बदली ग्रामीण महिलाओं की जिंदगी

प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के तहत ग्रामीण इलाकों में 3 करोड़ से अधिक एलपीजी कनेक्शन रियायती दरों पर दिए जा चुके हैं। इससे न केवल ग्रामीण महिलाओं के स्वास्थ्य में सुधार होगा, बल्कि परम्परागत ईंधन के उपयोग में नष्ट होनेवाला उनका समय भी बचेगा और वे अन्य आर्थिक गतिविधियों से जुड़ सकेंगी। इससे ग्रामीण क्षेत्र में खुशहाली आएगी।

दुनिया की 38 प्रतिशत आबादी खाना पकाने के लिए अब भी पारंपरिक जैव ईंधन पर निर्भर है। चूंकि घर संभालने तथा खाना पकाने की मुख्य जिम्मेदारी के कारण ग्रामीण महिलाएं अपने परिवार में केंद्रीय जिम्मेदारी निभाती हैं, इसलिए घर के भीतर के वायु प्रदूषण से अन्य सदस्यों की तुलना में उनके स्वास्थ्य पर अधिक असर पड़ता है। जैव ईंधन के आधे-अधूरे ढंग से जलने और जैव ईंधन के पारंपरिक चूल्हों का इस्तेमाल करने के कारण उत्पन्न हुए प्रदूषण से उनके स्वास्थ्य को खतरा और बढ जाता है। प्रदूषण घर तक ही सीमित नहीं रहता बल्कि आसपास के वातावरण को भी प्रभावित करता है। ग्रामीण क्षेत्रों में खाना बनाना दैनिक जीवन के प्रमुख कामों में शामिल होता है क्योंकि लोगों के पास इन कामों के अलावा कुछ करने और उत्पादक तरीके से योगदान करने का समय ही नहीं होता। 2011 की जनगणना के अनुसार लगभग 12.1 करोड़ परिवार अब भी अक्षम चूल्हों का इस्तेमाल कर रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की एक रिपोर्ट के अनुसार अस्वच्छ ईंधन से उतना धुआं महिलाओं के भीतर जाता है, जितना 400 सिगरेट जलाने से पैदा होता है।

सतत विकास के लक्ष्य में 2030 तक किफायती, विश्वसनीय, सतत और आधुनिक ईंधन सेवाएं प्रदान करने का उद्देश्य निर्धारित किया गया है। विश्वसनीय, सतत और आधुनिक ऊर्जा सुनिश्चित करने के लिए 2030 तक सभी के लिए किफायती दाम पर ऊर्जा से ही दिशा तय होगी। सभी राष्ट्रों को निम्न उद्देश्य पूरे करने का प्रयास करना चाहिए क्योंकि सभी के लिए ऊर्जा उपलब्ध नहीं हुई तो दुनिया की ऊर्जा प्रणाली नाकाम हो सकती है-

अ. वैश्विक ऊर्जा मिश्रण में अक्षय ऊर्जा के हिस्से में उल्लेखनीय वृद्धि;

आ. ऊर्जा अक्षयता में सुधार की वैश्विक दर दोगुनी करना;

इ. स्वच्छ ऊर्जा प्रदान करने में मदद करने के लिए वैश्विक सहयोग बढाना;

ई. उन्नत तथा अधिक स्वच्छ जीवाश्म ईंधन प्रौद्योगिकी एवं ऊर्जा संबंधी बुनियादी ढांचे तथा स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकी में निवेश को बढावा देना।

भारत में लगभग 40 प्रतिशत जनसंख्या को खाना पकाने के लिए स्वच्छ ऊर्जा उपलब्ध नहीं है। रसोई गैस (एलपीजी) को खाना पकाने का प्रमुख स्वच्छ समाधान मानकर, प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के बड़े कार्यक्रम के अंतर्गत 2020 तक लगभग 8 करोड़ एलपीजी कनेक्शन प्रदान करने का लक्ष्य निर्धारित कर भारत ने गरीबी की रेखा से नीचे के परिवारों को स्वच्छ समाधान प्रदान करने में बढत हासिल कर ली है। यह योजना प्रधानमंत्री ने मई,2016 में उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में आरंभ की थी, जिसमें आरंभ में ग्रामीण महिलाओं को 5 करोड़ एलपीजी कनेक्शन उपलब्ध कराने का लक्ष्य था। 1 जनवरी 2016 को 61 प्रतिशत के राष्ट्रीय औसत से कम एलपीजी कवरेज वाले राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों पर जोर दिया गया। सामाजिक-आर्थिक जनगणना आंकड़ों के आधार पर गरीबी-रेखा से नीचे के जिन परिवारों में वयस्क महिला सदस्यों अथवा किसी अन्य परिजन के नाम पर एलपीजी कनेक्शन नहीं था, उस परिवार की वयस्क महिला सदस्य के नाम पर कनेक्शन दिया गया। सरकार ने अब यह लक्ष्य बढाकर 2020 तक 8 करोड़ कनेक्शन कर दिया है।

उज्ज्वला योजना की उपलब्धियां

एलपीजी को खाना पकाने का लिए ईंधन के रूप में इस्तेमाल करने से ग्रामीण महिलाओं को बड़ा फायदा हुआ है। स्वास्थ्य सुधार के रूप में और खाना पकाने में लगने वाला समय घटने के कारण अधिक आर्थिक उत्पादकता के रूप में उनकी आजीविका बेहतर हुई है। प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के अंतर्गत नवंबर,2017 तक लगभग 712 जिलों में करीब 3.2 करोड़ एलपीजी कनेक्शन दिए जा चुके हैं।

पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय के दावे के अनुसार योजना से एलपीजी की प्रत्यक्ष कीमत कम हो गई है। पहले एलपीजी कनेक्शन के लिए 4,500 से 5,000 रुपये खर्च करने पड़ते थे, लेकिन थोक खरीद ने इसे घटाकर 3,200 रुपये पर ला दिया। प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के अंतर्गत आधी राशि उपभोक्ता को सरकार द्वारा एकबारगी अनुदान के रूप में प्रदान कर दी जाती है। हॉट प्लेट और पहली बार सिलेंडर भरवाने के लिए कुल 1,600 रुपये उपभोक्ता को भरने पड़ते हैं, लेकिन तेल विपणन कंपनियां इसके लिए मासिक किस्तों का विकल्प उपलब्ध करा रही हैं। परिवार को दिया गया ऋण करीब सात-आठ सिलेंडर भरने में वसूल कर लिया जाता है। यह राशि वसूल हो जाने के बाद सब्सिडी चलती रहती है और ग्राहक के खाते में आती रहती है। राज्य सरकारें भी चूल्हे अथवा रेग्युलेटर के लिए धन प्रदान कर रही हैं।

प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना की प्रगति पर नगर डाली जाए तो बैंक खाते से जोड़ने और सब्सिडी छोड़े जाने जैसे लाभ भी दिखते हैं। पहले वर्ष में 1.5 करोड़ कनेक्शनों का लक्ष्य था, लेकिन 2.2 करोड़ एलपीजी कनेक्शन बांट दिए गए। ऊर्जा एवं पर्यावरण तथा  जल परिषद (सीईईडब्ल्यू) और जीआईजेड, जर्मनी द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार अभी तक 58 लाख कनेक्शनों के साथ उत्तर प्रदेश को सबसे ज्यादा लाभ हुआ है और 39 लाख कनेक्शनों के साथ पश्चिम बंगाल दूसरे स्थान पर है।

प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के विषय में कई प्रश्न उठाए गए, जैसे ग्रामीण एलपीजी उपभोक्ता धन की कमी के कारण बार-बार सिलेंडर नहीं भरवाते हैं। कनेक्शनों के बारे में आंकड़ें जो भी बताते हैं, उनसे परे देखने के लिए कई समूह अनुसंधान तथा वास्तविक अध्ययन कर रहे हैं, इसीलिए इस योजना के पीछे निर्धारित किए गए व्यापक लक्ष्य को अनदेखा नहीं किया जाना चाहिए। जैव ईंधन के अक्षम तरीके से जलने ssके कारण सेहत को होने वाले नुकसान की भरपाई के लिए लोग दवा पर जितना खर्च करते हैं, उसकी तुलना एलपीजी सिलेंडर भरने पर होने वाले खर्च से नहीं की जा सकती। इसी तरह ग्रामीण महिलाएं जलाने के लिए लकड़ी जुटाने और पानी लाने में अच्छा-खासा समय खर्च करती हैं, जिसका उपयोग दूसरे उत्पादक कामों में हो सकता है। यह भी ध्यान रखना चाहिए कि व्यवहार बदलने में कुछ समय लगता है; खाना बनाने के पारंपरिक तरीके के अभ्यस्त लोगों को तरीके बदलने के लिए कुछ समय चाहिए होगा।

प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना से लगभग एक लाख अतिरिक्त रोजगार सृजित हो सकते हैं और अगले 3 वर्ष में भारतीय उद्योग को कम से कम 1,000 करोड़ रूपये के कारोबार के मौके मिल सकते हैं। इस योजना ने ‘मेक इन इंडिया‘ अभियान के तहत सिलेंडर, गैस चूल्हे, रेग्युलेटर और गैस हौज बनाने वाले सभी निर्माताओं के लिए असीम अवसर उपलब्ध कराए हैं।

आगे की राह

जहां तक खाना पकाने की स्वच्छ ऊर्जा का प्रश्न है तो एक अन्य संभावित विकल्प यह है कि ग्रामीण इलाकों में खाना पकाने के लिए बिजली का इस्तेमाल किया जाए। भारत सरकार के विद्युत मंत्रालय के ग्रामीण विद्युतीकरण कार्यक्रम का लक्ष्य सुदूर क्षेत्रों में ग्रिड पहुंचाकर सभी को बिजली उपलब्ध कराना है। ग्रामीण क्षेत्रों में खाना पकाने की जरूरतें पूरी करने के लिए इंडक्शन चूल्हों के रूप में बिजली निश्चित रूप से यथार्थ बन सकती है। प्रौद्योगिकी और नवाचार में बहुत अधिक यकीन करने वाले हमारे प्रधानमंत्री ने तेल एवं गैस के क्षेत्र की अग्रणी कंपनी ओएनजीसी से “सक्षम इलेक्ट्रिक चूल्हा“ बनाने की दिशा में काम करने का निर्देश दिया है, जिससे सौर ऊर्जा का इस्तेमाल कर खाना पकाया जा सकेगा। दुनिया में भारत का अनूठा स्थान है क्योंकि यहां लगभग 300 दिन धूप रहती है। इसका मतलब है कि पर्याप्त सौर ऊर्जा उत्पन्न करने की यहां असीम क्षमता है और यह अनूठी बढत स्वच्छ तरीके से खाना पकाने की समस्या को काफी हद तक दूर कर सकती है।

अधिकतर समस्या ग्रामीण परिवारों में है और खाना पकाने की उनकी विभिन्न आवश्यकताओं, जिनमें पानी गर्म करना और चारा तैयार करना भी शामिल है, के लिए विशिष्ट रणनीति की आवश्यकता है। ईंधन का भंडारण जाना-माना तरीका है। इसीलिए प्रत्येक घर में खाना पकाने का एक से अधिक ईंधन होगा।

खाना पकाने के ईंधनों, सक्षम चूल्हों तथा उनसे संबंधित शोध एवं विकास के समन्वित प्रयासों के लिए नेशनल मिशन ऑफ क्लीन कुकिंग चलाने की आवश्यकता है, जिसका लक्ष्य 2022 तक सभी को खाना पकाने का स्वच्छ ईंधन मुहैया कराना होगा। इसका लक्ष्य चूल्हों, खाना पकाने के बिजली से चलने वाले उपकरणों, विभिन्न आकार के एलपीजी सिलिंडरों के लिए बाजार और देश भर में ईंधर वितरण केंद्रों का नेटवर्क तैयार करना है। इससे शहरी क्षेत्रों में पाइप के जरिए प्राकृतिक गैस प्रदान करने हेतु शहरी गैस वितरण नेटवर्क मजबूत होना चाहिए और शहरी लोगों के हिस्से के एलपीजी कनेक्शन ग्रामीण क्षेत्रों में दिए जा सकेंगे। स्वच्छ तरीके से भोजन पकाने का बाजार बहुत बड़ा है, जिसका दोहन होना चाहिए और आर्थिक लाभ उठाने चाहिए।

 

 

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