संवेदनशील मन

स्पष्ट बोलना वैसे बड़ा कठिन होता है परंतु ऐसे निर्णय लेने में पर्रिकर जी कभी पीछे नहीं रहते थे। जिस से गलती हुई है उसे उसकी गलती उसके सामने बताना इतनी स्पष्टता उनमें थी। इसके कारण अनेक लोग उनसे घबराते भी थे।

गोवा के दिवंगत मुख्यमंत्री, जो भारत के रक्षा मंत्री भी रह चुके थे, स्वर्गीय मनोहर पर्रिकर की सादगी के चर्चे तो सर्वश्रुत है। मुख्यमंत्री होने के बावजूद सरकार प्राप्त बंगले में ना रहना, सरकारी गाड़ी का उपयोग ना करना, यदि किया भी तोे घर के बजाय पास के थाने में पार्क करना, सभी से सहजता से मिलना, 24 घंटे में 20 घंटे काम करना इत्यादि बातों से मनोहर पर्रिकर जी की प्रतिमा न केवल गोवा में वरन देश में बहुत ऊंची थी।

मेरे पिताजी के मित्र श्री यशवंत ठाकर के माध्यम से मैं पर्रिकर जी के संपर्क में आई। यशवंत ठाकर जी की संस्था सेंटर फॉर डेवलपमेंट प्लैनिंग एंड रिसर्च मे मैं काम करती थी। गोवा शासन के कई प्रोजेक्ट हमारे पास थे। उन प्रोजेक्ट पर चर्चा करने के लिए कई बार पर्रिकर जी से मिलना होता था। उनके संबंध में सुनी गई बाते सानिध्य में आने के बाद सच साबित हुई। उन बातों के अलावा कुछ और बातें भी थी जो शायद जनसामान्य को पता नहीं थी, उन्हें यहां बताना मैं समीचीन समझती हूं।
जैसा कि तब तक सभी को पर्रिकर जी के सामने दिखने वाले गुणों के बारे में पता चल गया था परंतु बहुत कम लोगों को यह पता होगा कि परिकर जी का अध्ययन जितना अत्यधिक था, उनकी स्मरण शक्ति भी उतनी ही तीव्र थी। पढ़ी हुई किताब के अनेक संदर्भ उन्हें जस के तस याद रहते थे। उन्हें प्रस्तुत रिपोर्ट के आंकड़े भी उनकी जबान पर रहते थे। विधानसभा में किसी भी प्रश्न पर चर्चा करते समय वे आंकड़ों के साथ बोलते थे, जिससे उनके विरोधी भी पस्त हो जाते थे। कथा- उपन्यास की अपेक्षा उन्हें जीवन चरित्र- आत्म चरित्र पढ़ना और अधिक अच्छा लगता था। यात्रा में वे भरपूर अध्ययन करते थे घर से विधानसभा के छोटे से अंतर में भी वे अध्ययन करते थे। पहले के अनुसार वे एक बैठक में पुस्तक पूरी नहीं पढ़ सकते थे फिर भी जब तक पुस्तक पढ़कर पूर्ण न हो जाए तब तक वह बुक-शेल्फ में नहीं रखते थे। प्रसिद्ध उद्योजीका डॉक्टर प्रभा नातू की एक पुस्तक ‘झपाटलेला संसार’ मेरे प्रकाशन संस्था की ओर से प्रकाशित की गई थी। श्री पर्रिकर भी एक सफल उद्योजक होने के कारण मैंने उन्हें वह पुस्तक पढ़ने के लिए भेंट की। पुस्तक में एक ऐसा प्रसंग वर्णित किया था कि श्री अरविंद नातू ने विदेश में एक जगह गलती से किस प्रकार बिना टिकट यात्रा की थी। इसके अतिरिक्त एक अन्य गलती भी उसी पेज पर थी। उन्हें पुस्तक भेंट करने के कई माह बाद श्री परिकर जी से भेंट हुई। तब पर्रिकरजी ने उस घटना सहित उस गलती को मेरे ध्यान में लाया। पेज नंबर सहित बताने के कारण मुझे बहुत आश्चर्य हुआ। इसके 2 वर्ष बाद समुदा प्रकाशन द्वारा प्रकाशित दो पुस्तकों का विमोचन श्री पर्रिकर जी के द्वारा किया गया, उस समय उनकी भेंट प्रभा नातू से हुई। पुस्तक की वह घटना एवं गलती पेज क्रमांक सहित बताते हुए परिकर जी ने उस घटना को किताब से हटाने का सुझाव दिया। उनके अनुसार पुस्तक बहुत अच्छी थीं। परंतु एक प्रसिद्ध उद्योजिका, जिन का आदर्श लोगों को अपने सामने रखना है की पुस्तक में इस तरह की घटना का उल्लेख करना योग्य नहीं है पेज नंबर सहित बताने से प्रभा नातू भी मेरे समान बहुत आश्चर्यचकित हुई।
गोवा के बामना समुद्र किनारे कुछ वर्ष पूर्व एक बड़ी वेश्या बस्ती थी। आंध्र एवं कर्नाटक की महिलाएं उसमें ज्यादा थी। यह जगह मुरगांव पोर्ट ट्रस्ट की थी। उसे खाली कराने हेतु पोर्ट ट्रस्ट न्यायालय पहुंचा। न्यायालय ने वह जमीन खाली करने का निर्देश दिया एवं आदेश में कहा कि जिन राज्यों की वे महिलाएं हैं उन राज्यों को उनका पुनर्वास करना चाहिए,परन्तु पर्रिकर जी ने जो उस समय गोवा के मुख्यमंत्री थे, उन्होंने विस्थापित महिलाओं के पुनर्वास की जवाबदारी अपनी समझ कर उनके पुनर्वास की योजना बनाने का काम हमें दिया। हमने योजना बनाई परंतु योजना के क्रियान्वित होने तक उन्हें वैकल्पिक जगह देने की योजना की। एक बड़ी इमारत में उन्हें रखा जाना तय हुआ। प्रत्येक कमरे में 5 महिलाओं के रहने की व्यवस्था की गई। परंतु पर्रिकर जी ने उसमें बदलाव करते हुए एक कमरे में 3 महिलाओं को रखने का सुझाव दिया साथ ही साथ साथ उनके मनोरंजन हेतु प्रत्येक कमरे में एक टीवी एवं एक वीसीडी लगाने को कहा।उस क्षेत्र की महिला विधायक जो कांग्रेस की थी, ने योजना का पुरजोर विरोध किया एवं स्थानीय लोगों ने भी विरोध किया। हम हमारे स्तर पर एवं शासन अपने स्तर पर महिलाओं एवं विरोध करने वालों से बारंबार चर्चा करते रहे परंतु योजना फलीभूत नहीं हुई इतना ही नहीं तो उस बस्ती में रहने वाली महिलाओं ने वहां से हटने को मना कर दिया। परंतु इस प्रकल्प के कारण पर्रिकर जी की सामाजिक संवेदना देखने को मिली।

गोवा में नेत्रावती नामक एक छोटा सा गांव है। वन्यजीवों के लिए संरक्षित जंगल में यह गांव स्थित है। शासन द्वारा गोद लिए जाने के बाद यहां की महिलाओं के लिए कुछ लघु उद्योग स्थापित करने की योजना थी। नेत्रावती आदर्श ग्राम योजना की चर्चा करते समय मैंने पर्रिकर जी को यह का सुझाव दिया अचार- पापड़ बनाने की अपेक्षा जंगल से प्राप्त कच्चे माल पर आधारित कोई योजना बनाई जाए। परंतु उनका अलग मत था। वहां की महिलाओं को एक साथ रखने हेतु एवं प्रारंभ में उनमें एक साथ काम करने की आदत निर्माण हेतु पापड़ -अचार जैसी दूसरी योजना नहीं है। पापड़ बेलने के निमित्त वे एकत्रित आएंगी, पापड़ बेलेगी, जी भर के बातचीत करेंगी। इसके अतिरिक्त इस काम के लिए उन्हें बस्ती छोड़कर बाहर भी नहीं जाना पड़ेगा। घर बैठे हुए पैसे कमा सकती है। यह सब करने में उन्हें एकत्रित आने की एवं काम करने की आदत लगेगी, फिर उसके बाद तुम् उन्हें नए उद्योग का प्रशिक्षण दो। ऐसा कहकर उन्होंने मुझे इस सारे प्रश्न की ओर देखने का एक नया दृष्टिकोण दिया गोमंतकीय समाज और यहां की महिलाएं उनकी मानसिकता कैसी अलग है, इस निमित्त अभी मुझे समझ में आया। स्व सहायता समूह की महिलाओं के लिए नई -नई कल्पनाओ हेतु उन्होंने हमेशा प्रोत्साहन दिया।

नेत्रावती की महिलाओं, जिन्होंने कभी पणजी देखा भी नहीं था, द्वारा गोवा के चित्रपट महोत्सव में खाद्य पदार्थों का स्टाल लगाने में उन्होंने रूचि ली। कुछ लोगों द्वारा अन्य कारणों से इसका विरोध करने के बाद भी उन्होंने पणजी में स्टाल लगाए एवं 10 दिनों तक सिने रसिको को स्वादिष्ट पदार्थ खिलाए। उन महिलाओं ने कभी थिएटर भी नहीं देखा था, परिकर जी उन्हें अपने साथ थिएटर दिखाने भी ले गए। उन महिलाओं में मुझे पहली बार इतना आत्मविश्वास एवं अलग आनंद नजर आया। उनकी खूब वाहवाही भी हुई। ऐसा था पर्रिकर जी का संवेदनशील मन।

अब उनके स्पष्ट वक्ता होने की एक बानगी। लगातार 2 टर सत्ता से बाहर रहने के बाद सन 2012 में पर्रिकर जी भाजपा को सत्ता में लाएं। भाजपा के टिकट पर 5 कैथोलिक विधायक भी चुनकर आए। इस सफलता पर पणजी के कार्यकर्ताओं ने पर्रिकर जी की शोभायात्रा निकालने का आयोजन किया। उसके लिए सीढ़ी से नीचे उतरते समय 2 सीढ़ी पीछे उनका एक ऐसा मित्र साथ था जो भाजपा के सत्ता में ना रहने के दौरान विरोधियों से मिल गया था और अपने काम करवाता था। कार्यकर्ताओं द्वारा यह बात ध्यान में लाया जाने पर परिकर जी ने पीछे मुड़कर देखा और उस मित्र से कहा,’ तुम मेरे अच्छे मित्र हो, तुम मुझे बधाई देने आए यहां तक तो ठीक परंतु अब तुम मेरे साथ मत चलो। हमारी मित्रता अपनी जगह रहेगी परंतु तुम्हारे साथ रहने से कार्यकर्ताओं में गलत संदेश जाएगा। कार्यकर्ता तुमसे नाराज हैं। ऐसे कड़े शब्दों में उन्होंने अपने मित्र को हिदायत दी। मैं वहां कोने में खड़ी थी। मैंने सारी बातें सुनी। इतना स्पष्ट बोलना वैसे बड़ा कठिन होता है परंतु ऐसे निर्णय लेने में पर्रिकर जी कभी पीछे नहीं रहते थे। जिस से गलती हुई है उसे उसकी गलती उसके सामने बताना इतनी स्पष्टता उनमें थी। इसके कारण अनेक लोगों उनसे घबराते भी थे।

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