बचपन जीवन की नींव है , अतः नींव को मजबूत बनाने के लिए माता- पिता की भूमिका बहुत ही अहम है। माता-पिता को अनुशासन और कठोर अनुशासन के बीच के रेखा को बनाए रखते हुए बच्चों को व्यस्त रखना अति आवश्यक है जिससे उनकी शक्तियों, योग्यताओं, क्षमताओं का सही विकास हो सके।
गर्मियों की छुट्टी आते ही प्रायः बच्चे बहुत खुश होते हैं। पूरे साल के कठिन परिश्रम के बाद उन्हें खाली समय जो मिलता है, जिसे वे पूरी मस्ती से अपने ही अंदाज़ में बिताना चाहते हैं। उनका यह जोश कुछ समय तो बना रहता है, पर कुछ ही दिनों में उनके सामने एक खालीपन पसरने लगता है। वे अपनी मां के इर्द गिर्द घूमने लगते हैं और बार-बार माँ से पूछते, मां अब क्या करें। मां भी कुछ काम बता देती है। पर उससे न तो बच्चे संतुष्ट होते हैं, न ही स्वयं मां। सभी के सामने एक बड़ा प्रश्न रहता है कि क्या काम बताया जाए जिससे बच्चों का मनोरंजन भी हो और वे कुछ नया सीख सकें। उनके समय और ऊर्जा का सदुपयोग हो सके।
इसके लिए यह आवश्यक है कि माता -पिता छुट्टियों से पहले ही बच्चों के लिए प्रभावकारी योजना बना कर रखें। उन्हें मोबाइल गेम, टीवी आदि की लत से बचाएं। वे बच्चों के संग समय बिताएं और उनकी रुचियों को समझें। माता-पिता को ऐसे कामों की लिस्ट बनानी चाहिए जो उनके बच्चों को पसंद हैं। हंसी खुशी के माहौल में बच्चों की शारीरिक एवं मानसिक ऊर्जा को सही कार्य में लगाना माता-पिता का दायित्व है। बच्चों को ऐसा भी नहीं लगाना चाहिए कि छुट्टियों में भी उन्हें कड़े अनुशासन में बांध दिया गया है।
आजकल अधिकतर माता-पिता कामकाजी हैं। बच्चों को समय देना उनके लिए बहुत कठिन हो जाता है। परंतु उन्हें भी बच्चों के सही विकास के लिए अपना टाइम टेबल ऐसा बनाना चाहिए कि वे बच्चे को कुछ समय अवश्य दे सकें। बच्चों की ज़रूरत के हिसाब से संभव हो तो वे वर्क फ्राम होम भी कर सकते हैं।
प्रातःकाल बच्चे अपनी आयु एवं रुचि के अनुसार आउट डोर गेम खेल सकते हैं। आजकल मोबाइल के युग में प्रायः बच्चे मोबाइल पर ही गेम खेलते रहते हैं। वे बाहर जा कर खेलना ही नहीं चाहते। अतः यह अति आवश्यक है कि बालक कुछ भागदौड़ करें। क्रिकेट, फुटबाल, वॉली बॉल आदि गेम खेलें, तैराकी करें, स्केटिंग करें, जिससे उनका मानसिक और शारीरिक विकास ठीक से हो सके। वे जीवन में हार जीत के साथ सामंजस्य करना सीख सकें। टीम बना कर काम करने की योग्यता का उनमें विकास हो सके। इसके लिए माता-पिता प्रशिक्षित लोगों का सहयोग ले सकते हैं। गेम के चयन में बालक की रुचि का ध्यान रखना बहुत ही ज़रूरी है। माता-पिता को अपने विचार बच्चों पर थोपने नहीं चाहिए। प्रातःकालीन सैर पर ले जाना, ग्रुप एक्ससाइज़, प्राणायाम, आदि कराना भी बालकों के उत्तम विकास में सहायक होता है। यदि संभव हो तो उनके मित्रों को भी साथ चलने के लिए प्रेरित किया जा सकता है। बच्चे अपने मित्रों के साथ बहुत खुश रहते हैं। अलग-अलग दिन बच्चों की ज़िम्मेदारी अलग-अलग अभिभावक मिल कर उठा सकते हैं।
सुबह के समय बच्चों के साथ मिल कर गार्डनिंग का काम भी किया जा सकता है। पानी बच्चों को बहुत प्रिय होता है। वे पेड़ पौधों में पानी डाल सकते हैं, गुड़ाई कर सकते हैं। कोई पौध तैयार कर सकते हैं। उन्हें एक दो पौधों की ज़िम्मेदारी देकर उनमें जिम्मेदारी का भाव तथा आत्मविश्वास बढ़ाया जा सकता है। जब बालक अपने लगाए हुए पौधों को बढ़ते हुए देखते हैं तो उन्हें अपार खुशी होती है। इससे उनका वृक्षों के प्रति लगाव भी बढ़ता है। इस तरह प्रसन्नता के वातावरण में उनकी ऊर्जा का सही उपयोग होता है। मां को बच्चों की रुचि का नाश्ता बनाना चाहिए और नाश्ता बनाने में उनसे भी सुझाव व सहायता भी लेनी चाहिए।
बच्चों को प्रोत्साहन और कुछ ईनाम देकर उनसे घर के कुछ काम भी करवाने चाहिए। जिससे उनमें एक दूसरे की सहायता करने की भावना जागृत हो और छोटे-छोटे कामों में वे खेल खेल में ही दक्ष हो जाएं। जैसे डाइनिंग टेबिल सजाना, खाना खिलाना, फूलदान सजाना, सफाई आदि। इन कार्यों को करवाते समय लड़का-लड़की में कोई भेद नहीं करना चाहिए।
कभी-कभी बच्चों को घर में ही छोटे-छोटे उत्सव, नाटक, डांस, संगीत आदि के आयोजन के लिए प्रेरित करना चाहिए और उनके कार्यक्रमों में उनके दोस्तों को और परिवार के लोगों को आमंत्रित करना चाहिए। इससे बच्चों में मैनेजमेंट करने की क्षमता का विकास होता है। वे कलाओं में दक्षता प्राप्त करते हैं तथा बिना किसी झिझक के वक्तव्य देने में निपुण होते हैं।
बच्चों को कभी गानों की, कभी कविताओं की और कभी शब्दों की अंताक्षरी खेलने के लिए प्रेरित करना भी बहुत ज़रूरी है। इससे उनका ज्ञान तो बढ़ता ही है साथ ही तत्परता का भी विकास होता है। कहानी, निबंध, कविता लेखन के प्रति भी बालकों को प्रोत्साहित करना चाहिए।
ग्लोब लेकर भूगोल संबंधी खेल खेलने में भी बच्चों की रुचि होती है। सहज ही खेल खेल में वे दुनिया की बड़ी जानकारी हासिल कर लेते हैं। बच्चों के सकारात्मक एवं कलात्मक विकास के लिए उन्हें क्राफ्ट वर्क, कला, प्रोजेक्ट तैयार करना, गुड़िया बनाना आदि के लिए प्रेरित करना भी अति आवश्यक है। इसके लिए घर में सभी ज़रूरी सामान ला कर रखना चाहिए। दोपहर के समय ये काम आसानी से करवाए जा सकते हैं।
गर्मी के मौसम में बाहर निकालना बहुत मुश्किल हो जाता है। अतः इनडोर गेम जैसे बिजनेस, शतरंज, कैरम आदि खेलने के लिए भी बालकों को प्रेरित करना चाहिए।
बालकों की दिनचर्या में लाइब्रेरी के लिए भी समय रखना अत्यंत आवश्यक है। पत्रिकाएँ एवं पुस्तकें पढ़ना, उन पर विचार विमर्श करना बच्चों के ज्ञान वर्धन के लिए अति आवश्यक है।
गर्मी की छुट्टियों में माता-पिता को अपने समय और आर्थिक स्थिति के अनुसार परिवार के सभी बच्चों के साथ खूब मौज-मस्ती करनी चाहिए। कहीं भ्रमण के लिए जाना, साइकिलिंग करना, ट्रेकिंग के लिए जाना, पिकनिक, बीच, वाटर पार्क, म्यूजियम, चिड़ियाघर आदि जाना बच्चों को बहुत अच्छा लगता है। इससे पारिवारिक आनंद तो मिलता ही है, साथ ही बच्चों और परिवार के बीच प्रेम और घनिष्ठता भी बढ़ती है।
बालकों के विकास के लिए समर कैंप, विभिन्न क्लास आदि चलाई जाती हैं। परंतु माता-पिता स्वयं भी अपने बच्चों को समय दें तो वे भी अपने बच्चों का अच्छे से अच्छा विकास कर सकते हैं। यदि माता -पिता दोनों कामकाजी हैं तो वे बच्चों को इन समर कैंप्स आदि में भेज सकते हैं। पर ध्यान रहे बच्चों पर निरर्थक किसी क्लास, समर कैंप या ट्यूशन आदि का ज़बर्दस्ती बोझ न डालें। बच्चे अपनी छुट्टियां आनंद से बिताना चाहते हैं। हमें किसी भी प्रकार का बोझ डाल कर उनका बचपना नहीं छीनना चाहिए। साथ ही बच्चों को अनुशासन में रखना, उन्हें बुराइयों से बचाना तथा बच्चों पर नज़र रखना कि वे इंटरनेट पर क्या देख रहे हैं, माता -पिता की बड़ी जिम्मेदारी है।
अंत में मैं यही कहूंगी कि बचपन जीवन की नींव है , अतः नींव को मजबूत बनाने के लिए माता- पिता की भूमिका बहुत ही अहम है। माता-पिता को अनुशासन और कठोर अनुशासन के बीच के रेखा को बनाए रखते हुए बच्चों को व्यस्त रखना अति आवश्यक है जिससे उनकी शक्तियों, योग्यताओं, क्षमताओं का सही विकास हो सके।