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गांव बढ़ेंगे तो देश बढ़ेगा-श्री गिरीश भाई शाह

गांव बढ़ेंगे तो देश बढ़ेगा-श्री गिरीश भाई शाह

by मुकेश गुप्ता
in साक्षात्कार, सितंबर २०१९
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गांव व व्यापार नए भारत के महत्वपूर्ण अंग हैं। गांवों में जहां बरसाती पानी के संचय, गौचर, वृक्षारोपण की योजनाएं चलाई जाए, वहीं देश भर में मुक्त, सहज, सुरक्षित व्यापार का माहौल बनाया जाए। इससे पूरे देश का विकास होगा। यह बात समस्त महाजन के श्री गिरीश भाई शाह ने एक विशेष भेंटवार्ता में कही। प्रस्तुत है महत्वपूर्ण अंशः-

नए भारत में गांवों की स्थिति को आप कैसा देखते हैं?

नए भारत में केवल एक विभाग, एक भाग, एक संभाग का विकास न होकर सम्पूर्ण देश काविकास होना चाहिए। शहरों में विकास की जैसे आवश्यकता है वैसे गांवों में भी है। भारत में साढ़े छह लाख गांव हैं। उन्हें भी वहीं संसाधन और वहीं व्यवस्थाएं चाहिए। इसलिए मैं मानता हूं कि हमें सम्पूर्ण विकास की बात सोचनी चाहिए।

गांवों में किस तरह का विकास हो?

गांवों में किसान ज्यादा होते हैं। उन्हें खेती के लिए पानी चाहिए। पानी के लिए हम कहीं से पाइपलाइन डाले, बांध बनाए यह कोई स्थायी समाधान नहीं है; बल्कि ऐसा करने के दुष्परिणाम हम पिछले साठ-सत्तर सालों से देख रहे हैं। मेरा मानना है कि बरसाती पानी का जलसंचय करके गांवों को स्वावलम्बी बनाया जाए। इसके लिए गांव में मौजूद नदियों, तालाबों, नालों और कुंओं के पुनर्भरण की क्षमता पैदा करनी होगी। उनमें से गाद निकालकर उसे खेतों में, बांधों पर फैलाना होगा। गांव में जो बारिश होती है, उसे गांव में ही संरक्षित करना होगा। यह सबसे अहम कदम होगा।

इस तरह के विकास के लिए धन कहां से उपलब्ध होगा?

इसके लिए हजारों करोड़ की योजनाओं की भी आवश्यकता नहीं है। एक गांव में एक जेसीबी मशीन दी जाए। दो या तीन महीने में उस गांव का पूरा काम हो जाता है। इसके लिए ज्यादा से ज्यादा पांच से छह लाख रूपयों की जरूरत होती है। इस व्यवस्था के साथ किसानों को जो़ड़ा जाए। किसान डीजल दें, मशीन सरकार या एनजीओ के माध्यम से मिल जाए। यह एक बहुत बड़ा कदम होगा। इससे जनभागीदारी बढ़ेगी और काम जल्द व ठीक से होगा।

नए भारत में ग्राम विकास का खाका क्या होना चाहिए?

एक और काम है गौचर का। अभी अधिकतर गौचर भूमि पर लोगों ने कब्जा कर रखा है। फिर भी, अब भी बहुत बड़ी मात्रा में याने कोई 1,42,160 हेक्टर गौचर भूमि सुरक्षित है और उपलब्ध है। जो है उसका विकास किया जाए तो भी काफी बड़ा काम होगा। हमारी सारी व्यवस्थाएं गौचर के आधार पर हो सकती है। गौचर की सफाई रखी जाए। चेनलिंक जाली से फेंसिंग किया जाए और गांव के सभी पशुओं को उसमें चरने दिया जाए। इससे पूरा गांव लाभान्वित होगा। दूध, दही, घी की नदियां बहेंगी। बरसाती पानी से तालाब का पुनर्भरण होने से गांव में पानी की समस्या भी दूर हो जाएगी। गोबर मिलने से प्राकृतिक खाद मिलेगा। इससे यूरिया की सब्सिडी भी बंद की जा सकती है।

साथ में वृक्षारोपण भी करना जरूरी है। पिछले 70 साल में कागजों पर ही वृक्षारोपण अधिक हुआ है। हमें बरगद, पीपल, नीम, आम, इमली, हरडा, बेहडा, आमला, शमी, बेलपत्र, औदुंबर, जामुन, करंज, अर्जुन जैसे सोलह प्रकार के देसी वृक्ष लगाने चाहिए। पौधे 3 साल की आयु के और आठ दसफुट ऊंचे हो। उन्हें गौचर, गांव की सीमा, गांव के रास्तों के दोनों ओर में गांव के ही लोगों से लगवाकर लेने चाहिए। मतलब वृक्ष यदि हम देते हैं तो गांव का व्यक्ति उसके ट्रीगार्ड का पैसा दे। तभी वह उस वृक्ष को बचाएगा। यह कुछ मोटा खाका है, प्रत्यक्ष काम के दौरान इसका विवरण प्रस्तुत किया जा सकता है।

गांवों के संदर्भ में पुराने और नए भारत में किस तरह समन्वय अपेक्षित है?

हमारी संस्कृति हजारों-करोड़ों सालों से समय की कसौटी पर खरी साबित हुई है। अतः हमें हमारी प्राचीन व्यवस्थाओं, परंपराओं को पुनर्जागृत करना चाहिए। नए पुराने का ठीक से समन्वय होना चाहिए। इस दृष्टि से पिछले साठ-सत्तर सालों में जो प्रयास हुए वे ठीक दिशा में नहीं रहे, जिससे लाभ कम और नुकसान ही ज्यादा हुआ है। नया भारत सकारात्मक और समन्वयात्मक होना चाहिए।

आप पूरी तरह व्यापार से जुड़े हैं। आपकी राय में बाजार के बदलते स्वरूप का व्यापार पर किस तरह असर हो रहा है?

अभी ऑनलाइन व्यापार से परम्परागत व्यापार पर काफी असर हो रहा है। भारत 2008 की मंदी से इसलिए उबर पाया; क्योंकि पूर्वजों से चली आ रही व्यापार संस्कृति को बचाने के हमने प्रयास किए। फिलहाल ऑनलाइन के कारण सबकुछ बदल रहा है। पहले लोग फुटपाथ से सब्जी खरीदते थे। अब ऑनलाइन के कारण इन सब्जी बेचने वालों को भी हम रोड से, फुटपाथ से हटा देंगे तो मुश्किल में पड़ जाएंगे। ऑनलाइन और हमारी पुरानी व्यवस्थाओं में कहीं न कहीं तालमेल होना चाहिए।

आप नए भारत में व्यापारियों और सरकार के बीच तालमेल को किस तरह से देखते हैं?

व्यापारी तो सोने का अंडा देन वाली मुर्गी है। उसकी सहायता की जानी चाहिए, न कि उसे रोज चाबुक से मारो, उस पर छापे डालकर उसे हैरान करो। सरकार सब को चोर न समझें। 135 करोड़ की जनसंख्या वाले इस देश में केवल 2 से 4 करोड़ लोग ही कर भरते हैं? और, उन्हीं को क्यों दबोचा जा रहा है?

नए भारत में व्यापारी अपने आपको किस रूप में देखते हैं?

फिलहाल व्यापारी खौफ के माहौल में दिखाई देता है। और, खौफ के माहौल में व्यापार हो नहीं सकता। ज्यादा कमाना कोई गुनाह थोड़े है? हर तरह से व्यापारी को ही खरोंचा जा रहा है। किसानी पर तो कोई कर नहीं है। अल्प भूधारक को आप कर से छूट दे दें यह तो मान लिया, लेकिन जिनके पास पच्चीस-पच्चीस एकड़ खेती हैं उन्हें तो करों के दायरे में लाया जाना चाहिए। इस तरह 70% लोग टैक्स के दायरे से ही बाहर हैं। पिछले लगभग 50 सालों में बैंकों ने गलत तरीके से ॠण बांट दिए। बिना सोचे-समझे पांच हजार करोड़ के बड़े-बड़े ॠण दे दिए तो दिवाला पीटना ही है। बैंक डूबा तो जमाकर्ताओं के पैसे भी डूब जाते हैं। ऐसी कोई ॠण-व्यवस्था हो तो व्यापार बढ़ेगा ऐसा मैं तो नहीं मानता। नए भारत में व्यापार मुक्त, सुलभ व सुरक्षित होना चाहिए।

वर्तमान में व्यापार और व्यापारियों के सम्मुख क्या चुनौतियां हैं?

बहुत सारी चुनौतियां हैं। हम ऐसी व्यवस्था निर्माण नहीं कर पा रहे हैं कि व्यापारी रचनात्मक और खुले मन से व्यापार कर सके। व्यापारी ज्यादातर सरकार, सरकारी अधिकारियों, आयकर, जीएसटी, गुमास्ता वालों, बीएमसी से परेशान रहते हैं। अधिकारियों से डर-डरकर ही व्यापार करना पड़ रहा है। व्यापारियों को सुबह शाम बहुत दस्तावेजी काम करना पड़ता है, हर महीने जीएसटी भरना पड़ता है, हर तीन महीने में अग्रिम कर जमा करना पड़ता है, ऑडिट कराना पड़ता है। इतना सारा दस्तावेजी काम है कि हर कम्पनी में दो-तीन अकाउंटेंट रखने पड़ रहे हैं, जिसका खर्च भी भारी पड़ रहा है।

हमें भारत को मजबूत करना है और व्यापार को बढ़ाना है तो व्यापार के लिए खुला वातावरण बनाना होगा। सरकारी दबाव न्यूनतम होना चाहिए। एक बार व्यापार का लाइसेंस ले लिया कि पीपीटी, आयकर, पीएफ, जीएसटी जैसे दुनियाभर के लाइसेंस लेने की जरूरत नहीं होनी चाहिए। व्यापार के एक लाइसेंस से ही काम चलना चाहिए। नए भारत में इस तरह के खुले रचनात्मक माहौल की अपेक्षा है।

नए भारत के निर्माण में व्यापारियों और उद्योगों का किस तरह सहभाग होगा?

व्यापार और उद्योग तो हमेशा तैयार है सहयोग करने के लिए। सीएसआर के अंतर्गत पैसा तो देते ही हैं, व्यक्तिगत रूप से भी पैसा देते हैं। जो कर नहीं देते उन पर भी जिम्मेदारी डाली जानी चाहिए। ऐसे कोई साढ़े छह लाख होंगेे। उन्हें एक-एक गांव गोद दे दो। कहो कि आप अपनी कमाई से इस गांव में गौचर, तालाब,  स्कूल, बिजली, रास्ते, सामुदायिक हॉल बनवाओ, पेड़ लगवाओ और अन्य जो भी व्यवस्था एक आदर्श गांव में चाहिए उस सभी का वहां निर्माण करो। एक गांव पर ज्यादा से ज्यादा एक करोड़ रूपया खर्च आएगा। कुल मिलाकर साढ़े छह लाख करोड़ रूपया चाहिए। उसमें तो साढ़े छह लाख गांवों का विकास हो जाएगा। नए भारत के निर्माण की दृष्टि से यह अवश्य किया जा सकता है।

 

मुकेश गुप्ता

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