ब्रेन ड्रेन है ब्रेन गेन

प्रवासी भारतीय भले ही हिंदुस्थान से दूर बसे हो लेकिन उनके दिलों में आज भी हिंदुस्थान बसता है। भारत की हर एक कामयाबी पर प्रवासी भारतीय सबसे अधिक खुश होते हैं। वे सही अर्थ में भारत के ब्रांड एम्बेसडर ही हैं और विश्व में हमारी सबसे बड़ी पूंजी हैं।

आज जो भारतीयों एवं भारत को सम्मान मिल रहा है, दुनिया भर में भारत-भारतीयों का गौरव, गुणगान व चर्चा हो रही है, इसके मूल कारणों में प्रवासी भारतीयों का पूरे विश्व में दिया गया योगदान है। इजराइल के यहूदी समाज के बाद भारतीय समाज ही है जिसकी विश्व में सबसे अधिक प्रशंसा होती है। इजराइल देश की स्थापना के पूर्व यहूदी समाज पूरे विश्व में फैला हुआ था। यहूदी समुदाय जिस देश में रहता था, उसे ही अपनी कर्मभूमि मान कर उस देश की सेवा, सुरक्षा और सम्मान करने लगा। उसी तरह भारतीय भी जिस-जिस देश में गए, उसे अपना घर, परिवार, देश मान कर उस पर अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया। यहां तक कि भारतीयों ने अपना बलिदान देकर भी हर उस देश की रक्षा की जहां वे रहते हैं। इसलिए विदेशी धरती पर भी सर्वाधिक सम्मान भारतीयों को मिलता है।

सांस्कृतिक विरासत है भारतीयों की ताकत

पुरातन-सनातन, संस्कृति, सभ्यता की विरासत को संजोए रखना ही प्रवासी भारतीयों की ताकत बनी। भोगवादी विदेशी धरती पर जाने के बाद भी उन्होंने भारतीय संस्कारों को नहीं छोड़ा और सकारात्मक रूप से निष्ठापूर्वक कठोर परिश्रम के बूते एक के बाद एक सफलता हासिल की। धैर्य, संयम, त्याग, बलिदान, निष्ठा, परिश्रम आदि भारतीय मूल्यों का पालन करते हुए उन्होंने अपना सर्वोच्च सम्मान जनक स्थान प्राप्त किया।

वसुधैव कुटुंबकम्

पूरे विश्व में भारत ही एकमात्र ऐसा देश है जो ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ को मानता है और शत प्रतिशत उसका पालन भी करता है। सनातन धर्म के मूल संस्कारों एवं हिंदुत्व की विचारधारा में पूरे विश्व को परिवार मानने की बात कही गई है। महोपनिषद के अध्याय 4, श्लोक 71 में कहा गया है कि

‘अयं निज: परो वेति गणना लघुचेतसाम्।

उदार चरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्॥

अर्थात – यह अपना है और यह अपना नहीं है, इस तरह की गणना छोटे चित्त वाले लोग करते हैं। उदार हृदय वाले लोगों का तो संपूर्ण विश्व ही परिवार है। प्रवासी भारतीय उक्त श्लोक पर पूरी तरह से खरे उतरते हैं। भारतीयों ने तन, मन व कर्म से यह साबित किया है कि सही मायनों में वे विश्व मानव हैं; क्योंकि वे ही विश्व कल्याण की कामना करते हैं।

प्रवासी भारतीयों के दिलों में बसता है ‘हिंदुस्थान’

प्रवासी भारतीय भले ही हिंदुस्थान से दूर बसे हो लेकिन उनके दिलों में आज भी हिंदुस्थान बसता है। भारत की हर एक कामयाबी पर प्रवासी भारतीय सबसे अधिक खुश होते हैं। मंगलयान, चंद्रयान, चंद्रयान 2, आदि अंतरिक्ष कार्यक्रमों एवं उसकी सफलतापूर्ण उपलब्धियों पर उन्हें भी गर्व होता है। क्रिकेट मैच, टूर्नामेंट या वर्ल्ड कप में हुई भारत की जीत हो, अथवा ओलंपिक में स्वर्ण पदक लाने पर हर भारतवासियों की तरह प्रवासी भारतीय भी खूब मजे लेकर एक दूजे को बधाई व शुभकामनाएं देते हुए आनंदित होते हैं।

दुनिया के लिए आदर्श है भारतीय समाज

सर्वविदित है कि जिस किसी भी देश में भारतीय समुदाय रहता है, उससे उस देश के रहिवासियों को कभी कोई परेशानी, समस्या नहीं हुई। उनमें दंगे-फसाद, कानून-व्यवस्था बिगड़ने की नौबत नहीं आई। भारतीय समुदाय बड़ी ही सहजता से विदेशी समाज के साथ भी ऐसे घुल मिल गया है जैसे चाय में शक्कर। ‘समरसता’ की भावना भारतीयों की सबसे बड़ी खासियत है। भारत में विविधता व अनेकता में एकता का सूत्र लेकर प्रवासी भारतीय सभी के साथ प्रेमपूर्वक रहते हैं। गौरतलब है कि ईसाई मिशनरी जब भी किसी देश में जाते हैं तो वहां वह धर्मांतरण करवाते हैं। इसी तरह कट्टरपंथी मुसलमान भी जिहाद व धर्मांतरण करवाते हैं। सारी दुनिया इस तथ्य से वाकिफ है। लेकिन भारतीय समुदाय जिस किसी भी देश में जाता है तो वहां ऐसी तुच्छ हरकत कभी नहीं करता। इन्हीं कारणों से भारतीय समुदाय को विश्व मानव कहा जाता है।

भारत के ब्रांड एम्बेसडर है एनआरआई

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एनआरआई को सम्मानित करते हुए कई बार कहा है कि सही मायने में प्रत्येक प्रवासी भारतीय भारत का ब्रांड एम्बेसडर है, वह विदेशों में भारत का प्रतिनिधित्व करता है। एनआरआई विदेशी धरती पर अपने आचरण, सद्व्यवहार, विन्रमता, प्रतिभा और कर्म से सबको अपना बनाने का सामर्थ्य रखते हैं। उन्होंने यह साबित भी किया है कि वह जिस किसी देश में रहते हैं जहां का अन्न खाते हैं, उसका केवल गुणगान ही नहीं करते बल्कि उस देश के सभी क्षेत्रों में अपना महत्वपूर्ण योगदान भी देते हैं।

ब्रेन ड्रेन है ब्रेन गेन

अधिकतर भारतवासी ब्रेन ड्रेन (प्रतिभा पलायन) को एक संकट के रूप में देखते हैं, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ब्रेन ड्रेन को ब्रेन गेन (प्रतिभा लाभ) के रूप में देखते हैं। उनका कहना है कि प्रतिभा पलायन उचित समय आने पर भारत के लिए प्रतिभा लाभ में परिवर्तित हो जाएगा और भारत की सेवा करेगा। उन्होंने जोर देकर कहा कि अब समय आ गया है, जब भारतीय दुनिया को अपनी ताकत दिखा सकते हैं। उन्होंने कहा है कि ब्रेन ड्रेन, ब्रेन गेन बन सकता है। यह वास्तव में ब्रेन डिपॉजिट है और सही समय आने पर अपनी मातृभूमि की सेवा करेगा।

अमेरिका में भारतवासियों का योगदान एवं उपलब्धियां

भारत और अमेरिका के संबंध आज बेहतर हो रहे हैं और हर क्षेत्र में दोंनों देश अपनी सहयोग कर रहे हैं। यहीं अमेरिका कुछ समय पूर्व तक अपनी सामरिक रणनीति के तहत पाकिस्तान को हर तरह की सहायता देता था और आंख मूंद कर उस पर भरोसा करता था। अमेरिका की नीति पाकिस्तान परस्त और भारत विरोधी थी। बावजूद इसके अमेरिकी नीति में बदलाव कैसे आया? तो इसके मूल कारणों में अमेरिका में रह रहे भारतवंशी हैं जिन्होंने अपनी काबिलियत का लोहा मनवा कर अमेरिकी नीति को बदलने पर मजबूर कर दिया।

अमेरिका में हैं 38 फीसदी भारतीय चिकित्सक

अमेरिकी समाज की सेवा करने में भारतवंशी सबसे अग्रणी भूमिका में हैं। बताया जाता है कि अमेरिका में 38 फीसदी भारतीय चिकित्सक हैं। एक चिकित्सक के रूप में भारतीयों ने जो अमेरिकी समाज की सेवा की है उसे अमेरिकी समाज कभी नहीं भूला सकता।

नासा में हैं 36 फीसदी भारतीय कर्मचारियों में 12 फीसदी वैज्ञानिक

वैज्ञानिकों के बूते ही अमेरिका आज भी दुनिया का सबसे शक्तिशाली देश बना हुआ है। अमेरिका की वैज्ञानिक प्रगति दुनिया के लिए आश्चर्य है। नासा में भी 36 फीसदी भारतीय कर्मचारी अपनी सेवा दे रहे हैं और उनमें से 12 फीसदी भारतीय वैज्ञानिक हैं।

दुनिया में भारतीयों की ताकत

इसके अलावा राष्ट्रीय अमेरिका भारत वाणिज्य मंडल के अनुसार कम्प्यूटर क्रांति लाने वाली कंपनी माइक्रोसॉफ्ट के 34 फीसदी कर्मचारी भारतीय हैं। इसी तरह आईबीएम के 28 फीसदी और इंटेल के 17 फीसदी से अधिक कर्मचारी भारतीय हैं। भारतीयों की मिलकियत वाली अमेरिका की शीर्ष सौ कंपनियां 2.2 अरब डॉलर से अधिक का कारोबार कर रही हैं। इनके जरिए लगभग 21 हजार लोग रोजगार पा रहे हैं। अमेरिका में 32 लाख लोग भारतीय मूल के हैं। नेशनल साइंस फाउंडेशन (एन सी एस ई एस) की रिपोर्ट के अनुसार एशियाई देशों से अमेरिका जाने वाले वैज्ञानिकों और इंजीनियरों की कुल 29.6 लाख की आबादी में से 9.5 लाख लोग अकेले भारत के हैं। इसी से भारत की सामर्थ्य शक्ति का अंदाजा लग जाएगा। बताया जाता है कि 10 लाख से अधिक भारतीय वैज्ञानिक, डॉक्टर और इंजीनियर विदेशों में कार्यरत हैं।

दुनिया में भारतीयों को देखने का दृष्टिकोण बदला

कुछ दशक पहले अमेरिका या अन्य देशों में भारतीय मूल के लोगों को देखकर वहां के लोग समझते थे कि ये एक गरीब देश से आए हुए लोग हैं, लेकिन अब भारतीय मूल के लोगों को देख कर यही ख्याल आता है कि यह कोई सीईओ होंगे, इंजीनियर, वैज्ञानिक या डॉक्टर होंगे। विदेशों में हमारी प्रगति में बहुत अधिक बढ़ोत्तरी हुई है और अब पहले की अपेक्षा हमें बहुत आदर-सम्मान मिलता है। अमेरिका के सिलिकान वैली में अब हर सात में से एक कंपनी किसी भारतीय मूल के व्यक्ति ने ही शुरू की है।

प्रवासी भारतीय भारत के लिए सबसे बड़ी ताकत बन कर उभरे हैं और वे हमारी सबसे बड़ी पूंजी हैं। विश्व भर में फैले प्रवासी भारतीय सबसे अधिक विदेशी मुद्रा भारत भेजते हैं। विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार अपने देश में विदेशी मुद्रा भेजने के मामले में भारतीय प्रवासी सबसे आगे रहे हैं। रिपोर्ट बताती है कि वर्ष 2018 में प्रवासी भारतीयों ने कुल 80 अरब डॉलर (57 हजार करोड़ रूपए) भारत भेजे। दूसरे नंबर पर चीन है। चीन के प्रवासियों ने 67 अरब डॉलर चीन भेजे थे।

ब्रिटेन में सबसे अमीर भारतीय

ब्रिटेन के 1,000 सबसे अमीर लोगों की सूची में हिंदुजा ब्रदर्स टॉप पर हैं। हिंदुजा ब्रदर्स की निजी संपत्ति 15.5 अरब पाउंड आंकी गई है। भारत में जन्मे हिंदुजा ब्रदर्स ‘एशियन रिच लिस्ट 2015’ में टॉप पर रहे हैं। हिंदुजा समूह का कारोबार डिफेंस, बैंकिंग, ऑटोमोबाइल और पावर सेक्टर में फैला है। लक्ष्मी मित्तल, प्रीति पटेल, अमित गिल, राकेश कपूर, वेंकटरामन कृष्णन, अतीश कपूर ऐसे ही नाम हैं जो ब्रिटेन में दबदबा रखते हैं और ब्रिटेन की सरकार भी उनकी काबिलियत का लोहा मानती है। इसी तरह अन्य देशों में रहने वाले प्रवासी भारतीयों ने भी हर क्षेत्र में स्वयं को साबित किया है और उच्च पदों पर कार्यरत होकर वे कर्मभूमि की सेवा भी कर रहे हैं तथा नेतृत्व भी कर रहे हैं।

विदेशों में सर्वोच्च पद पर पहुंचे प्रवासी भारतीय

विदेशों में सर्वाधिक सर्वोच्च पदों पर सबसे अधिक प्रवासी भारतीय पहुंच पाने में कामयाब हुए हैं, अन्य देशों के प्रवासी नाम मात्र के लिए भी नहीं पहुंच पाए हैं। सुरीनाम के उपराष्ट्रपति राम सर्दजोई, सिंगापुर के राष्ट्रपति देवन नायर, मॉरिशस के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री अनिरूद्ध जगन्नाथ, मॉरीशस के प्रधानमंत्री नवीन रामगुलाम, फिजी के प्रधानमंत्री महेंद्र चौधरी, तीसरी बार गुयाना के राष्ट्रपति बने भरत जगदेव, केनया के उपराष्ट्रपति जोसेफ मुरम्बी, त्रिनिदाद एण्ड टोबैगो की प्रधानमंत्री कमला प्रसाद बिसेसर के नाम प्रमुख हैं।

आयरलैंड के प्रधानमंत्री लियो वेरादकर, मॉरीशस के प्रधानमंत्री प्रविंद कुमार जगन्नाथ, तथा एस.आर.नाथन भी सिंगापुर के राष्ट्रपति रहे। छेदी भरत जगन गुयाना देश के मुख्यमंत्री, राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री रहे। इसके अलावा लुइसियाना के गर्वनर बाबी जिंदल, न्यूजीलैंड के गर्वनर जनरल आनंद सत्यानंद, ब्रिटिश सांसद कीथ बाज, लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी के अध्यक्ष लार्ड ढोलकिया, ब्रिटिश सांसद दादाभाई नौरोजी, अमेरिकी दूत रिचर्ड राहुल वर्मा के नाम शामिल हैं।

मलेशिया, मलावी, मोजाम्बिक, श्रीलंका, दक्षिण अफ्रीका, कनाडा, जिम्बाम्बे, जांबिया, युगांडा, तंजानिया, इंडोनेशिया, आयरलैंड, पनामा, आदि अनेक देशों में प्रवासी भारतीय अपनी नेतृत्व क्षमता का लोहा देश दुनिया में मनवा रहे हैं। विश्व में लगभग 2 करोड़ प्रवासी भारतीय भारत का डंका पूरे विश्व में बजा रहे हैं।

इसी तरह राजनीति, विज्ञान, कारोबार, इंजीनियर, डॉक्टर, शिक्षा, व्यापार, अनुसंधानकर्ता, खोजकर्ता, वकील, प्रबंधक, प्रशासक और आर्थिक क्षेत्रों सहित अन्य सभी क्षेत्रों में प्रवासी भारतीयों ने अपना एक प्रमुख मुकाम बनाया है और भारत का नाम रोशन किया है। आनेवाले समय में अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोप के राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री भारतीय मूल के बने तो आश्चर्य व्यक्त मत कीजिएगा। यह निस्संदेह है कि विश्वभर में फैले भारतीय विश्वगुरू के पद पर भारत को पुन: स्थापित करने के लिए सबसे अहम योगदान देंगे। स्वामी विवेकानंद का भारतीयों के लिए वचन है- उतष्ठित, जाग्रत… याने तब तक चलते रहो जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो।

 

 

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