हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
बड़ा लक्ष्य ज्यादा चुनौतियां

बड़ा लक्ष्य ज्यादा चुनौतियां

by अवधेश कुमार
in जुलाई २०१९, सामाजिक
0

प्रधानमंत्री मोदी ने 10 जून को सचिवों की बैठक में कहा कि हम पांच लाख अरब की अर्थव्यवस्था बनना चाहते हैं और उसके लिए काम करना है। ऐसे राष्ट्रीय लक्ष्य चुनौतियां तो पैदा करते ही हैं। नरेन्द्र मोदी ने बड़े लक्ष्य के साथ अपने लिए बड़ी चुनौतियां और बड़े कार्य का भार अपने सिर लिया है।

दुनिया की ऐसी कोई सरकार नहीं जिसके सामने चुनौतियां नहीं हो। चुनौतियां और कार्य दबाव इस पर
भी निर्भर करता है कि किसी सरकार ने अपने राष्ट्र का लक्ष्य क्या निर्धारित किया है। आप जितना बड़ा लक्ष्य रखेंगे चुनौतियां उतनी ही ज्यादा होंगी और उसी अनुसार आपके कार्य का दबाव बढ़ा रहेगा। नरेन्द्र मोदी सरकार-2 ने स्वयं भारत राष्ट्र का लक्ष्य बड़ा करके अपनी चुनौतियां तथा कार्य दबाव बढ़ा लिया है।

प्रधानमंत्री ने अपनी पार्टी का घोषणा-पत्र जारी करते हुए कहा कि हमारा लक्ष्य स्वतंत्रता के 100 वेंं वर्ष यानी 2047 तक भारत को विश्व का समृद्धतम एवं महानतम देश बनाना है और उसका पूरा ठोस आधार हम अपने इस कार्यकाल यानी 2024 तक बना देंगे। इस तरह उन्होंने स्वतंत्रता के 75 वेंं वर्ष में उन लक्ष्यों के 75 पड़ाव भी तय किए हैं। अपने पहले कार्यकाल से नरेन्द्र मोदी विदेश यात्राओं के दौरान प्रवासी भारतीयों को संबोधित करते हुए कहते रहे हैं कि भारत अब विश्व का नेतृत्व करने के लिए अंतरराष्ट्रीय पटल पर आ गया है। इसका मतलब प्रधानमंत्री बनने के साथ उनके मन में भारत नामक इस महान राष्ट्र का उद्देश्य स्पष्ट रहा है।

सरकार के अंदर तो ऐसा बदलाव दिख रहा है, उसके बार-बार बोलने से आम लोग भी धीरे-धीरे ऐसा सोचने लगे हैं लेकिन देश का एक बड़ा बुद्विजीवी तबका अभी भी भारत के एक पिछड़े विकासशील होने की मानसिकता से बाहर नहीं निकल रहा और यह उसके समूचे शब्द व्यवहार में दिखता है। सच यह है कि अपने लक्ष्य के अनुरुप मोदी सरकार ने विश्व पटल पर तथा संबंधों मेेें अपना व्यवहार बदला है किंतु यह वर्ग बदलाव को स्वीकार करने को तैयार नहीं है। कैसे? इसका एक उदाहरण देखिए। अमेरिका द्वारा जीएसपी यानी व्यापार में वरीयता की सामान्य व्यवस्था के तहत भारत को विकासशील देश के रूप में निर्यातित सामग्रियों पर शुल्क छूट का लाभ समाप्त करने के निर्णय पर ऐसी प्रतिक्रिया दी गई मानो आफत आ गई हो। हमारे देश को बड़ी क्षति होने जा रही है और अमेरिका जानबूझकर ऐसा कर रहा है ताकि भारत से वह लाभ कमा सके। राष्ट्पति डोनाल्ड ट्रंप ने 4 मार्च को कह दिया था कि यदि भारत में अमेरिकी सामानों को अपने बाजार तक समान और यथोचित पहुंच उपलब्ध नहीं कराया तो अगले साठ दिनों में जीएसपी दर्जा समाप्त कर देंगे। उनका कहना था कि चूंकि भारत ने इस संबंध में आश्वासन नहीं दिया है कि कई क्षेत्रों में अपने बाजार तक अमेरिका को समान और यथोचित पहुंच दिलाएगा, इसलिए 5 जून से भारत का दर्जा खत्म। उनका कहना है कि बातचीत में मुझे लगा कि भारत ने अमेरिका को यह भरोसा नहीं दिलाया कि वह अमेरिका के लिए बाजार उतना ही सुलभ बनाएगा जितना अमेरिका ने उसके लिए बनाया है। अमेरिका की दलील है कि भारत अपने कई सामान अमेरिका में बिना किसी आयात शुल्क के बेचता है, लेकिन भारत में सामान बेचने के लिए अमेरिका को आयात शुल्क चुकाना होता है।

जीएसपी यानी जनरलाइज्ड सिस्टम ऑफ प्रेफरेंसेज अमेरिका द्वारा विकासशील एवं गरीब देशों को व्यापार में दी जाने वाली तरजीह की सबसे पुरानी और बड़ी प्रणाली है जिसका उद्देश्य विकासशील देशों को अपना निर्यात बढ़ाने में मदद करना है ताकि उनकी अर्थव्यवस्था बढ़ सके और गरीबी घटाने में मदद मिल सके। अभी तक 129 देशों को करीब 4,800 सामग्रियों के लिए जीएसपी के तहत फायदा मिलता है। यानी बिना आयात शुल्क उनका सामान अमेरिका में प्रवेश पाता है। जीएसपी के तहत केमिकल्स और इंजीनियरिंग जैसे सेक्टरों के करीब 1900 भारतीय उत्पादों को अमेरिकी बाजार में आयात शुक्ल पहुंच हासिल थी। भारत 2017 में जीएसपी कार्यक्रम का सबसे बड़ा लाभार्थी था। इसने तब जीएसपी के तहत अमेरिका को 5.7 अरब डॉलर (करीब 39,645 करोड़ रुपये) मूल्य के सामानों का अमेरिका को निर्यात किया था। इससे भारत को सालाना 19 करोड़ डॉलर (करीब 1,345 करोड़ रुपये) का शुल्क लाभ मिलता था। तो इतनी ही क्षति भारत को होगी।

किंतु इसका दूसरा पक्ष देखिए। भारत को अमेरिका के साथ द्विपक्षीय व्यापार में प्राप्त लाभ के सामने यह कुछ भी नहीं है। भारत ने 2017-18 में अमेरिका को 48 अरब डॉलर (3,39,811 करोड़ रुपये) मूल्य के उत्पादों का निर्यात किया था। यह समझने की जरुरत है कि भारत अमेरिका के साथ व्यापारिक लाभ वाला 11हवां सबसे बड़ा देश है यानी भारत का अमेरिका को निर्यात वहां से आयात से ज्यादा है। 2017-18 में भारत का अमेरिका के प्रति सालाना व्यापार आधिक्य 21 अरब डॉलर (करीब 1,48,667 करोड़ रुपये) था। 2018-19 का जो मोटामोटी आंकड़ा उपलब्ध है उसके अनुसार दोनों देशों के बीच करीब 142 अरब डॉलर का व्यापार हुआ जिसमें करीब 25 अरब डॉलर भारत का ज्यादा था।

अब आप स्वयं विचार करिए। एक तो जीएसपी हटाने से हमारे ऊपर कोई बड़ा भार पड़ने वाला नहीं। दूसरे, द्विपक्षीय व्यापार में हमारा जो लाभ है उसके इतनी छोटी राशि का महत्व क्या है? लेकिन देश में बवण्डर खड़ा कर दिया गया। किसी ने विचार नहीं किया कि अमेरिका ने चीन की तरह हमारे शेष निर्यातों पर भारी शुल्क नहींं लगाया है। इसका कारण यही है वह भारत को एशिया की एक उभरती हुई आर्थिक एवं सामरिक महाशक्ति के रुप में देखता है जो उसकी दीर्घकालीन सामरिक रणनीति में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। अमेरिका भारत को अपना विश्वसनीय सामरिक साझेदार मानता है। भारत का वैश्विक कद और प्रभाव बढ़ रहा है जिसमें अमेरिका की भूमिका है। नरेन्द्र मोदी की शपथ ग्रहण के बाद ही अमेरिकी रक्षा मंत्रालय एवं विदेश मंत्रालय ने एक विस्तृत बयान दिया। उसमें पूरे हिन्द प्रशांत क्षेत्र में भारत की महत्ता तथा अमेरिका के लिए संबंधों को उच्च स्थान दिए जाने की बात थी। यह अमेरिका ही है जिसने एशिया पेसिफिक यानी एशिया प्रशांत का नाम बदलकर इंडो पेसिफिक यानी हिन्द प्रशांत कर दिया। उसने कहा कि भारत क्षेत्र की महाशक्ति है इसलिए इसका यही नाम होना चाहिए और उसमें भारत को ही व्यापक भूमिका निभानी है। पिछले वर्ष ही उसने अपने एशिया पेसिफिक कमान का नाम भी इंडो पेसिफिक कमान कर दिया। इस क्षेत्र में अमेरिका ने भारत को अपनी रक्षा शक्ति के विस्तार की पूरी आजादी दे दी है।

हम अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया के साथ प्रतिवर्ष बड़े युद्धाभ्यास करते हैं। चीन इससे परेशान रहता है। उसकी कोशिश क्षेत्र में अपना दबदबा कायम रखने की है लेकिन अमेरिका के प्रभाव से और अब भारत की स्वयं की बढ़ती हुई शक्ति और उसके अनुसार बदलते व्यवहार से अन्य देश भी इसकी बड़ी भूमिका के पक्षधर हैं। जब आपको इतना महत्व मिल रहा है तो उसके अनुसार आपको भूमिका का विस्तार करना होता है और उसके समानुपातिक ही आपकी जिम्मेदारियां भी बढ़ती हैं।

एक और उदाहरण लीजिए। पिछले वर्ष प्रधानमंत्री ने इंडोनेशिया, मलेशिया और सिंगापुर की यात्रा की। यह यात्रा ऐसे समय हुई थी जब हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में चीन की गतिविधियो से असुरक्षा की भावना फैली हुई थी। भविष्य में इन देशों की एवं पूरी एशिया की कैसी स्थिति होगी इस पर गहरा विमर्श हो रहा है। इस पूरे क्षेत्र की सामरिक स्थिति को बिल्कुल नया रूपाकार मिलना है। यह उसी समय साफ था कि मोदी के नेतृत्व में भारत ने उसमें अपना साफ लक्ष्य तय किया है- हम सबसे बड़ी भूमिका में यहा रहेंगे। इसके अनुसार काम हो रहा है।

इंडोनेशिया के साथ तो वैसे 15 समझौते हुए और सारे महत्व के थे। किंतु नरेन्द्र मोदी और इंडोनेशिया के राष्ट्रपति जोगो विदोडो की अगुवाई में भारत और इंडोनेशिया ने समग्र रणनीतिक साझेदारी की जो घोषणा की वह सबसे ज्यादा महत्व का था। इसका महत्व इस मायने में है कि इंडोनेशिया ने इस तरह का समझौता केवल चीन के साथ किया था। यानी यह भारत के पक्ष में संतुलन बदलने का कदम था। रणनीतिक साझेदारी में दोनों देशों ने सामरिक और आर्थिक संबंधों को लेकर जिस तरह काम करने की भावना जताई उससे स्पष्ट हो गया कि हिंद प्रशांत महासागर क्षेत्र में भारत व इंडोनेशिया के रिश्तों में आमूल बदलाव होने जा रहा है।

भारत ने इस समुद्री क्षेत्र में ऐसा व्यापक समझौता और किसी देश के साथ नहीं किया था। दोनों देशों की तरफ से हिन्द प्रशांत क्षेत्र में सामुद्रिक सहयोग पर एक साझा दृष्टिपत्र भी जारी किया गया। इसके अनुसार रणनीतिक व सामरिक क्षेत्र में दोनों देशों के बीच वार्षिक बैठक आरंभ हो गई। ऐसी बैठक भारत तब तक अमेरिका, रूस, जापान जैसे कुछ देशों के साथ ही करता था। इसमें इंडोनेशिया शामिल हो गया। दोनों देशों के बीच रक्षा सहयोग समझौता (डीसीए) हुआ जिसके तहत इनकी सेनाओं (थल, वायु और नौ सेना) के बीच सैन्य अभ्यास का एक ढांचा स्थापित हो रहा है। दोनों देशों ने संयुक्त रुप से हथियारों का निर्माण करने का भी फैसला किया। मोदी और विदोडो के बीच हिंद प्रशांत महासागर क्षेत्र में संयुक्त सैन्य पेट्रोलिंग को मजबूत करने को लेकर नई व्यवस्था भी बात हुई और इस पर काफी आगे बढ़ गए हैं।

जैसा हम जानते हैं दक्षिण चीन सागर में चीनी आक्रामकता तथा उसकी महत्वाकांक्षाओं से क्षेत्र के सारे देश चिंतित हैं। सभी चाहते हैं कि भारत यहां महत्वपूर्ण और बड़ी भूमिका निभायें। तो इसे भारत के लिए मोदी ने एक अवसर के रुप में देखा और उसी अनुरूप सरकार ने पूरे क्षेत्र के लिए अपनी दूरगामी सामरिक नीति निर्धारित की। भारत का कहना है कि इस पूरे क्षेत्र में नौवहन की आजादी होनी चाहिए जिससे इससे जुड़े सभी देशों को आर्थिक व सामरिक दृष्टि से लाभ हो। तो भारत के साथ रक्षा संबंधों का विकसित होना वास्तव में एक दौर की शुरुआत ही है। इंडोनेशिया ही नहीं आसियान के कई देश भारत से मिसाइल सहित रक्षा सामग्री खरीदने की तैयारी में है। तो इसके अनुरुप भारत को अपना रक्षा ढांचा भी विकसित करना होगा। भारत का लक्ष्य किसी देश के विरुद्ध कोई समूह बनाना नहीं है लेकिन भविष्य का ध्यान रखते हुए हमें पूर्वोपाय तो करना ही है।

चीन का एक न्यू मैरीटाइम सिल्क रूट है, वो इंडोनेशिया के मलक्का से अफ्रीका के जिबूती तक जाता है। भारत इंडोनेशिया के बीच संपन्न समझौते के तहत दोनों देशों के बीच व्यापार एवं रक्षा गलियारा बनेगा। इससे हम चीन के मैरीटाइम सिल्क रूट का सामना कर पाएंगे। चीन, पाक, श्रीलंका, बांग्लादेश और म्यांमार-फिलीपींस पर नजर जमाए हुए है। इंडोनेशिया के साथ आने से अंडमान-निकोबार के पास चीन की बढ़ती उपस्थिति का सामना करने में आसानी होगी। उनकी सिंगापुर की यात्रा को देखें तो यहां भी 14 उद्योग से उद्योग (बी 2 बी) और उद्योग से सरकार (बी 2 जी) करारों की घोषणा हुई जो भारत के व्यापारिक विस्तार का द्योतक था। किंतु दोनों देशों ने समुद्री सुरक्षा पर अपने सैद्धांतिक विचारों की पुनः पुष्टि की और नियम आधारित व्यवस्था के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दिखाई। यह समुद्र में चीन की मनमानी के खिलाफ थी।

एक और उदाहरण लीजिए।  भारत के एक वर्ग को भले अपने देश की क्षमता पर विश्वास नहीं हो लेकिन दुनिया को है। तभी तो भारत ने जलवायु परिवर्तन का ध्यान रखते हुए अंतरराष्ट्रीय सौर संगठन की फ्रांस के साथ नींव रखी और दुनिया के 100 से ज्यादा देश इसके सदस्य हो चुके हैं। इसका मुख्यालय भारत में बनाया गया है और नियमित बैठकें हो रहीं हैं। मोदी ने यह पहल करके भारत की चुनौतियां बढ़ाईं हैं, क्योंकि इसके लिए कोष और तकनीक दोनों में योगदान देना पड़ रहा है। किंतु इस एक संगठन की भविष्य की पर्यावरण को बचाए रखते हुए ऊर्जा सुरक्षा में बहुत बड़ी भूमिका होगी।

भारत अभी भी पिछड़ा है, गरीब है , यह बड़े देशों के साथ मुकाबला नही कर सकता जैसा कहने वाले हमारे यहां ज्यादा हैं। हमारे यहां गरीबी और पिछड़ापन है किंतु संपन्नता और अगड़ापन भी है। देखना तो दोनों को पड़ेगा। पिछले वित्त वर्ष की अंतिम तिमाही में विकास दर घट कर 5.8 प्रतिशत हो गई। अखबार के पन्ने आर्थिक प्रलय के प्रलाप में रंग गए। हालांकि पूरे वर्ष के लिए 6.8 प्रतिशत के साथ अभी भी भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है। विकास दर बढ़ाना चुनौती है और इसके लिए अनेक कदम उठाने होंगे किंतु कोई प्रलय नहीं आने वाला। इसके कारण भी निश्चित हैं और इस वर्ष की दूसरी तिमाही से विकास दर गति पकड़ लेगी।

विश्व की महाशक्ति के लक्ष्य में वर्तमान वैश्विक ढांचे के अंदर आर्थिक रूप से शक्तिशाली होना भी शामिल है। बगैर गांठ मजबूत हुए आप वैश्विक सामरिक भूमिका निभा ही नहीं सकते, न अपने निकटतम देशों की सहायता ही कर सकते हैं। इसका आभास अवश्य नरेन्द्र मोदी एवं उनके साथियों को होगा। आखिर प्रधानमंत्री ने आठ समितियों में दो समितियां केवल आर्थिक विकास और रोजगार केन्द्रित गठित की हैं। ऐसा भारत में पहली बार हुआ है। वैसे विश्व की प्रमुख संस्थाओं को भारत की आर्थिक शक्ति को लेकर कोई संदेह नहीं है। विश्व बैंक ने 6 जून को जारी अपनी वैश्विक आर्थिक परिदृश्य रिपोर्ट में कहा है कि बेहतर निवेश और निजी खपत के दम पर भारत आने वाले समय में भी सबसे तेजी से वृद्धि करने वाली प्रमुख वैश्विक अर्थव्यवस्था बना रहेगा। इसके अनुसार अगले तीन साल तक भारत की आर्थिक वृद्धि दर 7.50 प्रतिशत रह सकती है। इस रिपोर्ट में तो यह कहा गया है कि आने वाले दस सालों में भारत दुनिया की महान अर्थव्यवस्था वाला देश बन जाएगा। 2018 में चीन की आर्थिक वृद्धि दर 6.60 प्रतिशत रही। इस दर के नीचे गिरकर 2019 में 6.20 प्रतिशत, 2020 में 6.10 प्रतिशत और 2021 में 6 प्रतिशत पर उतर आने का अनुमान है। वर्ष 2021 तक भारत की आर्थिक वृद्धि दर चीन के 6 प्रतिशत की तुलना में डेढ़ प्रतिशत अधिक होगी।

अवधेश कुमार

Next Post
ये मोदी से ही  मुमकिन था

ये मोदी से ही मुमकिन था

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

0