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सहसा एक दिन

सहसा एक दिन

by सुशांत सुप्रिय
in दिसंबर २०१९, सामाजिक
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पहले-पहल बच्चों के मज़े लग गए। उन्हें पढ़ाई-लिखाई से ़फुर्सत मिल गई। उन्हें लगा जैसे वे सारा नज़ारा हरे रंग का चश्मा लगा कर देख रहे हों। मांएं बच्चों को हरे रंग का दूध पिला रही थीं। चॉकलेट का रंग केवल हरा नज़र आ रहा था। हरे रंग में रंगे कौवे, नीचे उड़ती हरे रंग की चीलों को सता रहे थे। हरे रंग की कोयल जैसे हरियाली के पक्ष में गीत गा रही थी।

बाईसवीं सदी में एक दिन सुबह लोगों की नींद खुली तो वे हैरान रह गए। सब कुछ हरे रंग में रंगा नज़र आ रहा था। खाने-पीने की सारी चीज़ें, सारे कपड़े, पलंग, बिस्तर, दीवारें-सब कुछ हरे रंग का हो गया था। ऐसा लग रहा था जैसे ऊपर वाले ने पूरी कायनात पर हरा रंग उंड़ेल दिया था। लोगों ने खिड़की से बाहर निगाह डाली तो उनकी आंखें खुली की खुली रह गईं। आकाश में हरे रंग का सूरज ज़मीन पर हरी धूप बिखेर रहा था। सारे कीड़े और पशु-पक्षी भी हरे रंग के हो गए थे। ऐसा लग रहा था जैसे हरे रंग ने शेष सभी रंगों को युद्ध में हरा कर पूरे विश्व पर अपना वर्चस्व और आधिपत्य क़ायम कर लिया हो।

यही हाल पूरी दुनिया का हो गया था। क्या अपना देश, क्या विदेश, पूरी दुनिया हरे रंग में डूबी नज़र आ रही थी। टी. वी. पर केवल हरे रंग में प्रसारण हो रहा था। रात होने पर हल्के हरे आकाश में गहरे हरे रंग का चांद जगमगाने लगा। टिमटिमाते सितारे भी हरे रंग में रंगे हुए थे। और तो और, लोगों की धमनियों और शिराओं में दौड़ रहे ख़ून का रंग भी हरा हो गया था। पूरी दुनिया में लोग बदहवास-से घूम रहे थे। आख़िर यह हुआ क्या है? किसी को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था।

आनन-फ़ानन में न्यूयार्क में संयुक्त राष्ट्र संघ की एक आपात बैठक बुलाई गई। बैठक में सभी देशों के चोटी के वैज्ञानिकों की एक समिति का गठन किया गया जो वैज्ञानिक खोज-बीन के आधार पर इस बारे में किसी नतीजे पर पहुंच सके।

पूरे विश्व में इस हरी विपत्ति की वजह से हाहाकार मच गया। स्कूल-कॉलेजों, विश्वविद्यालयों, कोर्ट-कचहरियों और सरकारी दफ़्तरों में छुट्टी की घोषणा कर दी गई। हरी रोशनी का अभ्यस्त न होने की वजह से देश-विदेश में अस्पतालों में रोगियों के ऑपरेशन करने का काम बाधित हुआ। संसद के दोनों सदनों लोकसभा और राज्यसभा का काम-काज भी दिन भर के लिए स्थगित कर देना पड़ा। संसद में कुछ दलों के सदस्यों ने हरी रोशनी और हरे रंग के पक्ष में नारे लगाए। इस पर कुछ दूसरे दलों के सदस्यों ने हरी रोशनी और हरे रंग का पुरज़ोर विरोध करते हुए इसके ख़िलाफ़ नारे लगाए। इन दलों के सदस्यों ने कहा कि हरा रंग और हरी रोशनी हमारे देश की सभ्यता और संस्कृति के अनुरूप नहीं थी। इन दलों ने इसे कोई ‘विदेशी साज़िश‘ क़रार देते हुए इस पूरे घटनाक्रम की सी.बी.आई. से जांच कराने की मांग कर डाली। इन दलों के प्रवक्ताओं ने कहा कि यदि ऐसा ही होना है तो फिर हमारे देश में चारों ओर हरे रंग की बजाए केसरिया रंग का वर्चस्व होना चाहिए।

पहले-पहल बच्चों के मज़े लग गए। उन्हें पढ़ाई-लिखाई से ़फुर्सत मिल गई। उन्हें लगा जैसे वे सारा नज़ारा हरे रंग का चश्मा लगा कर देख रहे हों। मांएं बच्चों को हरे रंग का दूध पिला रही थीं। चॉकलेट का रंग केवल हरा नज़र आ रहा था। हरे रंग में रंगे कौवे नीचे उड़ती हरे रंग की चीलों को सता रहे थे। हरे रंग की कोयल जैसे हरियाली के पक्ष में गीत गा रही थी। रोने पर हरे रंग के आंसू निकल रहे थे। यहां तक कि थूक और पसीने का रंग भी हरा हो गया था। लेकिन सबसे बड़ा बदलाव यह था कि विश्व का सारा जल हरे रंग में बदल गया था।

वैज्ञानिक चीज़ों के हरे रंग पर कई प्रकार के परीक्षण करके इस परिवर्तन की तह में जाने के लिए बेचैन थे। लेकिन किसी को कुछ पता नहीं चल रहा था। ज़ाहिर है, ऐसे में अफ़वाहों का बाज़ार गरम हो गया। हर धर्म के पंडे-पुजारी, मुल्ले-मौलवी, पादरी और धर्म-गुरु इस घटना को अपने ही ढंग से विश्लेषित कर रहे थे। कोई धर्म इसे विश्व में पाप के बढ़ने की वजह से हुआ अपशकुन बता रहा था तो कोई मज़हब इसे कायनात के अंत का सूचक बता रहा था। जब पेड़-पौधे, मिट्टी और पानी-सब हरे रंग के हो गए थे तो यह स्वाभाविक ही था कि लोग तरह-तरह की अटकलें लगाएं।

दूसरा दिन निकला और यही आलम बना रहा। चारों ओर अफ़रा-तफ़री का माहौल था। हर तरफ़ मौजूद हरी रोशनी की वजह से सड़क, रेल और विमान दुर्घटनाएं हो रही थीं जिनमें लोग हताहत हो रहे थे। और तो और, आग का रंग भी हरा हो गया था। इससे ज़्यादा बड़ी समस्या यह थी कि यह हरी रोशनी लोगों पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव डाल रही थी। जब से यह हरी विपत्ति आई थी, लोग सो नहीं पा रहे थे। अनिद्रा रोग से ग्रसित हो जाने के कारण लोगों की सामान्य दिनचर्या प्रभावित हो रही थी। बच्चे इस हरी विपत्ति के बारे में बड़ों से बहुत सारे सवाल पूछ रहे थे। लेकिन बड़े लोग इस समस्या की उत्पत्ति या इसके कारणों से अनभिज्ञ थे। इसलिए वे खीझ कर बच्चों को डांट रहे थे और अपने सिर के बाल नोच रहे थे।

आख़िर अंतरिक्ष-विज्ञान का अध्ययन करने वाली वैज्ञानिकों की एक टीम ने यह ख़ुलासा किया कि हमारी पड़ोसी गैलेक्सी ऐंड्रोमीडा में सम्भवत: हमारे सूर्य से कई सौ गुना बड़े हरे सूर्य में विस्फोट हो जाने की वजह से पृथ्वी पर यह हरी विपत्ति आई है। टेलीस्कोप से लिए गए अंतरिक्ष के उस इला़के के चित्रों के गहन अध्ययन के बाद अंतरिक्ष वैज्ञानिक इस नतीजे पर पहुंचे कि हमारी पड़ोसी आकाशगंगा में हुए इस भयावह और प्रचंड विस्फोट की वजह से जो हरी तरंगें हमारे सौर-मंडल में प्रवेश कर गई थीं उन्होंने हमारे इन्द्रधनुषी स्पेक्ट्रम का स्वरूप ही बदल डाला था। इसी वजह से हमें सब कुछ केवल हरे रंग में रंगा हुआ दिख रहा है। वैज्ञानिकों ने अपने अध्ययन और शोध के आधार पर बताया कि यह केवल एक अस्थाई विपत्ति है और कुछ ही दिनों में स्थिति फिर से सामान्य हो जाएगी।

अधिकांश लोगों को वैज्ञानिकों की इस बात से राहत मिली, हालांकि इस पर प्रश्न-चिह्न लगाने वाले लोगों की भी कमी नहीं थी। विशेष रूप से सभी धर्मों के पंडे-पंडित, मुल्ला-मौलवी, पादरी और धर्म-गुरु अपनी बात से पीछे हटने को तैयार नहीं हुए कि यह घटना कोई दैवी प्रकोप है या आने वाले किसी महा-अनिष्ट या महाविनाश और प्रलय का सूचक है।
किंतु बाईसवीं सदी का इतिहास गवाह है कि एक सप्ताह के भीतर ही हरे रंग का यह प्रकोप समाप्त हो गया और सब कुछ फिर से पहले जैसा सामान्य हो गया।

सुशांत सुप्रिय

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