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स्वा. सावरकर का अपमान नकारात्मक राजनीति की पराकाष्ठा

स्वा. सावरकर का अपमान नकारात्मक राजनीति की पराकाष्ठा

by अमोल पेडणेकर
in जनवरी २०२० - आप क्या चाहते हैं?, सामाजिक
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स्वातंत्र्यवीर सावरकर ने देश के लिए जो त्याग किया वह अलौकिक है। उनके नाखून की बराबरी करना भी गांधी-नेहरू परिवार के बस की बात नहीं। ऐसे गांधी-नेहरू परिवार से संबंधित राहुल गांधी ने केवल स्वातंत्र्यवीर सावरकर का ही नहीं बल्कि भारत माता की अस्मिता का भी अपमान किया है।

कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के द्वारा स्वातंत्र्यवीर सावरकर के बारे में किए गए वक्तव्य के बाद देशभर में आक्रोश की लहर है। दो बार आजीवन कारावास की सजा पाने वाले सावरकर ने देश के लिए बलिदान किया, समाज में सुधार लाने के लिए कार्य किया। उनका चरित्र उज्जवल है। उनके द्वारा किए गए कार्य अलौकिक है। स्वातंत्र्यवीर सावरकर के द्वारा किए गए सामाजिक और राष्ट्रीय कार्यों को इस देश के इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। क्या इन सभी बातों का संज्ञान या ज्ञान कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी को नहीं है? अपनी पार्टी की एक सभा में राहुल गांधी ने कहा कि “माफी मांगने के लिए मैं राहुल सावरकर नहीं हूं।” उनके इस वाक्य के पीछे स्वातंत्र्यवीर सावरकर का अपमान ही था। उनके इस वक्तव्य के बाद संपूर्ण देश में उनके ऊपर टिप्पणी हुई। दो बार आजीवन कारावास की सजा प्राप्त करने वाले स्वातंत्र्यवीर सावरकर का बलिदान क्या राहुल गांधी को समझ में नहीं आता? जिस व्यक्ति ने अपने पूर्वजों के नाम पर राजनीतिक सुखों का उपभोग किया है, जिसकी मां विदेशी है, जिसकी शिक्षा विदेश में हुई है, ऐसे राहुल गांधी को भारत माता के लिए बलिदान देने वाले स्वातंत्र्यवीर सावरकर का बलिदान कैसे समझ में आएगा? स्वातंत्र्यवीर सावरकर ने मातृभूमि के लिए अपने जीवन की आहुति दी है। अपना पूरा जीवन देश को स्वतंत्र करने के लिए अर्पण किया है। स्वातंत्र्यवीर सावरकर ने देश के लिए जो त्याग किया वह अलौकिक है। उनके नाखून की बराबरी करना भी गांधी-नेहरू परिवार के बस की बात नहीं। ऐसे गांधी-नेहरू परिवार से संबंधित राहुल गांधी ने केवल स्वातंत्र्यवीर सावरकर का ही नहीं बल्कि भारत माता की अस्मिता का भी अपमान किया है। स्वातंत्र्यवीर सावरकर के प्रति श्रद्धा और निष्ठा रखने वाले करोड़ों भारतीय लोगों का भी अपमान राहुल गांधी ने जानबूझकर किया है।

इतनी जहरीली भाषा का प्रयोग राहुल गांधी ने क्यों किया होगा? इसके पीछे का सत्य ढूंढने का प्रयास करने पर हमारे सामने कुछ बातें स्पष्ट होती हैं। लोकसभा के चुनाव में इस बार कांग्रेस का दोबारा दारुण पराभव हुआ है। लोकसभा में विरोधी पक्ष नेता का पद प्राप्त करने के लायक सींटे भी कांग्रेस को प्राप्त नहीं हुई है। अमेठी का गढ़ भी राहुल गांधी बचा नहीं पाए। राफेल के मुद्दे पर भी उन्हें अपमानजनक हार ही स्वीकार करनी पड़ी। निरंतर इस प्रकार का एक माहौल तैयार हो रहा है, जैसे राहुल गांधी और पराजय हाथ में हाथ डालकर कांग्रेस के अध:पतन का कारण बन रहे हैं। इस असफल राहुल गांधी की जीभ अचानक स्वातंत्र्यवीर सावरकर मुद्दे पर फिसलने का क्या कारण है? राहुल गांधी का इस प्रकार के उत्तेजक और अज्ञानी वाक्यों से पुराना संबंध रहा है। चाहे कोई कितनी भी टिप्पणी कर ले, समाज में उसकी बचकानी सी प्रतिमा हो, इन सब के परिणाम स्वरूप कांग्रेस पार्टी की कितनी भी बदनामी हो, राहुल गांधी के भड़काऊ तथा आरोप करने वाले भाषण निरंतर चलते रहे हैं।

राहुल गांधी ने यह भी आरोप लगाया था कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने महात्मा गांधी की हत्या की है। उन पर कोर्ट में मुकदमा भी दायर किया गया। उन्होंने माफी मांगने से इंकार किया अत: यह मुकदमा अभी भी चल रहा है। उनके विरुद्ध कई सबूत होने के कारण उनकी जेल जाने की संभावना भी है।

‘चौकीदार चोर है’, इस वाक्य का प्रयोग भी उन्होंने लोकसभा चुनावों के दौरान भरपूर किया। परंतु भूलवश एक दिन वे अचानक कह बैठे कि ‘चौकीदार चोर है’, यह सुप्रीम कोर्ट ने कहा है। अपने इस एक वाक्य के कारण राहुल गांधी मुश्किल में फंस गए। अगर उन्होंने अपने इस एक वाक्य के लिए सुप्रीम कोर्ट से माफी ना मांगी होती तो उन्हें जेल जरूर जाना पड़ता। न्यायालय का अपमान करने के कारण उन्हें सुप्रीम कोर्ट ने खरी-खोटी सुनाते हुए कहा था कि आगे से मुंह संभाल के बात किया करें। परंतु इतना सब होने के बाद भी राहुल गांधी का बचपना और अज्ञान यह समीकरण कायम है। उनका दिमाग ठिकाने आने के कोई चिह्न दिखाई नहीं देते। इस सारी पार्श्वभूमी पर अपनी तथा कांग्रेस पार्टी की प्रतिमा को संभालने के लिए राहुल गांधी का जबान संभाल कर बात करना अच्छा होता। परंतु राहुल गांधी ने अपने अज्ञान, बचपने तथा राष्ट्रीय अस्मिता का अपमान करने के अपने स्वभाव को जनता के सामने फिर से प्रस्तुत कर दिया।

स्वातंत्र्यवीर सावरकर के विरोध में इस प्रकार के वक्तव्य देने का कारण क्या था? राहुल गांधी ने झारखंड विधानसभा चुनावों की प्रचार सभा में बोलते हुए ‘रेप इन इंडिया’ इस प्रकार का आरोप किया था। झारखंड विधानसभा के चुनाव प्रचार के दौरान राहुल गांधी यह आरोप कर रहे थे कि ‘मोदी सरकार मेक इन इंडिया का नारा दे रही है, परंतु वास्तविकता में देश की स्थिति रेप इन इंडिया हो गई है।’ बलात्कार तथा महिला हत्याकांड अत्यंत संवेदनशील विषय है। जनता की भावना इस संदर्भ में अत्यंत संवेदनशील है। हैदराबाद पुलिस ने जब 4 आरोपियों का एनकाउंटर किया था, उस समय इस प्रकरण को अलग दिशा मिली थी। बलात्कार तथा महिला हत्याकांड राज्य सरकार की कानून तथा सुव्यवस्था के अंतर्गत आता है, यह सीधा केंद्र सरकार का विषय नहीं है। यह बात ध्यान रखकर उन्हें अपनी जुबान खोलने की आवश्यकता थी। अत: राहुल गांधी के ‘रेप इन इंडिया’ वक्तव्य पर देशभर में चारों ओर से टिप्पणियां होने लगी। संसद की दोनों सभाओं में भी वातावरण गर्म हो गया था। राहुल माफी मांगे, यह मांग लोकसभा तथा राज्यसभा के दोनों सदनों में तथा की जनता की ओर से भी की जा रही थी। परंतु राहुल गांधी ने माफी मांगने से तो साफ मना कर ही दिया, झारखंड के चुनावों के प्रचार के दौरान एक आम सभा में कहा कि ‘माफी मांगने के लिए मैं राहुल सावरकर नहीं हूं।’ ऐसा वक्तव्य करके राहुल गांधी ने स्वातंत्र्यवीर सावरकर जैसे देशभक्त तथा भारतीय अस्मिता का अपमान किया है।

भारत को अंग्रेजों के चंगुल से छुड़ाने के लिए क्रांति के माध्यम से प्रयत्न करने वाले स्वातंत्र्यवीर सावरकर तत्कालीन क्रांतिकारियों में शीर्ष स्थान पर थे। उनके ज्वलंत विचार तथा ज्वलंत साहित्य देश के युवाओं के मन में देश की स्वतंत्रता की क्रांति ज्योति जला रहे थे। इसलिए उसकी धधक लंदन से लेकर भारत तक के अंग्रेजों को चिंतित कर रही थी। 13 मार्च 1910 को लंदन में स्वातंत्र्यवीर सावरकर को बम बनाने का प्रशिक्षण देने के आरोप के तहत बंदी बनाया गया। बंदी बनाकर अंग्रेज जब उन्हें जहाज से जलमार्ग के द्वारा भारत भेज रहे थे, तब उफनते हुए सागर में स्वातंत्र्यवीर सावरकर ने छलांग लगाई और कई घंटों तक तैर कर फ्रांस के किनारे पर पहुंचे। परंतु उस समय के अंतरराष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन करके स्वातंत्र्यवीर सावरकर को फिर से अंग्रेजों को सौंप दिया गया। उन पर मुकदमा चला तथा उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। उन्हें खतरनाक कैदी मानकर अमानवीय यातनाएं दी गई। नारियल की कात से रस्सी बनाना, कोल्हू के बैल की तरह स्वयं जुतकर रोज 30 पाउंड तेल निकालना, स्वातंत्र्यवीर सावरकर को सजा के रूप में अंडमान की जेल में यह काम करने पडते थे। अंडमान के कारावास के बारे में यह बात प्रसिद्ध थी, कि जो उस कारावास में जाता है उसका मृत देह ही वहां से बाहर जाता है। परंतु स्वातंत्र्यवीर सावरकर की नसों में राष्ट्रभक्ति इस प्रकार भरी थी कोल्हू के बैल की तरह तेल निकालते समय या अमानवीय अत्याचार सहन करते हुए भी उनके मुंह से वंदे मातरम का उद्घोष निकल रहा था। स्वातंत्र्यवीर सावरकर ने अपनी देशभक्ति का अत्यंत उत्तम उदाहरण दुनिया के सामने रखा है।

27 वर्षों की अमानवीय यातना सहन करने के बाद मई 1937 में स्वातंत्र्यवीर सावरकर जेल से बाहर आए। तो उस समय भी तत्कालीन कांग्रेस ने स्वातंत्र्यवीर सावरकर का कभी सम्मान नहीं किया। उस समय स्वातंत्र्यवीर सावरकर की लोकप्रियता का देशभर में जो वातावरण था उसके कारण पूरा देश उनकी ओर आकर्षित हो रहा था। ऐसी परिस्थिति में कांग्रेस को डर लग रहा था कि कहीं भारत देश के नागरिक कांग्रेस के विचारों को तिलांजलि देते हुए स्वातंत्र्यवीर सावरकर को राष्ट्रीय नेता ना मान लें। इसी डर के कारण कांग्रेस ने उसी समय से स्वातंत्र्यवीर सावरकर की प्रतिमा को मलिन करने का प्रयत्न शुरू कर दिया था। गांधी हत्या का आरोप कांग्रेस ने स्वातंत्र्यवीर सावरकर पर लगाया था। कांग्रेस ने स्वातंत्र्यवीर सावरकर पर जो आरोप लगाए थे, वे झूठे साबित हुए और न्यायालय ने उन्हें सम्मान पूर्वक रिहा कर दिया। स्वातंत्र्यवीर सावरकर की मृत्यु के बाद भी कांग्रेस के मन से उनका द्वेष कम नहीं हुआ। संसद में कुछ सांसदों ने स्वातंत्र्यवीर सावरकर की मृत्यु के उपरांत शोक प्रस्ताव रखा। परंतु स्वातंत्र्यवीर सावरकर के योगदान का संज्ञान ना रखने वाली कांग्रेस ने अत्यंत विद्वेष पूर्ण भावना के साथ यह प्रस्ताव रोक दिया। स्वातंत्र्यवीर सावरकर की मृत्यु के पश्चात संसद में पेश किए गए शोक प्रस्ताव को रोकते हुए कांग्रेस ने यह मुद्दा उठाया था कि स्वातंत्र्यवीर सावरकर संसद सदस्य नहीं थे अतः उनकी मृत्यु के पश्चात संसद भवन में शोक प्रस्ताव नहीं रखा जाएगा।

परंतु जब इंग्लैंड के प्रधानमंत्री विस्टन चर्चिल का निधन हुआ उसके बाद उन्हें श्रद्धांजलि अर्पण करने वाला शोक प्रस्ताव इसी भ्रष्ट कांग्रेस ने संसद में उपस्थित किया था तथा उन्हें श्रद्धांजलि भी दी थी। अपनी मातृभूमि को अंग्रेजों के चंगुल से मुक्त कराने वाले, अपना जीवन अर्पण करने वाले स्वातंत्र्यवीर सावरकर के प्रति कांग्रेस की विद्वेष पूर्ण भावना का यह उत्तम उदाहरण है। जिन अंग्रेजों ने भारत पर जुल्म किए उस ब्रिटेन के प्रधानमंत्री विस्टर्न चर्चिल को भारत की संसद में सम्मान पूर्वक श्रद्धांजलि दी जाती है, यह कांग्रेस की गुलाम मानसिकता का ही उदाहरण है। वही मानसिकता सोनिया गांधी के आगे जी हजूरी करने वाले कांग्रेसियों के खून में उतरी है। स्वातंत्र्यवीर सावरकर का तैलचित्र संसद भवन में लगाने के लिए भी कांग्रेसियों ने विरोध किया था। कांग्रेस सरकार में मंत्री रहे, अत्यंत बड़बोले और भारतीय अस्मिता का निरंतर अपमान करने वाले मणिशंकर अय्यर ने अंडमान की जेल के कीर्ति स्तंभ पर लगा हुआ स्वातंत्र्यवीर सावरकर से संबंधित शिलालेख भी विद्वेषपूर्ण भावना के साथ हटा दिया था और उसकी जगह महात्मा गांधी का शिलालेख लगा दिया था। जिन स्वातंत्र्यवीर सावरकर ने भारत को स्वतंत्र करने के लिए, अपने जीवन का क्षण-क्षण इस देश की माटी के लिए अर्पण किया उनके बारे में इस प्रकार की कृति करने से पहले कोई भी भारतीय दस बार विचार करेगा। परंतु नेहरू-गांधी परिवार से निष्ठा रखने वाले इन कांग्रेसियों ने अपने स्वार्थ के अलावा और कोई विचार नहीं किया।

यह आरोप लगाया जाता है कि 1947 में भारत देश स्वतंत्र होने के बाद भी जवाहरलाल नेहरू ने 1950 तक किंग जॉर्ज को ही भारत का सम्राट माना तथा महत्वपूर्ण निर्णय लेते समय उनसे अनुमति ली। कांग्रेसियों ने कभी भी राष्ट्रीय अस्मिता या राष्ट्रीय सम्मान के बारे में सोचा ही नहीं। उन्होंने तो केवल नेहरू-गांधी परिवार के प्रति समर्पित रहने का व्रत ले रखा है। अतः जब कांग्रेस ने सत्ता के लिए देश का विभाजन किया, आधा कश्मीर थाली में सजाकर पाकिस्तान को दे दिया, 1962 में देश का सबसे बड़ा भूभाग चीन को देकर भारत की नाक काट दी, तभी कांग्रेसी भारत की अखंडता का सपना भूल गए थे।

ऐसे स्वार्थी कांग्रेस की पूजा करनी चाहिए या देश को स्वतंत्रता देने के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले स्वातंत्र्यवीर सावरकर जैसे व्यक्ति की पूजा करनी चाहिए, इसका निर्णय भारतीय जनता को करना था। 2014 में हुए चुनावों में राष्ट्र हित का विचार करते हुए भारत की जनता ने योग्य निर्णय लिया। उन्होंने राष्ट्रीय अपमान के सभी प्रतीकों को धो डालने की क्षमता रखने वाले व्यक्ति अर्थात नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री के रूप में चुना।

इतना सब होने के बावजूद भी मूल्यहीन, लालची, भोगवादी तथा राजनैतिक स्वार्थ का जतन करने वाली कांग्रेस तथा उसका नेतृत्व संभल नहीं रहा है। अभी भी कांग्रेस के द्वारा वही चित्र देश के सामने उपस्थित किया जाता है। कांग्रेस तथा देश की संस्कृति का विरोध करने वाले अलग-अलग राजनीतिक और सामाजिक संगठन स्वातंत्र्यवीर सावरकर के विषय में अफवाह फैलाने में आगे रहते हैं। उसके कारण स्वातंत्र्यवीर सावरकर का राष्ट्रीय योगदान आज की युवा पीढ़ी तक सकारात्मक पद्धति से नहीं पहुंच पा रहा है। कल के भारत के भविष्य तथा किशोरावस्था के विद्यार्थियों तक भारत की परंपरा तथा अस्मिता उपयुक्त तरीके से पहुंचाने की आवश्यकता है। भारत के अनेक महापुरुषों के जीवन चरित्र, उनके जीवन आदर्श, उनके अतुलनीय समाज कार्य अत्यंत सरल भाषा में परंतु परिणामकारक पद्धति से देश की भावी पीढ़ी तक पहुंचाने की आवश्यकता है। यह भारत सरकार का भी कर्तव्य है, शिक्षा व्यवस्था का भी कर्तव्य है तथा ज्येष्ठ नागरिकों का भी कर्तव्य है।

1857 से 1947 तक के 90 वर्षों का संघर्षपूर्ण रोमांचकारी भारतीय इतिहास, स्वतंत्रता की लड़ाई अपनी आंखों के सामने लाएं। वीरांगना लक्ष्मीबाई से लेकर स्वातंत्र्यवीर सावरकर तक अनेकों की जीवन समिधा ने क्रांति के जिस यज्ञ को जलाए रखा है, उनकी जानकारी आज की और भावी पीढ़ी तक पहुंचनी ही चाहिए। देश के लिए उनके द्वारा किया गया त्याग और समर्पण निश्चित ही भावी पीढ़ी को उत्साह देगा और समाज के लिए लड़ने हेतु प्रवृत्त करेगा। स्वातंत्र्यवीर सावरकर जिस प्रकार क्रांतिसूर्य थे उसी तरह वे समाज सुधारक भी थे। उनका प्रत्यक्ष कृति करने पर जोर अधिक था। वे कहते थे, ‘अस्पृश्यता पर बात करने से, लेख लिखने की अपेक्षा स्पृश्य-अस्पृश्य का एक साथ पंगत में बैठकर सहभोजन का आनंद लेना ही सही मायने में समता, ममता और हिंदुत्व है।’ स्वातंत्र्यवीर सावरकर की क्रांतिकारक के साथ ही, समाज सुधारक के रूप में भी समाज को पहचान होना आवश्यक है। सिर्फ उन्हें नकारात्मक दृष्टि से प्रस्तुत करने वाले कांग्रेसियों को दोष देते रहना सही नहीं है। अगर सही मायने में भारतीय संस्कृति को भावी पीढ़ी के सामने सकारात्मकता के साथ रखना है तो सत्य को समाज के सामने हमें ही प्रस्तुत करना पड़ेगा।

भारतीय संस्कृति में महापुरुष के संदर्भ में उत्तम विचार प्रस्तुत किए गए हैं। हम जिन्हें महापुरुष कहते हैं, उनके कार्यों से इतिहास लिखा जाता है। अतः भारत भूमि पर सैकडों महापुरुष जन्म लेते रहे हैं। विदेशियों के आक्रमण, अंग्रेजों के राज, गुलामी इन सब के बावजूद इन महान कर्मयोगियों का योगदान भारत को मिला है। भारत के सामने की तत्कालीन समस्या को हल करने की प्रत्येक की प्रेरणा अलग थी, योजना अलग थी, परंतु उद्देश्य सभी का एक ही था- ‘गुलामी की जंजीरों से भारत माता को मुक्त करके स्वतंत्रता की स्थापना करना।’ राजनैतिक परिवर्तन के साथ ही सामाजिक परिवर्तन का महत्व जानने वाले नेतृत्व भारत में थे। इस प्रकार के भारतीय महापुरुषों के व्यक्तित्व को कांग्रेस ने जानबूझकर अंधेरे में रखा। हांलाकि नकारात्मक घटनाओं को अधिक समय तक छुपा कर रखा नहीं जा सकता। जिस प्रकार समाज व्यवस्था में परिवर्तन होता है, उसी प्रकार राजनीति में भी परिवर्तन होता है। इतिहास में घटित हुई घटनाओं का, इतिहास के नेतृत्व का, वर्तमान की नई परिस्थिति की पार्श्वभूमि पर विश्लेषण किया जाता है तथा राष्ट्र के विकास में जो अवरोध निर्माण हुआ है, जिस अवरोध के कारण देश के सामने प्रश्न उत्पन्न हुए हैं उनका उत्तर ढूंढने की इच्छा लोगों में जागृत होती है। जब लोगों की भावनाओं को योग्य नेतृत्व का साथ मिलता है, तब मन में उठे प्रश्नों के उत्तर ढूंढे जाते हैं और नई राजनीति की शुरुआत होती है। आज भारत में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में नई तथा सकारात्मक राजनीति की शुरुआत हुई है। इस पर अधिक कुछ कहने की आवश्यकता नहीं है। अतः जब-जब महापुरुषों पर संकुचित दृष्टिकोण से देखने का कार्य कांग्रेस की ओर से किया जाएगा, तब-तब महापुरुषों का इस देश से, इस देश की मिट्टी से तथा वर्तमान से संबंध ढूंढने का प्रयास भारतीय जनता अवश्य करेगी। हमें केवल इतना प्रयत्न करना है कि हमारी संस्कृति नए ज्ञान के माध्यम से नई पीढ़ी तक पहुंचे। अंत में इन सभी विवादों और राजनीति से परे होकर संपूर्ण नये भारत का निर्माण करने की ओर हमारा ध्यान होना आवश्यक है।

अमोल पेडणेकर

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