एक बड़ी समय-सद्ध कहावत है, ‘नेकी कर दरिया में डाल’ अर्थात् उपकारी उपकार को कर्तव्य अर्थात फर्ज मानकर उसे सम्पादित करें। उसमें उपकार करके उसके बदले प्रतिलाभता प्राप्त करने का विचार नहीं होना चाहिए।
एक बार सूर्यदेव ने अपने सतत् गतिशील रथ में बैठने से इन्कार कर दिया। उनकी प्राणप्रिय प्राची ने सविनय जिज्ञासा की कि प्रभु! आज विश्वयात्रा से यह विरक्ति क्यों कर रहे हैं? सूर्यदेव ने रौद्र रूप धारण करके कहा कि ‘जिस पृथ्वी को मैं अनादिकाल से प्रतिदिन अपने प्रखर प्रकाश से प्रकाशित करता रहा हूं, मेरे आताप से समुद्र के पानी को भाप बनाकर आकाश में उसेबादल में परिवर्तित कर वर्षा का निमित्त बनता हूं, मेरे ही कारण फसलें उगती, पनपती एवं पकती हैं तथा प्राणी मात्र जीवन की ऊर्जा प्राप्त कर संसार चक्र को चलाता है। वह मानव इतना क्षुद्र हो गया है कि अब मुझे मात्र आग का गोला बताकर मेरा उपहास कर मुझे अपमानित कर रहा है। ऐसी कृतघ्न मानव जाति मुझे लांछित एवं तिरस्कृत करने पर तुली है। उसका दिया अपमान का घूंट पी जाना एवं उसके बावजूद भी समता एवं धैर्य का भाव रख पाना अब मेरी क्षमता एवं बूते के बाहर की बात है। वे जाने और उनका काम जाने। जब वह मेरा ऐसा घोर अपमान एवं तिरस्कार करने पर तुले हैं तो मेरा ऐसे कृतघ्नों की सेवा से क्या सरोकार?
देवी प्राची ने सविनय निवेदन किया कि हे सूर्यदेव! इस तरह रूठिए एवं कुपित मत होइए। देव! आपके बिना इस मानव का एवं इस समग्र संसार का काम एक दिन भी नहीं चल सकता। नाथ! आप इतने सुविज्ञ होकर यह क्यों भूल रहे हैं कि मानव अपने अहंकार, क्षुद्रता एवं स्वार्थ के कारण आदतन पत्थर फेंकते ही रहते हैं। मन को यदि मटका बना लें तो वह टूट-फूट कर टुकड़े होकर बिखर जाता है। वही टुकड़े हर आने-जाने वाले के पैरों में गड़कर चुभन पैदा करते हैं। परन्तु यदि मन को सागर बना लें तो वह सारे पत्थर अपने तल में छिपाकर ऐसे हिलोरें लेता रहता है जैसे कुछ हुआ ही नहीं है। प्रभु! उपकार के बदले प्रतिलाभता का भाव या विचार भी मन में लाना क्षुद्रता का द्योतक है। क्षमावीर सदैव क्षुद्र मटकों का नहीं अपने कार्य एवं व्यवहार से सागर की गहराई एवं गरिमा का एहसास देते हैं। अतः हे नाथ! इस क्षुद्रता एवं प्रतिलाभता के विचार को तिलांजलि देकर रथारूढ़ हों, एवं अपने कर्तव्य का पालन करें।
शुभास्ते पंथा! प्रभु आपकी यात्रा शुभ तथा मंगलमय करें। आपका पथ निष्कंटक एवं आपके मन के भावों को जन-कल्यणकारी एवं विश्व हितकारी बनाए यही मेरी बिनती है और यही मेरी आपके प्रति मंगल कामन है। कहना न होगा कि सूर्यदेव अविलम्ब रथारूढ हो विश्व भ्रमण के अपने कर्तव्य पथ पर अग्रसर हो गए।
एक अँग्रेज लेखक स्टेर्न ने कहा है – कायर कभी क्षमा नहीं करते, जो बहादुर हैं, क्षमा करना उन्हें ही आता है।