हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
अस्मिता और  मूलाधार क्या है?

अस्मिता और मूलाधार क्या है?

by हिंदी विवेक
in अनंत अटलजी विशेषांक - अक्टूबर २०१८
0

‘यह देश एक धार्मिक देश है। धार्मिक होना और सद्गुणी होना एक ही बात है। धर्मनिरपेक्षता का पक्ष लेनेवालों से मुझे यह कहना है कि, धर्मनिरपेक्षता याने सेक्युलरिज्म नहीं है। ऐसा समझना गलतफहमी है। क्या भारत का शासन धर्मविरोधी है? क्या सरकार को इस देश को अधार्मिक बनाना है?”

सम्माननीय उपाध्यक्ष महोदय,

राष्ट्रपति के अभिभाषण के आरंभ में ही 6 दिसम्बर को हुई घटना का उल्लेख किया गया है, जो स्वाभाविक ही है। इस घटना पर सदन में काफी बहस हुई और आगे भी होगी। इस बारे में मुझे जो कुछ कहना है वह मैं बाद में कहूंगा ही; लेकिन इस अभिभाषण के अंग्रेजी और हिंदी संस्करणों को पढ़ते समय मुझे अंग्रेजी संस्करण में निम्न उल्लेख दिखाई दिया, “भारत के धर्मनिरपेक्ष ढांचे तथा कानून व व्यवस्था को खतरा पैदा हुआ।” लेकिन हिंदी संस्करण में धर्मनिरपेक्ष्ता और कानून को खतरा पैदा होने का उल्लेख है। यह खतरा किसने पैदा किया? इस खतरे का स्वरूप क्या है? इस बारे में चर्चा होना आवश्यक है। राष्ट्रपति के अभिभाषण के अंग्रेजी और हिंदी संस्करणों में काफी अंतर है। लेकिन मैं एक विशेष शब्द की ओर सदन का ध्यान आकर्षित करना चाहता हूं। अंग्रेजी संस्करण में हमारा देश सेक्युलर है और वह वैसा ही रहना चाहिए यह उल्लेख है। इसमें आपत्ति लेने जैसा कुछ नहीं है। लेकिन अभिभाषण के हिंदी अनुवाद में सेक्युलर शब्द का अनुवाद ‘धर्मनिरपेक्ष’ किया जाने से काफी गलतफहमियां उत्पन्न होती हैं। मेरी राय में, केवल मेरी राय में ही नहीं बल्कि भारत के आम नागरिकों की राय में यह एक धार्मिक देश है। धार्मिक होना और सद्गुणी होना एक ही बात है। लेकिन धर्मनिरपेक्षता की रक्षा करने पर अधिक बल दिया जाता है। धर्मनिरपेक्षता का पक्ष लेनेवालों से मुझे कहना है कि धर्मनिरपेक्षता याने सेक्युलरिज्म नहीं है। ऐसा समझना गलतफहमी है। क्या भारतीय शासन धर्मविरोधी है? क्या सरकार को इस देश को अधार्मिक बनाना है?

‘सेक्युलर’ शब्द की नेहरू की परिभाषा

सम्माननीय उपाध्यक्ष महोदय, मैंने इस परिभाषा का पहले उल्लेख किया है और वैसा उल्लेख आज भी करना चाहता हूं। मैं 1949-50 के समय की बात कर रहा हूं। जब भारत का संविधान लिखा जा रहा था, तब सेक्युलर शब्द संविधान में नहीं रखा गया था। अपना देश सेक्युलर रहे इस पर सभी एकमत थे। यह बात विवादास्पद नहीं थी। पाकिस्तान बनने के बाद भी भारत एक धर्माधिष्ठित राज्य हो इसकी किसी ने कभी भी मांग नहीं की। संविधानकारों ने भी संविधान में सेक्युलर शब्द का समावेश नहीं किया। इसलिए कि उन्हें लगता था कि इस शब्द के कारण गंभीर गलतफहमियां पैदा होने की संभावना है। जब सेक्युलर शब्द का अनुवाद धर्मनिरपेक्ष किया जाता है तब निश्चित रूप से गंभीर गलतफहमियां पैदा होती हैं। 1961 मे पं. नेहरू ने इसे तीव्रता से अनुभव किया। मैं नेहरू का जानबूझकर जिक्र कर रहा हूं। क्योंकि, जब जब इस सदन के सम्माननीय सदस्य सेक्युलर शब्द का जिक्र करते हैं तब तब नेहरू का हवाला देते हैं। नेहरू ने सांसद श्री रघुनाथ सिंह की ‘धर्मनिरपेक्ष राज्य’ शीर्षक से वाराणसी में 1961 में प्रकाशित किताब की भूमिका लिखी है। यह किताब संसद के ग्रंथालय में उपलब्ध है और सदस्यों को वह उपलब्ध हो सकती है। मैं उस भूमिका के कुछ अंश पढ़कर सुनाता हूं। ‘सेक्युलर’ अंग्रेजी भाषा का शब्द है। कुछ लोगों की राय में इस शब्द का अर्थ धर्मविरोधी होता है। लेकिन इस शब्द का इस तरह का अर्थ लेना गलत है। इस शब्द का सही अर्थ यह है कि शासन सभी धर्मों का समान रूप से सम्मान करेगा।

सम्माननीय उपाध्यक्ष महोदय, उपर्युक्त अर्थ यदि सही हो तो भारत सदा सेक्युलर था और वह वैसा ही रहेगा। इसलिए 6 दिसम्बर की घटना से भारत के सेक्युलरिज्म को कोई आघात पहुंचा हो ऐसा नहीं है। हम उचित शब्द का उपयोग करें। भारत के राज्य संविधान के हाल में प्रकाशित हिंदी अनुवाद में सेक्युलर शब्द का अनुवाद ‘पंथनिरपेक्ष’ किया गया है, धर्मनिरपेक्ष नहीं। भारत पंथनिरपेक्षता पर चलें। धर्म शब्द का व्यापक अर्थ में उपयोग किया जाता है। यदि हम चाहते हैं कि देश की जनता का विकास हो, सभी इस विकास में योगदान दें और जिस त्याग की आवश्यकता है वह करें तो, धर्म की अवहेलना करने से नहीं चलेगा।

हमारी अस्मिता क्या है?

इन दिनों यह प्रतिपादित किया जाता है कि, राजनीति और धर्म को एक-दूसरे से अलग किया जाना चाहिए तथा उनका एक-दूसरे से कोई सम्बंध नहीं होना चाहिए। किंतु मुझे ऐसा लगता है कि, इन सम्बंधों का उचित अर्थ आम व्यक्ति तक पहुंचने के लिए यह कहना चाहिए कि जातीयता का राजनीति से कोई सम्बंध नहीं होना चाहिए और राजनीतिक उद्देश्य की पूर्ति के लिए धर्म का उपयोग नहीं किया जाना चाहिए। लेकिन दुर्भाग्य से शासन व्यवस्था ऐसा कुछ नहीं कहती। यह व्यवस्था धर्म का राजनीतिे से कोई सम्बंध नहीं होना चाहिए इसका निरंतर उद्घोष करती रहती है और यह भी चेतावनी दी जाती है कि जो धर्म का उपयोग अपने राजनीतिक उद्देश्य की पूर्ति के लिए करते हैं वे सेक्युलरिज्म के लिए खतरा पैदा करते हैं। आम आदमी इससे सहमत नहीं होता। सेक्युलर शब्द की परिभाषा करते समय धर्मनिरपेक्षता शब्द पर क्यों बल दिया जाता है, यह आज तक मेरी समझ में नहीं आया है। क्या हम आम लोगों की दृष्टि से सेक्युलर शब्द की व्याख्या पंथनिरपेक्ष या सम्प्रदायनिरपेक्ष के रूप में नहीं कर सकते?

इस देश का मूलाधार क्या है?

सम्माननीय उपाध्यक्ष महोदय, सर्वप्रथम मुझे इस बारे में यह पूछना है कि, जिसे हम भारत, हिंदुस्तान या इंडिया कहते हैं,  उसका मूलाधार क्या है? इस राष्ट्ररूपी वृक्ष का पोषण करनेवाली जड़ें कौनसी हैं? किन जड़ों से इस देश के राष्ट्रीयत्व को जीवनरस मिलता है? 1947 में किसी नए राष्ट्र का उदय नहीं हुआ। दूसरे विश्वयुद्ध के बाद यूरोप में उदित कई राष्ट्र आज विघटन की दहलीज पर खड़े हैं। लेकिन यह देश अनेक शतकों से एकात्म रहा है। इस देश के अनेक राज्य कई बार एक दूसरे से संघर्ष करते थे, फिर भी यह देश एकात्म रहा। इस एकात्मता का कारण क्या है? इस काल में इस्लाम और क्रिश्चनिटी इस देश में नहीं आई थी। इस्लाम को माननेवाले इस देश में गोरी और गज़नी के साथ नहीं आए, जबकि वे सब से पहले अरब व्यापारियों के साथ इस देश में आए और दक्षिण भारत के हिंदू राजा की अनुमति से उन्होेंने मस्जिद बनवाई। इस मस्जिद को बनवाने में किसी ने कोई रुकावट नहीं डाली। इसके विपरीत हिंदू राजा ने मस्जिद के निर्माण को प्रसन्नतापूर्वक अनुमति दी। मस्जिद के निर्माण के लिए इस देश में पहले कभी भी कोई संघर्ष नहीं हुआ। क्या यह इस बात का प्रमाण नहीं है कि यह राष्ट्र प्राचीन है। केवल 1947 में इस सनातन राष्ट्र के जीवन में एक नया अध्याय लिखा गया। पश्चिमी शिक्षा से प्रभावित हमारे विचारक कहेंगे कि ‘राष्ट्र यह कल्पना ही आधुनिक है।’

आइये समस्या पर चर्चा करें

ये लोग अपना देश प्राचीन है इसे स्वीकार नहीं कर सकते। यदि ऐसी स्वीकृती न देना हो तो हमें कोई आपत्ति नहीं है। आपकी मर्जी आपको लखलाभ! लेकिन इस देश की प्राचीनता कोई अस्वीकार नहीं कर सकता। इस संदर्भ में पंडित नेहरू क्या कहते थे इसे संंसद के पटल पर रखने की मेरी इच्छा नहीं है। पंडितजी ने कहा था, “इस देश में हजारों वर्षों की जीवंत परम्परा निरंतर विकसित हो रही है और उस परम्परा की कड़ी का मैं एक हिस्सा हूं इसका मुझे गर्व है। इस कड़ी से मुझे पृथक नहीं होना है।” यह कड़ी कौनसी है? क्या वह हिंदू नहीं है? किंतु भारत की स्वतंत्रता और विभाजन के बाद हिंदू शब्द के बारे में आक्षेप लिए जाते हैं। हमें मिली स्वतंत्रता अधूरी होने के बावजूद यह आक्षेप क्यों लिया जाता है? सारी बातों को इंडियन कहने का आग्रह किस बात के लिए? इसके पूर्व मैंने जो कहा था वह आज भी कह रहा हूं। हमें इस बात पर चर्चा करनी चाहिए कि इस देश का राष्ट्रीय सम्मान किस बात पर आधारित है। देश हिंदू नहीं अथवा देश की एकात्मता हिंदू संस्कृति से नहीं बनी तो फिर ऐसे कौनसे अन्य घटक हैं, जिनसे यह दीर्घकालीन एकात्मता प्राप्त हो सकी? विदेशियों के आक्रमणों के समय इस देश की रक्षा के लिए सर्वस्व का त्याग करने की प्रेरणा किसने दी? छत्रपति शिवाजी महाराज ने या शहंशाह औरंगजेब ने? आज भी महाराणा प्रताप इस देश की जनता को प्रेरणा कैसे देते हैं? मैं यह स्वीकार करता हूं कि जो मुसलमान बाहर से इस देश में आए और कालांतर में यहीं बस गए वे सभी अर्थों में इस देश का अविभाज्य हिस्सा बन गए। उनसे भी बराबरी का बर्ताव होना चाहिए। अपना राज्य संविधान इसकी आश्वस्ति देता है। इसे प्रत्यक्ष में लाना चाहिए इस बारे में किसी तरह के मतभेद नहीं हैं। लेकिन काल्पनिक मतभेद निर्माण कर जानबूझकर लोगों को गुमराह किया जाता है। इस बारे में उचित पृष्ठभूमि निर्माण करने की आवश्यकता है। और इस बारे में चर्चा करने के लिए हम तैयार हैं।

डॉ. आंबेडकर का सुविधानुसार उपयोग

सरदार स्वर्णसिंह ने संविधान में संशोधन का प्रारूप सदन के पटल पर रखा। इसमें सेक्युलर शब्द का अर्थ यह प्रतिपादित किया गया है कि राज्य का अपना कोई धर्म नहीं होगा, उसी तरह कोई पूजा पद्धति नहीं होगी और राज्य की भूमिका सभी धर्मों के प्रति समान होगी। अनेक सदस्य सदन में कुछ नहीं बोले। लेकिन संविधान निर्मिति के समय जब के.टी.शाह ने संविधान में समाजवाद शब्द को शामिल करने का आग्रह किया तब डॉ. आंबेडकर ने वह अस्वीकार किया। डॉ. आंबेडकर ने उस समय इसका जो कारण दिया, उससे उनकी दूरदृष्टि का पता चलता है। संविधान के प्रारूप में उन्होंने ऐसा परिवर्तन करने से इनकार किया। उन्होंने कहा था कि समाजवाद एक कल्पना है। समाजवाद एक तरह की अर्थव्यवस्था की केवल कल्पना मात्र है। इसलिए मैं उसे संविधान में शामिल करना नहीं चाहता। क्योंकि अर्थव्यवस्था के बारे में कल्पनाएं निरंतर बदलती रहती हैं। भविष्य में ऐसा भी समय आ सकता है जब समाजवाद से अधिक अच्छी कोई अर्थव्यवस्था प्रत्यक्ष में आएगी और लोग उस व्यवस्था का स्वीकार करेंगे। मैं भारत की भविष्य की पीढ़ियों पर किसी भी तरह के बंधन लादना नहीं चाहता।

आंबेडकर की कल्पनाओं का टुकड़ों में उल्लेख किया जाता है। सच पूछें तो आवश्यकता यह है कि उनके विचारों को समग्र दृष्टि से देखना चाहिए।

(राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान लोकसभा में 2 मार्च 1993 को दिए गए भाषण के सम्पादित अंश।)

हिंदी विवेक

Next Post
अयोध्या और घुसपैठ चिंता के विषय

अयोध्या और घुसपैठ चिंता के विषय

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

0