हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
प्रभु रामचंद्र जी की राजनीति

प्रभु रामचंद्र जी की राजनीति

by अशोक मोडक
in दिसंबर २०१९, सामाजिक
0

स्वामी विवेकानंद कहते हैं ‘इंडिया इज द यूनियन ऑफ दोस हार्ट्स व्हिच बीट् टुगेदर’ अर्थात ‘भारत में ऐसे ह्रदय एकत्रित आए हैं जिनकी धड़कनों से एक ही आध्यात्मिक सुर उत्पन्न होता है।’ यह विवेकानंद प्रणित भारत की व्याख्या प्रादेशिक अथवा भौगोलिक राष्ट्र की कल्पना को न मानने वाली है। स्वामी जी को ऐसी कोरी कल्पना मान्य नहीं थी कि इस देश में जिसका जन्म हुआ, यहां जो बचपन से बड़ा हुआ वही राष्ट्रीय है।

प्रभु रामचंद्र जी की राजनीति में राष्ट्र विचारों को अत्यधिक महत्व था। कोई भी राष्ट्र वहां के समाज के मूल्यों पर निर्भर होता है। स्वामी विवेकानंद कहते हैं ‘इंडिया इज द यूनियन ऑफ दोस हार्ट्स व्हिच बीट् टुगेदर’ अर्थात ‘भारत में ऐसे ह्रदय एकत्रित आए हैं जिनकी धड़कनों से एक ही आध्यात्मिक सुर उत्पन्न होता है।’ यह विवेकानंद प्रणित भारत की व्याख्या प्रादेशिक अथवा भौगोलिक राष्ट्र की कल्पना को न मानने वाली है। स्वामी जी को ऐसी कोरी कल्पना मान्य नहीं थी कि इस देश में जिसका जन्म हुआ, यहां जो बचपन से बड़ा हुआ वही राष्ट्रीय है। यहां जन्मे मनुष्य मात्र के ह्रदय से आध्यात्मिक सुर निकले यह निष्कर्ष स्वामी विवेकानंद अधोलिखित कर रहे हैं। भारत के व्यक्ति-व्यक्ति के हृदय एवं मन पर आध्यात्मिक संस्कार करने का प्रयत्न अनादिकाल से शुरू है। प्रभु रामचंद्र, भगवान श्री कृष्ण और शिव शंकर की इस संदर्भ में भूमिका महत्वपूर्ण है। डॉ. राम मनोहर लोहिया ने राम, कृष्ण एवं शिव इस शीर्षक के लेख में यही विचार प्रकट किए हैं। प्रभु रामचंद्र की राजनीति राष्ट्र विचारों के अनुकूल थी। उनकी राजनीति के कारण यहां के राष्ट्र जीवन का पालन पोषण हुआ। इसलिए हमें प्रभु रामचंद्र के राष्ट्र विचारों को समझना चाहिए।

अपि स्वर्णमयी लंका न मे लक्ष्मण रोचते।
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी।

इन शब्दों में प्रभु रामचंद्र जी ने भारत के विषय में अपनी भक्ति भावना व्यक्त की है। कोई भी देशभक्त यही कहेगा कि वैभवसंपन्न तथा समृद्ध विदेशी राष्ट्र की अपेक्षा मेरा अपना देश, जो यदि गरीब तथा अनाड़ी भी है, मुझे प्रिय है। मैं अपने प्रयत्नों से मेरे राष्ट्र को वैभव संपन्न तथा ज्ञान संपन्न करूंगा। यह निश्चय भी यह देशभक्त मन ही मन करता है। प्रभु रामचंद्र को स्वर्णिम लंका आकृष्ट नहीं कर सकी अपितु मातृभूमि का प्रेम ही लंका के स्वर्णिम आकर्षण पर मात कर सका।
बाली वध के बाद मृत्यु शैया पर पड़े बाली ने रामचंद्र जी से पूछा, कि ‘आपने मुझे छल से क्यों मारा?’ इस पर उत्तर देते हुए रामचंद्र जी ने कहा कि तुमने अपने भाई सुग्रीव की पत्नी को रख लिया, यह कौन सी नैतिकता थी? यह अधिकार तुम्हें किसने दिया? अपनी भूमि पर इक्ष्वाकु देश का राज है और उस वंश का प्रतिनिधि भरत है, जो देश पर शासन कर रहा है। नैतिक मूल्यों का पालन हो, यह देखना भारत का कार्य है एवं उसके भाई के रूप में उन नैतिक मूल्यों के रक्षणार्थ मैंने तुझ पर शर वर्षा की है। प्रभु रामचंद्र ने राष्ट्र जीवन की रक्षा को राज्य व्यवहार के रूप में मौलिक माना। उनकी राजनीति का उद्देश्य उन्होंने निम्न श्लोक में बताया है-

इक्ष्वाकुणाम इयं भूमि: सशैल वन कानना:।
ताम पालयती धर्मात्मा भरत: सत्यवान ऋजू:॥
तस्य धर्म कृता देशा वयम पार्थिव:।
चरामो वसुधाम कृत्स्नाम धर्म संतानम इछाव:॥

अर्थात, पर्वत तथा जंगलों से युक्त यह भूमि इक्ष्वाकु कुल की है। इस भूमि पर धर्मनिष्ठ, सत्यनिष्ठ और सरल स्वभाव वाले भरत अन्य राजाओं के समान राज्य कर रहे हैं। उनकी धर्म आज्ञा ही मैं एवं अन्य राजा अमल में ला रहे हैं। धर्म प्रसार एवं धर्म का प्रभाव बढ़ाने हेतु हम सब कार्यरत हैं।

राजाराम के मुखारविंद से भारत के राष्ट्रजीवन की मौलिक विशेषताएं सहज रूप से प्रकट हुई हैं। 1. यह राष्ट्र प्राचीन है। 2. इस राष्ट्र में अनेक राज्य हैं, अर्थात यह राष्ट्र कई राज्यों से मिलकर बना (मल्टी स्टेट नेशन) है। इस राष्ट्र के सांस्कृतिक जीवन मूल्यों की रक्षा और संवर्धन की जिम्मेदारी राज्य संस्था की है। 3. इक्ष्वाकु वंश के राजाओं ने अब तक यह जिम्मेदारी व्रत के रूप में संभाली है।

महात्मा गांधी ने कहा था कि राम राज्य ही भारत वर्ष का आदर्श राज्य है। क्योंकि राज सिंहासन पर बैठने वाले व्यक्ति के द्वारा उदात्त जीवन मूल्यों की रक्षा करना अपेक्षित होता है और उन जीवन मूल्यों के आधार पर राष्ट्रीय जीवन को समृद्ध करने का काम ही भरत भूमि की सीख है। राजा उपभोगशून्य स्वामी है, उसका जीवन याने राष्ट्रपूजा का उपकरण मात्र है। इस प्रकार का उपदेश वंदनीय एवं अनुकरणीय है।

यूरोप के देशों का जन्म होली रोमन एंपायर के विरोध की प्रतिक्रिया स्वरूप हुआ था। भारतवर्ष अति प्राचीन काल से लोक कल्याण में कार्यरत है। यूरोप का राष्ट्र जीवन राजा महाराजाओं के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए था। भारत के राष्ट्रीय जीवन के शिल्पकार ऋषि मुनि एवं साधु संत हैं। इन त्यागी विरागी लोगों ने यहां की संस्कृति एवं सभ्यता को जनमानस के दिलों तक पहुंचाया। भारत के विविध राजाओं ने इन त्यागी-विरागी, साधु-संतों के आदेशों का पालन किया। प्रभु रामचंद्र ने कहा, ईश्वाकु कुल के राजाओं ने भी इसका पालन किया एवं वह भी इन आदेशों के पालन हेतु सज्जनों की रक्षा एवं दुर्जनों के नाश के लिए यहां दंडकारण्य में आए हैं।

रामायण के सभी लोग आदर्श की किस ऊंचाई पर थे इस पर यदि ध्यान दिया जाए तो कोई भी आश्चर्यचकित हुए बिना नहीं रहेगा। विवेकानंद, तिलक, गांधी, सावरकर इन सभी ने इन आदर्शों के उदाहरण हमारे सामने हमेशा रखे हैं। यदि इन आदर्शों को सभी भारतवासी अपने जीवन में उतारते हैं, तो सही मायनों में भारत का पुनर्निर्माण होगा। रामराज्य अर्थात भारतीय संस्कृति का सच्चे अर्थों में प्रगटीकरण। फुले, अंबेडकर सरीखे नेताओं का भी इस संदर्भ में योगदान अविस्मरणीय है। भारत की संविधान सभा में हुआ विचार विमर्श तथा उससे साकार हुआ संविधान भारतीय लोकतंत्र को अर्थपूर्ण बनाने में सफल हुआ, यह अविवादित है।

पिता को दिए वचन का पालन करने हेतु वन गमन को निकले प्रभु रामचंद्र, राज सिंहासन को ठोकर मारकर प्रभु रामचंद्र की पादुकाओं के सामने निर्धार पूर्वक बैठे भरत, राम के कदमों पर कदम रखकर चलने वाली सीता, बंधु लक्ष्मण एवं अयोध्या में पर्दे के पीछे रहकर सब की सेवा करने वाले शत्रुघ्न एवं उर्मिला, इनमें से किसी का भी स्मरण करें तो जीवन धन्य हो जाएगा।
रामायण के श्लोक शाश्वत सत्य की ओर इशारा करने वाले हैं, लोकतंत्र के लिए मौलिक मार्गदर्शन करने वाले हैं। उदाहरणार्थ, ‘मंत्रमूलं ही विजयं माहुर आर्या: मनस्वीन:।’ अर्थात यदि विजय प्राप्त करना है तो मंत्र यानी विचार विमर्श अवश्य करना चाहिए, ऐसा मनस्वी आर्य जनों का मत है। लोकतंत्र में शासकों के निर्णय पर विधान मंडलों में विचार-विमर्श के बाद ही वे कानून बनते हैं। रामायण तथा महाभारत में भी पढ़ने को मिलता है कि कृषि यानी खेती केवल भगवान की कृपा पर निर्भर ना रहे। बरसात पर निर्भर रहने वाली खेती सबको चिंता में डालती है। इसलिए राजा ने राज्य में योग्य स्थानों पर तालाबों का निर्माण करना चाहिए एवं सिंचाई सुविधाएं उपलब्ध करानी चाहिए।

पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने लोकतंत्र के भारतीयकरण हेतु, लोकतंत्र को सर्वार्थ से भारत में लागू करने हेतु, प्रभु रामचंद्र का आदर्श हम सब के सामने रखें ऐसा मत व्यक्त किया था। दीनदयाल जी का अभिप्राय था कि सहजता से प्राप्त होने वाला सत्ता का सिंहासन निर्धारपूर्वक मना करने वाले और आसन मिलने के बाद वह लोक आराधना के लिए ही उपयोग करने वाले भगवान रामचंद्र आपको और हमको अनमोल मार्गदर्शन कर रहे हैं।

सन 2019 का महत्व

इस साल सन 2019 में महात्मा गांधी की 150वीं एवं विनोबा भावे की 125 जयंती हम मना रहे हैं। इसी साल भारत में पुनः हुए संसदीय आम चुनाव में नरेंद्र मोदी की भारतीय जनता पार्टी को पुनः अभूतपूर्व सफलता प्राप्त हुई और संयोग से इसी वर्ष श्री राम जन्मभूमि के विवाद का सुप्रीम कोर्ट द्वारा मंदिर के पक्ष में निर्णय दिया गया। इसलिए प्रभु रामचंद्र की राजनीति पर विवेचन करने हेतु अतिशय उपयुक्त अवसर सन 2019 में मिला है ऐसा हम कह सकते हैं।

महात्मा गांधी, आचार्य विनोबा भावे की भारतीय संस्कृति पर अटूट निष्ठा सर्वविदित है। रामराज्य का आदर्श भी इन दो महापुरुषों की दृष्टि में प्रभावी श्रद्धा स्थान था। वर्तमान काल में जब उपभोक्तावाद, स्वच्छंदता तथा सांस्कृतिक हीनता इत्यादि दोषों के कारण हम सब संत्रस्त हैं, तब इन दोषों पर मात करने हेतु रामराज्य का आदर्श आंखों के सामने रखकर उस दिशा में मार्गक्रमण करना यह गुणकारी उपाय है। अर्थात यह आदर्श व्यवहार में उतारना सरल नहीं है यह गांधी जी एवं विनोबाजी अच्छी तरह जानते थे। परंतु जिस तरह अर्थशास्त्र का अध्ययन करते समय पूर्ण प्रतियोगी बाजार आदर्श के रूप में सामने रखने की प्रथा है, भले ही ऐसी पूरी प्रतियोगिता कभी व्यवहार में न हो। परंतु फिर भी पूर्ण प्रतियोगिता का आदर्श उपयोग में लाया जाता है, क्योंकि आदर्श हमेशा क्षितिज के समान होना चाहिए, चुनौतीपूर्ण होना चाहिए और यह चुनौती स्वीकारते समय संबंधित लोगों को अपना सर्वस्व दांव पर लगा देना चाहिए। साथ ही इस आदर्श की दिशा में मार्गक्रमण करते समय हम सफल हुए हैं या नहीं, हम इस आदर्श के कितने पास या दूर हैं, इसका ज्ञान होना भी आवश्यक है। तात्पर्य यह है कि कठिन आदर्श ही हमारे पुरुषार्थ को चुनौती देने वाला होता है। अत: समाज को बनाने में, राजनीति में ऐसे चुनौतीपूर्ण रामराज्य का आदर्श महात्मा जी एवं विनोबाजी ने प्रस्तुत किया है। यह निर्विवादित सत्य है कि सर्व सामान्य भारतीय व्यक्ति को प्रभु राम, सीता, लक्ष्मण, भरत एवं हनुमान यह राम पंचायतन अतिशय प्रिय हैं।

सन 2014 में जब भारतीय जनता पार्टी को लोकसभा में पूर्ण बहुमत प्राप्त हुआ एवं मोदी जी के नेतृत्व में भाजपा ने सत्ता संभाली तब लंदन के गार्डियन समाचार पत्र द्वारा अपने संपादकीय में व्यक्त विचार सहज रूप से याद आते हैं कि-
नरेंद्र मोदी की जीत से कांग्रेस के 70 वर्षों के शासन को पूर्णविराम लग गया है। गत 70 वर्षों में अंग्रेजों की पद्धति से ही शासनकर्ता भारत पर राज्य कर रहे थे। वह सामान्य जनता को दूर रख कर, कभी आश्रित या कभी शिकार समझकर बर्ताव करने वाले, लच्छेदार अंग्रेजी शब्दों में बोलने वाले अंग्रेजी रिवाजों को मानने में अपनी धन्यता मानने वाले, मुट्ठी भर पढ़े-लिखे अभिजात्य वर्ग के लोग भारत पर शासन कर रहे थे। नरेंद्र मोदी का कार्यकाल प्रारंभ होने से इन विकृतियों की जगह भारतीय संस्कृति की जयजयकार करने वाले लोग प्रभावी होंगे, ऐसा संकेत मिल रहा है।

सन 2014 के पांच वर्ष बीत जाने के बाद सन 2019 में भाजपा एवं मोदी के पक्ष में मतदान किया। निश्चित ही महात्माजी को प्रिय भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता को अच्छे दिन दिखने वाले हैं। पश्चिमी संस्कृति एवं सभ्यता का प्रभाव आगे कम होने वाला है, ऐसा हम कह सकते हैं। इसलिए प्रभु रामचंद्र की राजनीति का अभ्यास होना चाहिए यही इस लेख का सार है।

अशोक मोडक

Next Post
सुप्रिम कोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय

सुप्रिम कोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

0