वैदिक धर्म से विमुख होना ही असली समस्या

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महर्षि दयानंद सरस्वती से प्रभावित होकर इस्लाम से वैदिक धर्म में लौट कर आर्य समाजी बने पंडित महेन्द्र पाल आर्य ने पिछले 36 वर्षों में वैदिक धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए अपने को समर्पित कर दिया। आर्य समाज के कार्यों, वैदिक धर्म के प्रति विमुखता से उपजे संकटों, हिंदुओं की ऐतिहासिक भूलों, इस्लाम व ईसाइयत जैसे पंथों, पुलवामा हमला आदि पर उनसे हुई विशेष बातचीत के प्रमुख अंशः-

सेवाव्रती देवो भव

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हमारी संस्कृति हमें बताती है, ‘मातृदेवो भव, पितृदेवो भव, आचार्यदेवो भव’-माता, पिता एवं आचार्य (गुरू) ये देवता स्वरूप हैं। इसमें ‘सेवाव्रती देवो भव’ भी जोड़ना चाहिए। डॉ.अशोकराव कुकड़े ऐसे ही सेवाव्रती हैं, जिन्हें पद्मभूषण से सम्मानित किया गया है।

स्वदेशी राष्ट्रभाषा का महत्व

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महर्षि दयानंद हिंदी को आर्य भाषा कहते थे। आर्य समाज, लाहौर ने सन 1936 में प्रथम आर्य भाषा सम्मेलन किया, जिसके अध्यक्ष मुंशी प्रेमचंद थे।

भारत-राष्ट्र का नवनिर्माण

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वेद को खोने-भुलाने से यह देश भी भूल गया- हमें ही विजयी होना है और विशुद्ध होना है। पराजित अनायास पापरिहत नहीं हो सकता। विजयी होने के लिए उच्च चरित्र का होना आवश्यक है। क्या आज यह देश ‘भारत’ के नाम से दुनिया के किसी कोने में जाना जाता है? क्या विश्वामित्र-रक्षित भारत भूमि की स्तुति, वंदना और अर्चना होती है? क्या भारत-भक्ति का उन्मूलन पिछले दो सौ साल से और विशेषतः 15 अगस्त, 1947 से नहीं किया जा रहा है।

आर्य धर्म और राजनीति

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यह एक बड़ा भारी भ्रम है कि राजनीति का धर्म से कोई संबंध नहीं है। राजनीति का जन्म ही धर्म की रक्षा के लिए है। धर्म की रक्षा के लिए राजनीति तो बड़ा काम देती है, उसी प्रकार राजनीति के बिना धर्म भी सुरक्षित नहीं रह सकता।

हे मृत्युंजय!

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स्वातंत्र्यवीर विनायक दामोदर सावरकर... स्वातंत्र्यवीर और संघटक... साहित्यिक एवं समाजसुधारक... जैसे भविष्यद्रष्टा व्यक्तित्व को केवल राजनीतिक स्वार्थवश भारत में हमेशा के लिए उपेक्षित किया गया। परंतु उनके राष्ट्रभक्ति से जाज्वल्यमान विचार आज भी नई पीढ़ी के लिए मार्गदर्शक हैं।

राष्ट्र-धर्म के अग्रदूत भारत रत्न नानाजी देशमुख

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यूं तो हमारा देश पुरातन काल से ही ॠषियों, मुनियों, मनीषियों, समाज सुधारकों व महापुरुषों का जनक रहा है जिन्होंने न सिर्फ भारत बल्कि पूरे विश्व का मार्गदर्शन कर जगत कल्याण का मार्ग प्रशस्त किया है; किंतु आधुनिक युग की बदलती हुई परिस्थितियों में ऐसे महापुरुष बिरले ही हैं।

क्या स्वर्ण युग फिर आएगा?

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वह बहार बीत गई जब, गुलाब के फूलों की सुंदर शोभा दिखाई देती थी। अब तो गुलाब में बिना पत्तों के, कांटों की डालियां दिखाई दे रही हैं।

आर्य समाज की वैचारिक क्रांति

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7 अप्रैल 1875 को मुंबई में ऋषि दयानंद ने पहली आर्य समाज स्थापित की थी, जिसे आज 144 वर्ष हो गए हैं। धार्मिक और सामाजिक आंदोलनों के इतिहास में यह महत्वपूर्ण घटना है।

वर्तमान में आर्य समाज की भूमिका

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आर्य समाज एक सामाजिक संगठन है। इसके संस्थापक स्वामी दयानंद जी ने अपने समय की रूढ़ियों, कुरीतियों और अंधविश्वासों के विरुद्ध खड़े होकर एक भीषण शंखनाद किया था जिसके परिणामस्वरूप देश में एक भूचाल सा आया और इसमें सब प्रकार की कुरीतियां नष्ट होने लगीं।

बजट में किसानों का सम्मान

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किसानों की समस्या को दूर करने एवं कृषि से जुड़ी परेशानियों को कम करने के लिए केंद्रीय बजट 2019-20 में प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि बनाने की घोषणा की गई है, जिसके तहत छोटे और सीमांत किसानों को एक सुनिश्चित आय सहायता के रूप में दी जाएगी।

आर्य समाज-एक सिंहावलोकन

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आंतरिक मामले में आर्य समाज भले ही निर्बल हो रहा हो परंतु बाह्य आपदाओं से निपटने में वह पूर्णरूपेण सशक्त एवं सक्षम है। ऐसे अवसरों पर आर्य समाज के अंतर्गत विभिन्न विचारधाराओं के लोग मिल कर एकमत हो जाते हैं और विजयश्री निश्चित रूप से आर्य समाज को ही प्राप्त होती है।

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