वर्तमान में आर्य समाज की भूमिका

आर्य समाज एक सामाजिक संगठन है। इसके संस्थापक स्वामी दयानंद जी ने अपने समय की रूढ़ियों, कुरीतियों और अंधविश्वासों के विरुद्ध खड़े होकर एक भीषण शंखनाद किया था जिसके परिणामस्वरूप देश में एक भूचाल सा आया और इसमें सब प्रकार की कुरीतियां नष्ट होने लगीं। आज हम देखते हैं कि लोगों में स्वार्थ की भावना फिर से बलवती हो रही है। इस कारण जो दुराचार स्वामी जी के काल में हो रहे थे, आज वह उससे भी कहीं अधिक हो रहे हैं। प्रतिदिन कुरीतियां, रूढ़ियां तथा अंधविश्वास बढ़ते ही जा रहे हैं। इस कारण आर्य समाज और आर्य समाजियों के दायित्व आज बढ़ गए है। इस आलोक में आज देखें तो वर्त्तमान समय में आर्य समाज की भूमिका और भी अधिक बढ़ गई है। आओ इस पर कुछ प्रकाश डालते हुए देखें कि आज आर्य समाज क्या भूमिका वहन करे कि जिससे इन कुरीतियों से निपटा जा सके।

शिक्षा का प्रश्न

स्वामी जी वेद प्रतिपादक शिक्षा के पक्ष में थे जो कि गुरुकुल पद्धति से ही संभव थी किन्तु अंग्रेज ने अपनी नीति से इस पद्धति का नाश कर स्कूल पद्धति चला दी। परिणामस्वरूप शिक्षा के वह महान् मापदंड समाप्त हो रहे हैं, जिन्हें स्वामी जी ने लाने का स्वप्न संजोया था। आज की शिक्षा पद्धति के कारण गुरु अध्यापक बन गया है, जिसका समाज में कोई सम्मान नहीं है।
आज के आर्यों का यह दायित्व हो गया है कि इस पद्धति में आमूल परिवर्तन किया जाए। शिक्षा का कार्य आज सरकारों के हाथों में होने से यह सुधार संभव नहीं दिखाई देता किन्तु जो असंभव को संभव बना दें, उसे ही आर्य कहते हैं। अत: आर्यों का दायित्व है कि हम सब एकजुट होकर संगठन पद्धति से राज नेताओं का चुनाव करें और उन्हें ही चुनें जो वैदिक सिद्धांतों को वर्तमान राजनीति में लाने का कार्य कर सके। इसके साथ ही आज भी आर्य समाज के पास गुरुकुलों की भरमार है। हम आपने दायित्व को समझते हुए गुरुकुलों को पूर्णतया आर्य पद्धति के साथ चलाएं और हमारा दूसरा दायित्व यह है कि हम अपनी संतानों को केवल गुरुकुलों में ही प्रविष्ट करें। आर्य समाज के बहुत से क्षेत्रों में इस दायित्व को निभाने की चर्चा है और जब यह व्यवहारिक रूप लेगा तो परिणाम उत्तम मिलेंगे।

सहशिक्षा का प्रश्न

वेदादेश को मानते हुए स्वामी जी ने बालक, बालिकाओं के लिए अलग-अलग शिक्षा की व्यवस्था पर बल दिया था किन्तु आज सहशिक्षा के कारण समाज का चरित्र ही बिगड़ गया है किन्तु हमारे गुरुकुलों में आज भी सहशिक्षा न होकर बालक, बालिकाओं की अलग-अलग स्थान पर शिक्षा की व्यवस्था है। हम त्याग भाव से इस पद्धति को मजबूत करें, यही हमारा दायित्व है। इसे पूर्ण करने से भी सामाजिक चरित्र ऊंचा उठेगा और जीवन मूल्यों का सम्मान होगा।

राजनीति का प्रश्न

राजनीति समाज के संचालन का एक मुख्य अंग है। आर्यों के भी अनेक सदस्य राजनेता हैं किन्तु वे दलगत राजनीति के शिकार हो रहे हैं। एक समय था हमारे लाला रामगोपाल शालवाले, पं शिवकुमार शास्त्री आदि अनेक नेता राजनीति के क्षेत्र में थे। चाहे वे किसी भी दल के रहे किन्तु आर्य समाज को उन्होंने पहले समझा। इस कारण वे आर्यों के लिए बहुत कुछ कर पाए तथा समाज सुधार के अनेक कार्य करने में सफल रहे।

आज भी कुछ आर्य अपना यह दायित्व निभा रहे हैं किन्तु संख्या बल में बहुत कम हैं। हम जागरुक होकर त्याग भाव से राजनीति में आगे आए तो हम बहुत कुछ कर सकते हैं। वर्तमान में हमारे कार्यकर्ता राजनीति के प्रभावशाली पदों पर रहते हुए प्रभावशाली कार्य कर रहे हैं। हमारे अन्य आर्य जन भी अपना दायित्व निभाते हुए उनको सहयोग दे रहे हैं। इसके साथ ही न केवल आर्य ही बल्कि हमारे अन्य हिन्दू राजनेता भी इस कार्य को आगे बढ़ाने में लगे हैं तथा बहुत उत्तम कार्य कर रहे है। वर्तमान भारतीय जनता पार्टी की सरकार भी इस क्षेत्र में उत्तम कार्य कर रही है। उत्तम प्रतिनिधि चुनना हमारा दायित्व है। इस दायित्व को वहन करते हुए हम इस प्रकार के श्रेष्ठ हिंदुओं को अधिक संख्या में चुने जो वर्तमान प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के साथ कंधे से कंधा मिला कर राजनीति तथा राजनेताओं में सुधार लाने के लिए कार्य करें। अब तक कुछ उत्तम पारिणाम भी सामने आए हैं किन्तु भविष्य में यह दायित्व प्रमुखता से निभाने के लिए हम अधिक संख्या में राजनीति में जाकर आर्योचित दायित्व की पूर्ति करते हुए तथा हिंदुत्व की रक्षा करते हुए अपने प्रतीकों का संरक्षण तथा समाज में सुधार का कार्य करें।

दलितों का प्रश्न

आर्य समाज की स्थापना के समय भारत में दलितों की बहुत बड़ी समस्या थी, आज कुछ कम है तो भी कहीं-कहीं यह समस्या है। हम इस सम्बंध में भी अपने दायित्व का निर्वहन करने में लगे हैं। इसे एक आंदोलन बना कर कार्य करने की आवश्यकता है ताकि इसे जड़ से समाप्त किया जा सके।

शुद्धि आंदोलन

विधर्मियों के कुचक्र आज भी ज्यों के त्यों ही नहीं उससे भी उग्र बन गए हैं। इसलिए बिछुड़े भाइयों को गले लगाने की अत्यधिक आवश्यकता है। यदि तत्काल यह उपाय न हुआ तो इस देश से वेद धर्म का एक बार फिर से लोप हो जाएगा। इस क्षेत्र में भी अनेक प्रकार से अपने-अपने ढंग से अनेक आर्य समाजें तथा अनेक आर्य व्यक्तिगत रूप से कार्य कर रहे हैं तथा इस दायित्व का निर्वहन करते हुए बिछुड़े भाइयों को फिर से गले लगाने का कार्य कर रहे हैं। इसे तीव्र गति देने की आवश्यकता है। इसलिए इस दायित्व का निर्वहन करते हुए सब आर्य इस कार्य में जुटें तो निश्चय ही उत्तम परिणाम दिखाई देंगे।

हिंदी का प्रश्न

स्वामी जी हिंदी को प्रमुख स्थान देते थे क्योंकि उनका मानना था कि इस देश में केवल हिंदी ही एक ऐसी भाषा है जो देश को संगठन सूत्र में पिरो सकती है। इसके लिए भी स्वामी जी ने खूब सफलता प्राप्त की किन्तु आज हिंदी की दुर्दशा हो रही है।
हिंदी के क्षेत्र में भी आर्य लोग अपने कर्तव्यों का खूब निर्वहन कर रहे हैं। इस कारण आज बहुत से लोग इस प्रकार के दिखाई देने लगे हैं, जो आंग्लभाषा में प्रकाशित निमंत्रण को स्वीकार नहीं करते तथा आज बहुत से लोग फेसबुक, व्हाट्सएप आदि सामाजिक प्रचार क्षेत्र में भी भाषाई दायित्व का निर्वहन करते हुए हिंदी को आगे बढाने तथा इसके प्रयोग पर बल दे रहे हैं। अभी कुछ लोग हैं जो हिंदी का प्रयोग कम करते हैं किन्तु भविष्य उज्ज्वल है। निकट भविष्य में इन पर अधिकांश लेखन हिंदी में ही दिखाई देगा। हिंदी के इस प्रचलन से हम संस्कृत के साथ भी जुड़ते चले जा रहे हैं। इससे हमारी महान संस्कृति की रक्षा हो रही है।

माता-पिता और गुरुजनों का प्रश्न

बालक को उत्तम संस्कार देने का स्रोत माता, पिता तथा गुरुजन ही होते हैं। हमारी यह प्राचीन परम्परा रही है कि इन सबने सदा ही अपनी संतानों और शिष्यों को सुचरित्र बनाने के लिए ही उत्तम संस्कार देते हुए इन के जीवन को सोलह संस्कारों में बांधे रखा है। किन्तु आज यह कड़ी टूटती हुई दिखाई दे रही है। आज सोलह संस्कारों के स्थान पर, गर्भाधान, जातकर्म, नामकरण, विवाह तथा अंतिम संस्कार ही बच्चे हैं। शेष के स्थान पर हमने प्रति वर्ष जन्मदिन और मृत्युदिन मनाना आरंभ कर दिया है। इन संस्कारों के छूटने से भी हमारे समाज का तानाबाना बिगड़ता चला जा रहा है। आर्य इस क्षेत्र में भी अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते हुए, अपने दायित्व का निर्वहन कर रहे हैं। आर्य समाज में बहुत से नवयुवक इस प्रकार के आ गए हैं, जो अपने परिवारों में इन सोलह संस्कारों का प्रचालन आरंभ कर चुके हैं तथा आगे भी लोगों को ऐसा करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। इस प्रकार सुसंस्कारित संतानों का निर्माण होगा जो अपने कर्तव्यों को समझेंगी तथा भविष्य को उज्ज्वल बनाने में लगेंगी।

इस सब को देखते हुए मैं यह कह सकता हूं कि वर्तमान काल के सामाजिक दायित्वों को वर्तमान आर्यों की युवा पीढ़ी निभाने में लगी हुई है किन्तु अभी यह कार्य उस गति से नहीं हो रहा है, जिस गति से होना चाहिए। आर्यगण अपने दायित्व का निर्वहन करते हुए इस कार्य को, इस दायित्व को संपन्न करने के लिए पूर्ण रूप से जुट जाएं तो परिणाम इससे भी उत्तम होंगे। हमारे नवयुवक इस कार्य में लगे हैं। भविष्य उज्ज्वल है। आशा को बनाए रखें। यह सब कार्य केवल आर्य समाज ही नहीं कर रहा अपितु समग्र हिन्दू समाज ही इस कार्य में आज लगा हुआ है। सनातन धर्म ने अनेक स्कूल व कॉलेज कन्याओं के लिए खोल दिए हैं। जैन समुदाय, सिख समुदाय तथा अन्य भी सब समुदायों ने अपने स्कूल व कॉलेज आरंभ कर दिए हैं, जिनकी शिक्षाओं में वेद, उपनिषद्, गीता, श्री गुरु ग्रंथसाहिब आदि का भी अतिरिक्त ज्ञान दिया जाता है। इन ग्रंथों का ज्ञान ही भावी पीढ़ी को अपना दायित्व श्रेष्ठ ढंग से समझाने में सफल हो रहा है।

हमारे राजनेताओं ने भी आर्यों की भावना को समझा है। आज विश्व हिन्दू परिषद, सेवा भारती, दयानंद सेवाश्रम, केरल वैदिक मिशन, सहित अनेक हिंदू संस्थानों ने शुद्धि कार्य आरंभ किया है। बुराइयों के निर्मूलन की आवश्यकता को समझते हुए इनके निर्मूलन का कार्य आरंभ किया है। चेन्नई जैसे दूरस्थ क्षेत्रों में भी दुलालचंद जी जैसे अनेक कार्यकर्ता बिना किसी शोरशराबे के चुपचाप शुद्धि, दलितोद्धार, वेद प्रचार, महिला उद्धार आदि के कार्यों में लगे हैं।

आज का हिंदू बेचारा नहीं रह गया है। आज इसमें आक्रामकता भी आ रही है। इस कारण जाति के प्रति इसने अपने कर्तव्यों को समझा है और तेजी से समझ रहा है। बस आवश्यकता है तो आज धर्म- पंथगत भेद भुला कर एकजुटता दिखाने की। कुछ वर्षों से हिंदू ने एकजुटाता की ओर कदम बढ़ाया है और इसके उत्तम परिणाम भी सामने आने लगे हैं, तो भी इस एकजुटता के प्रयत्नों को तेजी देने की आवश्यकता है। चुनाव सिर पर हैं। हम निश्चय करें कि हम अपना मत उसी को देंगे, जो हिन्दू हित की बात करेगा और इस प्रकार के प्रतिनिधि हमें केवल भारतीय जनता पार्टी ही दे सकती है।

यदि हम ऐसा कर पाए तो निश्चय ही हमारे चुने हुए प्रतिनिधि भी अपने उत्तम दायित्वों का निर्वहन करते हुए हिंदू हित का सदा ध्यान रखेंगे और परिणाम स्वरूप वेद, शास्त्र, उपनिषद, दर्शन, गीता, रामायण आदि हमारे उच्च आदर्शों वाले ग्रंथों का सम्मान एक बार फिर से बढ़ेगा। विदेशी भी एक बार फिर से इन ग्रंथों से मार्गदर्शन पाने के लिए लालायित हो जाएंगे। हमारे शत्रु भी हिंदू से थर थर कांपेंगे और इसका सामना करने के स्थान पर छुप कर अपनी मांद में ही बैठे रहेंगे। हिंदू पंथ एकमत होकर चलेगा तो किसी को उसकी ओर आंख उठाने का साहस न होगा। अत: हम प्रतिज्ञा लें कि हम भविष्य में सदा केवल उस प्रतिनिधि का ही चुनाव करेंगे जो हिंदू हित की बात करेगा और हिंदुत्व के लिए जी-जान लड़ा कर कार्य करेगा तथा हिंदू विरोधियों की कुचालों को निरंतर कुचलने की कार्य करेगा। यदि हम ऐसा कर पाए तो हमारा भविष्य निश्चय ही उज्ज्वल होगा तथा जीवन सफल होगा।

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