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शून्य से  शिखर तक

शून्य से शिखर तक

by अमोल पेडणेकर
in दिसंबर २०१९, साक्षात्कार
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अपनी कंपनी को दुनिया की सबसे बड़ी तेल कंपनी बनाने का सपना संजोनेवाले अरुण कुमार जी ने फिनिक्स पक्षी के उदाहरण को जिवंत कर दिया हैं । हमेशा सर्वोत्तम करने का जज्बा मन में लेकर चलनेवाले अरुण जी से उनके व्यवसाय और संघर्ष के बारे में हुई बातचीत के कुछ अंश –

अरुण कुमार जी आप एक सफल उद्योगपति हैं और इस ऊंचाई तक पहुंचने की बुनियाद क्या है?

सबसे पहले तो मैं आप का धन्यवाद करूंगा कि आपने मुझे अपनी मासिक पत्रिका के लिए मेरा साक्षात्कार लेने के लायक समझा। इस ऊंचाई तक पहुंचने के लिए मैंने अपने जीवन को बहुत ही जमीनी स्तर से प्रारंभ किया है, बहुत सारे लोगों को इस ऊंचाई तक पहुंचना नहीं पड़ता उनको यह स्थान विरासत के रूप में ही मिल जाता है। परंतु कुछ मेरे जैसे भी लोग हैं, जो इस ऊंचाई तक पहुंचने के लिए सोचते हैं। ऐसा नहीं कि मैं अकाउंटेंट का बेटा हूं तो मैं किसी सरकारी नौकरी में ही जाऊं, मुझे कुछ अलग ही करना है। मेरा परिवार यह चाहता था कि मैं नौकरी करूं लेकिन मैं सोचता था कि मुझे कुछ अलग करना है। मैं यहां पर सरकारी नौकरी करने के लिए नहीं हूं। मेरा जन्म सहारनपुर जिले के छोटी सी तहसील देवबंद में हुआ है और मैंने ग्रेजुएशन तक की पढ़ाई रुड़की से पूरी की फिर ग्रेजुएशन के साथ ही सन 1990 में 1500 रुपये की नौकरी पर काम करना शुरू कर दिया था।

आपने बताया कि आपकी सोच ही आपकी इस ऊंचाई की बुनियाद है, आपके परिवार की इस सोच को लेकर क्या राय थी?

परिवार में हम चार भाई-बहन हैं, मेरा छोटा भाई और दो बहनें हैं। पिताजी ने 60 रुपये प्रति महीने की सैलरी पर नौकरी प्रारंभ की थी और जैसे कि सभी मध्यमवर्गीय परिवारों की सोच  होती है, कि बच्चों को पढ़ा दो और कहीं अच्छी नौकरी पर लगा दो, यही सोच मेरे भी परिवार की थी। वैसे भी मध्यमवर्गीय परिवार में ज्यादातर हम देखते हैं कि लोग या तो सरकारी सेवा में होते हैं या किसी प्राइवेट फर्म में या अच्छे पोस्ट पर एप्म्लाई होते हैं। क्योंकि बिजनेस करने के लिए बहुत सारा पैसा चाहिए होता है, इसलिए एक मध्यमवर्गीय परिवार बिज़नेस करने की सोच भी नहीं सकता।

आपने अपना जीवन एक सेल्समैन के रूप में प्रारंभ किया और आज आप इतने सफल उद्योगपति  हैं, सफल उद्योगपति बनने के लिए क्या जरूरी है?

मैं मानता हूं आपके माता-पिता, आपके आराध्य हैं उनका आशीर्वाद सबसे जरुरी होता है। मेरे साथ भी मेरे माता-पिता और गुरुजी का आशीर्वाद था। मैं यह भी मानता हूं कि अगर माता-पिता का आशीर्वाद हो और आपका आपके आराध्य ईश्वर या गुरु पर सम्पूर्ण विश्वास हो तो आप जीवन में कोई भी सफलता हासिल कर सकते हैं।

“जो भी काम करो वह सर्वोत्तम करो”, यह आपका मंत्र रहा है और इसी मंत्र के साथ आपने अच्छे परफॉरमेंस भी दिए हैं। इस सन्दर्भ में आपका क्या मानना है?

मैंने अपना बिजनेस प्रारंभ करने से पहले बहुत सारी कंपनियों में काम किया। मैंने सेल्समैन के पद से अपना कार्य प्रारंभ किया फिर मैं सेल्स-मैनेजर बना, फिर मैं रीजनल मैनेजर बना, ऐसे मैंने अलग-अलग कंपनियों में काम किया और बहुत कुछ सीखा। कहतें हैं ना की एक मेधावी छात्र हजारों की भीड़ में भी बैठा हो  तो उसे उन हजार लोगों में भी प्रसिद्धि मिल जाती है।

मैंने जिन कंपनियों में काम किया है उनके एमडी से जब मैं मिलता था तो मैं यही सोचता था कि इस आदमी और मुझमें कोई बहुत ज्यादा अंतर नहीं है। मैं इसका सेल्समैन हूं क्योंकि मैं इसके यहां नौकरी कर रहा हूं। कल को मैं इसके जैसा भी बन सकता हूं, क्योंकि जो काम मैं इनके लिए कर रहा हूं, वह मैं अगर अपने लिए करूं तो मैं 100% सक्सेसफुल हो सकता हूं। इस तरीके का विचार मेरे दिमाग में आने लगा और मैं उसी के अनुरूप काम भी करने लगा।

अपने सफ़र के बारे में बताइए?

मेरी पहली कंपनी थी गोरामल कंपनी जिसका 555 नामक डिटर्जेंट आता था। मैंने उस कंपनी में सेल्समैन के पद से स्टार्ट किया था और असिस्टेंट सेल्स मैनेजर पद पर था। मेरी लास्ट कंपनी ज्योति लैबोरेट्रीज के रीजनल मैनेजर की पोस्ट से जब मैंने इस्तीफा दिया तब मेरे पास एक जेन गाड़ी थी और मेरी लाख डेढ़ लाख रुपए सैलरी थी। मेरी पत्नी, मेरे दो बच्चे इस बात से खुश हैं कि हम आराम से अपना जीवन यापन कर रहे हैं। मैं उस कंपनी काचंडीगढ़ में रीजनल हेड था। उस समय मेरे अकाउंट में कुछ 50,000/- रुपये थे। उस समय मैंने नौकरी छोड़ने का निश्चय किया।

अब मुझे कुछ अपना काम करना था, अपनी कंपनी बनानी थी, उसके लिए मुझे पैसा चाहिए था। मेरी पारिवारिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि मैं वहां से पैसा कभी भी ले सकता था। मेरी पत्नी ने पूछा कि आप नौकरी क्यों यह छोड़ना चाहते हो? तब मैंने अपनी पत्नी से कहा कि मैं किसी के लिए नौकरी नहीं कर सकता, अब मुझे अपने कारोबार को स्थापित करना है। मेरे साईंबाबा ने मेरे दिमाग में अगर यह बात डाली है, तो कुछ अच्छा ही करेंगे उनके कृपा से मैं कुछ ना कुछ तो कर लूंगा। मैंने वहां एक शेड किराए पर लिया जिसका किराया 50,000/- रुपये प्रति माह था और एक या डेढ़ लाख रुपए उसका डिपॉजिट था। स़िर्फ 50000/- रुपये मेरे अकाउंट में थे। फिर मैंने जिन कंपनियों में काम किया था वहां के डिपो डिस्ट्रीब्यूटर और जिन लोगों ने मेरे साथ काम किया था रानीखेत, उत्तरांचल, दिल्ली में लोगों से बात की। उनको मेरी गुडविल पता थी। उन लोगों में से किसी ने 1 लाख रुपए किसी ने 2 लाख रुपए मुझे दिए और इस तरीके से मैंने वहां अपनी डिटर्जेंट की कंपनी स्टार्ट की। वह डिटर्जेंट की कंपनी उस एरिया की पहली डिटर्जेंट की कंपनी थी।

मुझे बेचना आता था पर मुझे बनाना नहीं आता था। उस समय मुझे यह नहीं पता था कि डिटर्जेंट बनाने के लिए कौन सी चीजें कितनी मिलानी पड़ती हैं। मैंने 50 लाख रुपए का माल बनाया और मार्केट में सप्लाई कर दिया। जब मैंने उसे सप्लाई कर दिया तो वहां से कई लोगों की शिकायतें आने लगी कि माल की क्वालिटीं खराब है। मुझे मार्केट के लोगों ने कहा आप अपना माल यहां से ले जाइए क्योंकि इसमें बहुत कमियां हैं। पूरा माल मेरे पास वापस आ गया। फिर सभी लोग अपने पैसे की मांग करने लगे और मेरी स्थिति यह हो गयी थी कि मेरी जेब में सिर्फ 100 रुपये बचे थे। मैं कर्जे में पूरी तरह से डूब गया था। तब मैंने अपने साईंबाबा से प्रार्थना की कि इस मुस्किल से आप ही मुझे निकालिए।

आप आज तेल इंडस्ट्री में अपना लोहा साबित कर चुके हैं। एक उद्योग के प्रारंभ में ही हुए इतने बड़े नुकसान को झेलने के बाद आप इस स्थान पर कैसे पहुंचे?

मैं सिंगापुर चला गया। जहां मुझे एक सरदार मिला था, उसका जन्म सिंगापुर में ही हुआ था। मैंने सिंगापुर में ही अपने कुछ वेंडरों को बुलाया, उनसे बात की और उनसे कहा कि मैं सबके पैसे दे दूंगा मुझे बस कुछ समय का वक्त दीजिए। सिंगापुर में कुछ लोग थे, जो मलेशिया से एक बहुत बड़ा व्यापार करते थे। उन लोगों के साथ मैंने काम करना शुरू किया। काफी बड़ी कंपनियां थी जो मलेशिया से इंडिया में पाम ऑइल इंपोर्ट करते थे।

मैंने इनके साथ इंडस्ट्री की कुछ छोटी-छोटी बातें सीखलीं कि किस प्रकार से शिपिंग होती है, एमसी कैसे होता है, कौन कैसे काम करता है, इत्यादि के बारे में धीरे-धीरे सीखा और 6 से 8 महीने में धीरे-धीरे लोगों के पैसे भी वापस भी देने लगा।

मेरे जीजाजी लुधियाना में एक कंपनी के एकाउंट्स डिपार्टमेंट के टॉप एप्म्लाई थे और उनके पास ऑइल इंडस्ट्री की अच्छी खासी जानकारी थी। जब उनको पता चला कि मैं इंडस्ट्री में काम शुरु कर रहा हूं तो उन्होंने मुझे फोन करके कहा कि अरुण लुधियाना में ऑइल का प्लांट है तुम प्लांट को खरीद सकते हो फिर मैं भारत वापस आया। उसकी प्लांट की कीमत भी उस समय डेढ़ करोड रुपए थी। मैंने उनसे कहा कि मेरे पास पैसे नहीं है। मुझसे नहीं होगा। उन्होंने कहा कि तू करेगा तो हो जाएगा। मैंने अपनी पत्नी को बोला कि देखो मैं वापिस तो आ गया हूं, अब क्या होगा मुझे यह नहीं पता है। तब उसने कहा कि जो होगा साईंबाबा करेंगे। तो मैंने भी कहा कि हां तुम सही बोल रही हो, अब बाबा ने मुझे यहां बुलाया है, तो हो सकता है कि उनकी ही कुछ इच्छा होगी।

सोचते-सोचते फिर मेरे दिमाग में आया कि मेरे एक पहचानवाले मित्र थे; मिस्टर मल्हार, वो यूनियन बैंक में मैनेजर थे। उस फैक्ट्री को खरीदने के लिए मुझे 5 लाख रुपये की डीडी बनाकर एक टोकन अमाउंट के रूप में उन्हें देना था। अगर मैं वह 5 लाख रुपये नहीं देता तो फैक्ट्री मेरी नहीं होती, अगर मैं दे देता तो वह फैक्ट्री मेरी हो जाती।

मुझे अपने साईंबाबा और अपने माता-पिता के आशीर्वाद पर विश्वास था और पता नहीं मैंने उनसे क्या बात की, कि उन्होंने मेरा 5 लाख का डीडी बना दिया। उस डीडी से मैंने लुधियाना की वह फैक्ट्री खरीद ली। फिर मैंने जो सिंगापुर में मेरा दोस्त था, उससे एलसी लिमिट कराई। एनपीए लिमिट पर मैंने बैंक को दो करोड़ की एलसी दी और सवा करोड रुपए उनके एडजेस्ट किए और फिर नया माल बनाया।

प्रतिदिन का मैं 5 से 10 टन माल बनाता था उसको बेचता था और उसे अपने नुकसान की और अपने खर्चे की भरपाई करता था। यही मेरे जीवन का टर्निंग प्वाइंट था। लोग जहां 10 रुपये मुनाफ़ा कमाते थे मैं वहाँ 10 पैसे 25 पैसे मुनाफ़ा कमाता था और धीरे-धीरे मेरी सेल इतनी बढ़ गयी कि मैंने अपने पुराने सारे नुकसान की भरपाई कर ली।

नये बिज़नेस को स्थापित करने में आपको कौन-कौन सी चुनौतियों का सामना करना पड़ा?

हरियाणा की सबसे बड़ी कंपनी मारकंडा वनस्पति के चेयरमैन मेरे दोस्त थे। उन्होंने वह कंपनी बंद कर दी थी। वे मुझसे मिलने आए और कहा कि तुम तेल का व्यवसाय कैसे करोगे? मैंने उसको बताया कि मैं हर डिस्ट्रीब्यूटर से 25 लाख रुपए सिक्योरिटी मनी लूंगा और तब मैं उनको अपना माल भेजूंगा। वे हंसने लगे। उन्होंने कहा कि मैं गुप्ता हूं और इस तेल के धंधे में गुप्ता और अग्रवाल लोग ही हैं, तुम नहीं कर पाओगे। मैंने उनसे बोला कि देखिए गुप्ता जी कोई भी चीज असंभव नहीं होती है। यह आपकी सोच पर निर्भर करता है। फिर मैंने एक कॉन्फ्रेंस रखी और मैंने वहां के नॉर्थ साइड के सारे वितरक बुलाए। मैंने उनसे कहा कि आपके सामने सोयाबीन और मस्टर्ड तेल है। मैं आज के लिए रेट खोल रहा हूं। जो आज पैसे जमा करेगा उसको मैं इस रेट पर ऑइल दूंगा और जो अगले दिन या 15 दिन बाद बोलेगा उसको अधिक रेट पर दूंगा। उसी दिन वहां पर मैंने चार करोड़ रुपए का माल बुक कर लिया। वहां पर कुछ ऐसी बात हो गई कि लोग सोचने लगे कि यह आदमी अभी नया-नया आया है परंतु इसके दिमाग के कारण यह सबसे आगे निकल जाएगा और हम सब बहुत पीछे रह जाएंगे। वहां से लोगों ने मेरे साथ दिक्कत पैदा करनी शुरू कर दी।

आप खाद्य पदार्थ और अन्य उपयोग में आने वाले तेल का निर्माण और बिक्री करते हैं। आपके तेल की प्रोडक्शन की विशेषताएं क्या हैं?

भारत में जितना भी तेल आता है, वह सभी फसल से ही आता है। अगर कोई कंपनी कहे कि मेरा तेल बेस्ट है तो मैं कहूँगा कि फसल तो एक ही होती है, हां कुछ लोग थोड़ा परिवर्तन करते हैं। कोई उसमें थोडा सनफ्लावर और सोयाबीन मिलाकर तेल बनाता तो यह थोड़ा परिवर्तन हो सकता है।

मेरा जो तेल था मैंने उसके लिए तीन चीजों पर काम किया पहला सीधे किसानों से फसल की खरीदी। ऑइल की स्पेशालिटी और शुद्धता में मेरा रिकॉर्ड था कि मैंने कभी भी एक पैसे की मिलावट नहीं की। शुद्धता ही मेरे उद्योग की सबसे बड़ी प्रमुख विशेषता है। मैंने अपने ब्रांड को इस मार्केट में स्थापित करने के लिए अपने ब्रांड का विज्ञापन दिया। हर मीडिया, हर क्षेत्र में अपने ब्रांड को पब्लिश किया। विज्ञापन में मैंने निवेश किया। आज तेल इंडस्ट्री में हिंदुस्तान में 4000 कंपनियां हैं और आप सिर्फ तीन से चार कंपनियों के नाम जानते हैं। क्योंकि उन्होंने अपनी पब्लिसिटी या ब्रांडिंग नहीं की लेकिन जो बड़ी कंपनियां हैं, जिन्होंने अपनी पब्लिसिटी की, ब्रांडिंग की, उन्होंने अपना बेस बनाया और इसीलिए लोग उनको जानते हैं। मेरा मकसद भी यही था। मेरा मुंबई आने का यही मकसद था कि मैं मुंबई से पूरी इंडिया मैं अपना व्यवसाय फैला सकूं। कंज्यूमर मेरी क्वालिटी और बाकी चीजों को समझें। मैंने लोगों को सेहतमंद तेल दिया। अत: लोग मुझपर आंख बंद करके विश्वास करने लगे कि हां यह तेल मेरी सेहत के लिए अच्छा है। मैंने एक स्लोगन भी बनाया था ‘अटूट बंधन स्नेह का‘ इसका मतलब यह था कि खाने से रिश्ते भी बनते हैं। यही मेरा मुद्दा भी था कि मैं ग्राहकों को बस अपना ब्रांड न दूं उनसे रिश्ते भी बनाऊं।

आपने बताया कि आप मुंबई आ कर अपने व्यवसाय को और बढ़ाना चाहते थे। मैं आज आपको मुंबई में एक सफल बिजनेसमैन के रूप में देखता हूं। इस सफर के बारे में आप क्या कहना चाहेंगे?

सर जब मैं नॉर्थ से आया तो मैं 5 करोड़ की लिमिट लेकर आया था और मेरा टारगेट था कि जैसे एमपी और महाराष्ट्र में जो सोयाबीन, राजस्थान में जो मस्टर्ड होता है उसको खरीदना। अगर मैं नॉर्थ साइड में बैठूंगा तो मुझे कोई नहीं पूछेगा। मुंबई एक हब है। अगर आप किसी बिजनेस को करना चाहते हैं तो आपको मुंबई को अपना हब बनाना होगा, क्योंकि मुंबई में विदेश से कोई भी इंसान बड़े आसानी से पहुंच सकता है और आप यहां से अपने बिजनेस का विस्तार विदेशों तक कर सकते हैं, क्योंकि मुंबई लोगों को बढ़ने में मदद करती है।

अम्बानी परिवार से मैं भी इंस्पायर हूं, इनसे सीखने को मिला कि इस इंडस्ट्री में कोई भी टॉप पर बैठा हुआ आदमी बिना संघर्ष के उस स्थान तक नहीं पहुंचा है। मेरा मकसद था कि मैं अपने आप को उस स्थान पर ले जाऊं। मैं भले ही मुकेश अंबानी ना बन पाऊं, भले धीरूभाई अंबानी ना बन पाऊं लेकिन उनके आसपास तो पहुंच सकूं। मैं प्रसन्न हूं कि मैंने अपना लक्ष्य प्राप्त कर लिया है। मुंबई आकर मैंने लोटस नाम से अपना ब्रांड शुरू किया और विभिन्न कंपनियों से बात की। उनके साथ मिलकर काम शुरू किया और मैंने अपना अच्छा व्यवसाय बनाया। लोग 1 महीने में एक करोड़ का सेल कर काफी खुश होते हैं, मैंने शुरुआत के 4 महीनों में 100 करोड़ रुपए की सेल की।

सफलता की ऊंचाई पर आप खड़े हैं, आप जब अपने अंदर झांक कर देखते हैं तो आपको अपनी कौन सी कमजोरी और ताकत नज़र आती है?

मैं एक मध्यम वर्गीय परिवार से हूं। मैं एक बिजनेसमैन परिवार से नहीं हूं। अत: मैं बाकी बिजनेसमैन की तरह नहीं सोच सकता। हर वह इंसान जो दुनिया में है वह कुछ करना चाहता है। अब देख लीजिए वह भी इंसान है एडिसन जिसने बिजली के बल्ब का अविष्कार कर दिया। एक वह भी है धीरुभाई अंबानी 1500 लेकर यहां आया और इतना सफल कारोबारी बना। ऐसे बहुत सारे लोग  हैं। मैंने इन लोगों को पढ़ा, इनसे इंस्पायर हुआ और फिर मैं यहां आया। मेरी सबसे बड़ी कमजोरी यह थी कि मुझे यह नहीं पता था कि बिजनेस कैसे होता है? बस मुझे इतना पता था कि क्रेडिट कहां होता है, डेबिट कहां होता है, बेचना मुझे आता था।

मुझे मेरे साईंबाबा, मेरे माता-पिता के आशीर्वाद पर पूरा विश्वास था और यही मेरी सबसे बड़ी ताकत रही, क्योंकि मेरे विश्वास ने ही मुझे विषम परिस्थितियों में भी खड़ा रखा।

आप अपनी बातों में बार बार साईंबाबा का जिक्र करते हैं। आप अपनी इस भक्ति भावना के बारे में बताये?

मैंने आपको बताया कि मैं एक मध्यमवर्गीय परिवार से हूं। जब मेरी शादी हुई तब मैं एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करता था। मेरी पत्नी के परिवार में साईंबाबा को बेहद माना जाता था। उनके मन में बड़ी आस्था थी।

तब मैंने उनके बारे में पढ़ना शुरू किया, जानना शुरू किया। तब तक तो मुझे यह भी नहीं पता था कि शिरडी कहां है। बस यह पता था कि शिरडी कोई जगह है जहां पर साईंबाबा का मंदिर है। बस इतना पता था कि यह महाराष्ट्र में है। जब मैं शिरडी पहली बार गया तो मेरे मन के अंदर से आवाज आई कि यह मेरे गुरु बन सकते हैं। इन पर मैं विश्वास कर सकता हूं। मैंने कहां से चलना शुरू किया और कहां पर आकर खड़ा हूं। यह सच है कि अगर मेरे बाबा मेरे साथ नहीं होते तो मैं यहां तक पहुंच ही नहीं सकता था।

अपने उद्योग के भविष्य के परिप्रेक्ष्य में आप क्या सोचते हैं?

मैं अपनी कंपनी को वर्ल्ड की सबसे बड़ी तेल कंपनी बनाना चाहूंगा।

आप संघर्ष करते हुए इस स्थान तक पहुंचे हैं। आज के युवा जो संघर्ष कर रहे हैं, उनको क्या सन्देश देना चाहेंगे?

मैं आपको यह बताना चाहता हूं कि अगर हम एसी में बैठकर सोचें कि उद्योग करेंगे तो वह उद्योग सफल नहीं हो पायेगा। मैं आपको एक छोटा उदाहरण देता हूं। जमनालाल बजाज इंस्टीट्यूट का नाम आपने सुना होगा। यहां का सबसे बड़ा मैनेजमेंट इंस्टिट्यूट और वह बच्चों को एमबीए की ट्रेनिंग देता है। उनके टॉप-10 लोगों की सूची थी, उन लोगों में मेरा भी नाम था। मुझे वहाँ बुलाया और मेरे हाथों से एक बुक का विमोचन भी करवाया था। उन्होंने कहा कि ये मॅनेजमेंट के स्टूडेंट हैं आप इनको बताइए कि बिजनेस कैसे होता है, इसमें सफलता कैसे पाई जाती है? यही सवाल जो आपने पूछा, वहां पर मुझसे पूछा गया था। तब मैंने उनको बताया कि अगर आपको किसी भी क्षेत्र में सफलता हासिल करनी है, तो आपको उसके संघर्ष के बारे में पता होना चाहिए। ऐसा नहीं कि आप सकारात्मक है तो सभी सिर्फ सकारात्मक ही रहेंगे नकारात्मकता भी उसके साथ चलती है। कोई भी इंसान ऐसा नहीं है जिसको परेशानी नहीं आई हो। आप जिसके ऊपर विश्वास करते हैं उस पर विश्वास करते रहिए और अपने लक्ष्य से कभी भागिए मत।

एक उद्योगपति समाज के लिए भी संवेदनशील होता है। समाज के लिए संवेदना किस प्रकार से है?

मेरे साईबाबा ने मुझे उसके लिए ही बनाया है और मैं हमेशा समाज के लिए बहुत ही अच्छी चीजें करता रहता हूं क्योंकि इंसान को कभी अपनी जमीन, अपना मूल भूलना नहीं चाहिए। इंसान अगर अपना मूल नहीं भूलता है, तो वह उन लोगों के लिए काम करता है जो ऐसी स्थिति में है कि जो अपने कार्य को नहीं कर सकते हैं। मैं अपने समाज कार्यों के बारे में आपको नहीं बताना चाहता क्योंकि अगर मैं बताऊंगा तो ऐसा लगेगा कि मैं अपना बखान कर रहा हूं।

सर अपने एलआर के प्रोडक्ट के बारे में हिंदी विवेक के पाठकों को जानकारी दीजिए।

पहले मैं केवल तेल इंडस्ट्री में था एल आर के नाम से मैं पहले सोयाबीन, मस्टर्ड तेल बनाता हूं। अब मैं हिंदुस्तान में 1500 स्टोर ओपन कर रहा हूं। इस स्टोर में जो प्रोडक्ट आप मार्केट से लेते हैं और मेरे स्टोर से वही प्रोडक्ट लेते हैं सो वही ब्रांड के रेट में 20% से 30% का अंतर मिलेगा और आप पूछेंगे कि ऐसा मेरे प्रोडक्ट में कैसे होगा? ऐसा इसलिए होगा कि मैंने मैन्युफैक्चरिंग स्थान से कंज्यूमर तक पहुंचने के बीच में जो बहुत सारी गैप आती थी। उनको खत्म कर दिया। मैंने हमारे प्रोडक्ट को सीधा ग्राहकों तक पहुंचा दिया।

भव्यता आपके जीवन का मंत्र रहा है। देश विदेश के अनेक मान्यवरों के साथ आपकी छवि दिखाई देती है, इसका राज क्या है?

मैंने पहले बहुत लोगों के साथ अपनी छवि शेयर की है। मैं पहले बहुत सारे लोगों के साथ अपने ब्रांड के प्रमोशन के लिए मिलता था। उनसे अपने ब्रांड के प्रमोशन करवाता था। लेकिन अब मैंने उस चीजों को कम करके अपने आप को सीमित कर दिया है। एक दिन ऐसा जरूर आएगा कि मुझे विश्व की सबसे बड़े लोग बुलाएंगे और कहेंगे कि हां यह है मिस्टर अरुण कुमार शर्मा और यह एक दिन हो के रहेगा।

देश-विदेश में होने वाले आईपीएल, अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट मैच, अन्य भव्य इवेंट में आपके एल. आर. प्रोडक्ट का नाम होता है, यह कैसे संभव हुआ है?

मुझे अपना प्रोडक्ट बेचना है, अपने प्रोडक्ट की ब्रांडिंग करनी है, तो मुझे विभिन्न स्थानों पर जाना पड़ेगा। मैंने आपको बताया भी  कि तेल इंडस्ट्री में 4000 कंपनियां हैं और आप केवल उनमें से तीन से चार कंपनियों के नाम जानते हैं। ऐसा नहीं कि उन कंपनियों ने काम नहीं किया। उन कंपनियों ने काम तो किया लेकिन उन्होंने अपनी पब्लिसिटी नहीं की, इसलिए लोग उनको नहीं जानते हैं। मैं अपना नाम बनाना चाहता हूं लोग मेरा नाम जाने इसलिए मैंने अपनी कंपनियों को यहां तक पहुंचाया। जब तक आप का प्रोडक्ट नहीं दिखेगा तब तक नहीं बिकेगा। मार्केटिंग एक ऐसी चीज है जिससे आप रातों रात बड़े बन सकते हो। एक उदहारण देता हूं- बाघ-बकरी चाय कानपूर की एक छोटी सी कंपनी है और आज सभी बड़े ब्रांड को टक्कर दे रही है। जब तक आपका ब्रांड नहीं दिखेगा तब तक आप सफलता नहीं हासिल कर सकते। इसीलिए इन बड़े इवेंट्स में मैंने अपने उत्पादनों को पहुंचाया ताकि लोग मेरे नाम को, मेरी कंपनी के नाम को जान सकें।

इतनी सफलता प्राप्त करने के बाद जब आप पीछे मुड़कर देखते हैं तो आप अपना सिंहावलोकन किस प्रकार से करते हैं?

मैं पीछे मुड़कर देखता हूं तो मैं सोचता हूं कि कहीं मैं कोई स्वप्न तो नहीं देख रहा हूं क्योंकि मुझे लगता है कि मैं इस लायक ही नहीं था। मेरे साईंबाबा मेरे माता-पिता का आशीर्वाद है कि मैं आज यहां तक पहुंचा हूं। मैं पहले एक साइकिल पर होता था तो मैं सोचता था, मेरे पास एक अच्छा स्कूटर होना चाहिए आज इतनी सारी चीजें मेरे पास है। मेरे साईंबाबा का आशीर्वाद है जो मैंने इन सभी चीजों को अपने जीवन में हासिल कर सका। मैं समझता हूं कि यह भी एक शुरुआत है मुझे अभी बहुत कुछ हासिल करना है, अभी मुझे बहुत सारी चीजें अपने जीवन में हासिल करनी है। मैं जब तक अपनी कंपनी को विश्व की सबसे बड़ी कंपनी नहीं बना लेता तब तक मैं खुद को सफल नहीं मानूंगा। यह होना ना होना तो मेरे बाबा की मर्जी है, उनका आशीर्वाद है। परंतु मुझे अपने कर्मों पर भरोसा है। 2022 तक में इस कंपनी को तेल इंडस्ट्री की विश्व की सबसे बड़ी कंपनी बना कर रहूंगा। लोग कहेंगे कि यह व्यक्ति साइकिल से यहां तक पहुंचा है।

आपकी सफलता का मंत्र क्या है?

सफलता का मंत्र यह है कि आप स्वयं पर विश्वास रखिए। कितनी भी विषम परिस्थिति आए, कितनी ही पीड़ा झेलनी पड़े कितनी ही मुश्किलों को झेलना पड़े, आप अपने लक्ष्य से अडिग रहे, तो आप सफल जरूर होंगे। हमें खुद को इतना मजबूत बनाना है कि हम किसी भी विषम परिस्थिति को सह सकें। जीवन में कोई भी परेशानी आपको आए लेकिन आप अपने उद्देश्य पर अडिग रहें।

आप में आध्यात्मिकता, व्यवसायिकता और सामाजिकता भी है? इन सब चीजों का संगम कैसे होता है?

मैंने ऐसी परेशानियां झेली है कि जिनमें लोगों ने मुझे को एहसास दिलाने की कोशिश की, कि तुम्हारी हैसियत मेरे यहाँ नौकरी करने की थी तो तुमको नौकरी करनी चाहिए थी तुम यहां पर नहीं बैठ सकते मुझे नीचे गिराने की कोशिश भी की। लेकिन मैंने कहा ना कि मुझे साईंबाबा पर इतना भरोसा था कि साईंबाबा मुझे उस स्थान से भी बचा लेंगें। मैंने जो भी चीजें झेली है, जो मैंने दुख सहे उन्हीं सब के कारण यह सामाजिकता, अध्यात्मिकता और बाकी सारी चीजों को मैंने मेरे जीवन में आत्मसात किया है।

 

अमोल पेडणेकर

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