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स्टाइल का विज्ञान फैशन साइकोलॉजी

स्टाइल का विज्ञान फैशन साइकोलॉजी

by रक्षिका प्रियदर्शिनी
in जून २०१९, फ़ैशन, सामाजिक
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फैशन शब्द पढ़ने या सुनने में जितना आसान प्रतीत हो रहा है, वास्तव में यह उतना आसान है नहीं। ’फैशन साइकोलॉजी’ का दायरा कपड़े और मेकअप से ज्यादा विस्तृत है।

आज़ की दिनचर्या में अक्सर हमारा सामना ऐसे लोगों से होता है जो कुछ अलग तरह के कपड़े पहनकर घूमते हैं। उन्हें देखकर हम अपने मन में उनकी एक छवि बना लेते हैं और फिर उसके अनुरूप ही उनसे बात या व्यवहार करते हैं। उदाहरण के तौर पर, पिछले दिनों गुड़गांव के एक शॉपिंग मॉल में एक बुजुर्ग महिला ने एक युवती को उसके द्वारा पहने गये ’छोटे कपड़ों’ को लेकर कुछ आपत्तिजनक टिप्पणी की, जिसे लेकर सोशल मीडिया पर काफी हंगामा हुआ। गौरतलब है कि उस महिला ने उस युवती के कपड़ों को देख कर अपने मन में उसकी एक छवि गढ़ ली होगी। इसी वजह से उसकी बातों और उस लड़की के प्रति महिला के व्यवहारों पर इसका प्रभाव पड़ा। यही है फैशन साइकोलॉजी। व्यवहारिक विज्ञान से जुड़ा यह शब्द दो बेहद महत्वपूर्ण शब्दों के मेल से बना है- फैशन और साइकोलॉजी। यह शब्द पढ़ने या सुनने में जितना आसान प्रतीत हो रहा है, वास्तव में यह उतना आसान है नहीं। ’फैशन साइकोलॉजी’ का दायरा कपड़े और मेकअप से ज्यादा विस्तृत है।

फैशन क्या है?

जर्नल ऑफ ड्रेस, बॉडी एंड कोचर के अनुसार सामाजिक सभ्यता और संस्कृति के अनुसार कपड़ों से अपनी पहचान बनाना ही फैशन है। दूसरे शब्दों में कहें, तो फैशन सामनेवाले व्यक्ति की नजर में हमारे व्यक्तित्व को चित्रित करने में मदद करता है। हमारे कपड़े चुनने, उन्हें पहनने के तरीके और उनके बारे में हमारी जानकारी आदि दुनिया को हमारे दृष्टिकोण का आरंभिक परिचय देता है। कपड़ों के अलावा  दिन-प्रतिदिन उपयोग में लायी जााने वाली अन्य वस्तुएं भी हमारे फैशन को दर्शाती हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि फैशन केवल हमारे कपड़ों के जरिये हमारी कहानी नहीं कहता, बल्कि इसका विस्तार उससे कहीं आगे है। अक्सर लोग फैशन और स्टाइल में कन्फ्यूज हो जाते हैं। आपको पता होना चाहिए कि फैशन और स्टाइल भले ही सुनने में एक जैसे शब्द लगते हों, लेकिन इन दोनों में बेहद बारीक अंतर है और वह यह कि फैशन समय के साथ बदलता है और स्टाइल लंबे समय में एक ही रहता है।

क्या है साइकोलॉजी?

फैशन साइकोलॉजी का दूसरा अहम भाग है – साइकोलॉजी। साइकोलॉजी अथवा मनोविज्ञान मूल रूप से लोगों की मानसिक प्रकिया और उनके व्यवहार का अध्ययन है। मनोवैज्ञानिक लोगों के व्यवहार, उनके हाव-भाव और उनके बातचीत करने के तौर-तरीके से उनकी भावनाओं का अध्ययन करते हैं और फिर उनके व्यक्तित्व के बारे में एक निश्चित निष्कर्ष निकालते हैं। इस दृष्टिकोण से देखें, तो फैशन साइकोलॉजी का अर्थ है- व्यक्ति के फैशन के अनुसार उसके मन की भावनाओं का अध्ययन करना।

अब जानिए क्या है फैशन साइकोलॉजी?

फैशन साइकोलॉजी का अर्थ किसी व्यक्ति के पहनावे और उसके रहन-सहन के अनुसार उसकी पर्सनैलिटी का अध्ययन करना है। वर्तमान समय में फैशन इंडस्ट्री के बढ़ते प्रसार की वजह से फैशन साइकोलॉजी काफी डिमांड में है। किसी फैशन प्रोडक्ट की मार्केटिंग के दृष्टिकोण से भी यह काफी कारगर है। कौनसे प्रोडक्ट का कितना कारोबार होगा और किस तरह के खरीदारों को क्या पसंद आयेगा, इस बात का अनुमान लगाने में फैशन साइकोलॉजी बेहद मददगार साबित हो रही है।

फैशन साइकोलॉजी की उत्पत्ति

कुछ लोग ये समझते हैं कि फैशन साइकोलॉजी की  उत्पत्ति बीसवीं शताब्दी में हुई जबकि इसकी जड़ें वास्तव में 19वीं शताब्दी से ही जुड़ी हुई हैं। हेनरी जेम्स, जिनका जन्म 1841 में अमेरिका में हुआ था, उन्होंने सबसे पहले अपने भाषणों और लेखनी में फैशन साइकोलॉजी शब्द का उपयोग किया था। सर जेम्स ने सन 1869 में मेडिकल की पढ़ाई पूरी की, लेकिन उन्होंने मेडिसिन में काम न करके हावर्ड  यूनिवर्सिटी में लेक्चरर की नौकरी कर ली।

सर जेम्स के लेख ’द सेरिटोरियल सेल्फ’ के बारे में येल यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर और लेखिका सेसेलिया वॉटसन ने कहा है “जेम्स ने पहनावे को बहुत महत्व दिया है और उनके साइकोलॉजी के लेख में भी इसकी झलक है।”  वह आगे कहती हैं, “सर जेम्स का फैशन के लिए रुझान उनके पहनावे तथा उनके अकाउंट बुक में दिखता है।”

केवल सर जेम्स ही नहीं, बल्कि जर्मन साइकोलॉजिस्ट और फिजिशियन रूडॉल्फ हर्मन लॉट्ज ने भी फैशन साइकोलॉजी से जुड़े कुछ तथ्य लिखे थे। उन्होंने अपने लेख माइक्रो कॉसमॉस में लिखा था कि ”इंसान जो भी पहनता है, वह उसके व्यक्तित्व का एक हिस्सा बन जाता है।”

वर्तमान फैशन साइकोलॉजी

सन् 1800 से अब तक फैशन की दुनिया में कई बदलाव आ चुके हैं। फैशन साइकोलॉजी का क्षेत्र अभी भी शुरुआती स्तर पर है। इस क्षेत्र में रिसर्च के साथ-साथ ही विभिन्न डिग्री कोर्सेस की भी शुरुआत हुई है। कुछ ऐसे भी लोग हैं, जिन्होंने साइकोलॉजी में डिग्री लेकर इस क्षेत्र में आगे रिसर्च की।

फैशन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, न्यूयॉर्क की प्रोफेसर डॉ कैरेन ने अपनी मॉडलिंग कैरियर की शुरुआत के कई वर्षों बाद काउंसलिंग साइकोलॉजी की डिग्री ली। उसके बाद उन्होंने लगभग एक साल दुनिया की विभिन्न जगहों पर जाकर रिसर्च किया। इस वजह से धीरे-धीरे लोगों को उनके काम और उनके विचारों के बारे में जानने-समझने का अवसर मिला। रिसर्च स्टडी समाप्त होने तक लोगों के बीच उनकी अच्छी-खासी पहचान बन चुकी थी। दुनिया भर में अपनी पहचान बनाने के बाद उन्होंने न्यूयॉर्क में पहले फैशन साइकोलॉजी इंस्टीट्यूट की स्थापना करके एक विश्व इतिहास रच दिया।

दूसरी ओर, कॉग्निटिव साइकोलॉजिस्ट डॉ. कैरोलिन मेयर ने फैशन साइकोलॉजी की डिग्री प्रोग्राम की शुरुआत करके एक अलग इतिहास की रचना की। इस डिग्री की पढ़ाई लंदन कॉलेज ऑफ फैशन, यूनिवर्सिटी ऑफ आर्ट्स, लंदन में शुरू हुई। डॉ. मेयर ने सस्टेनेबल फैशन की भी पहल की।

भारत में फैशन साइकोलॉजी

आधुनिक युग में बॉलिवुड हस्तियों ने फैशन स्टाइलिस्ट के महत्व को समझा है और उन्हें बढ़ावा दिया है। अनायिता श्रॉफ अदजानिया, रिया कपूर और पर्निया कुरैशी जैसी स्टाइलिस्ट वर्तमान फैशन इंडस्ट्री के जाने-पहचाने नाम हैं। इन्होंने बदलते दौर की जरूरत और लोगों की पसंद को ध्यान में रखते हुए फैशन में नित नये प्रयोग किये। लोगों द्वारा भी उनके इस प्रयोग को खूब पसंद किया जा रहा है। स्टाइल जहां आज के दौर का अभिन्न अंग है, वहीं गुड़गांव की साइकोलॉजिस्ट डा़ हर्षिन के अरोड़ा को इसके पीछे का मनोविज्ञान  आकर्षित करता है। वह अपने इस रुझान को अपने फोटोग्राफी वेंचर ‘द स्टूपिड आइ’ और अपनी लक्जरी लाइन ‘द वी रेनेसा’ के जरिये बखूबी दर्शाती भी हैं। बकौल हर्षिन फैशन साइकोलॉजी बहुत ही अद्भुत और रोमांचक है। यदि आप किसी पार्टी में एक ऐसा व्यक्ति देखेंगे, जिसने सलीके से सूट-बूट पहन रखा हो, तो आपके दिमाग में यही ख्याल आता है कि वह व्यक्ति जरूर किसी अच्छे पद पर कार्यरत हैं। इसी तरह अगर आपको कोई महिला बेतरतीब साड़ी लपेटे हुए नजर आती है और उसके चेहरे का मेकअप भी लिपा पुता सा दिखता है, तो आप अंदाज लगाते हैं कि या तो उसे अपने घर-परिवार और काम से फुर्सत नहीं मिलती या फिर उसे अपनी चिंता नहीं है। यही है फैशन साइकोलॉजी। कभी-कभी व्यक्ति कुछ कपड़े इसलिए पहनते हैं, क्योंकि इससे उन्हें अपने काम को बखूबी करने की प्रेरणा मिलती है। जैसे- सैनिकों की वर्दी, जो उनके भीतर साहस और शौर्य का संचार करती है और उन्हें अपनी ड्यूटी को मुस्तैदी से निभाने के लिए प्रेरित करती है।

डॉ. हर्षिन अरोड़ा ने टीवीआर नामक एक कंपनी की शुरुआत की है। कुल चार लोग इसके साझेदार हैं। दिलचस्प बात यह है कि उनमें से कोई भी पार्टनर फैशन इंडस्ट्री से जुड़ा हुआ नहीं है। फिर भी टीवीआर आज के समय में फैशन के क्षेत्र का एक बड़ा नाम है। इस पर डॉ हर्षिन कहती हैं “हम अपने अनुभव और व्यक्ति के चरित्र के अनुसार डिजाइन बनाने की कोशिश करते हैं। लग्जरी ब्रांड के कारण हमारे ज्यादातर क्लाइंट मिडिल एज ग्रुप के हैं। अभी हम यंग एज ग्रुप और इंटरनेशनल क्लाइंट्स तक अपनी पहुंच बनाने की तैयारी कर रहे हैं।” अपने पहनावे के जरिये व्यक्तित्व को दर्शाने से अन्य लोग अपने आप हमारी ओर आकर्षित होते हैं। अत: राल्फ वाल्डो एमर्सन ने सही कहा है “इस बदलती हुई दुनिया में स्वयं को बनाये रखना ही सबसे बड़ी कामयाबी है।”

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