए भारत’ यह लक्ष्य न रहकर ‘युवाओं का भारत’ यह लक्ष्य हो तो अंत्योदय तक पहुंचने का हमारा सपना दृष्टिपथ पर होगा यह मेरा विश्वास है।

 

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