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ईमानदारी की प्रेरणामूर्ति

ईमानदारी की प्रेरणामूर्ति

by गणपत कोठारी
in दिसंबर २०१९
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मधुभाई भट्ट गुजरात के मेहसाणा के निवासी थे। यह घटना आजादी से पूर्व की है जब घरों में नल, गुसल तथा शौचालयों का इतना प्रचलन नहीं था। गांवों में लोग लोटे में पानी भरकर बस्ती से दूर शौच के लिए जाते थे। नहाने हेतु गांव में स्थित रहट की बाड़ियां थी। रहट चलता रहता था। उससे बाड़ी में बोई फसल व फूलों की बाड़ी की सिंचाई भी होती थी एवं गांव के लोग बे-रोक -टोक उन बाड़ियों में आकर नहाते भी थे एवं अपने कपड़े भी धोते थे। यह गांव में स्वीकृत व्यवहार था कि बाड़ी वाले पानी भरकर ले जाने वाली पनिहारिनों को एवं गांव के लोगों तथा मेहमानों के नहाने में किसी तरह की रोक -टोक नहीं करते थे।
मधुभाई के घर भी मेहमान आये। शौच आदि से गांव के बाहर निवृत्त होकर मधुभाई एवं मेहमान एक बाड़ी पर नहाने गये। रहट चल रहा था। वह दोनों अपने कपड़े रखकर वहां नहाए। इस बीच बाड़ी का मालिक कलेवा (नाश्ता चाय) लेने कुएं पर स्थित झोंपडी में गया। मधुभाई भट्ट एवं उनके मेहमान ने जल्दी-जल्दी में चोरी छिपे अपने थैलों में 8-10 केले, 3-4 सीताफल, कुछ नींबू आदि तोड़कर डाल दिये एवं जल्दी-जल्दी कपड़े पहन बाड़ी के मालिक गंगूभाई को आवाज देकर कि वे जा रहे हैं। मन ही मन दोनों बड़े खुश थे कि नहा भी लिये एवं बाड़ी वाले को मूर्ख बना फल भी ले आये।

घर आकर मेहमान ने मधुभाई से पूछा कि उनकी कमीज के सोने के बटन उनके पास हैं क्या? मधुभाई ने कहा कि नहीं! वह तो जब आप नहाने बैठे तभी आपने अपने कपड़ों में रखे थे। उन्हीं में देखें। मेहमान ने कमीज की सामने की एवं साइड की दोनों जेबें देखीं, पर सोने के बटन नहीं मिले। इस पर मधुभाई ने कहा बटन जरूर जल्दी में बाड़ी में ही रह गये हैं। यदि किसी की नजर पड गई होगी तो अब कैसे मिलेंगे, पर चलकर वहां खोजना जरूर चाहिये। वह दोनों बड़ी परेशान हालत में बाड़ी पर गये एवं जहां कपड़े रखे थे। वहां मिट्टी को उलट पुलट कर देखने लगे।

गंगूभाई रहट की सीट पर बैठा यह सब देख रहा था। उनकी अत्यधिक परेशानी को भांप कर बोला, “बटनों की खोज में आये लगते हो।” उन दोनों की जिनकी नजरें जो जमीन में बटन तलाशने में लगी थीं, एकदम ऊपर उठीं तथा मधुभाई ने कहा “गंगूभाई क्या बटन आपको मिल गये हैं? बटन सोने के थे। चारों बटन सोने की चेन से जुड़े थे एवं सबसे ऊपर वाले बटन पर मालिक का नाम मीने से लिखा था।”

गंगूभाई ने बटनों की सही पहचान पाकर उन्हें एक खाट बिछा, उस पर बिठाकर चाय पिलाई एवं अपने अंगरखे की जेब से बटन निकाल उन्हें सुपुर्द करते हुए कहा क़ि “आइन्दा इतनी उतावली तथा जल्दबाजी नहीं करें। बाड़ीपर तो सभी तरह के लोग बे-रोक टोक नहाने आते हैं। यह तो बटन ही थे और भी ज्यादा कीमती वस्तु हो सकती थी, अतः ऐसे स्थानों पर विशेष सावधानी रखनी चाहिये। हमारे गवई लोगों में यह कहावत मशहूर है कि “उतावला सो बावला।” यदि बुरे आदमी के हाथ चीज लग जाये तो कितना बड़ा नुकसान हो जाये, मधुभाई?

मधुभाई एवं उनके मेहमान गंगूभाई की ईमानदारी, सरलता एवं विवेक के आगे नत-मस्तक तो हुए पर मारे शर्म के जमीन में गड़ गये। मन में सोचा, कहां यह अशिक्षित, ईमानदार एवं नैतिक व्यक्ति जो मेहनत कर मात्र रोटी का जुगाड़ कर पाता है एवं कहां वह पढे लिखे सम्भ्रान्त तथा समृद्ध पुरूष, जो सोने के बटन पहन कर साधारण से केलों, सीताफलों तथा नींबूओं के प्रलोभन में अपने ईमान से मात्र गिरते ही नहीं, अपनी चालाकी भरी चोरी का जश्न मना अगले को मूर्ख समझने की गलतफहमी का बोझ ढोते हैं।

उन्होंने गंगूभाई को हृदय से धन्यवाद एवं ढेर सारे आशीर्वाद देकर घर पहुंचने के पूर्व ही दोनों ने भावी जीवन में ईमानदारी के उच्च आदर्श स्थापित करने का संकल्प लिया।

गणपत कोठारी

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